Thursday, December 4, 2025

सर्दी में बेघर लोगों को शरण देने में नाकाम हैं रैनबसेरे

 अशोक मिश्र

सर्दियां आ गई हैं। सर्दियों में उन लोगों को ज्यादा परेशानी नहीं होती है जिनके पास पैसे हैं, गर्म कपड़े हैं, मकान हैं। ऐसे लोगों को सर्दियों में बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। पैसे की गर्मी इन्हें ठंड महसूस होने नहीं देती है। इनका खान-पान अच्छा होने की वजह से सर्दियों में होने वाली बीमारियां भी बहुत कम ही होती हैं। सर्दियों में सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों को होती है जिनके पास रहने को घर नहीं होते हैं। सड़क के किनारे किसी दुकान के गेट, पार्क में किसी पेड़ की आड़ में फटी पुरानी रजाई या कंबल में सर्दी की रात काटने वालों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। ऐसे लोग वे होते हैं जो किसी दूसरे प्रदेश से रोजी रोजगार की तलाश में आए हैं या फिर भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं। 

गर्मियों में किसी भी पार्क या दुकान के सामने अथवा फुटपाथ पर ही पतली सी चादर बिछाकर सोने वाले लोग सर्दी का मौसम अपने पर भी अपने लिए किराए के मकान का बंदोबस्त नहीं करते हैं। हरियाणा के कई जिलों में कुछ रिक्शा चालक गर्मी और बरसात के दिनों में अपने रिक्शे पर ही सोकर गुजारा कर लेते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत इन्हें सर्दियों में होती है। इन लोगों की परेशानियों को समझते हुए राज्य सरकार ने हर जिले में रैनबसेरों का निर्माण कर रखा है ताकि घर से वंचित लोग इन रैन बसेरों में रहकर अपना जीवन गुजार सकें। इन रैनबसेरों में व्यवस्था करने की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों के पास है। 

लेकिन राज्य के गई जिलों में रैन बसेरों की हालत यह है कि सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है। कई जिलों के रैन बसेरों में उजाले के नाम पर कुछ नहीं है। बिजली कनेक्शन है, तो बल्ब या ट्यूबलाइट नहीं लगी है। कुछ जगहों पर तो बिजली कनेक्शन ही नहीं है। रैनबसेरे में घुप्प अंधेरा रहता है। ऐसी स्थिति में अराजक तत्वों के घुस आने और वहां रह रहे लोगों के सामान आदि चोरी हो जाना का खतरा बना रहता है। कई जिलों में स्थित रैनबसेरों में फर्श पर बिछाने के लिए गद्दे तक नहीं हैं। 

गद्दे हैं, तो रजाई या कंबल नदारद हैं। यदि रजाई या कंबल हैं भी, तो इतने फटे और पुराने हैं कि उनको ओढ़कर भीषण ठंड से बचा नहीं जा सकता है। कई बार घर वंचित लोग इन रैन बसेरों की शरण लेने की जगह फुटपाथ या दूसरी जगहों पर फटा पुराना चादर या कंबल ओढ़कर सो जाते हैं। ठंड बढ़ जाने पर कई लोगों की मौत भी हो जाती है। पिछले साल भी राज्य में फुटपाथ पर सोने वाले कुछ भिखारियों की जान भी जा चुकी है। प्रदेश सरकार इन रैनबसेरों में व्यवस्था करने का निर्देश सर्दियों के दिन शुरू होने  से बहुत पहले दे देती है, लेकिन नगर निगम, नगर महापालिका या ग्राम पंचायतों के अधिकारी कर्मचारी लापरवाही करते हैं जिसका खामियाजा बेघर लोगों को भुगतना पड़ता है। अलाव की व्यवस्था भी ढंग से नहीं होती है।

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