Wednesday, December 3, 2025

कार्त्यायनी अम्मा ने बुढ़ापे में पास की परीक्षा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

यदि कुछ कर गुजरने की आकांक्षा और लगन हो, तो कोई भी काम असंभव नहीं होता है। उम्र भी काम में बाधा नहीं बनती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया था केरल राज्य के हरिपद जिले के चेपड़ की रहने वाली कार्त्यायनी अम्मा ने। कार्त्यायनी अम्मा का जन्म 1922 को हुआ था। उनका बचपन काफी गरीबी में बीता था। छोटी उम्र में ही उन्हें पढ़ाई-लिखाई करने की जगह सड़कों पर झाडू लगाने और लोगों के घरों में नौकरानी का काम करना पड़ा। बड़ी होने पर उन्होंने विवाह किया और उनके छह बच्चे पैदा हुए। 

इसी तरह उनका जीवन बीतता रहा। लेकिन असली मोड़ तब आया जब उनकी बेटी ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। तब तक उनकी उम्र 94-95 साल हो चुकी थी। आमतौर पर इतनी उम्र के बाद लोग कुछ करने की चाहत नहीं रखते हैं। लेकिन जब बेटी ने उन्हें प्रेरित किया, तो उन्होंने भी ठान लिया कि अब पढ़ना-लिखना है। घर पर उनके पौत्र-पोत्रियों ने पढ़ाई में उनकी मदद की। 

उन्होंने 96 साल की उम्र में केरल राज्य साक्षरता मिशन अथारिटी की ओर से संचालित अक्षरलक्ष्यम साक्षरता परीक्षा में भाग लेने का फैसला किया। उन्होंने बड़े जोश के साथ परीक्षा दी। इस परीक्षा में उन्होंने सौ में से 98 अंक हासिल करके रिकार्ड तोड़ दिया। उस साल अक्षरलक्ष्यम परीक्षा में चालीस हजार से ज्यादा लोगों ने परीक्षा दी थी। परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद तो वह पूरे देश में मशहूर हो गईं। 

उनकी जिजीविषा को देखते हुए 2019 में उन्हें कॉमनवेल्थ आफ लर्निंग का गुडविल पुरस्कार दिया गया। अगले साल तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 2021 में उनकी मृत्यु हो गई।

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