Monday, August 11, 2014

पति की जासूसी

-अशोक मिश्र 
जैसे ही मैं घर में घुसा, बेटा मुझे देखकर मुस्कुराया। उसकी मुस्कान से ही मैं समझ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ तो है , लेकिन क्या? इसका अंदाजा लगा ही रहा था कि घरैतिन ने गुर्राते हुए कहा, 'मिल आये कलमुँही से? करवा आये शॉपिंग? ऑफिस में काम ज्यादा बताकर गुलछर्रे उड़ाया जा रहा है।' पत्नी की बात सुनते ही मैं किसी बम की तरह फट पड़ा, 'क्या बकती हो? अपने पति पर ऐसे घटिया आरोप लगाते शर्म नहीं आती है। मैं तुम्हारा पति हूँ, नेता नहीं कि जिसका चरित्र ही कहीं गुम हो गया हो। मैंने जब एक बार तुमसे गठबंधन कर लिया तो कर लिया। यह नहीं कि आज इनसे और कल उनसे कुर्सी हथियाने के लिए गठबंधन करता फिरूँ। तुम चाहो तो अपनी सखी-सहेलियों में इस बात की सगर्व घोषणा कर सकती हो कि मैं इस दुनिया का अकेला एक पत्नीव्रतधारी पति हूँ।' 
मेरे इतना कहते ही घरैतिन चिल्लाईं, 'आप फालतू बातें करके मुझे बरगलाने की कोशिश मत कीजिये। पिछले तीन साल में आपने मेरे लिए लोहे का एक छल्ला तक नहीं ख़रीदा और उस कलमुंही को साठ हजार का नेकलेस खरीदकर दिया जा रहा है। उसको मॉल्स में घुमाया जा रहा है। उसके बच्चों को शॉपिंग कराई जा रही है। मेरे साथ सब्जी मंडी तक जाने में आपको शर्म आती है।' इतना कहकर घरैतिन बुक्का फाड़कर रोने लगीं। उन्हें रोता देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया। मैंने चीखते हुए कहा, 'तुम यह आरोप कैसे लगा सकती हो? है तुम्हारे पास कोई सुबूत? जरूर तुम किसी के बहकावे में आकर यह सब कह रही हो। मैंने पहले भी कहा, अब भी कह रहा हूँ, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है। अब मेरा पिंड छोडो और आराम करने दो।' इतना सुनते ही पत्नी विपक्षी दल के नेताओं की तरह हल्ला मचाने लगी। इसमें बेटे ने भी साथ दिया। एकदम संसद जैसा दृश्य मेरे घर में  उपस्थित हो गया।  मैं 'शांत हो जाइए...शांत हो जाइए' चिल्लाता रहा। बेटा और पत्नी वेल में घुस आये सांसदों की तरह चीखते-चिल्लाते रहे। जब शोर बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मैंने कहा, 'आप लोगों को सिर्फ़ हंगामा करना है या फिर मेरी बात भी सुननी है ?' 
इतना कहकर मई जैसे ही कमरे में जाने लगा, मेरे बेटे ने मुस्कुराते हुए कहा, 'पापा! झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है। आपकी शर्ट का ऊपरी बटन दरअसल बटन नहीं, माइक्रोफोन है। पिछले तीन दिन से आपकी सारी बातें घर बैठे मम्मी सुन रही हैं।' यह सुनते अब भड़कने की बारी मेरी थी, 'तुम लोगों ने मुझे गडकरी, चिदंबरम या कोई मंत्री समझ रखा है क्या, जो  जासूसी कराई जा रही है।' मेरी बीवी यह सुनते ही हंसने लगी और बोली, 'पतिदेव जी, नाराज मत होइए। आप पिछले कुछ दिनों से ऑफिस का काम बता कर घर से गायब हो रहे थे। मुझे लगा, जरूर कोई गड़बड़ है, पता लगाने के लिए पड़ोसन से माइक्रोफोन मांग लाई। शुक्र है कि आप वैसे नहीं निकले,जैसा मैंने सोचा था। जब प्रधानमंत्री अपने मंत्रियों की कारगुजारी जानने के लिए उनकी जासूसी करा सकते हैं , तो एक बीवी अपने पति की जासूसी क्यों नहीं करा सकती है। मैं तो कहती हूँ कि हर पत्नी को अपने पति की जासूसी करने का संवैधानिक अधिकार है। उसे हर हालत में यह मालुम होना चाहिए कि घर के बाहर उसका पति क्या-क्या करता फिर रहा है। जब देश चलाने वाले को अपने मंत्रियों पर विश्वास नहीं है, तो फिर मुझे अपने दिलफेंक पति पर विश्वास कैसे हो सकता है। ' इतना कहकर पत्नी चाय बनाने के लिए किचन में घुस गईं। मैं किसी भकुए की तरह उन्हें जाता देखता रहा। 
(12 अगस्त 2014 को चर्चित समाचार पत्र कल्पतरु एक्सप्रेस में प्रकाशित व्यंग्य। 

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