Wednesday, November 18, 2015

कुत्तों की कोई इज़्ज़त है कि नहीं?

अशोक मिश्र
सुबह सोकर उठा ही था कि घरैतिन ने नेताओं के चरित्र की तरह सड़े-गले नोट पकड़ाते हुए कहा, 'जरा दौड़कर बगल वाली गली से दूध का पैकेट लेते आइए। फिर आपको गर्मागर्म चाय पिलवाती हूं।' मैंने कहा, 'क्या यार! सुबह-सुबह चाय पिलाने की बजाय काम थमा रही हो। पहले चाय तो पिलाओ, आंख तो खुले, फिर ला दूंगा दूध।' 
घरैतिन ने हाथ नचाते हुए कहा, 'अगर घर में दूध होता, तो मुझे कोई शौक नहीं है आपसे दूध मंगाने का। एक पैकेट दूध लाने जाएंगे, दो पैकेट के पैसे गिरा आएंगे।' घरैतिन का ताना सुनकर मन मारकर मुझे घर से निकलना ही पड़ा। भुनभुनाते हुए घर से निकला ही था कि मोहल्ले भर की रोटियों पर पलने वाला एक मरियल सा कुत्ता 'पीलू' मुझ पर गुर्रा उठा, 'तुम कमीने हो, टुच्चे हो, गंदे हो..। वाहियात हो। नामाकूल हो।' मैं कुछ कहता, इससे पहले उसने अपनी बात में संशोधन किया, 'मेरा मतलब तुम नहीं..पूरी की पूरी मानव जाति..।' 
पीलू की बात सुनकर मेरे भीतर का इंसान जागा। एक तो घरैतिन ने पहले से ही मूड का कबाड़ा कर रखा था, उस पर पीलू का गुर्राना बर्दाश्त नहीं हुआ। मैं बोल उठा, 'अबे कुत्ते के पिल्ले, तेरी यह हिम्मत कि तू हम इंसानों को गाली दे। भला-बुरा कहे। तेरी औकात ही क्या है? हमारी ही रोटी पर पलता है और हम पर ही भौंकता है।' पीलू ने लंबी-सी जीभ लपलपाते हुए कहा, 'बस..यही तो..यही समझाना चाह रहा था कि जब किसी को गाली दी जाती है, तो उसे ऐसे ही बुरा लगता है। तुम इंसान अपने आप को समझते क्या हो? हर बात में हम कुत्तों की तौहीन करते रहते हो। हमारी भी कोई इज्जत है कि नहीं। आपको जब भी कोई गाली देनी होती है, हम कुत्ते ही आप इंसानों को क्यों सूझते हैं। अरे हम भी भगवान के बनाए हुए जीव हैं। हम तो नहीं जाते, तुम इंसानों को गाली देने। तुम्हारे नेता भी जब मुंह खोलते हैं, तो हम कुत्तों को ही गाली देते हैं। यह अच्छी बात तो नहीं है न।'
मेरे गुस्से का झाग पीलू की बात सुनकर थोड़ा-थोड़ा नीचे आने लगा था। पीलू ने पूछा, 'तुम्हें किसने पैदा किया है?' उसके इस सवाल पर हंसी आ गई, 'वैसे तो इस दुनिया का हर प्राणी अपने बाप की औलाद होता है, लेकिन कहते हैं कि हर प्राणी को ऊपर वाला यानी भगवान पैदा करता है।' पीलू की गुर्राहट अब कम होती जा रही थी, 'जिस भगवान ने हर प्राणी को पैदा किया है, उसमें हम कुत्ते आते हैं कि नहीं? तुम इंसान अपने आपको तुर्रम खां क्यों समझते हो? माना कि हम तुम्हारी तरह नहीं रह सकते, लेकिन हम जानवरों में न ईष्र्या है, न द्वेष है, न संपत्ति के लिए भाई-भाई का खून बहाने की ललक..न हम राजनीति करते हैं, न सत्ता के लिए कोई कर्म, धत्कर्म करते हैं। झूठ बोलना तो हमें आता नहीं। तुम्हारी दी गई रोटी पर पलते हैं, तो तुम्हारे घर की चौकीदारी भी करते हैं। हम तो सिर्फ भौंकते हैं, लेकिन तुम इंसान हर बात पर हम कुत्तों की तौहीन करते हो। तुम इंसान भले ही अपने आपको कुछ भी समझो, लेकिन दुनिया के बाकी प्राणियों से किसी मायने में ऊंचे नहीं हो। भोले और निष्पाप तो बिल्कुल नहीं। आज से यह हम कुत्तों की तुम इंसानों के लिए चेतावनी है कि हमारे नाम पर गालियां देना बंद नहीं किया और हम कुत्ते अपनी औकात पर आ गए, तो तुम इंसानों को कहीं ठिकाना नहीं मिलेगा। हर महीने रैबीज का इंजेक्शन लगवाते-लगवाते थक जाओगे, लेकिन हम काटने से नहीं थकेंगे। इस पर भी बात नहीं बनी, तो धरना-प्रदर्शन करेंगे।' इतना कहकर पीलू भौंकता हुआ कूड़े के ढेर पर कुछ खाने को तलाशने लगा। मैं पीलू की बात पर विचार करता हुआ खरामा-खरामा दूध की दुकान पर पहुंच गया कि यार पीलू बात तो सही कह रहा था।

1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद कर्नल संतोष को हार्दिक श्रद्धांजलि , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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