Sunday, November 20, 2016

ये मुई सोनम गुप्ता..कौन लड़की है?

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अशोक मिश्र
मेरे एक मित्र हैं रामभूल उपाध्याय। अधेड़ावस्था के अंतिम दहलीज पर खड़े हैं। वे थोड़ा रसिक किस्म के जीव हैं। महिलाओं से और महिलाओं के बारे में बातें करना उनका पसंदीदा शगल है। जब भी कोई उनकी रसिकता पर अंगुली उठाता है, तो वे बड़े गर्व से कहते हैं, ‘हई बात तुम सब अच्छी तरह से जान लो। मैं रसिक हूं, अय्याश नहीं। रसिक तो बड़े-बड़े कवि, साहित्यकार, राजनेता, दार्शनिक, विचारक भी रहे हैं। इन लोगों का आज तक किसी ने टेंटुआ नहीं पकड़ा। रामभूल थोड़ा रसिक क्या हुए, सारे जमाने में ढिंढोरा पिट गया।’ कल सब्जी खरीदते समय रामभूल मिल गए। मुझे देखते ही मुस्कुराए और बांह पकड़कर बोले, ‘चाय पियोगे?’ मैंने मना कर दिया, तो आग्रहपूर्वक बोले, ‘चलो..सुखई की दुकान पर चलकर पकौड़ी खाते हैं।’ उनके आग्रह से मैं चौंक गया। मैंने सोचा, ‘चलो..जब उपधिया जी इतना मान मनुहार कर रहे हैं, तो उनसे कुछ खर्च ही करा लेता हूं।’
उन्होंने सुखई की दुकान पर सबसे पहले कोने की जगह तलाशी। दो फुल प्लेट पकौड़ी के साथ चाय का आर्डर दिया। मैंने पूछा, ‘उपधिया जी..बात क्या है? मछली के आगे चाय-पकौड़ी का चारा क्यों डाला जा रहा है?’ मेरी बात सुनकर रामभूल गंभीर हो गए, ‘हई बताओ..ई मुई सोनम गुप्ता..कौन लड़की है? औ ई बेवफाई का क्या चक्कर है जी?’ उनकी बात सुनकर मैं मुस्कुराया, ‘आपको सोनम गुप्ता की इतनी चिंता क्यों है?’ वे फुसफुसाए, ‘मने.. फेसबुकवा पर इतना हो-हल्ला हो रहा है, इसलिए पूछा। बेचारी की इतनी छीछालेदर हो रही है। मालूम नहीं, किन विषम परिस्थितियों में बेचारी ने बेवफाई का फैसला लिया होगा? प्रेमी से बेवफाई की या पति से? वह विवाहिता है या कुंवारी? विवाहिता है, तो बाल-बच्चेदार है या निपूती है। मुझे बड़ी दया आ रही है बेचारी पर। ई बताओ..तुम्हारे मोहल्ले में तो नहीं रहती है?’ इस दौरान सुखई चाय-पकौड़ी रखकर जा चुका था। मैं अपने हिस्से की पकौड़ी भकोस गया। अब उनके हिस्से पर हाथ साफ कर रहा था। मैंने पकौड़ी मुंह में डालते हुए कहा, ‘अगर मेरे मोहल्ले में रहती हो, तो?’
रामभूल ने गहरी सांस ली, ‘तो बेचारी को समझाऊंगा। इतने लोगों से बेचारी अकेले जूझ रही है। संकट के समय में कोई तो ऐसा हो उसके पास जिसके कंधे पर सिर रखकर रो सके, किसी को अपना समझ सके।’ मैंने कहा, ‘माफ कीजिए, सोनम गुप्ता एक कोडवर्ड है जिसका मतलब है सोने को छिपा दो। सरकार उस पर धावा बोलने वाली है।’ इतना सुनते ही वे झटके से उठे, ‘मुझे जरा जल्दी है, मैं जा रहा हूं। तुम ऐसा करना चाय पकौड़ी का भुगतान कर देना।’ इतना कहकर वे चलते बने।

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