Wednesday, February 23, 2011

विक्रम-बेताल की लोकतांत्रिक कथा

-अशोक मिश्र

हमेशा की तरह विक्रम ने पीपल के पेड़ से बेताल को उतारा और पीठ पर लादकर श्मशान घाट की ओर चल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद पीठ पर लदे बेताल ने कहा, ‘राजन! आपका श्रम भुलाने के लिए कलियुग की एक कथा बताता हूं। भारत के किसी गांव में छह-सात लड़कों ने मिलकर एक सीधे-सादे गधे को मार डाला। गधे की मौत पर लड़कों के पिता गांव में रहने वाले एक पंडित जी के पास पहुंचे और इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। गधे की मौत की बात सुनते ही पंडित जी को लगा कि इनसे कुछ कमाई की जा सकती है। सो, उन्होंने गंभीरता का स्वांग भरते हुए कहा,‘ बेटा!...गधा जैसे सीधे-सादे और उपयोगी पशु की हत्या अतिपातक की श्रेणी में आती है। इस पाप से मोझ के लिए सभी बच्चों के पिता को एक-एक तोले भार का सोने का गधा बनाकर किसी विद्वान पंडित को दान करना होगा।’

इतने में वहां खड़े एक लड़के ने कहा, ‘पंडित जी! गधा मारने में आपका पुत्र संतोषी भी शामिल था।’ यह सुनते ही पंडित जी को लगा कि यहां तो मामला उल्टे बांस बरेली लदने वाले हो गए हैं। उन्होंने झट से एक दोहा रचकर अतिपातक के आरोपी बच्चों के पिता को सुनाते हुए कहा, ‘अरे! जहां पूत संतोषी, वहां गधा मारे कौन दोषी? जब तुम लोगों के साथ मेरा पुत्र संतोषी था, तो सभी बच्चे अतिपातक से अपने आप ही मुक्त हो गए।’

यह कथा सुनाकर बेताल ने विक्रम से कहा, ‘राजन यह बताइए कि भारतीय लोकतंत्र में गधा किसका प्रतीक है? पंडित जी, संतोषी, बाकी बच्चे और उनके पिता की भारतीय लोकतंत्र में क्या भूमिका है। अगर इन प्रश्नों का उत्तर जानते हुए भी नहीं दोगे, तो तुम्हारा सिर टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जाएगा।’

विक्रम समझ गया कि बेताल ने उसे प्रश्नों के जाल में फंसा लिया है और यह फिर पीठ से उतरकर फरार होने की फिराक में है। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘तुम्हारी कथा में आया हुआ गधा भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम जनता है। कथा में आए हुए उद्दण्ड लड़कों की तरह देश के मंत्री, सांसद, विधायक और राजनेता पूंजीपतियों के साथ मिलकर जब चाहते हैं, महंगाई बढ़ाकर जनता रूपी गधे को भूखों मरने को मजबूर कर देते हैं। घोटाले, घपले करके कमाया गया काला धन विदेशी बैंको में रखते हैं और जनता के सामने विकास परियोजनाओं के लिए धन न होने का स्वांग रचते हैं। इस देश के मंत्री खेलों के लिए करोड़ों करोड़ रुपये तो फूंक सकते हैं, उसमें घोटाला करते हैं, लेकिन अस्पताल बनवाने, स्कूल खुलवाने और सड़कें बनवाने की बात आते ही हाथ खड़े कर देते हैं।’

इतना कहकर विक्रम सांस लेने के लिए रुका और फिर कहने लगा, ‘तुम्हारी कथा में पंडित की भूमिका में प्रधानमंत्री और विभिन्न दलों के राजनेता हैं। वे जब सत्ता में नहीं रहते हैं, तो उन्हें सत्तारूढ़ दल के हर कामों में गलत ही नजर आता है। घोटाले, भ्रष्टाचार की बात पर संसद नहीं चलने देते, लेकिन जब उनकी सरकार बनती है, या गंदगी के छींटे उनकी ओर उछलते दिखाई देते हैं, तो अपना दामन पाक साफ दिखाने के लिए सरकार को क्लीन चिट देने से भी परहेज नहीं करते। तब इनके चश्मे का नंबर बदल जाता है। उन्हें देश की तब कराहती-भूख से बिलबिलाती जनता नजर नहीं आती है। इनकी आंखों को मोतियाबिंद हो जाता है। जब विपक्ष में बैठे नेताओं को सत्ता सुंदरी का भोग करने को मिलता है, तो वे उन घोटालों, घपलों या विदेशों में जमा काला धन वापस लाने और इन मामलों की जांच कराने की बात भूल जाते हैं। वैसे एक बात बताऊं। उद्दण्ड लड़कों के पिता सरीखे तो मुझे इस देश के बड़े-बड़े दलाल और पूंजीपति नजर आते हैं। वे भ्रष्ट सांसदों, मंत्रियों और अफसरों की दलाली करते हैं, उनके लिए एक माहौल तैयार करते हैं। कई बार पूंजीपति, मंत्री और पूंजीपति मिलकर देश को चूना लगाते हैं, तो कई बार पूंजीपति, मंत्री, अफसर और पत्रकार दलालों की भूमिका में होते हैं। राडिया, राजा मामला भारतीय लोकतंत्र में घटित होने वाला ऐसा ही एक मामला है।’

विक्रम के इतना कहते ही बेताल खुशी से चिल्लाया, ‘राजन! तुमने बिलकुल सही फरमाया है। लेकिन चूंकि तुमने अपना मौन तोड़ा है, इसलिए मैं तो चला।’ इतना कहकर बेताल विक्रम की पीठ से उतरकर गायब हो गया। विक्रम एक बार फिर पीपल की पेड़ की ओर चल पड़ा।

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