Tuesday, June 25, 2013

नासपीटा मोबाइल

-अशोक मिश्र
उस्ताद गुनहगार बाथरूम से निकले और दीवार की ओर मुंह करके बड़ी लय में गाने लगे, ‘रामचंद्र कृपाल भज मन, हरण भव भय दारुणम।’ हालांकि, दीवार पर किसी देवी-देवता की मूर्ति या फोटो नहीं लगी हुई थी। तभी मोबाइल फोन पर एसएमएस आने की ट्यून बजी। सोफे पर बैठी उस्ताद गुनहगार की पत्नी उर्वशी ने लपककर मोबाइल फोन उठाया और संदेश देखने लगीं। लिखा था,‘हाय जानूं! अकेले हो? मैं भी अकेली हूं। फोन करो न!-कविता।’ यह पढ़ते ही उर्वशी का पारा पिछले तीस साल का रिकॉर्ड तोड़कर अधिकतम पर पहुंच गया। उस्ताद गुनहगार और उर्वशी के वैवाहिक जीवन को भी तीस साल अभी कुछ ही दिन पहले पूरे हुए थे। भजन पूरा करने के बाद उस्ताद गुनहगार ‘मेरी फोटो को सीने से यार...चिपका ले...फेवीकोल से’ गाते हुए आए और उर्वशी की बगल में बैठ गए, ‘मेरी जान! कुछ नाश्ता पानी मिलेगा इस प्यारे-दुलारे पति परमेश्वर को। जल्दी करो...धंधे पर भी जाना है।’
गुनहगार की बात सुनकर उर्वशी एकदम ‘लाल’ के साथ-साथ ‘कृष्ण’ हो गईं। बोलीं, ‘जो कलमुंही तुम्हारा इंतजार कर रही है, जो आज अकेली है, जिसके लिए सुबह निकलते हो और आधी रात तक भी दर्शन नहीं होते, उससे मांगो नाश्ता-पानी। उस कलमुंही की इतनी हिम्मत...वह संदेश भेजकर कहती है, हाय जानूं...तो फिर जाओ...उसी जानूं के पास। मेरे पास क्या लेने आते हो?’ इतना कहकर उर्वशी दुपट्टे से अपने अश्रु प्रवाह को रोकने का प्रयास करने लगीं। उस्ताद गुनहगार पहले तो अवाक खड़े रहे, उनकी समझ में ही मामले की पूंछ नहीं आ रही थी। फिर वे बोले, ‘अरे खफा क्यों हो, बेगम! आखिर हुआ क्या है? अभी थोड़ी देर पहले तक तो तुम ठीक थीं, फिर निम्न तापमान से उच्च तापमान तक कैसे पहुंच गईं। बताओ तो, बात क्या है?’ उर्वशी तपाक से उठी और मोबाइल फोन उठाकर गुनहगार के सीने पर फेंकते हुए कहा, ‘पढ़ो उस नासपीटी का संदेश। अभी थोड़ी देर पहले ही आया है। हाय राम! मेरे तो करम ही फूटे थे, पता नहीं कब से उस कलमुंही के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे हो।’ उस्ताद गुनहगार ने एसएमएस पढ़ा तो एक बार वे भी सन्न रह गए। फिर उन्हें याद आया कि ऐसे एसएमएस तो अक्सर आते रहते हैं। कुछ लोगों से जब इस बारे में बात की, उन्होंने बताया कि यह कुछ कंपनियां का फ्राड है, जो लोगों को दिए गए नंबर पर फोन करने को उकसाती हैं। उधर से एक महिला फोन करने वाले से कुछ सीली-रसीली बातें करती है। इस फोन का चार्ज वसूला जाता है।
उस्ताद गुनहगार ने मामले को समझकर हंसते हुए कहा, ‘अरे यार! तुम भी न...हो एकदम बुद्धू...यह मोबाइल कंपनी की ओर से भेजा गया एसएमएस है। कुछ कंपनियां लोगों को बेवकूफ बनाकर इस नंबर पर बात करने को उकसाती हैं और कुछ ‘आंखे के अंधे, गांठ के पूरे’ लोग इनके चक्कर में फोन कर बैठते हैं। ये कंपनियां फोन करने वाले से मोटा चार्ज वसूलती हैं।’ इतना कहकर गुनहगार ने उर्वशी के कंधे पर हाथ रखते हुए मनाने की कोशिश की। उर्वशी ने हाथ झटकते हुए कहा, ‘जाओ...पिछले तीस साल से बुद्धू बना रहे हो। अब बुढ़ापे में पोल खुली है, तो अपना दोष कंपनियों के सिर पर टरका रहे हो।’ उर्वशी की बात सुनकर उस्ताद मुजरिम ने क्रोध से दांत पीसते हुए कहा, ‘ऐसा करो...तुम इसी फोन नंबर पर कॉल बैक करो। तुम्हें असलियत पता चल जाएगी।’ उर्वशी ने फोन लगाया। उधर से आवाज आई, ‘जिस नंबर पर आप फोन लगा रहे हैं, वह नंबर अभी व्यस्त है।’ यह सुनते ही उर्वशी शेरनी की तरह गुर्राईं, ‘लो...तुम्हारी सहेली तो अब किसी और को घास डाल रही है। अपने किसी दूसरे यार से बतिया रही है।’
पत्नी की बात सुनकर रुंआसे स्वर में उस्ताद गुनहगार कहा, ‘हे भगवान!..मैं कैसे इस मंदअक्ल औरत को समझाऊं कि पिछले तीस साल से एक ही खूंटे से बंधा रिरिया रहा हूं। शादी के बाद से तो मैंने सपने में भी किसी खूबसूरत औरत को आने नहीं दिया। सपने में जब भी कोई औरत आई है, तो वह खुद या फिर ताड़का, लंकिनी, डंकिनी ही रही है।’ तभी उर्वशी के मोबाइल पर एसएमएस आया। उर्वशी झटके से उठीं और संदेश पढ़ने लगीं। उस्ताद गुनहगार ने उत्सुकता से उनकी ओर देखा। एसएमएस पढ़कर उर्वशी को चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा। उन्होंने उस्ताद गुनहगार की ओर देखते हुए कहा, ‘आप नाश्ता कर लीजिए। आपको धंधे पर जाने को देर नहीं हो रही है।’ इतना कहकर वे मोबाइल फोन को ‘उचित जगह’ पर रखकर किचन की ओर जाने लगीं। उस्ताद गुनहगार ने पूछा, ‘अरे उस संदेश में ऐसा क्या लिखा था कि कुरुक्षेत्र में मारकाट मचाने को आतुर सेनानियों का उत्साह ठंडा हो गया। जरा मैं भी तो देखूं, उस संदेश में आखिर है क्या?’ उर्वशी ने खिसियानी हंसी हंसकर कहा, ‘बेकार के पचड़े में फंसने से क्या फायदा, नाश्ता कीजिए और अपना धंधा देखिए।’ उस्ताद गुनहगार ने बड़ी ठसक के साथ ‘उचित जगह’ से उर्वशी का मोबाइल निकाला और पढ़ने लगे, ‘स्वीट डार्लिंग..अकेली हो? मैं भी अकेला हूं। मुझसे बात करने के लिए फोन करो न!-संजय।’ यह पढ़ते ही उस्ताद गुनहगार ठहाका लगाकर हंस पड़े। उनके साथ ही उर्वशी भी खिसियानी हंसी हंसने लगीं।

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