अशोक मिश्र
एक हैं स्वामी जी। खा-अघाकर मुटा गए तोंदियल धन्ना सेठों और मध्यमवर्गीय लोगों को कसरत कराते-कराते उन्होंने काफी नाम और दाम कमा लिया। उनके कसरत शिविरों में लोग फीस देकर जाते हैं। गरीब को वैसे भी कसरत-फसरत की जरूरत नहीं होती और उसका प्रवेश भी स्वामी जी के कसरत शिविरों में वर्जित रहता है। जैसा कि आमतौर पर होता है, स्वामी जी को एक दिन अहसास हुआ कि अरे! मैं तो ब्रह्म हो गया। मैं जो कुछ कहूंगा, लोग भक्तिभाव से सुनेंगे। तो वे लगे भ्रष्टाचार और कालेधन पर भाषण देने। उन्होंने सोचा, वे राजनीतिक पार्टी बनाएंगे, तो लोग उन्हें चुनकर देश का भाग्यनियंता बना देंगे और वे योग (कसरत) के बल पर देश को भ्रष्टाचार मुक्त बना देंगे। इस ज्ञानोदय के बाद स्वामी जी लगे, प्रवचन देने। फलां व्यक्ति का कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है, अमुक व्यक्ति चोर है। जिसके वे कालेधन का मालिक बताते, वह तो तिलमिलाकर रह जाता, लेकिन उसके विरोधियों को एक मौका मिल जाता घेरने का। एक पार्टी के पीछे तो वे हाथ-पैर धोकर पड़े हुए थे।
लेकिन एक कहावत है न! आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास। कहां योग के नाम पर कसरत सिखा रहे थे, कहां योग से सत्ता सुंदरी को भोगने के चक्कर में पड़ गए। उनकी सत्ता भोग लिप्सा और एक ही पार्टी को निशाना बनाने की प्रवृत्ति पर निशाना बन रही पार्टी ने जवाबी हमला कर दिया। स्वामी जी से पूछा जाने लगा कि एक हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति कहां से आई? जानते हैं स्वामी जी का क्या जवाब था इस पर। स्वामी जी कहते हैं कि उन्होंने जितना भी कमाया, अपनी मेहनत से कमाया। काला धन अगर लिया भी, तो उसे साबुन से धोकर श्वेत धन में बदल दिया था। अब स्वामी जी की इस बात का तोड़ विरोधी खोजने में लगे हुए हैं। हो सके, तो आप भी उनकी मदद करें।
No comments:
Post a Comment