Friday, January 6, 2012

जिहाल-ए-मस्ती, मकुन-ब-रंजिश

Ashok mishra

जिहाल-ए-मस्ती, मकुन-ब-रंजिश

बहार-ए-हिज्रां, बेचारा दिल है

सुनाई देती है जिसकी धड़कन

तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।

मेरे एक साथी ने इसका तर्जुमा (अनुवाद) कुछ इस तरह किया। एक प्रेमी-प्रेमिका हैं जो जिहाल-ए गांव में आए दिन मस्तियां करते रहते थे जिसकी वजह से मकुन गांव के लोग रंजिश रखने लगे। ऐसे में दोनों के मिलने-जुलने में बाधा पड़ने से बहार वाली रातें भी हिज्र (विरह) की रात बन गई और ऐसे में दोनों के दिल बेचारे मन मसोस कर रह गए। मिलने जुलने और मस्ती न हो पाने से प्रेमी युगल उच्चरक्तचाप के रोगी हो गए और एक दिन जब एक मेले में दोनों की मुलाकात हुई, तो वे यह नहीं समझ पाए कि यह दिल जो जोर-जोर से धड़क रहा है, वह किसका है? प्रेमी ने आखिर प्रेमिका से पूछ ही लिया कि यह धड़कन से सुनाई दे रही है, वह तुम्हारी है या मेरी।

मेरा ख्याल है कि आप भी इस तर्जुमा से सहमत होंगे।

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