Tuesday, July 9, 2013

‘चूजे’ का गलत-सलत मतलब

अशोक मिश्र
रविवार की सुबह बाहर बैठा एक बित्ते की दातून चबा रहा था कि पास ही आवाज गूंजी, ‘कुकुडक्कूं।’ मैंने देखा, कुछ दिन पहले अंडा फोड़कर बाहर आया मुर्गी का चूजा फुदकता हुआ मेरी ओर आ रहा है। मैंने उसे सवालिया नजरों से देखा। वह पास आया और बोला, ‘कुकुडुक्कूं! आप मानवों पर हमारी चूजा बिरादरी ने कुछ गंभीर आरोप लगाए हैं। हमारा दो घंटे बाद मुर्गी फार्म में एक सभा आयोजित की गई है। आपको वहां उपस्थित होना है।’ मैं आश्चर्यचकित रह गया। मैंने चूजे को झिड़क दिया, ‘क्या है बे! मुझे इतना फालतू समझ रखा है। अबे तू यहां से जा। अगर मुझे तुझसे बातचीत करते घरैतिन ने देख लिया, तो आफत आ जाएगी। आजकल चूजे का कुछ गलत-सलत मतलब निकाला जाने लगा है।’ मैं एक बार फिर दंग रह गया, जब चूजे ने मेरी बात सुन ली और समझ भी ली, ‘मैं अभी तो जा रहा हूं, लेकिन ठीक दस बजे छबीली कुक्कुट फार्म पर पधारिएगा जरूर। बाद में मत कहना कि चूजों और मुर्गियों ने आप मनुष्यों के खिलाफ कुछ ऐसा-वैसा प्रस्ताव पारित कर दिया।’ इतना कहकर चूजा फुदकता हुआ चलता बना। मैं दातून हाथ में लिए सोचता रह गया कि वहां जाऊं, न जाऊं। तभी घरैतिन की आवाज आई, ‘सारा दिन दातून ही करते रहेंगे क्या?’ मैंने झटपट कुल्ला-दातून किया और तय कर लिया कि चूजों के सम्मेलन में जरूर जाऊंगा।
नियत समय पर पहुंचा, तो देखा कि मुर्गियों और चूजों ने बाकायदा एक मंच बना रखा है। विभिन्न तरह के चूजे और मुर्गियां कुर्सियों पर विराजमान थे। एक बुजुर्ग मुर्गी को सभा की अध्यक्षता सौंपी गई। पहुंचते ही सभी चूजों और मुर्गियों ने ‘कुकुडुक्कूं’ की ध्वनि के साथ मेरा स्वागत किया। मुझे एक कुर्सी पर बिठाया। एक नए-नए जवान हुए मुर्गे ने संयोजक का कार्यभार संभाला। उसने एकाध बार ‘हेल्लो माइक टेस्टिंग हेल्लो’ कहा और शुरू हो गया, ‘आज इस सभा की जरूरत इसलिए आ पड़ी कि अब मनुष्यों ने हमारी जाति को ही बदनाम करना शुरू कर दिया है। अब वह अपने कर्म-कुकर्म को छिपाने के लिए हम चूजों का उपयोग कोड वर्ड में करने लगा है। एक मंत्री महोदय तो खुले आम कहने लगे हैं कि इस बार आना तो चूजे लेकर आना। अगर मनुष्य अट्ठारह से बीस साल के बीच की लड़कियों का नाम चूजा रखना चाहता है, तो हमें इस पर कोई आपत्ति भी नहीं है। मनुष्य इस पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान प्राणी है। उसके पास भाषा है, व्याकरण है, आचरण है, दुराचरण है, कर्म है, धत्कर्म है। वह अपनी बहन-बेटियों को चूजा कहने में गर्व महसूस करता है, तो करे। हम इसका विरोध क्यों करें, लेकिन उससे यह अनुरोध तो किया ही जा सकता है कि वह हमारा नाम बदल दे। वह हमारे भाइयों को किसी और नाम से पुकारे।’
इतना कहकर उसने अपनी बात का प्रभाव जांचा और कहना शुरू किया, ‘इंसानों ने हम मुर्गे-मुर्गियों को लेकर कई तरह के मुहावरे और कहावतें गढ़ीं। हमने कोई विरोध नहीं किया। जब भी किसी इंसान की मेहनत दूसरा हड़प लेता है, तो वह झट से कह बैठता है, मेहनत करे मुर्गा, अंडा खाय फकीर। हम में इतनी बुद्धि नहीं है कि हम रिश्तों-नातों की गरिमा समझ सकें या उसका निर्वाह कर सकें। हमारे यहां बाप, भाई, मां, बाप, बहन, बेटी जैसे रिश्ते हैं ही नहीं। इसका महत्व भी नहीं जानते, लेकिन मनुष्य को इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती है कि वह हमें बदनाम करता फिरे। मैं कल का वाकया सुनाऊं। इस फार्म हाउस की मालकिन छबीली अपने दरवाजे पर खड़ी पड़ोसी शर्मा जी से बतिया रही थी, तो सामने वाले वर्मा जी का बेटा अपने किसी दोस्त से कह रहा था, यार! शर्मा जी ने लगता है, मुर्गी फंसा ही लिया। मैं दिन भर परेशान रहा कि आज पता नहीं किस मुर्गी के हलाल होने की बारी थी। शाम को जब सभी मुर्गे-मुर्गियां दरबे में आ गईं, तो मैंने गिना। सभी मौजूद थीं। सुबह वर्मा जी के बेटे से पूछा, तो वह अश्लील ढंग से मुस्कुराता हुआ बोला, मुर्गी फंस गई का मतलब है कि छबीली आंटी शर्मा अंकल से ‘सेट’ हो गईं। अब भला बताओ। इसमें मुर्गियों का क्या दोष?
सभा के माध्यम से मैं मांग करता हूं कि इंसान या तो अपने मुहावरे बदले या फिर हम लोगों के नाम। हमें इस बात से कोई गिला-शिकवा नहीं है कि वह जब चाहता है, हमें हलाल करके खा जाता है। हम भी तो कीड़े-मकोड़ों को खाकर जिंदा रहते हैं। प्रकृति ने हमें इंसानों के भोजन के रूप में पैदा किया है, तो हमें उससे कोई उज्र नहीं है, लेकिन उसके कर्मों-कुकर्मों को अपने सिर ओढ़ने को तैयार नहीं हैं।’ संचालक के इतना कहते ही वहां उपस्थित सभी मुर्गे-मुर्गियों और चूजों ने समवेत स्वर में ‘कुकुडुक्कूं’ कहकर अपना विरोध जताया। सभा की अध्यक्षता कर रही मुर्गी ने लगभग धमकाते हुए कहा, ‘इंसान इस दुनिया का सबसे गंदा, स्वार्थी और वाहियात प्राणी है। अगर उसने भविष्य में कोई कुक्कुट विरोधी बात की, तो उसके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा।’ इतना कहकर अध्यक्ष मुर्गी जी ने सभा बर्खास्त कर दी। मैं बिना कोई जिरह या सफाई पेश किए घर लौट आया। छबीली के कुक्कुट फार्म से निकलते देख घरैतिन ने जो बखेड़ा खड़ा किया, उसका किस्सा फिर कभी सुनाऊंगा।

No comments:

Post a Comment