Thursday, March 24, 2011

कुत्तों की खरीद पर आयकर

-अशोक मिश्र
आज श्यामलाल का चेहरा उतरा हुआ था। सब्जी लेते समय मिले, तो उन्होंने बिना चीनी की गुझिया की तरह फीके अंदाज में अभिवादन किया। मैंने पूछा, ‘भाई श्याम लाल, घर में सब सुख-सांद तो है न! काफी उदास से लग रहे हैं। बात क्या है?’

श्याम लाल ने फुफकार की तरह गहरी सांस छोड़ी, ‘अच्छा, भाई साहब! एक बात बताइए। सरकारी महकमे के अधिकारियों के पास कोई काम नहीं है क्या? बैठे-ठाले बस फिजूल की बातें सोचते और खुरपेंच करते रहते हैं।’
मैं हंस पड़ा। पूछा, ‘हुअ क्या? कुछ तो बताइए। आप बात तो बताते नहीं है और बस अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाए जा रहे हैं। मामले की पूंछ कुछ पकड़ में आए, तो कुछ सलाह-वलाह दे सकूंगा।’

मेरी इस बात पर श्यामलाल जी कुछ खुले। उन्होंने कहा, ‘बात यह है कि मेरी मुनिया ने चार बच्चे दिए थे। बड़े प्यारे-प्यारे, सुंदर-सुडौल बच्चे। उन बच्चों में से एक को मेरे पड़ोसी के पड़ोसी मेहता जी मांग कर ले गए। दूसरे को मेरे आफिस के सुपरवाइजर कालरा साहब उठा ले गए, बोले कि इसे मैं पालूंगा। बाकी बचे दो बच्चों में से एक को कोई रात में चुरा ले गया। एक मेरे पास है जिस पर मेरे बच्चे के क्लास टीचर की निगाह है। वह रोज शाम को मेरे बेटे को ट्यूशन पढ़ाने आता है और जाते समय उसे बड़ी हसरत भरी निगाहों से देखता है।’

‘तो इसमें ऐसी कौन सी बात हो गई कि आप अधिकारियों के खिलाफ लट्ठ लिए घूम रहे हैं। और फिर एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि यह मुनिया कौन है? बकरी है, कुतिया है या फिर कोई महिला है? कौन है यह मुनिया?’ मैंने झल्लाते हुए पूछा।

मेरी बात सुनकर श्यामलाल जी के चेहरे पर नागवारी के भाव उभरे। उन्होंने कठोर लहजे में कहा, ‘आप इतना भी नहीं समझते! मुनिया मेरे घर की पालतू कुतिया है। उसने चार बच्चे दिए हैं। अब असली समस्या यह है बरखुरदार कि कल ही आयकर विभाग, दिल्ली से एक सरकुलर जारी हुआ है कि कुत्तों की खरीद-फरोख्त बाकायदा रसीद लेकर की जाए। यदि कुत्ते किसी को दान में भी दिए जाएं, तो इसकी भी लिखत-पढ़त जरूरी है। अब भला बताओ, यह भी कोई बात हुई, कुत्ते न हो गए सोने-चांदी के जेवर हो गए कि लिखत-पढ़त करा लो, ताकि भविष्य में कोई जेवर खराब निकले, तो मामला सुलटाया जा सके।’

मुझे श्यामलाल की बात सुनकर काफी गुस्सा आया। श्यामलाल जी की यही एक आदत मुझे खराब लगती है। वे किसी बात को आधा सुनते हैं, बाकी ले उड़ते हैं। मैंने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘भाई साहब, यह सरकुलर गली-कूचे में हर आते-जाते लोगों को देखकर भौं-भौं करने वाले कुत्तों के लिए नहीं है। कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली। यह आदेश उन कुत्तों के लिए है, जो कारों में घूमते हैं, शैंपू से जिनके बाल धोए जाते हैं। जिन्हें उनकी मालकिन या मालकिन की बिटिया गोद में लिए घूमती-फिरती है। ऐसे कुत्तों की खरीद-फरोख्त पर अब रसीद जरूरी होगी। आपकी मुनिया के लिए नहीं, जिसे दिन भर में पूरी एक रोटी भी नसीब नहीं होती है। कार में घूमने और महलनुमा कोठियों में रहने वाले कुत्तों का कारोबार कई सौ करोड़ रुपये सालाना है। अब अगर आयकर विभाग वाले इन कुत्तों की खरीद-फरोख्त पर आयकर वसूलने की फिराक में है, तो आपको क्या तकलीफ है।’ मेरी बात सुनकर श्यामलाल जी सिर्फ इतना ही बोले, ‘अच्छा तो यह बात है। मैं तो बेकार में ही कल से दुबला होता जा रहा था।’ इतना कहकर श्यामलाल खुशी-खुशी सब्जियां खरीदने लगे।

1 comment:

  1. sir aapka har lekh apne aap me alag hota hai. yah bhi hamare kanun ka ek udhahran parstut karta hai....

    sandeep gupta
    kalptaru aligarh

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