बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
ग्यारहवीं शताब्दी में परमार वंश के राजा हुए हैं भोज। धारा नगरी के राजा सिंधुल के पुत्र भोज थे। जब भोज पांच साल के थे, तब इनके पिता सिंधुल की मौत हो गई थी। भोज के चाचा मुंज पर राज्य और इनके पालन-पोषण का भार आ पड़ा। बाद में मुंज के मन में राज्य का लोभ आ गया और उसने बंगाल के वत्सराज को भोज की हत्या का दायित्व सौंपा। वत्सराज को भोज की हत्या करने का साहस नहीं हुआ।
बाद में भोज के मारे जाने की बात सुनकर मुंज को बहुत अफसोस हुआ। तब वत्सराज ने सच्ची बात बताई। तब मुंज राजपाट भोज को सौंप कर पत्नी के साथ वन को चले गए। एक बार की बात है। राजा भोज अपने राज कवि पंडित धनराज के साथ कहीं जा रहे थे। काफी देर तक चलने से वह काफी थक गए थे, तो एक बरगद के पेड़ के नीचे रुक गए।
थोड़ी देर बाद राजा भोज की निगाह ऊपर गई तो उन्होंने देखा कि मधुमक्खियों ने अपना छत्ता लगा रखा है। छत्ता शहद से पूरा भर गया था। वह गिरने ही वाला था। उस पर लगी मधुमक्खियां अपने पैर छत्ते पर रगड़ रही थीं। तब राजा भोज ने राजकवि धनपाल से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि इन मधुमक्खियों को इस बात का अफसोस हो रहा है कि उनके द्वारा बनाया गया छत्ता अभी गिर जाएगा।
इतनी मेहनत से तैयार किए गए शहद का आनंद कोई दूसरा उठाएगा। इसी दुख में वह अपने पैर रगड़ रही हैं। इस संसार में अकसर देखने को मिलता है कि मेहनत कोई करता है, उस मेहनत के प्रतिफल का आनंद कोई दूसरा उठाता है। ऐसी स्थिति में मेहनत करने वाले के पास पछताने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं होता है। यह बात सुनकर राजा भोज सारी बात समझ गए। उन्होंने थोड़ी देर सुस्ताने के बाद अपनी राह ली।
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