Tuesday, August 5, 2014

सड़े टमाटर और उस्ताद गुनहगार

 -अशोक मिश्र 
मैं जैसे ही थैला लेकर गली के मोड़ पर पहुंचा, उस्ताद गुनहगार खड़े नजर आये। मैंने प्रणाम करते हुए कहा, 'उस्ताद ! आज आपके हाथ में थैले की जगह बोरी है। क्या आज भंडारा करने जा रहे हैं ? लगता है आज पूरी मंडी में कोई भी सब्जी नहीं बचेगी।' गुनहगार ने मुझे घूरते हुए कहा , 'बरखुरदार अपनी चोंच बंद रखो और चुपचाप मेरे साथ चलते रहो।' मैं गुनहगार के साथ किसी बच्चे की तरह पीछे-पीछे चलता रहा। बीच में एकाध बार मुंह खोलने की सोची लेकिन फिर चुप्पी साध गया।   
बाजार में पहुँचते ही उस्ताद गुनहगार टमाटर खोजने में व्यस्त हो गए। घर से चलते समय घरैतिन ने बीस-पच्चीस ग्राम टमाटर लाने को कहा था, सो मैंने सोचा जब उस्ताद ले ही रहे हैं, तो उन्ही से एक टमाटर मांग लूंगा। एक सब्जी दुकान पर पहुंचकर गृहनगर ने कहा, 'भैया...सड़े टमाटर हैं क्या ?' गुनहगार की बात सुनते ही पता नहीं मुझे क्या मज़ाक सूझी, मैंने भी दुकानदार से पूछ लिया, 'भैया ...मीठे वाले देवा पहाड़ी आलू है क्या?' मेरे इतना पूछते ही बगल में खड़े होकर आलू छांट रही महिला के हाथ रुक गए। तभी दुकानदार ने हँसते हुए कहा, ' भाई साहब! ले लीजिये बहुत मीठे हैं आलू।' यह सुनते ही आलू छांट रही महिला ने पाली बैग में छांट कर रखा गया आलू ढेर में उलट दिया और चलती बनी। दुकानदार लाख चिल्लाता रहा, 'बहन जी ..अरे सुनिए। साहब तो मज़ाक कर रहे थे।  आलू मीठे नहीं हैं।' लेकिन उस महिला ने पलट कर भी नहीं देखा। सब्जी वाले ने मुझे इस तरह घूरकर देखा मानो कच्चा ही चबाकर खा जायेगा। मैंने भी सिटपिटा कर निगाहें फेर ली। उस्ताद गुनहगार ने पहले तो मुझे घूरा और फिर बेतहाशा हंस पड़े। बोले, 'बेटा ...नक़ल के लिए भी अकल की जरुरत होती है। तुम्हें जो सब्जी चाहिए खरीद लो, तब तक मैं भी अपनी जररूत के हिसाब से मार्केटिंग करता हूँ। ' 
मैंने उस्ताद से कहा, 'आप चिंता न करें। पहले आप खरीददारी कर लें, मैं उसमें आपकी सहायता करता हूँ। फिर मैं भी कुछ ख़रीद लूंगा। मुझे कुछ ज्यादा नहीं खरीदना है।' गुनहगार ने सकारात्मक भाव से अपनी मुंडी हिलाई बोले, 'तो चलो सबसे पहले टमाटर खरीदते हैं। मुझे किलो-दो किलो टमाटर नहीं खरीदना है। मुझे लगभग आधा क्विंटल टमाटर खरीदना है। इसमें थोड़ा समय लग सकता है क्योँकि मुझे अच्छे नहीं, सड़े टमाटर चाहिए।' गुनहगार की बात सुनकर मैं भौंचक्का रह गया। मैंने आश्चर्य व्यक्त  कहा, 'उस्ताद जब सारी दुनिया सड़े टमाटर या अंडे खरीदने से परहेज करती है, तब आपको सड़े टमाटर खरीदने की यह खब्त क्योँ सवार है। मामला क्या है आखिर मैं भी जानूँ।' मेरी सुनकर गुनहगार मुस्कुराये और सिर्फ इतना ही कहा, 'समय आने पर तुम्हें सब कुछ पता चल जाएगा। फिलहाल मुझे खरीददारी करने दो।' इतना कह कर उस्ताद अपने काम में जुट गए। करीब ढाई घंटे के अथक परिश्रम के बाद पच्चास किलो सड़ा टमाटर, आधा किलो आलू, पाव भर प्याज, दस ग्राम लहसुन खरीदकर गाते-गुनगुनाते उस्ताद गुनहगार घर लौट आए। मैंने कुछ नहीं ख़रीदा। रास्ते में मैंने लाख पूछा, लेकिन गुनहगार ने नहीं बताया। 
शाम को जब पेट में गुड़गुड़ ज्यादा हुई तो गुनहगार की नजर बचाकर भाभी से मिला और माजरा पूछा। भाभी ने बड़बड़ाते हुए कहा, 'पता नहीं क्यों, पिछले कुछ दिनों से अच्छे दिन और रैली-रैली बड़बड़ा रहे हैं।' भाभी की बातों से जो मैं समझ पाया, वह यह है कि अच्छे दिन न आने से निराश गुनहगार को नेताओं की रैलियों का इंतजार है। वे तब तक सड़े टमाटरों में से अच्छे छांट-बीन कर सलाद खा रहे हैं और बाकि बचे हुए को सहेजकर रैलियों के लिए रखे हुए हैं।  
(6 अगस्त 2914 को कल्पतरु एक्सप्रेस में प्रकाशित )

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