Thursday, December 4, 2025

नोबल पुरस्कार मिलने का श्रेय शिक्षक को दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अल्बर्ट कामू वस्तुत: कम्युनिस्ट विचारधारा से ओतप्रोत फ्रांसीसी लेखक, दार्शनिक, पत्रकार और राजनीतिक व्यक्ति थे। कामू का जन्म 7 नवंबर, 1913 को फ्रांस के अल्जी़रिया के मांडोवी नामक नगर में हुआ था। उन दिनों अल्जीरिया फ्रांस का एक उपनिवेश हुआ करता था। 

कामू का बचपन बहुत गरीबी में बीता था। उनकी मां ने लोगों को घरों में झाड़ू पोछा करके भी पढ़ाया लिखाया था। वह शिक्षा का महत्व समझती थीं,यह वजह है कि तमाम परेशानियों के बावजूद कामू की पढ़ाई जारी रखी। कामू की प्रतिभा को पहचान कर प्राइमरी स्कूल के शिक्षक मॉन्सियो अर्जेन ने उनकी बहुत मदद की। अर्जेन ने छुट्टियों में पढ़ाया-लिखाया, स्कूल में भी उनका विशेष ध्यान रखा। 

जरूरत पड़ने पर उन्हें किताबें उपलब्ध करवाईं। अर्जेन की मेहनत और कामू की प्रतिभा आखिरकार रंग लाई और उन्हें छात्रवृत्ति हासिल हुई। जिसने उनकी आगे की पढ़ाई का रास्ता तैयार किया। बाद में उन्होंने अल्जीयर्स विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 44 साल की उम्र में अल्बर्ट कामू को 1957 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके कुछ प्रख्यात रचनओं में शामिल हैं दी स्ट्रेंजर, दी प्लेग, दी फाल एवं दी मिथ ओफ सिसिफुस। 

कहते हैं कि जब उन्होंने अपने को नोबल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा सुनी, तो सबसे पहले उन्हें अपनी मां की याद आई जिसने तमाम परेशानियां उठाकर भी पढ़ाई जारी रखी। दूसरे उन्हें याद आए प्राइमरी स्कूल के शिक्षक अर्जेन। बाद में उन्होंने अपने अध्यापक को आभार व्यक्त करते हुए एक पत्र भी लिखा जो आज फ्रांस की एक लाइब्रेरी में वह सुरक्षित रखा हुआ है। उन्होंने नोबल पुरस्कार मिलने का श्रेय अध्यापक को दिया है।

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