Tuesday, December 30, 2014

कांग्रेस को विचार करना होगा

-अशोक मिश्र
इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर अभी तक बरकरार है। इस बात को जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभाओं के आए चुनाव परिणाम से भी साबित होता है। लेकिन यह भी सच है कि मोदी की लोकप्रियता की चमक थोड़ी-सी फीकी अवश्य पड़ी है। ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि झारखंड में तो भाजपा और आजसू गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला, लेकिन जम्मू-कश्मीर में उसे दूसरे नंबर पर ही संतोष करना पड़ा। इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह भारतीय मतदाताओं ने उन पर विश्वास किया, शायद कश्मीर के मतदाताओं का विश्वास जीतने में वे सफल नहीं हो पाए। हां, लोकसभा चुनाव के बाद वे हरिणाया में अपनी सफलता को जरूर दोहराने में कामयाब रहे। महाराष्ट्र में भी उन्हें शिवसेना से गठबंधन करने को मजबूर होना पड़ा। कुल मिलाकर अगर देखें, तो एक बात साफ है कि अभी नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व की लहर खत्म नहीं हुई है। १६ मई को लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद राजनीति के विशेषज्ञ यह मानने लगे थे कि अब केंद्र और राज्यों में गठबंधन की राजनीति का युग समाप्त हो गया। लेकिन झारखंड, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर राज्यों के चुनाव परिणाम से साफ है कि अभी राज्यों में गठबंधन युग की समाप्ति नहीं हुई है।
इसके कुछ महत्वपूर्ण कारण भी हैं। मतदाता अपना सांसद चुनते समय तो राष्ट्रीय मुद्दों को तवज्जो देते हैं। उनके लिए तब विकास, विदेश नीति, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे प्रमुख होते हैं, लेकिन जब उन्हें अपना विधायक चुनना होता है, तो स्थानीय मुद्दे उनके लिए प्रमुख हो जाते हैं। वे राष्ट्रीय मुद्दों को दरकिनार कर देते हैं। वे यह आकलन करने लगते हैं कि उनके इलाके का विकास, बिजली, पानी, सड़क और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं को कौन दिला सकता है? उनके दुख-दर्द कौन सुन सकता है। क्षेत्रीय मुद्दों को प्रमुखता देने की वजह से ही कई बार चुनाव परिणाम बिलकुल अप्रत्याशित आते हैं। कश्मीर में भाजपा की लहर इसलिए भी प्रभावी नहीं हो पाई क्योंकि उसकी छवि हिंदूवादी पार्टी की बन गई थी। इसके लिए किसी हद तक भाजपा और संघ के लोग जिम्मेदार हैं। पिछले कुछ महीनों में संघ और भाजपा नेताओं ने हिंदू राष्ट्र, धर्म परिवर्तन और अल्पसंख्यकों में अविश्वास पैदा करने वाले जो बयान दिए, उससे देश के अल्पसंख्यकों में मोदी के प्रति पैदा होता विश्वास डगमगा गया। विहिप, बजरंग दल और  संघ को पहले यह तय करना होगा कि उन्हें भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को विकास के एजेंडे पर काम करने देना है या फिर देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के एजेंडे पर। जिन मुद्दों पर चुनाव लड़कर मोदी ने सफलता हासिल की है, वह रास्ता उन्हें  और भाजपा को कई दशक सत्ता का हकदार बना सकता है। भाजपा और लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस की स्थिति अवश्य कमजोर हुई है। उसने अपने कई राज्यों की सत्ता गंवाई है। कांग्रेस लगातार हाशिये पर सिमटती जा रही है। उसे अपनी स्थिति पर गंभीरता से विचार करना होगा। आत्ममंथन करना होगा कि आखिर ऐसी स्थितियां पैदा हो रही हैं, तो क्यों? और इसका कारण क्या है? इन कारणों की पहचान और उसके बाद तदनुरूप क्रियान्वयन बहुत जरूरी है। झारखंड के चुनाव परिणाम तो उन लोगों को भी सोचने पर मजबूर करने वाले हैं जिन्होंने मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए एक महागठबंधन का निर्माण किया है। झारखंड में उनका तो खाता तक नहीं खुल पाया। उन्हें अपने बड़बोलेपन पर लगाम लगाकर गंभीरता से अपनी हार के कारणों की तलाश करनी होगी। अपनी कमजोरियों से निजात पानी होगी। तभी वे राजनीति में अपनी पुरानी साख कायम रख पाने में सफल होंगे।

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