Monday, July 22, 2013

बप्पा मर गए

-अशोक मिश्र
किसी बहुत पुराने समय में किसी गांव में रहते थे बप्पा। बप्पा का एक ही बेटा था। कलकत्ता शहर में रहता था। छह महीने बाद बेटा शहर से गांव आया, तो जाते समय उसने बप्पा से कहा, ‘बप्पा! इन दिनों खेत का भी काम नहीं है, क्यों न आप मेरे साथ शहर चलें। आपने जिंदगी भर शहर भी नहीं देखा है।’ बप्पा भी पता नहीं किस मूड में थे। उन्होंने कहा, ‘चलो...शहर ही घूम आते हैं।’ बप्पा शहर में करीब पंद्रह-बीस दिन रहे और अपने गांव की ओर रवाना हो गए। बेटे ने सोचा कि जब बप्पा शहर आ रहे थे, तो उसकी विवाहिता बहन भी वहीं थी। उसने कहा था, ‘भइया! बप्पा का हाल-चाल बताते रहना।’ जब बप्पा गांव रवाना हो गए, तो उसने सोचा कि दीदी को भी खबर कर दूं। उसने दीदी की ससुराल तार (टेलीग्राम) भेजा, ‘बप्पा घर गए।’ दीदी की ससुराल में तार पहुंचते ही हाहाकार मच गया। अब उस तार को पढ़ने के लिए किसी योग्य व्यक्ति की खोज होने लगी। गांव में सिर्फ हरीशर का बारह वर्षीय बेटा परमेसरा ही छठवीं तक पढ़ा था। परमेसरा की खोज की गई, वह डरता-सकुचाता आया। उसने हिज्जे मिला-मिलाकर पढ़ा, ‘बप्पा...म...र...ग...ए।’
इतना सुनना था कि बप्पा की बेटी दहाड़ मारकर रो उठी। उसने परमेसरा से बिलखते हुए तार छीना और धोती-कपड़ा उठाकर मायके की ओर चल पड़ी। मायके की डांड़ (चौहद्दी) पर पहुंचकर दहाड़ मारकर फिर रोने लगी, ‘हाय...हमार...बप्पा...आहाहहह...हाय...हमार...बप्पा...अब हम का करी...।’ गांव के बाहर बाग में खेल रहा बुधई दौड़ता हुआ बप्पा के घर पहुंचा और बप्पा की पत्नी से बोला, ‘काकी...काकी...बहिनी...गांव के बाहर रोती हुई आ रही हैं। लगता है...उनके बप्पा को कुछ हो गया है।’ बप्पा की पत्नी की समझ में आया कि उसके पति बेटे के साथ शहर गए थे, अभी तक लौटे भी नहीं हैं। वहीं उन्हें कुछ हो गया होगा, जिससे उनकी मौत हो गई है। बेटी को तार या चिट्ठी मिली होगी, तभी वह रोती-बिलखती हुई आ रही है। तब तक बप्पा की बेटी भी गांव में प्रवेश कर चुकी थी। गांव की कुछ महिलाएं उत्सुकतावश गांव के बाहर आ गईं। गांव की बेटी को रोती देखकर वे भी टसुए बहाने लगीं। उनको रोता देखकर बेटी ने फिर से छाती पीटते हुए कहा, ‘हाय...हमार बप्पा...हमका...अंतिम...समय...मां...आपन मुहौ (मुंह) नाही देखायव...हाय रे दइया...अब हम का करिवै...बप्पा।’ रोती बिलखती बेटी घर पहुंची, तो उसके आने की सूचना पहले ही पहुंच चुकी थी। गांव की अड़ोस-पड़ोस की महिलाएं और लोग दरवाजे पर जमा हो चुके थे। बेटी को देखते ही उसकी मां भी जोर-जोर से हिचकी लेकर रोने लगी। बप्पा की पत्नी भी छाती पीटती हुई रोने लगीं, ‘हाय...हमार...बपई...शहर...गए...रह्यो...घूमै टहरै का। हम का जानित रहै, अब न लौटिहौ..जौ जानि पाइत..तौ शहर काहे जाय देइत...।’
यह सुनते ही वहां मौजूद महिलाएं कोरस में रोने लगीं। बप्पा की बेटी या पत्नी में से कोई एक ऊंचे स्वर बैन (मरने वाले को याद करते हुए कुछ कहकर रोना) करती, तो मौजूद महिलाएं उसी को दोबारा कहकर फिल्म रुदाली वाले अंदाज में रोने लगतीं। सुबह आठ-नौ बजे पहुंची बेटी ने जब देखा कि दोपहर के दो बज गए हैं, तो वह धोती-ब्लाउज उठाकर रोती हुई गांव के बाहर स्थित तालाब की ओर चल दी। हिंदू समाज में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है कि किसी की भी मौत होने पर उसके घर और भाई-पट्टीदारी की महिलाएं तालाब या नदी में नहाती हैं। इसके बाद ही पुरुष भी तालाब या नदी में नहाने जाते हैं। बेटी को नहाने जाते देखकर बप्पा की पत्नी और टोले-मोहल्ले की महिलाओं ने भी कपड़ा उठाया और तालाब की ओर चल दीं। रास्ते में और नहाते समय भी महिलाएं विलाप करती रहीं। घर के बाहर जमा पुरुष बप्पा के बारे में बात करके दुखी हो रहे थे। किसी ने कहा, ‘बप्पा बहुत दयालु थे।’ तो किसी ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, ‘एक बार बप्पा नौरइया की बगिया से होकर शाम को कहीं जा रहे थे। बगिया में एक पीपल का पेड़ था। उस पेड़ पर बरम (ब्रह्म-पिशाच) रहता था। वह बप्पा के सामने आया और बोला, इधर से नहीं जाने देंगे। बप्पा भी अड़ गए। भइया...रात भर दोनों में मल्ल जुद्ध होता रहा। कभी बप्पा पटकनी देते, तो कभी बरम। न बप्पा हार मानें, न बरम। जब सुबह होने लगी, तो बरम यह कहते हुए गायब हो गया, कल फिर आना। तुमसे जुद्ध करके मजा आया। सुबह मैं उधर से जा रहा था। देखा, बप्पा बेहोस पड़े आंव-बांव बक रहे हैं। एक सौ चार-एक सौ पांच डिगरी बुखार चढ़ा हुआ था। बड़ी मुश्किल से उस बार बप्पा की जान बची थी।’
महिलाएं जब तालाब से नहाकर घर आईं, तो बेटी ने चूल्हा जलाया और अपनी मां से पूछा, ‘अम्मा...बप्पा मरे कब?’ मां ने कहा, ‘बिटिया ई तो तुमही बताइहौ। तुमही रोती-पीटती यहां आई थी।’ बेटी ने कहा,‘अम्मा! भइया का तार आवा रहा कि बप्पा मर गए। यह देखौ तार।’ इतना कहकर उसने अपने झोले में से तार निकाला और अम्मा को थमा दिया। अम्मा तार लेकर गांव के ही मथुरा प्रसाद के पास गईं। बप्पा के मरने पर लोगों के साथ नदी नहाकर वे लौटे थे। उन्होंने तार पढ़कर हंसते हुए कहा, ‘इसमें लिखा है, बप्पा घर गए।’ फिर बप्पा अभी तक घर क्यों नहीं पहुंचे? दरअसल, बात यह थी कि जब बप्पा घर की ओर आ रहे थे, तो उन्होंने सोचा, रास्ते में ससुराल है। बहुत दिन   हुए सलहज (साले की पत्नी) से हंसी-ठिठोली नहीं की है। सो, उससे भी मिलते चलें। और...रसीली सलहज ने उन्हें पंद्रह दिन तक आने नहीं दिया था।ं

No comments:

Post a Comment