Wednesday, September 5, 2012

काश! गाजी मियां होते...



-अशोक मिश्र
एक थे गाजी मियां। उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में कहीं रहते थे। एकाध दशक पहले नहीं, दो चार सदी पहले पैदा हुए थे। अवध क्षेत्र में उनसे बड़ा लंतरानीबाज कोई पैदा नहीं हुआ है। न भूतो न भविष्यति। उनके बारे में एक से बढ़कर एक लंतरानियां और किस्से मशहूर हैं, कुछ श्लील भी, तो अश्लील भी। जो काम कोई नहीं कर सकता, उसे अपने गाजी मियां चुटकी बजाते ही कर डालते थे। अवध क्षेत्र के लाल बुझक्कड़, नजूमी या भविष्यवता आप जो कुछ भी समझें, वह सब कुछ थे गाजी मियां। किसी के बेटा होगा या बेटी? परदेश गया पिया लौटेगा या वहीं किसी के चंचल के नयनों का शिकार होकर रह जाएगा? इसकी पूरी जानकारी रखते थे गाजी मियां। अवध के नवाब साहब की नइकी बेगम किसी खानसामे के साथ गहना-गुरिया लेकर रफूचक्कर हो गई, तो उसको पकड़ मंगाने का जिम्मा गाजी मियां का। नवाब साहब की बकरी को उधर जुकाम हुआ नहीं कि गाजी मियां काढ़ा लेकर तैयार खड़े हैं। गाजी मियां तो सावन-भादों में होती मूसलाधार बारिश को तब तक के लिए रोक रखने में सक्षम थे, जब तक नवाब साहब शिकार से वापस नहीं आ जाते। सूरज-चांद, सितारों से लेकर आंधी, पानी, आग सब कुछ गाजी मियां के माध्यम से नवाब साहब के गुलाम थे। ऐसे थे अवध क्षेत्र की मशहूर शख्स गाजी मियां।
आप कल्पना कीजिए। अगर आज के युग में गाजी मियां पैदा हुए होते, तो क्या होता। अपने अन्ना दादा को न तो बार-बार अनशन पर बैठने की जरूत थी, न ही अन्ना टीम को राजनीतिक पार्टी बनाने की जहमत उठाने की। अन्ना दादा के संकेत करने भर की देर थी, गाजी मियां ऐसा मंत्र फूंकते कि सारे सांसदों का हृदय परिवर्तन हो जाता और वे एक सुर में लोकपाल विधेयक को पास करा देते। स्वामी रामदेव को बेकार में ‘कालाधन-कालाधन’ चिल्लाने की कतई जरूरत नहीं थी। गाजी मियां मात्र एक ‘पल्टासन’ से विदेशी बैंकों का खाता ही उलट-पलट देते। जो भारतीय आज अपना काला-सफेद धन लेकर विदेशी बैंकों की ओर भाग रहे हैं, गाजी मियां की एक घुड़की विदेशी बैंकों के अवसान ढीले कर देती। सारे विदेशी बैंक अपने यहां के ग्राहकों को अपना पैसा न केवल भारतीय बैंकों में जमा कराने को प्रोत्साहित करते, बल्कि अपने यहां जमा पैसा भी विदेशी बैंक हमारे यहां लाइन लगाकर जमा करते। लेकिन अफसोस है कि गाजी मियां को जब पैदा होना चाहिए था, तब वे पैदा नहीं हुए। जब उनकी कोई जरूरत नहीं थी, तो वे ‘पट्ट’ से धरती पर आ टपके। शायद विधाता से यहीं चूक हो गई।
पिछले पैंसठ सालों से हमारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हर साल गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस पर ऐलान करते आ रहे हैं कि हमारी पहली प्राथमिकता देश से गरीबी, बेकारी, भुखमरी और शोषण को दूर करना है। हम अपने देश की जनता को खुशहाल देखना चाहते हैं। लेकिन आज तक न गरीबी दूर हुई, न बेरोजगारी में कहीं कोई कमी आई, न भ्रष्टाचार दूर हुआ। गरीब का बच्चा आज भी भूखे पेट सोने को मजबूर है। काश! आज अगर अपने गाजी मियां होते, तो ये सारी समस्याएं होती ही नहीं। न कोई बेरोजगार होता, न शोषण, दोहन और उत्पीड़न। प्रधानमंत्री आते, लाल किले पर झंडा फहराते और मीठी-मीठी बातें करके चले जाते क्योंकि खट्टी/कड़वी बातें करने की जरूरत ही नहीं थी। देश में जितनी भी समस्याएं होतीं, उन्हें तो अपने गाजी मियां पहले ही साल्व कर चुके होते। लेकिन दोस्तो! अगर गाजी मियां आज होते, तो इतना तय है कि गली-कूंचे से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को कहीं मूंगफली बेचनी पड़ती या  चाट का ठेला लगाना पड़ता। इनकी राजनीतिक दुकान ही नहीं खुल पाई होती। जब देश में भ्रष्टाचार करने का मौका ही नहीं मिलता, तो भला ये नेता राजनीति में क्या भाड़ झोंकने आते। देश में रामराज्य होता, तो फिर नेताओं की जरूरत ही क्या थी? इनको तो कोई टके के भाव भी नहीं पूछता। और अगर नेता नहीं, तो शायद अपने देश में ये समस्याएं होती ही नहीं। अब आप इसे मेरी लंतरानी समझेंगे, तो समझते रहिए। मेरी बला से। एक लंतरानी आपको सुनानी थी, सो सुना दी। आप इस पर कान दें, न दें, आपकी मर्जी।

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