Monday, August 19, 2013

सियासत में तो गुंडे मस्ट हैं

-अशोक मिश्र
दिल्ली के लुटियन जोन के किसी सुनसान पार्क में सर्वगुटीय बैठक हो रही थी। किसिम-किसिम के ठग, उठाईगीर, चोर-उचक्के, गुंडे और पॉकेटमार जमा थे। गली-कूंचे के टुटपुंजिया टाइप के छुटभैय्ये पॉकेटमार, उठाईगीरों से लेकर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक भाई के प्रतिनिधि सलमान खिर्ची भी बैठक में भाग ले रहे थे। आतंकवादी संगठनों को अमानवीय और देशद्रोही मानते हुए बैठक में नहीं बुलाया गया था। बैठक में भाग ले रहे लोगों का मानना था कि वे कानून भले ही तोड़ते हों, लेकिन आतंकवादियों की तरह मानव और राष्ट्र विरोधी नहीं है। वे अपने देश से उतना ही प्यार करते हैं, जितना एक राष्ट्रभक्त। भारत के प्रख्यात पॉकेटमार उस्ताद मुजरिम को बैठक का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। सभा की कार्रवाई शुरू होने से पहले सभी प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों ने ‘भारत के कानून विरोधी तत्वों एक हो!..एक हो’ के नारे लगाए। अध्यक्ष महोदय के मंचासीन होते ही बैठक की कार्रवाई शुरू हुई।
कार्यक्रम के संचालन का भार दाउद इब्राहिम के प्रतिनिधि सलमान खिर्ची को सौंपा गया। जर्मन मेड टेलिस्कोपिक गन से बीस राउंड फायरिंग करने के बाद सलमान खिर्ची ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा, ‘राजनीति के अंग-संग रहने वाले मेरे अराजक साथियो! इन दिनों हम सभी भाइयों पर एक बड़ा संकट मंडरा रहा है। इस देश की न्यायपालिका कहती है कि समाज में चोर नहीं चाहिए, उचक्के नहीं चाहिए, पॉकेटमार नहीं चाहिए, ड्रग पैडलर नहीं चाहिए, माफिया नहीं चाहिए, हत्यारे नहीं चाहिए। हम इस बैठक के माध्यम से अदालत से विनम्रतापूर्वक पूछना चाहते हैं, अगर समाज में ये सब नहीं चाहिए, तो फिर चाहिए क्या? अगर हम सबको इस देश और समाज से निकाल दिया जाए, तो बचेगा ही समाज में क्या? अगर देश में समाज, व्यवस्था और सद्भावना नाम की कोई चीज है, तो हम उठाईगीरों, पाकेटमारों, चोर-उचक्कों और गुंडों की ही बदौलत है, वरना इस देश में हमारे भी बाप नेता हैं और या फिर नपुंसक जनता। इन्हीं मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए हम सब लोग आज देश की राजधानी दिल्ली के दिल लुटियन जोन में इकट्ठा हुए हैं। इन सब बातों पर प्रकाश डालने के लिए मैं प्रख्यात पॉकेटमार और बैठक के अध्यक्ष उस्ताद मुजरिम के पट्टशिष्य उस्ताद गुनाहगार को आमंत्रित करता हूं।’
अगली कतार में बैठे उस्ताद गुनाहगार ने माइक संभाला, ‘मेरे प्रिय साथियो! सचमुच... खिर्ची भाई ने एक बहुत ही गंभीर मुद्दा उठाया है। पूरा समाज तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। पहले हिस्से में हम जैसे लोग हैं। हम जैसे लोगों से मतलब है, जिन्हें समाज में चोर, उचक्का, बटमार, पॉकेटमार, अपराधी, गुंडा, माफिया, हत्यारा कहा जाता है। हम लोग सच में कानून का उल्लंघन करते हैं। पैसा मिलने पर हथियार, नशीले पदार्थ और हर वह वस्तु बेचते हैं, जिनको बेचने पर कानून रोक लगाता है। हम जो भी करते हैं, बड़ी ईमानदारी से करते हैं। अगर हमारे शूटर भाई किसी की हत्या की सुपारी लेते हैं, तो फिर उसे शूट करके ही मानते हैं। उनके लिए सिर्फ टारगेट होता है, वह टारगेट कोई भी हो सकता है। यह तो धंधा है, लेकिन धंधे में दगाबाजी हमारी फितरत नहीं है। दूसरे हिस्से में आते हैं नेता, मंत्री और नौकरशाह। कुछ मामलों में ये हमारे भी बाप हैं। हम तो प्रतिबंधित वस्तुओं को ही बेचकर अपना पेट भरते हैं। इन्हें जब भी मौका मिलता है, तो संसद और विधानसभाओं में सत्यनिष्ठा, गोपनीयता और ईमानदारी की कसम खाने वाले अपना ईमान तक बेच देते हैं। खुद ही गोपनीय फाइलों को लीक करवाकर विरोधी को घेरते हैं। आस्था और प्रतिबद्धता को कौड़ियों के भाव बेच देना, नेताओं का शगल है। बेईमानी और लूट-खसोट तो इनकी रगों में खून बनकर दौड़ता है। इस समुदाय के लोग खुद ही भ्रष्टाचार को प्रश्रय देते हैं और खुद ही हल्ला मचाते हैं। आज से दो-तीन दशक पहले नेता गुंडों को पालते थे, उनके सहारे सत्ता पर काबिज होते थे। आज ये खुद गुंडे और नेता की दोहरी भूमिका में हैं। नेता जब तक गुंडा पालने की स्थिति में रहता है, तब तक पालता है। बाद में वह खुद दोहरी भूमिका में आ जाता है। इस बात को आप लोग इस तरह से समझें कि राजनीति में गुंडे तो मस्ट हैं, राजनीति और गुंडई का चोली-दामन का संबंध है। एक के बिना दूसरा अधूरा है। दोनों के बीच अन्योनाश्रित संबंध है। कहने का मतलब नेता ही गुंडा है और गुंडा ही नेता है।’
इतना कहकर गुनाहगार सांस लेने के लिए रुके, ‘बाकी हिस्से में नपुंसक जनता आता है। मैं नपुंसक इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों को इस जनता पर बहुत भरोसा था कि आजादी के बाद नेताओं, नौकरशाहों, पूंजीपतियों के कान पकड़कर जब चाहेंगे, इनकी औकात बता देंगे। अफसोस कि क्रांतिकारियों की अपेक्षाओं पर जनता खरी नहीं उतरी। पिछले छाछठ सालों से नेता और उनके लगुए-भगुए अपनी मनमानी करते आ रहे हैं और वह जनता हर पांचवें साल सांप नाथ या नाग नाथ में से किसी एक को चुनकर अपना नपुंसक दायित्व पूरा कर लेती है। जब पूरी व्यवस्था भ्रष्ट है, तो क्रांति क्यों नहीं करती यह नपुंसक जनता? यह आज का सबसे बड़ा सवाल है।’ इसके बाद पूरी बैठक इसी मुद्दे के   इर्द-गिर्द घूमती रही।

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