Saturday, November 3, 2012

प्रधानमंत्री जी! कुछ तो बोलिए


-अशोक मिश्र
आदरणीय प्रधानमंत्री जी, सतश्री अकाल। पिछले काफी दिनों से द्विविधा में था। कई बार सोचा कि आपको पत्र लिखूं। सोचता था कि जब आपको अपने ही मंत्रियों के स्याह-सफेद कारनामे पर निगाह डालने और अपने दागी मंत्रियों को बदलने की फुरसत नहीं है, तो मेरे जैसे आम आदमी के आम खत की क्या बिसात है। लेकिन जब आपने ‘सब कुछ बदल डालूंगा’ की गर्जना करके मामूली फेरबदल किया, तो मैंने आपको पत्र लिखने की हिम्मत जुटा ली। प्रधानमंत्री जी, आपकी तस्वीर चैनलों या समाचार पत्र-पत्रिकाओं में जब भी छपी देखता हूं, तो मुझे किसी कवि की नौकरशाहों पर लिखी एक कविता की कुछ पंक्तियां याद आ जाती हैं, ‘आप अफसर हैं, बड़ी खुशी की बात/आप अफसर हैं बड़ी खुशी की बात/आपके चश्मे से सोचा था कम देखते हैं/आप सुनते भी नहीं, बड़ी खुशी की बात।’ उस्ताद मुजरिम बताते हैं कि आप राजनीति में आने से पहले सचमुच बहुत बड़े अफसर रहे हैं। राजनीति में आने के बाद आपने देखना और सुनना ही नहीं, बल्कि बोलना तक छोड़ दिया है। सच बताऊं, प्रधानमंत्री जी! मैं आपकी इसी खूबी का मुरीद हूं। आपकी एक चुप्पी, सवालों की आबरू जो रखती है। यह मंत्र वाकई काफी कारगर है। इसी मंत्र को जपकर मैं आजकल अपने सिर पर आई बला को टालने में सफल हो रहा हूं।
सर, आपको एक बात बताऊं। जब मैं छोटा था, स्कूल में बोलने के चलते अपनी टीचर और सहपाठियों से पिट जाता था। बड़ा हुआ, तो गली-मोहल्लों के लड़कों और अपने भाइयों से बोलने के चलते ही ठोक दिया जाता था। कई बार तो इतना पीटा गया कि हल्दी पीने की नौबत तक आ गई। खुदा न खास्ता, शादी के बाद भी यही दुर्गुण मेरे पिटने का कारण बना। कई बार घरैतिन से हुई ‘जूतम पैजार’ इस मोड़ तक पहुंची कि हम दोनों एक दूसरे को ‘जूते में दाल’ बांटने लगे। कभी घरैतिन पिटीं, तो कभी मैं। लेकिन अब मैं काफी मजे में हूं। आपकी ही तरह मैंने देखना, सुनना और बोलना छोड़ दिया है। बीवी कहती है, चार किलो आलू लाना, तो मैं यह नहीं पूछता कि इतने आलू का करना क्या है? बीवी अगर कहे कि चलती ट्रेन के आगे कूदकर इस पार से उस पार निकल कर दिखाओ, तो यकीन मानिए कि बीवी की ‘हाय-हाय, किचकिच’ से बेहतर है कि ट्रेन के आगे कूद जाऊं। प्रधानमंत्री जी! अब मैं अपने अनुभव यह समझ सकता हूं कि आपके कम बोलने, सुनने और देखने की शुरुआत घर से ही हुई होगी। आंटी जी (मिसेज प्रधानमंत्री) ने वही स्थितियां पैदा की होंगी, जो आज मेरी पत्नी ने मेरी कर दी है। वो कहा गया है न! खग जाने खग की ही भाषा। तो मैं आपकी पीड़ा समझ सकता हूं।
लेकिन प्रधानमंत्री जी! छोटा मुंह बड़ी बात कहूं। मेरे बोलने, सुनने और देखने की शक्ति का ह्रास होने से सिर्फ मेरा व्यक्तिगत नुकसान है। आप हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं। आपके बोलने का मतलब है कि इस देश के सवा सौ करोड़ लोग बोल रहे हैं। आपके सुनने का मतलब है कि किसी बात को पूरा एक जीवंत देश सुन रहा है। आप कोई मामूली आदमी नहीं हैं। आप हमारे देश की आन-बान और शान हैं। लेकिन अफसोस कि आप मूक, बधिर का अभिनय करते-करते सचमुच मूक और बधिर हो गए हैं। यह न तो आपके लिए फायदेमंद है, न ही देश के लिए। आपके न बोलने का ही नतीजा है कि आपके ही मंत्रियों में से कोई कोयला खा कर पेट भर रहा है, तो कोई टूजी स्पेक्ट्रम। कोई ‘आदर्श’ घोटाला कर रहा है, तो कोई थोरियम घोटाला।
आपके कुछ सिपहसालार तो ऐसे-ऐसे कच्चे हैं कि उन्हें घोटाला करना भी नहीं आता है। महज सत्तर-बहत्तर लाख रुपये के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगाते फिर रहे हैं। कई बार मीडिया में जो खबरें आईं, उससे लगा कि आप सब बदल डालेंगे, लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ। आपने हाथ पैर धोकर कह दिया कि पूरा चेहरा धुल गया है। चेहरा ऐसे थोड़े न धुला करता है। बदलना है, तो सब कुछ बदल डालिए। यह क्या कि आपने कुछ प्यादे बदल दिए और कहा कि बदलाव हो गया। अरे जनाब! राजा और वजीर तो वही पुराने वाले हैं। ऐसे में लोग आपको ललकार रहे हैं। आपको कमजोर, डमी पीएम और न जाने क्या-क्या कह रहे हैं। आपकी शान में गुस्ताखियां कर रहे हैं, इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आप अपनी जड़ता तोड़िए। बोलिए, कुछ तो बोलिए। आपका ही-उस्ताद गुनहगार।

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