Sunday, April 10, 2011

बीवी-बेटे की रिश्वतखोरी भी रुकेगी?

अशोक मिश्र

मैं गहरी निद्रा में था। अपनी एक अदद बीवी की निगाह बचाकर देर रात तक ऐसे-वैसे चैनल देखने के बाद सोया था। सुबह नौ बजे बीवी ने पीठ पर एक धौल जमाते हुए कहा, ‘उठिये...सत्य की जीत हो गई। अन्ना दादा देश से भ्रष्टाचार खत्म करने में सफल हो गए।’ मैं चौंक गया। मुझे लगा कि कहीं भूकंप आया है और घरैतिन बचने के लिए कह रही हों। मैं हड़बड़ाकर उठ गया। मैंने कहा, ‘अरे हुआ क्या? सुबह-सुबह पंचम सुर में काहे को अलाप ले रही हो। कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है या भूकंप आया है।’

बीवी ने उत्साहित होकर बताया, ‘यह अखबार देखो, सरकार ने कह दिया है कि वह आगामी लोकसभा सत्र में जन लोकपाल विधेयक को पेश कर देगी। विधेयक मंजूर होते ही समझो भ्रष्टाचारियों के दिन। फटाफट नहा-धो लो, मंदिर चलना है। मैंने मनौती मानी थी कि यदि अन्ना दादा सफल होते हैं, तो मैं मंदिर में 51 रुपये का प्रसाद चढ़ाऊंगी।’ यह सुनते ही मैं चौंक गया। मेरे मुंह से यकायक निकला, ‘हे भगवान! भ्रष्टाचार खत्म होने की खुशी में भगवान को रिश्वत। चलो थोड़ी देर के लिए मान लिया कि इस देश में जन लोकपाल विधेयक पारित होकर कानून बन गया। लेकिन क्या बात-बात में भगवान को घूस देने की इस सनातनी परंपरा पर अंकुश लगाया जा सकेगा?’ यह बात वैसे तो मैंने बहुत धीमें सुर में कही थी, लेकिन घरैतिन के कानों का एंटीना कुछ ज्यादा ही सेंसटिव था। उसने तुरंत मेरी बात को कैच कर लिया और नतीजा यह हुआ कि घरैतिन ने तुरंत मुंह फुला लिया। मुझे लगा कि आज का चाय नाश्ता ही नहीं, खाना-पानी भी कट। मैंने खुशामदी लहजे में कहा, ‘अरी भागवान! यह तो मैंने मजाक किया था। आज तुम कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही हो, इसलिए।’

घरैतिन नहीं मानी। तो सहायता के लिए आठ वर्षीय बेटे टुन्नू को पुकारा। मामला जैसे ही उसकी समझ में आया, वह किसी रिश्वतखोर बाबू की तरह कुटिलता से मुस्कुराया और बोला, ‘आपने कुछ दिन पहले मुझसे वायदा किया था कि खिलौने खरीदने के लिए पांच सौ रुपये देंगे। लेकिन इस बात को आप महिला आरक्षण विधेयक की तरह लटकाते आ रहे हैं। यदि आप अपने वायदे पूरा करें, तो मैं मम्मी को समझाने का प्रयास करूं।’ बेटे की बात पूरी हुई भी नहीं थी कि बेटी भी बीच में कूद पड़ी। उसने कहा, ‘हां पापा...आप मामले को टरकाने में काफी उस्ताद हैं। आप अपना मतलब निकालने के लिए वायदा तो करते हैं और मतलब निकल जाने पर भूल जाते हैं। आप अपना पिछला वायदा पूरा करने की हामी भरें, तो मैं भी प्रयास करूं।’ ‘मरता क्या न करता’ वाली हालत से मैं दो-चार हो रहा था। बीवी को मनाना था, सो एक बार आश्वासन रूपी ब्रह्मास्त्र आजमाने की सोची। मैंने कहा, ‘ठीक है, आप लोग जो कहेंगे, वह पूरा करूंगा। लेकिन उससे पहले तुम्हारी मम्मी चाय-नाश्ता तो दें। पेट में चूहे कूद रहे हैं।’

बेटे ने कुशल अभिनेता की तरह हाथ नचाते हुए काह, ‘नहीं पापा...इस बार आश्वासन की चासनी हम लोग नहीं चाटने वाले। पहले आप एक हजार रुपये निकालिए, तब कोई बात होगी।’ मजबूरन मुझे अपनी टेंट ढीली करनी पड़ी। रुपया पाते ही भाई-बहन कोपभवन की ओर भागे। थोड़ी देर बाद बेटे ने आकर बताया,‘मम्मी...शाम को मंदिर चलकर भगवान को प्रसाद चढ़ाने को तैयार हैं, लेकिन अभी आपको बाजार जाकर वह साड़ी लानी होगी जिसे पिछले हफ्ते पैसे की कमी का रोना रोकर आप मम्मी को टरका चुके हैं।’

मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘हे भगवान! यह घर-घर में हो रही रिश्वतखोरी कब रुकेगी? इसके खिलाफ भी कोई बिल संसद में पेश होगा या नहीं?’ इतना कहकर मैंने हाथ-मुंह धोया और साड़ी लाने के लिए निकल पड़ा।

1 comment:

  1. sir apka lekh prakasit hone ke bad sadi se dar lag raha he

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