Wednesday, August 14, 2019

सिर्फ देह नहीं होते हैं पिता

-अशोक मिश्र
कभी बूढ़े नहीं होते पिता
बेटे की नजर में
भले ही हो गई हो काया जर्जर, रोगग्रस्त
तब भी पिता अपने बेटे का होता है सबसे बड़ा अवलंबन।
गरीबी, बेकारी, भुखमरी, टीबी, कैंसर से जूझता बूढ़ा पिता
तब भी बूढ़ा नहीं होता अपने बच्चों की नजर में।
बच्चे उसे हमेशा समझते हैं जवान
मिल्खा सिंह की तरह तेज तर्रार धावक
मिल्खा सिंह आज भले ही हो गए हों बूढ़े
पर पिता मिल्खा सिंह आज भी जवान है, युवा है।
पिता
सिर्फ पिता नहीं होते किसी बेटे के लिए
और न ही सिर्फ देह होते हैं
और भी बहुत कुछ होते हैं पिता
घुप्प अंधियारी रातों में
उनींदी आंखों में चमक उठते हैं पिता
किसी जुगून की तरह
ज्वार-भाटा से थरथराते समुद्र के किनारे
प्रकाश स्तंभ की तरह
टाफियां, खिलौने, जमीन-जायदाद न दिला पाने वाले
पिता की बेबसी और लाचारी
महसूसते हैं बच्चे खुद पिता बनने के बाद।
जैसे माता कुमाता नहीं होती
ठीक उसी तरह
कभी बुरा नहीं होता पिता
पिता भले ही हो नाकारा, रोगी, जुआरी, अय्यास
कमा कर न लाता हो एक भी धेला घर में
पिता तब भी बुरा नहीं होता
जब वह बिना किसी गलती के पीटता है अपने बेटे को।
पिता न कभी बूढा होता है, न कभी बुरा होता है।
पिता सिर्फ एक पिता होता है
और एक दिन
जब चल देते हैं पिता
इस संसार से
तब वह छोड़ जाते हैं अपने पीछे
कभी न भरा जाने वाला एक शून्य
अनंत शून्य।

(हमारे सीनियर साथी राजीव कुमार के पिता की मृत्यु पर विनम्र श्रद्धांजलि)

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 16 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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