अधर-अधर मिलकर कभी, प्रिये हुए थे एक
प्रणय ग्रंथ के अनपढ़े, बांचे पृष्ठ अनेक।
प्रणय ग्रंथ के अनपढ़े, बांचे पृष्ठ अनेक।
वसुधा पर झरती रही, टप-टप, टप-टप मेह।
रहे पयोधर अनमने, अलसायी-सी देह।
रहे पयोधर अनमने, अलसायी-सी देह।
प्रेम कभी मत तौलिए, मन पर पड़ती चोट।
लाख निकटता फिर बढ़े, रह जाती है खोट।
लाख निकटता फिर बढ़े, रह जाती है खोट।
मन कस्तूरी हो गया, प्रिय का पा सानिध्य।
विकसा पंकज प्रेम का, कुछ न रहा मालिन्य।
विकसा पंकज प्रेम का, कुछ न रहा मालिन्य।
तप्त अधर जब भी मिले, हुई चंदनी देह।
मधुकर-सा मन हो गया, द्राक्षासव-सा देह।
मधुकर-सा मन हो गया, द्राक्षासव-सा देह।
प्रीत पतिंगे की अमर, दीपक को सब दोष।
परस्वारथ जलता रहा, मिला यही परितोष।
परस्वारथ जलता रहा, मिला यही परितोष।
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