Sunday, February 24, 2013

‘भड़ास’ थी, निकल गई

-अशोक मिश्र
अंदर ‘वे’ परेशान थे और बाहर मीडियाकर्मियों और समर्थकों-चमचों की भीड़। उन्हें हुआ क्या है, इसके कयास लगाए जा रहे थे। परिजनों की भी नाक में सुबह से दम था। हां, बच्चे अपने में जरूर मस्त थे। पत्नी के जी का जंजाल बनी हुई थी उनकी परेशानी। वे बार-बार करवट बदल रहे थे, ‘ऊह...आह...हाय’ कर रहे थे। उनकी पत्नी सांत्वना व्यक्त करने आई पास-पड़ोस की महिलाओं में बैठी नए फैशन की ज्वैलरी पर डिस्कस कर रही थीं। थोड़ी-थोड़ी देर में वह यह कहती हुई उठ लेती थीं, ‘मिसेज खन्ना! आप बैठें जरा, मैं उनसे पूछ आऊं, आराम मिला या नहीं।’ इसके बाद वे उनके पास पहुंचतीं। पत्नी को आता देख वे पंचम सुर में कराहने लगते। पत्नी सहानुभूति दर्शाती हुई कहतीं, ‘क्या थोड़ा-सा भी आराम नहीं मिला? पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था?’ इतना कहकर पत्नी बाहर निकल गईं, उन्हें अभी मिसेज शकुंतला से नई रेसिपी सीखनी थी। उन्हें डर था कि यदि यहां ज्यादा देर रुकी, तो कहीं मिसेज शकुंतला चली न जाएं।
पत्नी को जाता देखकर वे खीझ उठे। ‘वे’ यानी मटरू लाल औतार, एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता। जब भी उनकी पार्टी सत्ता में आई, उन्होंने लूटा कम, खसोटा ज्यादा। परिणाम यह हुआ कि उनका ‘मध्य प्रदेश’ बढ़ता गया। आप तो जानते हैं कि मध्य प्रदेश चाहे औरत का बढ़े या पुरुष का, परेशानी बढ़ जाती है। वे सुबह से शाम तक मीडिया, कार्यकर्ता और प्रशंसक रूपी चमचों से घिरे रहते थे। मटरू लाल औतार अक्सर कहा करते हैं, ‘मुझे सत्ता का कभी मोह नहीं रहा है। विधायक, सांसद और मंत्री-संत्री जिसको बनना हो, वो बने। मैं तो पैदायशी एमएलए हूं, था और रहूंगा।’ एक बार मीडिया के सामने जब वे यह दोहरा रहे थे, तो दैनिक ‘कउवा काटे’ का एक संवाददाता पूछ बैठा, ‘नेताजी, आपको तो सिर्फ एक बार ही टिकट मिला था और उस बार आपको जमानत बचानी भारी पड़ गई थी।’ यह सुनते ही वे आग बबूला हो गए, ‘देखो, कैसा बुड़बक जैसा बात करता है। हमको बोलता है...हमको... जमानत जब्त हो गया था। अरे, एक्कौ दिन वोट मांगे गए रहे फील्ड मा। हमका तो अध्यक्ष जी दिल्ली मा फंसाए रहे चुनाव भर। कहता है...चुनाव हार गए थे। अरे हमरा कै एक्कौ दिन फील्डिया मा जाए का मौका मिलता, तो देखते कतना वोटवा हमरे पक्ष मा गिरता। गिनत-गिनत अंगुरिया पिराई लागत चुनाव आयोगवा कै।’ पार्टी प्रवक्ता को नाराज देखकर कुछ समर्थकों ने उस ‘नादान’ पत्रकार को भगा दिया। दिन भर मीडिया और समर्थकों से घिरे रहने वाले वही प्रवक्ता कम नेता अंदर आलीशान बिस्तर पर पड़े कराह रहे थे।
तभी कमरा समर्थक कार्यकर्ताओं से भर गया। शोर सुनकर उन्होंने दरवाजे की ओर मुंह किया। एक कार्यकर्ता ने हाथ में पकड़ी कटोरी आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘नेता जी! बस एक चम्मच यह अजवाइन का काढ़ा पी लीजिए। मेरी सास की भतीजी को भी एक बार ऐसी ही दिक्कत हुई थी, मेरी सास ने सिर्फ एक चम्मच ही पिलाई थी। अब आपसे क्या कहें, इधर दो घूंट काढ़ा अंदर गया, उधर भतीजी अपना बस्ता उठाकर स्कूल चली गई थी।’ समर्थकों ने समवेत स्वर में कहा, ‘नेता जी! पी लीजिए दो घूंट...क्या पता फायदा हो ही जाए।’ नेता जी कराहते हुए उठे, दो घूंट काढ़ा पिया और बोले, ‘बहुत कड़वा है।’
तब तक एक दूसरा व्यक्ति अंदर आया और उसने कहा, ‘दद्दा! यह काढ़ा-फाड़ा छोड़िए, यह ‘सर्वभस्मक चूर्ण’ लीजिए। मेरे पूजनीय गुरु स्वामी चुतरानंद मतिमंद जी को हिमालय पर तपस्यारत उनके गुरु जी ने प्रदान किया था। इसे फांकते ही आप भी उठकर पार्टी कार्यालय चल देंगे।’ नेता जी ने एक चम्मच चूर्ण भी फांक लिया। तभी ‘हटो..हटो..रास्ता दो’ की आवाज गूंजी। कमरे में कुछ कैमरामैन और पत्रकार घुसे। पत्रकारों ने उनसे पूछा, ‘एमएलए जी, सत्ताधारी दल द्वारा किए गए मुर्गी घोटाले के बारे में आपकी पार्टी की क्या प्रतिक्रिया है? आपकी पार्टी इस घोटाले को लेकर क्या करने जा रही है?’ तभी कमरे में ‘भर्रर्र... र्रर्र...’ की आवाज गंूजी, मानो किसी कपड़ा व्यापारी ने कपड़े का थान पकड़कर फाड़ा हो। चारों तरफ बदबू-सी फैल गई। नेता जी उछलकर बिस्तर पर बैठ गए, बोले, ‘हमारी पार्टी इसके खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेगी, प्रधानमंत्री को नैतिकता के आधार पर तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए। इस बार हमारी पार्टी अपने सहयोगियों के साथ संसद का बहिष्कार करेगी।’ तभी एक पत्रकार ने पूछा, ‘नेता जी, सुना है कल से आपकी तबीयत खराब थी?’ नेताजी कैमरे के सामने मुस्कुराए, ‘कल से एक भड़ास अटकी हुई थी, अभी निकली है। अब मैं ठीक हूं।’ इतना कहकर नेताजी बाहर आए और कार्यकर्ताओं को संबोधित करने लगे।

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