Sunday, December 7, 2014

उपन्यास ‘विहान से पूर्व’ का एक अंश

अशोक मिश्र
उसे लगा कि कान के पर्दे फट जाएंगे। कानों पर हथेलियां रखने के बावजूद जब उसे राहत मिलती नजर नहीं आई, तो वह झुंझला उठा। उसने कभी बचपन में मुनादी करने वालों को देखा था। कि किस तरह नगाड़ा पीट-पीटकर मुनादी किया करते थे। उसे याद आया। उसने रायबली उमानाथ प्रेक्षाग्रह में औरंगजेब से संबंधित एक नाटक देखा था। उसमें मुनादी करने वाला किस तरह नगाड़ा पीट-पीटकर शहंशाह औरंगजेब का हुक्म सुना रहा था, ‘खल्क खुदा का, हुक्म शहंशाह का! बहुक्म शहंशाहे हिंदुस्तान आलमगीर औरंगजेब साहिबे आलम....रियाया को आगाह किया जाता है कि....।’ उसके चेहरे पर पसीना चुहचुहा आया। उसे लगा कि आज पूरे शहर में फिर से शहंशाह औरंगजेब की जगह देवदत्त की ओर मुनादी की जा रही हो। लिसन......लिसन.....यू आल आर हियरबाई इन्फाम्र्ड द मैनेजमेंट हैज डिसाइडेड टू टर्मिनेट अवध नारायण सिंह’स सर्विस फ्राम द कंपनी इन द टर्म ऑफ अप्वाइंटमेंट लेटर इश्यूड टू अवध नारायण सिंह वाइड अवर लेटर डेटेड.......। अवध नारायण सिंह ने अपने चेहरे पर चुहचुहा आए पसीने को पोंछने के लिए जेब से रुमाल निकाला, तो मुड़ा-तुड़ा टर्मिनेशन लेटर जमीन पर गिर पड़ा। उसने उस पत्र को वैसे ही उठाया जैसे कि वह अपनी ही लाश उठाकर कंधे पर रखने जा रहा हो। सारा ब्रह्मांड उसे घूमने के साथ-साथ चीखता सा लग रहा था, ‘यू आर टर्मिनेटेड......यू आर टर्मिनटेड......यू आर टर्मिनेटेड..।’ वह खड़ा नहीं रह सका। तिराहे पर बने छोटे से पार्क में बैठ गया।
सुबह जब वह दैनिक समर सत्ता के आफिस जाने के लिए घर से निकल रहा था, तो बारह वर्षीय बेटी प्राची ने ठुनकते हुए कहा था, ‘पापा! इस बार मेरे बर्थडे पर आप मेरी पसंद का गिफ्ट देंगे न! हर बार छोटू को उसकी पसंद का गिफ्ट मिलता है और मुझे कोई न कोई बहाना बनाकर टरका देते हैं।’ वह बेटी की बात पर हंस पड़ा था, ‘तू मेरी अच्छी बेटी है न, इसलिए! छोटू तो नालायक है, रोने लगता है। तू समझदार है। और फिर तू उनतीस तारीख को क्यों पैदा हुई? दो-चार दिन बाद पैदा होती, तो वेतन हाथ में होता। तेरी मनपसंद के गिफ्ट भी मिल जाते।’ बेटी शर्मा गई थी, ‘उनतीस को मैं अपनी मर्जी से थोड़ी न पैदा हुई थी। वह तो भगवान ने पैदा कर दिया था।’ प्राची को बहला-फुसलाकर घर से निकला था, तो सोच लिया था कि इस बार वह बेटी के बर्थडे पर कोई कसर नहीं छोड़ेगा। समर सत्ता के आफिस के बाहर ही मुंह लटकाए नवीन सक्सेना मिल गया। नवीन फीचर डेस्क पर था।
नवीन की पीठ पर धौल जमाते हुए उसने कहा था, ‘तुम्हारी भैंस खो गई है क्या, जो मुंह लटकाए खड़े हो?’
‘अंदर जाओ, शायद तुम्हारी भी भैंस किसी ने खोल ली हो। भगवान करे कि मेरी आशंका गलत हो, लेकिन मुझे कुछ भी ठीक नहीं लग रहा है। चार लोगों को टर्मिनेशन लेटर इशू हो चुका है। कुछ ट्रांसफर हो गए हैं। भगवान जाने मेरा क्या हुआ होगा, टर्मिनेशन या ट्रांसफर? अवध भाई..मुझे बड़ा डर लग रहा है। इसी वजह से मैं अंदर नहीं जा रहा हूं।’
यह सुनकर अवध नारायण सन्न रह गया। पहले तो उसके मुंह कोई बोल नहीं फूटे। फिर उसने कहा, ‘क्यों..? टर्मिनेशन या ट्रांसफर क्यों किया जा रहा है? कोई वजह तो बताई होगी?’
रुआंसे नवीन सक्सेना ने कहा, ‘कहते हैं कि आर्थिक मंदी के चलते यह यूनिट बंद करनी पड़ रही है। फिर जब कभी यहां से अखबार निकालना हुआ, तो आप लोगों को बुलाया जाएगा।’
‘अरे यार..यह क्या धांधली है! वैश्विक मंदी तो पिछले साल आकर निकल गई। अब सन 2009 की जनवरी में आर्थिक मंदी यहां क्या कर रही है। और फिर भारत में तो आर्थिक मंदी का कोई विशेष प्रभाव भी तो नहीं हुआ।’ इतना कहकर अवध नारायण सिंह ताव में दनदनाता हुआ समर सत्ता के आफिस में घुस गया।

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