Tuesday, January 6, 2015

अच्छे दिन का बाप आ गया

अशोक मिश्र
दिल्ली के एक पार्क में चौकीदार की निगाह बचाकर दो गधे घुस आए और पार्क की हरी-भरी घास जल्दी-जल्दी चरने लगे। चरते-चरते दोनों पास आ गए। एक ने दूसरे से कहा, 'भाई राम-राम! बहुत दिनों के बाद हमारे अच्छे दिन आए हैं। जल्दी-जल्दी पहले पेट भर लो, पगुराना बाद में, खाली समय में। अगर चौकीदार आ गया, तो दो लट्ठ पीठ पर बजाएगा, तबीयत हरी हो जाएगी।Ó
दूसरे गधे ने एक छोटे पौधे को जड़ से उखाड़ा और जल्दी से निगलते हुए कहा, 'राम-राम भइया! तुमने अच्छे दिनों की बात भली चलाई। बहुत शोर सुना है अच्छे दिनों का। मेरे मालिक का पांच साल का बच्चा भी तोतली आवाज में गाता था, 'ढिन..ढिन को लाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं। ये अच्छे दिन क्या होते हैं? हमारे भी अच्छे दिन आएंगे?Ó पहले वाला हंस पड़ा। उसने लयात्मक ढंग से दुलत्ती झाड़ी और गर्दभ राग 'ढेंचू-ढेंचूÓ में गाते हुए जवाब दिया,'अबे गधे! तू रहा गधा का गधा। जिस भी दिन अच्छे दिन आए, तो समझ लो कि हम गधों के दिन सुनहरे और रातें चांदी की होंगी। मेरा-तेरा मालिक हमारे आगे-पीछे घूमता फिरेगा। सुबह-शाम और दोपहर में वह हाथ जोड़कर चिरौरी करता फिरेगा कि भइया! देखो कितनी हरी, मुलायम घास लेकर आया हूं। पहले नाश्ता कर लो, फिर मर्जी हो, तो काम करना, वरना कोई बात नहीं। उसका संबोधन बदल जाएगा। वह 'अबे गधेÓ कहने की बजाय 'राजा बेटाÓ कहकर पुकारेगा। देश की जितनी भी सुंदर गधी होंगी, वे भी हमारे आगे पीछे घूमेंगी। हम भी उनके साथ इश्क लड़ाएंगे, फ्लर्ट करेंगे। कभी इसको छेड़ेंगे, तो कभी उसको। सोच कितना मजा आएगा, जब हम गधों के अच्छे दिन आएंगे। मुझे तो बहुत जल्द अच्छे दिनों के आगमन की आहट सुनाई दे रही है। मेरा मन इस कड़ाके की ठंड में ही फागुनी बयार की सोचकर मतवाला हुआ जा रहा है। जी चाहता है कि खूब गाऊं। दुलत्तियां झाड़कर नाचूं।Ó
दूसरा वाला गधा घबरा गया, 'अरे नहीं..बड़े भाई! ऐसा गजब मत करना। अभी तो मैं आपकी बातों के चक्कर में कुछ चर भी नहीं पाया हूं। मैं इन्सानों की तरह इतनी जल्दी चर नहीं पाता हूं। सुना है कि कुछ गधे कायांतरित होकर इंसान बन गए हैं, जो इतनी जल्दी सब कुछ चर जाते हैं कि पूछो मत। मुझे भी जल्दी-जल्दी कुछ चर लेने दीजिए। बड़े दिनों के बाद ऐसी हरी-हरी घास चरने को मिली है। आपने तो अपना पेट भर लिया, अब मेरे पेट पर क्यों दुलत्ती झाडऩा चाहते हो। आपने इधर गर्दभ राग अलापा और उधर पार्क का चौकीदार लट्ठ लेकर हम दोनों की पीठ सेंक देगा। इस जाड़े के मौसम में मैं क्या कोई भी पीठ सिंकवाना नहीं चाहता है।Ó
पहले वाले गधे ने अपने साथी की विनती को अस्वीकार करने के बाद गर्दभ राग अलापने के लिए मुंह ऊपर उठाया ही था कि उसकी पीठ पर एक लट्ठ  बजा। वह दर्द से तिलमिलाया और पूंछ उठाकर एक तरफ यह कहते हुए भागा, 'अब गधे भाग...अच्छे दिन का बाप आ गया।Ó और फिर दोनों गधे पिटते-पिटते पार्क से भाग खड़े हुए।

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