Tuesday, January 6, 2015

सेक्युलर पार्टियों के वोट बैंक में लगेगी सेंध?

अशोक मिश्र         
उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली सहित हिंदी पट्टी में निकट भविष्य में हिंदूवादी संगठन बजरंग दल, शिवसेना, विश्व हिंदू परिषद की तरह मुस्लिम कट्टरवादी संगठन आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएम आईएम) भी सत्ता की प्रबल दावेदार के रूप में उभरे, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इन दिनों देश में धर्मांतरण या कथित घर वापसी का मुद्दा संसद से लेकर सड़क तक गर्माया हुआ है। ऐसे में आगरा के वेदनगर में पिछले दिनों कथित रूप से घर वापसी करने वाले लोगों से एआईएमआईएम के लोगों ने संपर्क साधने के साथ अल्पसंख्यकों को रिझाना शुरू कर दिया है। एआईएमआईएम के उत्तर प्रदेश संयोजक शौकत अली ने कथित धर्मांतरण करने वाले लोगों के बीच पहुंचकर न केवल संघ और बजरंग दल पर निशाना साधा, बल्कि ऐसा करके उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कवायद भी शुरू कर दी है। अल्पसंख्यकों को प्रभावित करने के लिए एमआईएम के पदाधिकारियों ने कंबल, खाद्यान्न बांटने के साथ-साथ धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों को हर संभव मदद का आश्वासन भी दिया है। जाहिर-सी बात है कि अब भाजपा, संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों की तर्ज पर एमआईएम भी उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें मजबूत करने को संवेदनशील मुद्दे उठाएगी, ताकि अल्पसंख्यकों और दलितों में अपनी पैठ कायम की जा सके।
महाराष्ट्र और तेलंगाना में मिली सफलता के बाद तो उसकी उम्मीदों को पंख लग गए हैं। उसने निकट भविष्य में दिल्ली में होने वाले और बाद में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में उतरने की बात कहनी शुरू कर दी है। कयास लगाया जा रहा है कि दिल्ली में मटिया महल सीट से कई बार जीत चुके विधायक शोएब इकबाल को दिल्ली प्रदेश की जिम्मेदारी दी जा सकती है। एमआईएम का अगला पड़ाव पश्चिम बंगाल है। एमआईएम बहुत ही सधे कदमों से हिंदी पट्टी और पश्चिम बंगाल के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयार में है।
आपको बता दें कि एआईएमआईएम असदउद्दीन ओवैसी और अकबरुद्दीन ओवैसी की पार्टी है जो हिंदुओं और देश के खिलाफ जहर उगलने के लिए मशहूर रहे हैं। भाजपा, संघ और अन्य हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ कठोर शब्दों का उपयोग करके माहौल में उत्तेजना पैदा करना, ओवैसी बंधुओं की आदत रही है। मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए ओवैसी बंधुओं ने कई बार ऐसा किया है। शिवसेना, बजरंग दल, विहिप की ही तर्ज पर गरजने वाले ओवैसी बंधुओं ने इस बार हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर सफलता पाई है। इसके अलावा पार्टी पांच सीटों पर दूसरे नंबर पर और नौ पर तीसरे स्थान पर रही। सांप्रदायिक पार्टी की छवि वाली एमआईएम के तेलंगाना प्रदेश में सात विधायक और एक सांसद हैं।
राजनीतिक हलकों तो यह बात भी कही जा रही है कि भाजपा और उसके सहयोगी दल चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि में असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम का विस्तार हो। वह यह मानकर चल रही है कि हिंदी भाषी राज्यों में ओवैसी जितना मजबूत होंगे, उतना ही भाजपा के सत्ता पर काबिज होने की संभावना बढ़ती जाएगी। उसका मानना है कि उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में दलित और मुस्लिम मतदाता मिलकर उसका खेल बिगाड़ देते हैं। अगर उत्तर प्रदेश की ही बात करें, तो प्रदेश के कुल मतदाताओं में दलित मतदाताओं का प्रतिशत 21 है। कई चुनाव क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहां यही दलित मतदाता उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करते हैं। उत्तर प्रदेश में ऐसे 44 लोकसभा क्षेत्र हैं, जहां दलितों की संख्या 20 प्रतिशत से ज्यादा है। इसके अलावा 27 लोकसभा क्षेत्रों में दलितों की संख्या 15 से 20 प्रतिशत है। मुस्लिम वोटरों की संख्या 20 फीसदी है। पश्चिम बंगाल में करीब 25 फीसदी मुस्लिम हैं जो ज्यादातर टीएमसी के पाले में जाते हैं। मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन इसी वोट बैंक पर निगाह गड़ाए हुए है।
यही वह वोट बैंक है जिसके सहारे बसपा, सपा, राजद, आरएलडी, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, पीस पार्टी, कौमी एकता दल, अपना दल जैसी तमाम पार्टियां विभिन्न राज्यों की सत्ता पर आती-जाती रही हैं। एक समय था, जब उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिम बंगाल आदि हिंदी और गैर हिंदी भाषी क्षेत्र के राज्यों में मुसलमानों और दलितों के वोट चुनावों के दौरान कांग्रेस को मिलते थे। इन राज्यों में सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के उदय और विकास के बाद कांग्रेस का यह वोट बैंक खिसक गया और इनमें से ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस न केवल सत्ता से बाहर हो गई, बल्कि चौथे-पांचवें नंबर पर सिमट गई। महाराष्ट्र में तो ओवैसी की पार्टी के पांव जमाने के पीछे शिवसेना का भी हाथ रहा है। महाराष्ट्र में दो सीटों पर जीतने वाली ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम और कट्टर मुस्लिम संगठन तीसरा महाज ने मालेगांव के महापौर और उपमहापौर का पद शिवसेना की बदौलत ही हासिल किया है। शिवसेना ने तीसरा महाज के हाजी इब्राहिम को खुला समर्थन दिया, तो उपमहापौर के चुनाव के समय तटस्थ रही जिसका नतीजा यह हुआ कि दोनों कट्टर मुस्लिम संगठनों का इन पदों पर कब्जा हो गया। मालेगांव में कांग्रेस, जनता दल और मालेगांव विकास आघाड़ी हाथ मलते रह गए।
इतना ही नहीं, एनसीपी को झटका देते हुए उसके आठ नगर सेवक हाल में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एआईएमआईएम में चले गए थे। यह वही शिवसेना है, जो पिछले कई सालों से एआईएमआईएम और ओवैसी बंधुओं पर हमले बोलती रही है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में तो यहां तक लिखा गया था कि ओवैसी बंधुओं की कट्टरपंथी विचार व्यक्त करने और उनका प्रचार प्रसार करने की आदत है। दोनों ने देश में मुस्लिमों के दिमाग में जहर भरा है। पिछले साल मार्च में शिवसेना नेता दिवाकर रावते ने कहा था कि इस दल पर पूरे महाराष्ट्र में प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। जाहिर सी बात है कि ओवैसी और उनकी पार्टी की सक्रियता के चलते हिंदी भाषी राज्यों में अपनी दुकान चला रहे धर्मनिरपेक्ष कही जाने वाली पार्टियों के सिर पर एक खतरा मंडराने लगा है। अब उनके वोट बैंक पर सेंध लगने वाली है। ऐसी हालत में उन्हें अपना वोट बैंक बचाने के लिए कुछ ऐसा करना होगा, जिससे दलित और अल्प संख्यक वोटों का विभाजन रोका जा सके।

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