अशोक मिश्र
‘पता नहीं किस का शेर है कि ‘बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का, चीरा तो कतरा-ए-खूं निकला।’ पिछले कई महीनों से वर्ल्ड कप भारत जीतेगा, शाबाश धोनी के धुरंधरों, देश की आन, बान-शान...और पता नहीं क्या-क्या तुम्हीं हो, तुम्हें अट्ठाइस साल पुराना इतिहास दोहराना है। जैसे-जैसे नारे सुनते-सुनते कान पक गए थे। अखबार से लेकर टीवी चैनल तक चीख-चीख कर चिल्ला रहे थे। इस बार विश्व कप हमारा है, हम जीत कर रहेंगे। कोई चैनल वाला इसे महामुकाबला बता रहा था, तो कोई महायुद्ध। और अब, जब यह महामुकाबला जीत लिया, तो आईसीसी वालों की नालायकी देखिए, नकली ट्राफी थमा दी। हद हो गयी यार...सारा गुड़ गोबर कर दिया।’ यह कहते मुसद्दी लाल का चेहरा क्रोध से काला पड़ गया।
मैंने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, ‘ट्रॉफी ट्रॉफी होती है, असली या नकली से कोई फर्क नहीं पड़ता। अब आपको बताऊं। मेरा बेटा है टुन्नू। जब वह हवाई जहाज लेने की जिद करता है तो क्या उसे मैं असली हवाई जहाज खरीद कर देता हूं। प्लास्टिक का एक खिलौना हवाई जहाज खरीदता हूं और पकड़ा देता हूं। आपने अपने बच्चे को इसी तरह बहलाया होगा, तो आपको मालूम ही होगा कि वह कितना खुश हो जाता है। वह नाचने लगता है। कभी वह दौड़कर अपने खिलौना हवाई जहाज अपनी मम्मी को दिखाता है, तो कभी अपने पड़ोस में रहने वाले दोस्त राजू को। खिलौना दिखाते समय वह उन्हें बरजता भी है, हां...पेंच मत घुमाना...टूट जाएगा। उसके उमंग और उत्साह की तुलना आज के एक अरब इक्कीस करोड़ भारतीयों से कीजिए। लगभग मेरे बेटे टुन्नू जैसी स्थिति पूरे देश की है। कहीं सोनिया गांधी नाच रही हैं, तो कहीं अमिताभ बच्चन। कहीं खुशी से युवराज फफक रहे हैं, तो कहीं सचिन की आंखें गीली हैं। कैप्टन कूल इस खुशी में मुंडन संस्कार करवा रहे हैं। आप सोच नहीं सकते कि हम भारतीयों का खुशी के मारे क्या हाल है। हम विश्व कप विजेता बन गए...यह पूरी दुनिया ने देखा, आंखें फाड़कर देखा। अब आप इसका मजा किरकिरा मत कीजिए।’
‘लेकिन अगर असली ट्रॉफी दे देते, तो आईसीसी वालों का क्या बिगड़ जाता?’ मुसद्दी लाल अब भी बरस रहे थे। उनके क्रोध का पारा नीचे आने को जैसे तैयार ही नहीं था।
मैंने समझाने वाले लहजे में कहा, ‘भइया बात यह है कि बच्चे जिद कर रहे थे। इस बार हम ही वर्ल्डकप ट्रॉफी लेंगे। आईसीसी के मुखिया शरद पवार ने एक अरब इक्कीस करोड़ बच्चों को बहलाने के लिए एक झुनझुना थमा दिया। अब आप अगर किसी चीज की जिद कर बैठेंगे, तो कोई क्या करेगा। इसीलिए हमारे पूर्वज कहते थे कि अच्छे बच्चों को जिद नहीं करनी चाहिए। अब अगर जिद की है, तो भुगतो।’
मेरी बात सुनकर मुसद्दी लाल थोड़ा नरम पड़े। बोले, ‘यार...मुझे तो अब समझ में आ रहा है कि पाकिस्तान वालों ने सचिन के सात कैच क्यों छोड़ दिये या श्रीलंका वालों ने मैच में ज्यादा रन क्यों नहीं बनाए। जबकि वे इससे पहले के मैचों में अपने विरोधियों के छक्के छुड़ा चुके थे।’
मुसद्दी लाल की बातें अब कुछ रस देने लगी थी। मुझे भी उत्सुकता हुई कि आखिर कौन सी ऐसी बात है जिसे मुसद्दी लाल समझ गए और मैं अभी तक नहीं समझ पाया। मैंने पुचकारने वाले अंदाज में कहा, ‘भाई साहब! बात क्या है! लगता है कि आपने कोई रहस्य पा लिया है। वैसे भी हमारे देश में जो रहस्य पा लेता है, वह मोक्ष को प्राप्त होता है। इस असार संसार के आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता है। लगता है कि आप भी बुद्धत्व को प्राप्त हो गए हैं।’
मुसद्दी लाल ने मुझे घूरते हुए कहा, ‘मेरी बात को हल्के में मत लो। अब तो मुझे पक्का विश्वास हो गया है कि पाकिस्तान और श्रीलंका की क्रिकेट टीम को यह बात पहले से ही पता थी कि ट्रॉफी नकली है। अब जब वे इस बात को जान चुके थे, तो नकली ट्रॉफी के लिए क्यों अपनी जान लड़ाते। उन्होंने मैच इसी तरह खेला जैसे कोई बुजुर्ग खिलाड़ी किसी बच्चे से कोई खेल खेले और झूठ-मूठ में हार जाए। अपनी इस जीत पर बच्चा खुश हो जाता है। वह इसे अपनी प्रतिभा और खेलने की कला की विजय मानकर इतराता घूमता है। अब आप जरा पाकिस्तान और श्रीलंका के खिलाड़ियों के चेहरे को याद कीजिए। वे हारने के बाद भी दुखी नहीं थे। उनके चेहरे पर शायद इस बात का संतोष था कि वे नकली ट्रॉफी के बेकार में ढोकर अपने देश ले जाने की जहमत से बच गए।’ इतना कहकर मुसद्दी लाल ने एक गिलास पानी पिया और बैठकर आईसीसी वालो को कोसने के पुनीत कर्म में लग गए। मैं उन्हें कोसता छोड़कर अपने घर लौट आया।
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