Friday, February 17, 2012

अथ श्री जूता-चप्पल पुराण

-अशोक मिश्र

चप्पल या जूता आपको एक सामान्य सा शब्द लगता होगा, लेकिन अगर आप गौर करें, तो यह शब्द मानव सभ्यता के विकास की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ नजर आएगा। संस्कृत में इसे पदत्राणकहते हैं। इसका अर्थ पैरों को मुसीबत से मुक्ति दिलाने वालाहै। किंवदंती है कि एक बार देव और दानव अपना पुश्तैनी वैर-ाव ुलाकर जगतपिता ब्रह्मा के पास पहुंचे और कहा, ‘गवन! शिकार करते या कहीं आते-जाते हम लोगों के पैर कंटीली झाड़ियों और पत्थरों के चलते घायल हो जाते हैं। इसके चलते हमें काफी पीड़ा होती है। आप इसका कोई उपाय करें, ताकि इस परेशानी से मुक्ति मिले।ब्रह्मा ने पलर विचार करने के बाद कुटीर और लघु उद्योग मंत्रालय का काम-काज देख रहे विश्वकर्मा जी को तत्काल ब्रह्म लोक में उपस्थिति होने का एसएमएस भेजा। एसएमएस पाते ही पुष्पक एयरलाइंसके सबसे तेज गति वाले वायुयान पवनसे वे ब्रह्मलोक पहुंचे। पहुंचते ही उन्होंने देवों और दानवों को पद पीड़ा से कराहते पाया। उन्हें देखते ही ब्रह्मा ने रोष रे स्वर में कहा, ‘जल्दी ही इन लोगों के लिए किसी पदत्राण की व्यवस्था करो।कहते हैं कि विश्वकर्मा ने सबसे पहले बेल में काफी दिनों तक लगी रहने से पक गई तोरई (बियाड़ हो चुकी) को दबाने के बाद अंगूठे के पास छेद चप्पलनुमा पदत्राण तैयार किया। इसे पहनने के बाद देव-दानवों को काफी राहत महसूस हुई। अब वे चपलता से शिकार और आपसी युद्ध में रत रहने लगे। उनकी चपलता (गति) में वृद्धि हो जाने के कारण कालांतर में यह चप्पलकहलाया। बाद में चप्पल बनाने की कला में और निखार आता गया। नए-नए प्रयोग किए जाने लगे। चप्पल को बनाने में भिन्न-भिन्न कालों में तोरई, काठ और चमड़े से लेकर गटापारचा (प्लास्टिक) तक का प्रयोग होता रहा। बाद में इसका उपयोग एकदूसरे के सिर पर बजाने में होने लगा। इससे एक नया शब्द हिंदी साहित्य को मिला और वह था जूतम-पैजार।

ी दो साल पहले पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में प्राचीनकाल का एक जूता मिला है। इतिहासकारों को मत है कि यह सिंधुघाटी सभ्यता काल का है। उस जूते के पास पाए गए एक शिलालेख को डिकोड (ाषा को पढ़ने) करने से पता चला कि वह एक विष्यवाणी है। उसमें कहा गया है कि कलिकाल (कलियुग) में एक समय ऐसा आएगा, जब मनुष्य इसका उपयोग अपने पैरों की सुरक्षा के साथ-साथ राजनीतिक उपयोग ी करेगा। किसी नेता या मंत्री पर जूता फेकने की शुरुआत ईराक का एक पत्रकार करेगा, बाद में इसका व्यापक प्रचार-प्रसार आर्यावर्त (ारत) में होगा। घोर कलयुग में गांधीवादी नेता और समाजसेवी अन्ना हजारे, कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी, ाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और योग गुरु बाबा रामदेव जैसे अन्य कई विूतियों पर पदत्राण फेंके जाएंगे जिससे उनकी लोकप्रियता में वृद्धि होगी। वाकई, उस युग के लोग महान विष्य दृष्टा थे। उनमें विष्य को देखने, पढ़ने और समझने की शक्ति थी। नहीं तो, आप ही सोचिए, जो घटनाएं आज घटित हो रही हैं, उसका उल्लेख उस शिलालेख में कैसे संव हो पाया। शिलालेख में दर्ज है कि जिस नेता, समाजसेवी या मंत्री पर जूते-चप्पल फेंके जाएंगे, वह अपने को धन्य मानेगा। ले ही वह मीडिया के सामने निंदा करे, लेकिन उसका दिल गार्डेन-गार्डेन (बाग-बाग) होता रहेगा। कोई ी व्यक्ति जूता या चप्पल फेंकने वाले के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना चाहेगा क्योंकि जूते या चप्पल का प्रक्षेपण उनके राजनीतिक जीवन के लिए संजीवनी का काम करेगा। कई नेता और अधिकारी तो इसी कुंठा में दुबले होते रहेंगे कि पता नहीं, उनका नंबर कब आएगा। कहने का मतलब है कि जूते या चप्पल का प्रक्षेपण व्यक्ति, नेता, राजनीतिक दल और साधु-संतों की लोकप्रियता का पैमाना हो जाएगा। तो पाठकों, आपका क्या विचार है। हो जाए एक बार फिर जूतम पैजार।

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