Sunday, June 6, 2010

'टाईअप-ब्रेकअपÓ का खेल

मैं पार्क में पहुंचकर सीमेंट की बेंच पर बैठा ही था कि बगल में खाली स्थान पर एक चौदह वर्षीय लड़की आकर बैठ गयी। उसकी आंखें नम थीं। लगा कि वह कुछ देर पहले रो रही थी। मैं पार्क में जमा जोड़ों की अठखेलियां निहारने में मशगूल हो गया। पार्क की खूबसूरती बढ़ाने के लिए जगह-जगह झाडिय़ों को काट-छांटकर विभिन्न पशुओं की आकृतियां प्रदान की गयी थी। पार्क से कुछ दूर बैठा एक प्रेमी युगल आपस में चुहलबाजियां कर रहा था। तभी मेरा ध्यान उस लड़की की ओर गया। वह सुबक रही थी। मुझे लगा कि एक अच्छे नागरिक होने के नाते उससे उसका दुख-दर्द पता करके यदि संभव हो, तो दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। मैंने उससे सहानुभूतिपूर्वक पूछा, 'क्या हुआ...तुम रो क्यों रही हो? कोई परेशानी हो, तो बताओ। मैं दूर करने का प्रयास करूंगा।Óउसने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, 'अंकल...आप मेरी परेशानी नहीं दूर कर सकते।Óमैंने भी हाकिमताई बनने का पूरा फैसला कर लिया था। सो मामले की पूंछ पकडऩे की कोशिश में लगा रहा, 'फिर तुम रो क्यों रही हो?Ó
'दरअसल...आज ही मेरा अपने ब्वायफ्रेेंड से ब्रेकअप हो हुआ है। उसकी याद आ रही थी, तो आंसू नहीं रोक पायी।Ó कहकर लड़की सामने बैठे प्रेमी युगल को निहारने लगी।मैं चौंक उठा। उसे एक बार गौर से निहारा। सोचा, बाप रे बाप...छंटाक भर की इस छोकरी को मुझ अपरिचित से अपने ब्वायफ्रेेंड के बारे में चर्चा करने में झिझक नहीं हुई। मुझे अपना जमाना याद आया, जब आशिक दीदार-ए-यार के लिए घंटों माशूका के घर के चक्कर लगाया करते थे। 'जान-ए-जिगरÓ की एक झलक देखने को आशिक जेठ की दोपहरी में घंटों छत पर बैठे टकटकी लगाये रहते थे और दूर से ही दीदार हो जाने पर इस तरह खुश होते थे मानो कारू का खजाना मिल गया हो। दीदार को घंटों छत पर खड़े रहने से आंखें बटन हो जाती थीं। माशूका के भाई, बहन या मां-बाप, अड़ोसी-पड़ोसी को तो छोडि़ए, अपने ही भाई-बहन या अड़ोसी-पड़ोसी के देख लेने पर पिटने का खतरा था। कई बार तो 'वन वे ट्रैफिकÓ होने पर माशूका के हाथों पिटने की नौबत तक आ जाती थी, लेकिन मजनूं इसे भी लैला की एक अदा मानकर जी-जान न्यौछावर करने को तैयार रहते थे।
मामले की संवेदनशीलता जानते-बूझते हुए भी मैंने टांग अड़ा दी। हालांकि कई बार तो ऐसे मामले में टांग के शहीद होने का खतरा ज्यादा रहता है, 'तुम्हें इस उम्र में इन फालतू बातों पर ध्यान देने की बजाय पढ़ाई करनी चाहिए। यह कोई उम्र है इश्क फरमाने की।Óलड़की मेरी बेवकूफी पर हंस पड़ी। बोली, 'अंकल...यह गाना तो आपके ही जमाने में गया था...यार बिना चैन कहां रे...इश्क की कोई उम्र नहीं होती...जब हो जाये, समझो...वही उम्र सही है।Ó
'तुम्हारा उससे यह निगोड़ा इश्क कब से चल रहा था?Ó मैंने दरियाफ्त करने की नीयत से पूछा।
लड़की मानो अतीत में खो गयी। उसने कहा, 'यह मेरा सातवां ब्वायफ्रेेंड था। चार महीने पहले वह मेरा ब्वायफ्रेेंड बना था। उससे पहले नीलेश सपना का ब्वायफ्रेेंड था। सपना मेरे से दो क्लास आगे यानी कि दसवीं में पढ़ती है। सपना का नीलेश छठा ब्वायफ्रेेंड था और सपना नीलेश की नौवीं गर्लफ्रेेंड थी। अंकल...आप ऊंट की आकृति वाली झाड़ी के पास स्थित बेंच पर बैठे उन दोनों लड़के-लड़की को देख रहे हैं...वह लड़का मेरा एक्स ब्वायफ्रेेंड नीलेश है। उसके साथ मनोरमा है...जो मेरी सहेली की बहन है। कल ही मनोरमा और नीलेश का 'टाईअपÓ हुआ है।Ó इतना कहकर लड़की चुप हो गयी। उसकी आंखें नम हो गयीं।
'और नीलेश का नंबर कितना था?Ó मेरी उत्सुकता ने यह सवाल करने को मजबूर कर दिया। हालांकि इस मामले में मैं एहसास-ए-कमतरी (माइनॉरिटी कांप्लेक्स) के बोझ से दबा जा रहा था। मुझे अपने जवानी के वे दिन याद आ गये, जब छबीली से आंखें चार होने के बावजूद उसके सामने इजहार-ए-इश्क की हिम्मत नहींजुटा पाया। नतीजतन...घर परिवारवालों ने जिसके पल्ले बांध दिया, अब तक बिना चूं-चपड़ किये उसी के इर्द-गिर्द कोल्हू के बैल की तरह आंखों पर पट्टी बांधे घूम रहा हूं। रोज सुबह उठकर बेगम अपनी किस्मत को कोसती हैं और मैं अपनी गल्ती पर पछताता हूं कि काश! मैंने थोड़ी सी हिम्मत दिखायी होती...? ऐसे में लड़कपन से ही आंखें लड़ाने वाली इस बित्ता भर की छोकरी के हिम्मत की दाद दिये बिना मैं नहीं रह सका।
वह कुछ देर सोचने के बाद बोली, 'नीलेश शायद सातवां था...अगर प्रदीप को भी ब्वायफ्रेेंड में गिना जाये, तो आठवां...प्रदीप से मेरा अफेयर सिर्फ एक सप्ताह चला था। उसके बाद वह शालिनी के चक्कर में फंस गया और मेरी उसकी बात खत्म हो गयी थी।Óमैंने फिर सवालों का गोला दागा, 'तुम्हारा पहला अफेयर...मेरा मतलब है कि तुम्हारा पहला टाईअप कब और किससे हुआ था?Ó
'मैं पांचवींक्लास में मेरा पहला अफेयर क्रिस्टीना के कजन डेविड से हुआ था। क्रिस्टीना मेरी क्लासफेलो थी। अब वह हैदराबाद में पढ़ती है। छह महीने तक यह अफेयर चला था। इसके बाद परमजीत अच्छा लगने लगा। परमजीत ने मेरे लिए किरणजोत को छोड़ दिया।Ó'क्या तुम्हें नहीं लगता कि इस उम्र में तुम्हें यह सब कुछ नहीं करना चाहिए? अभी तुम्हारी पढऩे-लिखने की उम्र है, मन लगाकर पढ़ाई करो...अपना भविष्य सुधारो। पढ़-लिखकर कुछ बन जाओ...तब यह सब करना।Ó मैंने अपना धर्म निभाया और उसे उपदेश की घुट्टी पिलाई।
'अंकल...क्या आपको नहीं लगता कि कैरियर बनते-बनते मैं बूढ़ी हो जाऊंगी। 28-29 साल की उम्र कैरियर बनाने में निकल जायेंगे। हो सकता है कि उससे पहले ही मम्मी-डैडी किसी बेवकूफ के साथ बांध दें, तब अफेयर करने का मौका कहां मिलेगा। न...बाबा..न...मैं यह रिस्क नहीं ले सकती। जितने दिन मौज-मस्ती की जा सकती है, उतने दिन खूब जमकर करूंगी। उसके बाद तो कोल्हू का बैल बनना ही है।Ó लड़की काफी समझदार हो गयी थी।
'तुम्हारे मम्मी-डैडी को तुम्हारी इस 'करतूतÓ का पता है?Ó मैं सवाल पूछे बिना नहीं रह पाया।
'हां...नीलेश के बारे में मम्मी को पता है। उन्होंने डांट भी लगायी थी। लेकिन जब मेरी क्लास की सारी सहेलियां अपने ब्वायफ्रेेंड के बारे में चर्चा करती हैं, तो मुझसे रहा नहीं जाता और किसी न किसी से अफेयर कर बैठती हूं। आपको पता नहीं होगा, मेरे मम्मी-डैडी ने लव मैरिज की थी। मेरे डैडी मम्मी के आठवें ब्वायफ्रेेंड थे और मेरे डैडी की ग्यारहवींप्रेमिका मम्मी थीं। लेकिन उनकी लव मैरिज सिर्फ तीन साल चली, बाद में दोनों ने डाइवोर्स ले लिया।Ó लड़की के चेहरे पर न चाहते हुए भी दर्द उभर आया। लेकिन यह दर्द ज्यादा देर तक नहीं टिक सका।
मैंने पूछा, 'अब आगे क्या इरादा है?Ó
लड़की ने चुहुल भरे अंदाज में कहा, 'सोचती हूं...अब आपको अपना ब्वायफ्रेेंड बना लूं। आप दूसरों के मुकाबले कहीं अच्छे साबित हो सकते हैं।Ó
उसकी बात सुनते ही मुझे झटका लगा। बेगम का रौद्र रूप याद आया और मैं झटके से उठ खड़ा हुआ, 'मुझे काफी देर हो गयी है बैठे-बैठे। चलता हूं घर पर बेगम इंतजार कर रही होंगी।Ó इतना सुनते ही लड़की खिलखिलाकर हंस पड़ी। मैंने जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाये और पार्क से बाहर हो गया। पार्क के बाहर निकलते-निकलते पीछे मुड़कर देखा। लड़की काफी देर से पीछे बैठे एक लड़के का हाथ पकड़े उसकी बाइक की ओर बढ़ रही थी। उसके चेहरे पर 'ब्रेकअपÓ का दर्द नहीं, बल्कि नए 'टाईअपÓ की खुशी थी।

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