Sunday, March 11, 2012

होली, हुड़दंग और सेक्सी छबीली

-अशोक मिश्र

बचपन में होली का सबसे ज्यादा बेसब्री से इंतजार मोहल्ले में मैं करता था। होली का दिन बीता नहीं कि मैं गिनना शुरू कर देता था, अब होली आने में 364 दिन बचे, अब 363 दिन और अब 362.....। इस तरह गिनते-गिनते होली फिर आ जाती थी। होली से एक हफ्ते पहले मैं विभिन्न रंगों और सेल (बैटरी) को तोड़कर निकाली गई कालिख को मिलाकर नया रंग तैयार करने में जुट जाता था। यह आदत आज है। अब इस काम में मेरा बेटा ी हाथ बंटाता है। मोहल्ले की जो औरतें साल र मेरी घरैतिन के सामने मेरी शिकायतों का पुलिंदा खोलकर मुझे पिटवाती रहती हैं, उनसे बदला चुकाने का सबसे उपयुक्त अवसर होली होती है। मेरे घर महफिल जमाने वाली औरतें साड़ी, गहने की लफ्फाजी करने के बाद जाते-जाते यह कहना नहीं ूलती हैं, ‘कल गॉटर के पापा फलां बाजार या चौराहे पर मिले थे। बड़ी देर तक वे मुझे ऐसे घूरते रहे कि हाय! अब तुम्हें क्या बताऊं, मुझे तो शर्म आती है।मैं ऐसी औरतों की बाकायदा लिस्ट तैयार रखता हूं, ताकि होली के दिन उन औरतों से गिन-गिनकर बदले लूं।

होली की सुबह मैंने सबसे पहले छबीली से निपटने की सोची। चाय नाश्ता करने के बाद मैंने बमभोलेका प्रसाद खाया, अपने चेहरे पर खूब तबीयत से कालिख पोती, ताकि कोई दूसरा चेहरे पर कालिख लगाने का श्रेय न हासिल कर सके। इस मामले में मेरा फंडा यह है कि कोई आपकी चाल, चरित्र और चेहरे पर कालिख पोते, इससे पहले आप खुद को ही इतना कलुषित कर लें कि दूसरा बाजी न मार सके। मैं पूरी तैयारी के साथ छबीली की तलाश में निकल पड़ा। छबीली को देखते ही मेरे चेहरे पर रौनक आ गई। मैंने उसको पल र निहारा। वह रंग, अबीर, गुलाल और कालिख का कोलाज पूरे शरीर पर रचे मोहल्ले के शोहदे हुरिहारों के साथ किसी नायिका सी इठला रही थी। जब हुरिहारों के दल में से कोई रंग लगाने के बहाने यहां-वहां हाथ फेरने लगता, तो छबीली मचल उठती थी। ंग की तरंग मैंने लपककर छबीली का हाथ पकड़Þते हुए कहा, ‘हाय सेक्सी! अब मैं तुम्हारे साथ ऐसी होली खेलूंगा कि तुम पूरे साल याद रखोगी।

सेक्सी? होश में तो हैं आप?’ छबीली बरस पड़ी, ‘मुंह झौसे! कुछ उम्र का ख्याल है कि नहीं! आप होली खेलने निकले हैं,मेरे मुंह पर थोड़ा-बहुत रंग लगाइए और अपना रास्ता नापिए। मुझे अी अपने ब्वायफ्रेंड के पास होली खेलने जाना है। आज के दिन थोड़ी-बहुत हंसी-ठिठोली चलती है, इसलिए मुझे गुस्सा नहीं आ रहा है, वरना सेक्सीकहने पर तुम्हारी जो गति-दुर्गति करती, वह सारी दुनिया देखती।

छबीली की बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया, ‘तू सेक्सी कहने पर इतना ाव क्यों खा रही है। तू सेक्सी थी, सेक्सी है, और सेक्सी रहेगी। इसका तुझे आज बुरा ही नहीं मानना चाहिए क्योंकि आज होली है। अब अगर तू बुरा मानती है, तो मानती रह मेरी बला से। वैसे एक बात बताऊं। अब सेक्सी शब्द का अर्थ बदल गया है। सेक्सी का मतलब है, सुंदर, खूबसूरत। इसको अब तुम महिलाओं को पाजिटिव लेना चाहिए, निगेटिव नहीं। यह मैं नहीं कहता, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष कह रही हैं।यह सुनते ही छबीली ने गुलाल की थैली मेरे सिर पर पलटते हुए कहा, ‘तुम अपनी घरवाली को और तुम्हारी यह राष्ट्रीय अध्यक्ष अपनी बहन-बेटियों को सेक्सी कहकर पुकारे, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। अगर फिर की आपने मुझे सेक्सी कहा, तो आपके थोबड़े पर श्रीलंका का नक्शा छाप दूंगी। समझे कि नहीं।छबीली की बात सुनते ही ांग का नशा काफूर हो गया। इतना कहकर छबीली अपने सैंडिल की ओर झुकी। मैंने समझा कि वह सैंडिल निकालकर उसका कोई दूसरा उपयोग करने जा रही है। मैं लपककर उसके गालों पर गुलाल मलने लगा। मैं कुछ और हरकत करता कि मेरी नजर घरैतिन पर पड़ी। वह लपकती हुई मेरी ही ओर चली आ रही थीं। इस पर मैंने वहां से फूट लेने में ही लाई समझी।

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