-अशोक मिश्र

स्कूलों में मास्टर तो सबसे बड़े वाले असहिष्णु हैं। मन तो खेल के मैदान में रमा हुआ है और रटा रहे हैं हिस्ट्री, ज्याग्रफी और मैथमेटिक्स के उबाऊ सूत्र। मेरा वश चले, तो इस दुनिया के सभी अध्यापकों, माताओं-पिताओं, भाइयों-बहनों, दादा-दादियों और पड़ोसियों को एक निर्जन द्वीप पर ले जाकर छोड़ दूं और कहूं कि लो..यहीं बैठकर अपने हुकुम डुलाओ पेड़, पौधों, हवा-पानी पर। थोड़ा बड़ा हुआ..मतलब जवान हुआ। लड़कियों से बातें करना, उनके आगे-पीछे घूमना, उनके नाज-नखरे उठाने का मन करता है, लेकिन सारी दुनिया मुझे असहिष्णु लगती है। घर वाले और बाहर वालों का वश चले, तो मेरा इस देश में रहना मुहाल कर दें। अभी तो यह हाल है, कल को मेरी शादी होगी। तब तो मेरे सामने असहिष्णुता का महासागर लहराएगा। तनिक भी मुंडी इधर-उधर डोली कि शुरू हो गई जंग। तुमने उसे क्यों देखा, इधर-उधर क्या देख रहे हो। शाम को किससे बतिया रहे थे। मतलब कि मैं पति न हुआ, गुलाम हो गया। इसके बाद उत्तर पुस्तिका में कुछ नहीं लिखा हुआ था। लगता है कि कुछ लिखने का समय नहीं बचा था और पुस्तिका छीन ली गई थी।
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