Sunday, February 22, 2015

मोदी के खिलाफ गरजेंगे अन्ना

आंदोलनों से तपे-तपाये नेताओं की फौज है अन्ना के साथ

अशोक मिश्र 
दिल्ली एक बार फिर दो दिन के लिए अन्नामय होने जा रही है। लगभग दो साल बाद फिर से प्रसिद्ध गांधीवादी नेता अन्ना हजारे दिल्ली में हुंकार भरेंगे। पिछली बार दिल्ली में जब अन्ना हजारे अनशन-आंदोलन कर रहे थे, तब निशाने पर थे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी सरकार। तब भाजपा और योग गुरु रामदेव जैसे लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अन्ना के बगलगीर थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार होते हुए दिल्ली चुनाव में हार चुकी किरन बेदी अन्ना के दायें-बायें हाथ की भूमिका में थे। अनशन और आंदोलन का सारा दारोमदार इन्हीं लोगों पर था। लेकिन अब जब अन्ना एक बार फिर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश और कालेधन की वापसी, लोकपाल बिल जैसे मुद्दे पर गर्जना करने जा रहे हैं, तो सारे समीकरण बदल चुके हैं। किरण बेदी उस पार्टी की नेता हो चुकी हैं जिनके खिलाफ अन्ना बिगुल फूंकने जा रहे हैं। कभी राजनीतिक दलों को चोर और भ्रष्ट बताने वाले अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी बनाकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो चुके हैं। वीके सिंह, संतोष भारतीय, कुमार विश्वास जैसे लोग या तो इस खेमे में हैं या उस खेमे में, लेकिन अन्ना हजारे के साथ कोई नहीं है।
अभी अन्ना हजारे हरियाणा में गरज रहे हैं। दो दिन बाद वे दिल्ली में होंगे। लेकिन उनके हुंकार में कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे दिल्ली में हैं या किसी दूसरे राज्य में। उनकी ²ष्टि और समझ एकदम साफ है। हरियाणा के पलवल में भूमि अधिकार चेतावनी सत्याग्रह पदयात्रा को रवाना करते हुए उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोल रहे हैं, उन्हें चुनौती देते हुए कह रहे  हैं कि मोदी गरीबों और किसानों के बारे में नहीं, सिर्फ उद्योगपतियों के बारे में सोचते हैं। जब केंद्र की सरकार बनी तो कहा गया कि अच्छे दिन आ गए, लेकिन हकीकत में अच्छे दिन पैसे वालों के लिए आए हैं। गरीबों के लिए नहीं। सरकार किसानों की जमीन को उद्योगपतियों को देने की योजना बना रही है। मतलब साफ है कि इस बार भी अन्ना हजारे को छोटे-मोटे आश्वासन देकर बहलाया नहीं जा सकेगा। उनकी जितनी भी और जैसी भी ताकत है, वे भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा करने की हर संभव कोशिश करेंगे। इस बार भी उनके साथ एनजीओज के ही लोग खड़े हैं। ये चेहरे नए नहीं हैं। हां, इससे पहले हुए अनशन-आंदोलन के समय ये लोग अग्रपंक्ति में इसलिए नहीं थे क्योंकि अन्ना टीम की अग्रपंक्ति में खड़े अरविंद केजरीवाल, किरन बेदी, वीके सिंह जैसे लोगों ने इन्हें आगे आने नहीं दिया था। इस बार भी उनके पुराने साथी आगे बढ़कर झंडा थामने की कोशिश में थे, लेकिन अन्ना साफ कह चुके हैं कि ऐसे लोगों को मंच पर स्थान नहीं दिया जाएगा। भीड़ में शामिल होना चाहते हैं ये लोग, तो उनका स्वागत है।
इस बार अन्ना हजारे के साथ जो टीम है, वह आंदोलनों की शृंखला में तपे-तपाए लोगों की है। इन्होंने आंदोलन के लिए एनजीओज खड़े किए हैं, एनजीओज के लिए आंदोलन नहीं किया है। विचारों और सिद्धांतों के लिए भाजपा से बगावत करने वाले केएन गोविंदाचार्य तो अन्ना के साथ हैं ही, सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली सलाहकार परिषद में रही अरुणा राय, मोदी की नीतियों की मुखरता से आलोचना करने वाले जलपुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह, राष्ट्रीय परिषद के संयोजक पीवी राजगोपाल, नर्मदा बचाओ आंदोलन के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री (अब प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बड़ी लंबी लड़ाई लडऩे वाली मेधा पाटकर जैसे लोग अन्ना के साथ हुंकार भरने को तैयार हैं। पिछली टीम की अपेक्षा वर्तमान टीम ज्यादा ही परिपक्व और विचारवान नजर आती है। महाराष्ट्र के रालेगण सिद्धि के संत की उपमा से नवाजे गए गांधीवादी अन्ना हजारे का बहरहाल दिल्ली में दो ही दिन धरने का कार्यक्रम है, लेकिन एकता परिषद की ओर शुरू की गई भूमि अधिकार सत्याग्रह पदयात्रा में अन्ना हजारे ने जो संकेत दिया है, उसके मुताबिक यह आंदोलन लंबा भी खिंच सकता है। अन्ना हजारे के साथ पहले की तरह इस बार भी एकता परिषद से जुड़े वे हजारों आदिवासी और खेतिहर मजदूर भी सक्रिय रूप से खड़े नजर आ रहे हैं, जो पिछले कई दशकों से पीवी राजगोपाल के नेतृत्व में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस बार अन्ना के साथ जोशीले युवाओं की फौज भले ही न हो, लेकिन समर्पित कार्यकर्ताओं, अपने लक्ष्य के प्रति अडिग आदिवासियों, गरीबों, खेतिहर मजदूरों और किसानों की फौज जरूर होगी।

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