Tuesday, June 11, 2013

लट्टू पड़ोसन की भाभी हो गई

-अशोक मिश्र
मेरे पड़ोस में एक कोचिंग इंस्टीट्यूट पिछले पांच साल से चल रहा है। नाम है ‘राम भरोसे कोचिंग इंस्टीट्यूट।’ इंस्टीट्यूट की संचालिका हैं मिस छबीली। मेरे पड़ोस में रहती हैं। जब कोचिंग इस्टीट्यूट का उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया था, तो वे मुझे भी न्योता देने आई थीं। कोचिंग इंस्टीट्यूट का नाम देखकर मैं चौंक गया था, ‘आपने इंस्टीट्यूट का नाम राम भरोसे क्यों रखा है?’ मेरी बात सुनकर छबीली मुस्कुराई और उनकी यह मुस्कुराहट देखकर किचन में चाय तैयार कर रही घरैतिन गर्म तवे की तरह दहक उठीं। उन्होंने वहीं से आवाज लगाई, ‘जरा सुनिए...।’ मैं लपककर उनके पास पहुंचा, तो वे कानों में फुसफुसाने के अंदाज में गुर्राईं, ‘ज्यादा दांत मत चियारो। इसे चाय पिलाकर विदा करो।’ मैं घरैतिन के गुस्से का आनंद लेता हुआ लौटा और बोला, ‘बताया नहीं आपने... राम भरोसे कोचिंग इंस्टीट्यूट नाम क्यों रखा?’ उन्होंने आगे की ओर झुकते हुए कहा, ‘क्योंकि इसमें पढ़ने वाले सारे बच्चे ‘राम भरोसे’ ही पढ़ेंगे।’ उनकी यह गूढ़ बात मेरी तब समझ में आई, जब कुछ दिन बाद पता चला कि पड़ोस में परचून की दुकान खोलकर बैठा कन्हैया लाल उनके कोचिंग इंस्टीट्यूट में अर्थशास्त्र पढ़ाता है। बीए में तीन साल फेल होने वाला रघु गणित पढ़ाता है। गली-मोहल्ले की लड़कियों को प्रेम पत्र लिखकर उन्हें घूरने और छेड़छाड़ करने वाला मुन्ना लाल पिछले दो साल से छबीली के कोचिंग इस्ंटीट्यूट में रीतिकालीन काव्य पढ़ाता है।
परसों आॅफिस जाने के लिए घर से निकलते समय छबीली से मुलाकात हो गई। उन्होंने मेरी पत्नी से अनुरोध किया, ‘दीदी... मेरे कोचिंग इंस्टीट्यूट में हिंदी पढ़ाने वाला मुन्ना लाल छात्र-छात्राओं को भ्रमरगीत पढ़ाते-पढ़ाते एक लड़की को लेकर भ्रमर हो गया। अगर भाई साहब, मेरे इंस्टीट्यूट में एकाध घंटे हिंदी पढ़ा दिया करें, तो मैं आभारी रहूंगी। उसके बदले मैं पैसा भी दूंगी।’ पैसे का नाम सुनते ही घरैतिन का वैरभाव पता नहीं कहां तिरोहित हो गया। उन्होंने कहा, ‘हां...हां...क्यों नहीं। शाम को तो ये वैसे भी खाली रहते हैं। और फिर...आॅफिस में ही कौन-सा पहाड़ ढकेलते हैं कि शाम को थके हुए होंगे।’ घरैतिन द्वारा अध्यादेश जारी होने पर अपील की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी। ‘मरता... क्या न करता’ वाली हालत मेरी थी। घरैतिन या छबीली को क्या बताता कि अगर मैं इतना ही बड़ा तुर्रमखां होता, तो क्या अखबारों में कलमघसीटी करता? खैर... हिंदी के कुछ फार्मूले-वार्मूले रट-रटाकर अगले दिन बच्चों को पढ़ाने पहुंचा। क्लास में सत्ताइस लड़कियां और तेरह लड़के थे। छबीली ने सबसे परिचय कराया और मेरा परिचय देते हुए बताया कि आज से हिंदी यही पढ़ाएंगे। पता नहीं क्यों, छात्रों के चेहरे लटक गए और कुछ छात्राओं के चेहरे चमक उठे। भगवान जाने... इसके पीछे क्या मसलहत (भेद) थी। विद्यार्थियों से पूछा, ‘आज तो फिलहाल सारा समय परिचय में ही निकल गया है, लेकिन अगर किसी को कुछ पूछना हो, पूछ सकता है।’ एक चंद्रमुखी, मृगनयनी, सुगठित देहयष्टि वाली छात्रा ने किसी मुग्धा नायिका की तरह नाजुक होंठों को तकलीफ दी, ‘सर... एक गीत की एक पंक्ति मेरी समझ में नहीं आ रही है।’ मैंने कहा, ‘पूछो...।’ मेरे इतना कहते ही एक बार लगा कि कहीं कोई कोकिल कूकी हो, ‘हां, जींस पहन के जो तूने मारा ठुमका, तो लट्टू पड़ोसन की भाभी हो गई। सर... इस गीत के इस हिस्से का भावार्थ समझ में नहीं आ रहा है कि जींस पहनकर ठुमका मारने से लट्टू पड़ोसन की भाभी कोई कैसे हो सकती है?’ छात्रा के प्रश्न पूछते ही मेरा दिमाग ही ‘भक्क’ से उड़ गया। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। कहां तो मैं आया था अपनी विद्वता का सिक्का जमाने और कहां ‘उल्टे बांस बरेली’ को लादे जा रहे थे।
 मैंने कहा, ‘देखो, इस गीत का जब तक प्रसंग आप लोगों की समझ में नहीं आएगा, तब तक अर्थ स्पष्ट नहीं होगा। इस गीत की दो नायिकाएं हैं। दोनों नायिकाएं आपस में सखियां भी हैं। एक नायिका नायक के पड़ोस में रहती है, माने प्रतिवेशी है। दूसरी नायिका लट्टू है। यहां, लट्टू शब्द द्विअर्थी है। एक अर्थ के हिसाब से लट्टू नायिका का नाम ठहरता है, दूसरे अर्थ में पहली नायिका के नायक पर लट्टू (मोहित होने) का भाव दर्शाता है। हालांकि, लट्टू शब्द नायिका के नाम होने के अर्थ में ही सर्वमान्य है। अब इस पंक्ति का अर्थ इस प्रकार बनता है। जब नायिका लट्टू ने किसी समारोह में जींस पहनकर नायक के सामने ठुमका मारा, तो नायक उसके नृत्य से इतना अभिभूत हुआ कि उसने तत्काल नायिका लट्टू से विवाह करने की ठान ली। उसने अपना यह निश्चय अपने घरवालों के सामने दुहराया, तो उसके घरवाले नायिका के घरवालों से मिले और दोनों परिवारों की सहमति से उनकी शादी हो गई।
 चूंकि दूसरी नायिका नायक के पड़ोस में रहती थी, समाज को दिखाने के लिए नायक को भाई साहब कहती थी, इसलिए जब नायिका लट्टू और नायक का विवाह हुआ, तो नायिका लट्टू अपने सहेली और नायक की पड़ोसन यानी कि दूसरी नायिका की भाभी कही जाने लगी।’ इतना कहकर मैंने अपने चेहरे पर चुहचुहा आए पसीने को पोंछा और कहा, ‘बाकी बातें कल होंगी।’ इतना कहकर मैं कोचिंग से बाहर आ गया। अच्छा, आप विद्वत जन ही बताएं, इस गीत की व्याख्या मैंने ठीक की थी या   गलत?

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