Friday, September 19, 2014

चीन में होंगे झानझूं त्रिपाठी

-अशोक मिश्र
नथईपुरवा गांव के कुछ बुजुर्ग चाय की दुकान पर बतकूचन कर रहे थे। रामबरन ने चाय का कप उठाकर मुंह से लगाया और सुर्रर्र..की आवाज करते हुए थोड़ी सी चाय अंदर ढकेली और बोले, ‘जिनफिंगवा की बदमाशी तो देखो। खुद तो भारत मा आकर माल-पूड़ी काट रहा है। अगहन के महीने में (आश्विन) सावन की तरह झूला झूल रहा है। हमारे प्रधानमंत्री उसे बड़े प्रेम से झुला भी रहे हैं, लेकिन उस ससुर के नाती ने हमारे यहां आने से पंद्रह दिन पहले ही अपने सैनिकन की आड़ में खानाबदोशों को लेह-लद्दाख में घुसा दिया कि जाओ बेटा! वहां जाकर बखद्दर करो।’ रामबरन यह कहते-कहते आवेश में आ गए और चाय छलक कर उनके कुर्ते पर गिर पड़ी, तो उन्होंने शुद्ध देशी क्लासिकल गाली चाय और कुर्ते के साथ-साथ जिनफिंगवा को भी दी।
‘बाबा! अगर भारत सरकार मेरी बातों पर अमल करे, तो कुछ साल में ही यह सीमा-फीमा विवाद  एकदम से खत्म से खत्म हो जाएगा। हां...यह लंबी योजना है, इसमें कम से कम बीस-बाइस साल तो लगेंगे ही। इसके बाद तो सीमा विवाद का कोई टंटा ही नहीं रहेगा। बीजिंग, शंघाई, मकाऊ, हांगकांग और तिब्बत जैस शहर और प्रांतों में लोग चूना-तंबाकू हथेली पर निकाल कर खुलेआम मलेंगे, होंठों के नीचे दबाएंगे और पिच्च से सामने की दीवार पर ‘पच्चीकारी’ का एक बेहतरीन नमूना पेश करते हुए आगे बढ़ जाएंगे। खुदा न खास्ता, अगर किसी ने उन्हें रोकने-टोकने की कोशिश की, तो उसकी मां-बहन से अंतरंग संबंधों की एक पूरी लिस्ट पेश कर देंगे।’ पच्चीस वर्षीय नकनऊ ने पान की पीक दुकान की दीवार पर दे मारी, मानो उसने चीन की दीवार पर भविष्य में होने वाली ‘पच्चीकारी का एक नमूना अभी से पेश कर दिया हो।’ उसकी बात सुनकर चाय की दुकान पर बैठे लोग चौंक गए। उन्हें उत्सुकता हुई कि जो ननकऊ अपनी पच्चीस साल की जिंदगी में अपने जिले से बाहर न गया हो, वह चीन से सीमा विवाद कैसे दूर कर देगा। वह सीमा विवाद जो पिछले पचास-साठ साल से भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है।
उजागर शुक्ल ने डपटते हुए कहा, ‘क्या रे ननकउवा! सुबह से ही भांग तो नहीं चढ़ा ली है। क्या उलूल-जुलूल बक रहा है। जिस समस्या को नेहरू से लेकर मोदी तक नहीं सुलझा पाए, तू उसे हल कर देगा? तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है?’
उजागर शुक्ल की बात सुनते ही ननकउवा तंबाकू से कुछ-कुछ काले हो गए दांत दिखाकर हंसा और बोला, ‘नहीं काका! बूटी (भांग) तो मैं रात में ही लेता हूं। अभी तो मैं जो कह रहा हूं, उस पर गौर करें। आप यह तो मानते ही हैं कि बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग जहां जाते हैं, वहां के लोगों को अपना बना लेते हैं।बिहारी,  पुरबिहा और दूब (एक तरह की घास) में कोई अंतर नहीं है। दूब बार-बार सूखती है, लेकिन जैसे ही पानी मिलता है, हरिया जाती है। ऐसे ही बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग होते हैं। अब देखिए ! एक बिहारी थे मोहित राम गुलाम। वे जब मारीशस पहुंचे, तो पहले अपना ठीहा जमाया। बाद में उन्होंने अपने बहुत सारे  भा-बंधुओं को वहां बुला लिया। बस, फिर क्या था? बिहारी बढ़ते गए, मारीशसवासी मिट्टी के तेल होते गए। इसके बाद तो मारिशस मेंोजपुरी ही बोली जाने लगी। मारीशस आजाद हुआ, तो उनका लड़का शिवसागर राम गुलाम मारीशस का प्रधानमंत्री बना, अब उनका पौत्र नवीनचंद्र रामगुलाम वहां शासन कर रहा है कि नहीं! बस..इसी तरह कोई जुगाड़ करके दस-पंद्रह बिहारियों या उत्तर प्रदेश वालों को चीन के किसी प्रांत में घुसा दीजिए। पांच-दस साल बाद चीन में पैदा होने वाले लड़के-लड़कियों के नाम होंगे झानझूं तित्राठी, पींग-पांग झा, चेमपां यादव, शूफूत्यांग पासवान। ननकऊ की योजना सुनते ही चाय की दुकान में मौजूद सारे लोग आश्चर्यचकित रह गए। सुना है, ग्रामपंचायत ने ननकऊ की इस योजना को लागू करने का प्रस्ताव प्रधानमंत्री कार्यालय कोोजा है, प्रधानमंत्री कार्यालय तक प्रस्ताव पहुंचा या नहीं, इस संबंध में कोई सूचना नहीं है।

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