Sunday, August 31, 2025

विवेकानंद ने घायल अंग्रेज की सेवा की

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी विवेकानंद ही वह आदमी थे जिन्होंने सनातन धर्म की ध्वजा पूरे विश्व में फहराई थी। अमेरिका के शिकागो शहर में 1893 को आयोजित विश्व धर्म संसद में उन्होंने सनातन धर्म के बारे में जितने विस्तार से दुनिया के सामने रखा, लोग उनके प्रशंसक हो गए। स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका ही नहीं, कई देशों में जाकर धर्म का प्रचार किया। गेरुआ वस्त्रधारी स्वामी विवेकानंद ने हमेशा युवाओं को यह प्रेरणा दी कि वह कमजोर बनने की जगह बलिष्ठ बनें। 

बलिष्ठ शरीर होगा, तो वह अपने देश को आजाद कराने में सक्षम हो सकेंगे। स्वामी विवेकानंद को भी कसरत आदि करने का शौक था। वह जब भी मौका मिलता, वह व्यायाम जरूर करते थे। यात्रा के दौरान भी वह समय निकालकर व्यायाम कर लेते थे। एक बार की बात है। वह व्यायामशाला में कसरत कर रहे थे। उनके साथ कई युवक थे। उसी समय वहां एक अंग्रेज भी व्यायाम कर रहा था। 

उससे किसी बात को लेकर स्वामी जी की बहस हो गई। बहस बढ़ते-बढ़ते उग्र हो गई। अंग्रेज ने विवेकानंद पर हमला कर दिया। वह चाहते तो उसे उठाकर पटक देते, लेकिन उन्होंने बचाव में थोड़ा सा धक्का दिया। अंग्रेज का सिर व्यायामशाला के खंभे से टकराया और वह अंग्रेज गिरकर बेहोश हो गया। उसके सिर से खून निकलने लगा। वहां मौजूद सारे युवक भाग निकले, लेकिन स्वामी जी ने पानी लाकर उसके चोट की सफाई की। 

घाव पर पट्टी बांधने को कुछ नहीं मिला, तो अपने कुर्ते का एक हिस्सा फाड़कर मरहम पट्टी की। अंग्रेज के मुंह पर पानी का छींटा मारा। अंग्रेज होश में आया, तो देखा कि विवेकानंद उसकी देखभाल कर रहे हैं। वह अपने ऊपर लज्जित हो गया। बाद में दोनों लोग एक दूसरे के दोस्त हो गए। वह जीवन भर विवेकानंद का गुणगान करता रहा।

पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले सैनी तैयार कर रहे जमीन

अशोक मिश्र

पिछले दिनों मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने एक ऐसा फैसला लिया है जिसका प्रभाव पंजाब की राजनीति में पड़ना अवश्यंभावी माना जा रहा है। सन 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। देश में एक बड़ी संख्या में उन्मादी भीड़ ने सिख परिवारों को अपना शिकार बनाया था। काफी संख्या में सिख इन दंगों में मारे गए थे। हरियाणा भी इससे अछूता नहीं रहा था। कई दिनों तक जलती रही सांप्रदायिकता की आग में हरियाणा के 121 सिखों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इसके अलावा काफी संपत्ति का नुकसान हुआ था। उन्मादियों ने मकान और दुकान फूंक दिए थे। 

मुख्यमंत्री सैनी ने अब उन 121 परिवारों के एक सदस्य को उनकी सहमति से प्राथमिकता के आधार पर नौकरी देने की घोषणा की है। पीएम सैनी के इस फैसले को पंजाबी मतदाताओं को रिझाने की एक कोशिश माना जा रहा है। पंजाब में भाजपा की अभी तक अपनी जड़ें नहीं जमा पाई है। पिछले कई दशकों से जब भी उसे सत्ता में भागीदार होने का मौका मिला, तब उसे शिरोमणि अकाली दल के साथ समझौता करना पड़ा। अब शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के रास्ते अलग अलग हैं। 

पंजाब में सन 2027 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। शिअद से अलग हो जाने के बाद भाजपा के लिए पिछली सीटों से अधिक सीटें जीतना आसान नहीं होगा। ऐसी स्थिति में पंजाब के फिरोजपुर, मुक्तसर, मानसा, बठिंडा, संगरूर, पटियाला और मोहाली जैसे शहरों में हरियाणा की गतिविधियों का प्रभाव पड़ता है। यह सभी शहर हरियाणा से सटे हुए हैं। यही वजह है कि इन शहरों में भाजपा को अपनी जड़ें जमाने में सहायता प्रदान करने के लिए 84 के दंगा पीड़ित परिवारों को नौकरी देने का फैसला किया है। इससे उम्मीद है कि पंजाब के सिख भाजपा से जुड़ेंगे। 

यही नहीं, सीएम सैनी ने श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के 350वें शहीदी दिवस को हरियाणा में गरिमापूर्ण ढंग से मनाने का फैसला किया है। गुरु साहिब अपनी विभिन्न यात्राओं के दौरान कुरुक्षेत्र, पिहोवा, कैथल, जींद, अंबाला, चीका और रोहतक आए थे। यहां उन्होंने संगत को अपनी अमृत वाणी से निहाल किया था। इन स्थानों का ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है। इन स्थानों पर शहीदी दिवस पर होने वाले आयोजन से भाजपा को हरियाणा और पंजाब में सिख परिवारों को अपने साथ जोड़ने का मौका मिलेगा। इससे दोनों राज्यों में सिख परिवारों के बीच भाजपा की पैठ बढ़ेगी। वैसे भी सन 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पारियां सजानी शुरू कर दी है। सीएम सैनी भी यही कर रहे हैं।

Saturday, August 30, 2025

राजेंद्र प्रसाद से प्रिंसिपल ने मांगी क्षमा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद। लोग उन्हें बड़े आदर और सम्मान के साथ राजेंद्र बाबू कहकर पुकारते थे। वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के साथ-साथ राजनीतिज्ञ, वकील और पत्रकार भी थे। राजेंद्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर 1884 को वर्तमान बिहार के जीरादेई गांव में एक संपन्न कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता महादेव सहाय काफी विद्वान थे। 

जब वह छोटे थे, तभी उनकी मां कमलेश्वरी देवी का निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी बड़ी बहन ने किया था। जून 1896 में बारह वर्ष की आयु में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से कर दिया गया। इनकी प्रारंभिक पढ़ाई-लिखाई छपरा के एक स्कूल में हुई थी। बात तभी की है। उनकी कक्षा का उस दिन आखिरी दिन था। प्रिंसिपल थोड़ी देर में परीक्षाफल सुनाने वाले थे। 

उनकी कक्षा के सभी बच्चे स्कूल प्रांगण में लाइन लगाकर खड़े थे। प्रिंसिपल ने सभी छात्रों का परीक्षाफल घोषित किया,जो बच्चा पास हो जाता था, उसे वह शाबाशी देते थे और जो फेल हो जाता था, उसे आगे अधिक मेहनत से पढ़ाई करने का उपदेश देते थे। प्रिंसिपल ने राजेंद्र प्रसाद को अनुत्तीर्ण बताया था। जब परीक्षाफल घोषित करके प्रिंसिपल जाने लगे, तो राजेंद्र प्रसाद उनके पास पहुंचे और कहा कि मुझे आपने फेल बताया है, लेकिन मैं फेल नहीं हो सकता हूं। 

प्रिंसिपल ने कहा कि तुमने पढ़ाई की नहीं और अब बहाना बना रहे हो। तभी उस स्कूल के वाइस प्रिंसिपल हड़बड़ाए से वहां पहुंचे और कहा कि अभी जो परिणाम घोषित किए गए हैं, उसमें गड़बड़ी है। प्रिंसिपल ने नया परीक्षाफल देखा, तो राजेंद्र बाबू न केवल पास थे, बल्कि कक्षा में प्रथम आए थे। यह देखकर प्रिंसिपल ने उनसे क्षमा मांगी।

महिलाओं को आर्थिक मजबूती प्रदान करने की पहल का ऐलान

अशोक मिश्र

महिलाएं समाज और देश या प्रदेश की रीढ़ होती हैं। यदि किसी प्रदेश की महिलाएं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हैं, तो उस प्रदेश का सर्वांगीण विकास होता है। महिलाओं से ही परिवार बनता है। जब एक परिवार मजबूत होता है, तो जिला और प्रदेश मजबूत होता है। परिवार को आर्थिक मजबूती प्रदान करने के लिए ही प्रदेश सरकार अगले महीने 25 सितंबर से दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना की शुरुआत करने जा रही है। पहले चरण में 23 से 60 साल की महिलाओं को हर महीने 21 सौ रुपये प्रदान किए जाएंगे। 

यह सुविधा केवल उन महिलाओं को ही मिलेगी जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपये है। इसके लिए विवाहित या अविवाहित जैसी कोई शर्त नहीं है। अगर किसी परिवार में एक से अधिक महिला है, तो उसे भी दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना का लाभ मिलेगा। हां, बस अविवाहित महिला या विवाहित महिला के पति का कम से कम 15 साल तक हरियाणा का मूल निवासी होना जरूरी है। 

इस योजना का लाभ उठाने वाली महिला अगर 45 साल से ऊपर की हो जाती है तो वह स्वत: ही विधवा या निराश्रित महिला वित्तीय सहायता योजना की पात्र हो जाएगी। इसी तरह साठ साल से ऊपर की हो जाने पर लाभार्थी वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना की पात्र हो जाएगी। इसके लिए उसे अतिरिक्त फार्म या भागदौड़ नहीं करनी होगी। प्रदेश सरकार महिलाओं को इस योजना का हिस्सा बनने को प्रेरित करने के लिए एसएमएस भेजने की व्यवस्था कर रही है। इसके लिए एक एप का भी निर्माण किया जा रहा है जिस पर महिलाएं आवेदन कर सकेंगी। 

पूरे प्रदेश में लगभग 20 लाख महिलाओं को यह सुविधा मिलेगी। विधानसभा चुनावों के दौरान सीएम नायब सैनी ने प्रदेश की महिलाओं को 21 सौ रुपये देने का वायदा किया था। इसके लिए पांच हजार करोड़ रुपये बजटीय प्रावधान किया गया है। हालांकि दूसरे दलों ने भी महिलाओं को इसी तरह की सुविधा देने का ऐलान किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा पर इस योजना को लागू करने का दबाव था। 

विपक्षी दल भी इस मामले को लेकर सवाल खड़ा कर रहे थे। अब जब सैनी सरकार ने 25 सितंबर की तारीख नियत कर दी है दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना को लागू करने की, तो अब विपक्षी दल का आरोप है कि यह प्रदेश की सभी महिलाओं के साथ धोखा है क्योंकि चुनाव के दौरान सभी महिलाओं को यह लाभ देने का वायदा किया गया था। उस समय एक लाख रुपये सालाना आय की बात नहीं कही गई थी। सीएम सैनी ने विपक्षी दलों के नेताओं के इस आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि पूर्व की सरकारों ने तो कोई वायदा पूरा नहीं किया था।

Friday, August 29, 2025

पढ़ने-लिखने से आत्मा की भूख तो मिटेगी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

चार्ल्स डिकेंस को विक्टोरियन युग का महान अंग्रेजी साहित्यकार माना जाता है। डिकेंस का बचपन बहुत गरीबी में बीता था। उनका जन्म 7 फरवरी 1812 को पोर्ट्समाउथ में जॉन और एलिजाबेथ डिकेंस के घर हुआ था। अन्य बच्चों की तरह डिकेंस को नौ साल की उम्र में स्कूल भेजा गया। लेकिन स्कूली शिक्षा बहुत ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी। उनके पिता कर्ज के कारण जेल में डाल दिए गए थे। 

जॉन डिकेंस के साथ उनके पूरे परिवार को मार्शलसी भेज दिया गया था। इसके चलते बहुत जल्दी ही उनकी स्कूली शिक्षा भी बंद हो गई। चार्ल्स को वॉरेन की ब्लैकिंग फैक्टरी में काम करने के लिए भेज दिया गया। वहां उन्हें भयावह परिस्थितियों के साथ-साथ अकेलेपन और निराशा का भी सामना करना पड़ा। लेकिन चार्ल्स में पढ़ने की जो ललक थी, वह कभी कम नहीं हुई। वह अपने आसपास की पुरानी लाइब्रेरियों में जाकर साहित्य पढ़ा करते थे। उनके साथी उनका मजाक उड़ाते थे कि पढ़-लिखकर तुम कौन सा अपना पेट भर लोगे। 

वह साथियों को जवाब देते हुए कहा करते थे कि पेट तो किसी भी तरह भरा जा सकता है, लेकिन आत्मा की भूख इससे ही मिटेगी। तीन साल बाद उन्हें फिर से स्कूल भेज दिया गया। पढ़ाई लिखाई पूरी होने पर उन्होंने पत्रकार बनना स्वीकार किया और साहित्यिक रचनाएं लिखने लगे। 

बचपन का अनुभव उनसे कभी नहीं भुलाया गया और उनके दो प्रसिद्ध उपन्यासों 'डेविड कॉपर फील्ड' और 'ग्रेट एक्सपेक्टेशंस' में इसे काल्पनिक रूप दिया गया।  चार्ल्स की रचनाओं में गरीबों, अनाथ बच्चों और शोषितों की पीड़ा इतनी मुखर हो उठती है कि पढ़ने के बाद मन को झकझोर देती है।

यमुना नदी के उफान ने निगल लिया किसानों का सपना

अशोक मिश्र

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पिछले कई दिनों से भारी बरसात होने और भूस्खलन के चलते यमुना नदी उफान पर है। हरियाणा के कई जिलों के ग्रामीण इलाकों में पानी भर गया है। हरियाणा के भी कई जिलों में भारी बरसात होने की वजह से स्थिति गंभीर होती जा रही है। दो दिन पहले दिल्ली में यमुना का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर 204.58 मीटर तक पहुंच गया था। 

इसका कारण यह था कि हथिनी बैराज कुंड से 61354 क्यूसेक पानी दिल्ली की ओर डायवर्ट किया गया था। हालांकि यह भी सही है कि हरियाणा के कुछ इलाकों में नहरी पानी की खपत लगभग एक हजार क्यूसेक कम हुई है। खेतों में प्राकृतिक रूप से बरसने वाला पानी किसानों को उपलब्ध हो रहा है। इसकी वजह से खपत घट गई है। हरियाणा में बारिश के चलते कैचमेंट एरिया में पानी भर गया है। इसके अलावा हथिनी बैराज से भी कुछ पानी हरियाणा के कई इलाकों में भर गया है। 

हथिनी बैराज की क्षमता अधिक से अधिक एक लाख क्यूसेक पानी रोके रखने की है। इसके अधिक पानी होने पर बैराज से पानी को छोड़ना अनिवार्य हो जाता है। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो पानी ओवरफ्लो होकर आसपास के इलाकों में तबाही मचा सकता है। हरियाणा में यमुनानगर, करनाल, फरीदाबाद, पलवल और पानीपत जिलों में यमुना नदी का पानी काफी नुकसान पहुंचाता है। इन जिलों में बाढ़ के पानी से फसलों को बहुत नुकसान होता है। बाढ़ की वजह से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। बाढ़ की वजह से खेतों में कटाव हो रहा है। खेत की मिट्टी बहकर नालों और नदियों में जा रही है। 

उनकी फसल और मिट्टी दोनों संकट में हैं। धान, सब्जियां और अन्य फसलें बाढ़ में बह गई हैं। इस नुकसान की भरपाई हो भी नहीं पाएगी क्योंकि सरकार जो मुआवजा देगी, वह वास्तविक नुकसान से कम ही होगा। मुआवजा भी बाद में ही मिलेगा। इसके चलते निश्चित तौर पर किसानों की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। किसान अपनी पूंजी और मेहनत एकाएक बह जाने से काफी निराश हैं। इन दिनों हो रही बारिश और बाढ़ का पानी जल्दी से नहीं घटा, तो खेत की नमी कम नहीं होगी। 

अगले महीने से गेहूं की बुआई शुरू होने वाली है। खेत में ज्यादा नमी रहने की वजह से गेहूं की बुआई भी नहीं हो सकती है। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि इस बार गेहूं की बुआई का रकबा भी घट सकता है। इससे किसानों की व्यक्तिगत क्षति तो होगी ही, प्रदेश का भी नुकसान होगा। महंगाई और खेती की लागत से परेशान किसानों के सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

बाजार की जकड़ में छटपटाता देश का आम आदमी

अशोक मिश्र

बाजार ने हम सभी को किसी मकड़ी की तरह जकड़ रखा है। इसमें फंसा व्यक्ति छटपटा तो सकता है, लेकिन इसके बुने जाल से बाहर नहीं निकल सकता है। बाजार ने अपने हित के लिए तमाम सर्वे एजेंसियों को लगा रखा है। जो बाजार के हित में आंकड़े तैयार करते हैं, दुनिया भर में प्रसारित करते हैं और लोगों पर मानसिक दबाव डालते हैं। सर्वे रिपोर्ट की आड़ में लोगों को बताया जाता है कि अगर वे इस उत्पाद का उपयोग इतने समय तक करेंगे, तो वे ऐसे हो जाएंगे, इसका उनके जीवन पर ऐसा सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 

बाजार की यह कोशिश इतने तक ही सीमित नहीं रहती है, वह अपने संभावित उपभोक्ताओं के बीच से ही उस उत्पाद का ब्रांड एंबेसडर खोजता है। यह ब्रांड एंबेसडर कोई बड़ा खिलाड़ी, फिल्मी दुनिया से जुड़ा अभिनेता-अत्रिनेत्री या राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी कोई भी हस्ती हो सकती है। पैसा लेकर ये ब्रांड एंबेसडर उस उत्पाद का प्रचार करते हैं, उपभोक्ताओं को उस उत्पाद का उपयोग करने को प्रेरित करते हैं। पहले तो ये उत्पाद व्यक्ति के जीवन में शौकिया, किसी की प्रतिस्पर्धा या उत्सुकतावश प्रवेश करते हैं और कालांतर में ये उत्पाद उस व्यक्ति की अनिवार्य आवश्यकता बन जाते हैं। 

बाजार की एक कुटिल चाल यह भी है कि वह अपने उत्पाद बेचने के साथ-साथ एक सपना भी बेचता है। यह सपना इतना सुहाना होता है कि लोग छटपटा उठते हैं, इस सपने को साकार करने के लिए। यही सपना मध्यम और निम्न वर्ग को अपनी गिरफ्त में लेता है। मध्यम और निम्न आय वर्गों के लोगों को बाजार की आक्टोपसी बाहें कुछ इस कदर जकड़ लेती हैं कि वे छटपटाकर दम तोड़ने के सिवा कुछ नहीं कर पाते। यह सपना होता है, अच्छे जीवन जीने का, बढ़िया मकान का, भिन्न-भिन्न तरीके से कारोबार बढ़ाने का। इसके लिए कर्जा देने को भी बाजार तैयार है। एक बार बाजार के इस चक्रव्यूह में आदमी फंसा कि उसे एकदम चूस लिया जाता है।

कालांतर में नतीजा यह निकलता है कि वे हताश और अवसादग्रस्त होकर आत्मघात कर बैठते हैं। कई बार तो परिवार के अन्य सदस्य भी इस आत्मघात में शामिल हो जाते हैं। कई बार ऐसा भी हुआ है कि आत्महत्या करने वाले पुरुष या स्त्री को ऐसा लगता है कि वह आत्महत्या कर लेगा/कर लेगी, तो उसके बाद उस पर आश्रित रहने वाले लोग कैसे जिएंगे, उनके साथ समाज अच्छा व्यवहार नहीं करेगा। यही सोचकर वे पहले अपने आश्रितों (बेटा, बेटी, पत्नी, नाबालिग छोटे भाई-बहनों) की पहले हत्या करते हैं और फिर बाद में आत्महत्या कर लेते हैं। पिछले कुछ दशक से इसका चलन बढ़ता जा रहा है।

कई साल पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक सर्वे कराया था। उस सर्वे के मुताबिक विश्व के सर्वाधिक निराश और हताश लोगों की संख्या भारत में है। उस सर्वे के मुताबिक भारत के नौ फीसदी लोग लंबे समय से अपने जीवन से निराशाजनक स्थिति से गुजर रहे हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि भारत जैसे धार्मिक व आध्यात्मिक देश के 36 फीसदी लोग, तो गंभीर रूप से हताशा की स्थिति (मेजर डिप्रेसिव एपीसोड) में हैं। इस हताशा की स्थिति के कारण ही देश में एक तिहाई से भी अधिक लोग उदास हैं। उनके जीवन में आनंद व ऊर्जा की अनुभूति समाप्ति के कगार पर है। वे अपराध-बोध की भावना से ग्रस्त हैं। परिणामत: उनकी भूख और निंद्रा धीरे-धीरे सिमट रही है। साथ ही अब उन्हें अपना जीवन उपयोगी नजर नहीं आता। 

इंस्टीट्यूट आॅफ ह्यूमन विहेवियर ऐंड एलाइड साइंसेस की रिपोर्ट बताती है कि सामाजिक सहभागिता कम होने से लोगों में अवसाद बढ़ रहा है। शहरी समाज का संपूर्ण मनोविज्ञान पूंजी-उन्मुख हो जाने से हर कोई भौतिक सुख के पीछे भाग रहा है। सफलता-विफलता के बीच बढ़ते फासले ने लोगों को अकेलेपन, अलगाव और अवसाद मे घेर लिया है। हमारा सरोकार सिर्फ खुद से रह गया है।

Thursday, August 28, 2025

लोगों की जान बचाने को किया आत्मसमर्पण


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे देश को स्वतंत्रता दिलाने में कितने वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए, इसकी कोई सटीक गणना नहीं हो सकती है। इसका कारण यह है कि हमारे देश की आजादी की लड़ाई दुनिया के इतिहास की सबसे लंबी लड़ाई थी। अगणित वीरों ने अपने प्राण देश को स्वतंत्र कराने के लिए बलिदान कर दिए थे। इन्हीं वीरों में से एक थे नारायण सिंह बिंझवार। 

इन्हें छत्तीसगढ़ का पहला आदिवासी शहीद होने का गौरव हासिल है। इन्होंने अपने इलाके के लोगों को ब्रिटिश हुकूमत के जुल्म से बचाने के लिए मजबूर होकर आत्म समर्पण करना पड़ा था। छत्तीसगढ़ के सोनाखान के आदिवाीस जमींदार राम राय के घर में 1795 को नारायण सिंह बिंझवार का जन्म हुआ था। पिता की मृत्यु के बाद 35 वर्ष की आयु में उन्हें सोनाखान की जमींदारी संभालने को मिली थी। बात 1856 की है। उन दिनों छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ा था। 

कई वर्षों तक बरसात न होने की वजह से अनाज पैदा नहीं हुआ था। जिसके पास बचत में अनाज था, उससे काम चलाया, लेकिन बचत वाला अनाज कितने दिन काम आता। लोगों के घरों में अनाज ही नहीं रह गया। भूखे मरने की नौबत आ गई, तो नारायण सिंह ने उस इलाके के अमीर व्यापारी माखन से गरीबों को अनाज देने को कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। उन्होंने व्यापारी का अनाज गोदाम लुटवा दिया। 

उन्हें गिरफ्तार करके रायपुर जेल में डाल दिया गया। अपने साथियों की मदद से वह जेल से भाग निकले और अंग्रेजों के खिलाफ एक छोटी सेना गठित करके देश को आजाद कराने का प्रयास करने लगे। खिसियाए अंग्रेजों ने जनता पर जुल्म इतना ढाया कि यह जुल्म देखकर नारायण ने आत्म समर्पण करना उचित समझा। दस दिसंबर 1857 को उन्हें तोप से उड़ा दिया गया।

सरकार को नशे की जड़ पर करना होगा प्रहार

अशोक मिश्र

मंगलवार को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, विधानसभा अध्यक्ष हरविंद्र कल्याण और मंत्रियों सहित भाजपा विधायकों ने एमएलए हॉस्टल से विधानसभा तक नशे के खिलाफ साइकिल रैली निकाली। विपक्षी विधायकों के इस रैली में शामिल न होने पर मुख्यमंत्री ने उन पर तंज भी कसा। कहा कि उन्हें प्रदेश की समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है। 

सीएम ने नशे के खिलाफ निकाली गई साइकिल रैली को सफल बताते हुए कहा कि प्रदेश में नशे के खिलाफ वातावरण बन रहा है। लोग इस तरह के आयोजनों से प्रेरणा ले रहे हैं। सीएम सैनी प्रदेश में इस तरह के आयोजन पहले भी करते रहे हैं। अप्रैल महीने में भी सीएम सैनी साइक्लोथॉन 2.0 का आयोजन कर चुके हैं। इस साइक्लोथॉन के दौरान हजारों लोग साइकिल से प्रदेश के कई शहरों में जाकर लोगों को नशे से दूर रहने की प्रेरणा दे चुके हैं। सीएम इस दौरान कई शहरों में साइक्लोथॉन को हरी झंडी दिखाकर रवाना कर चुके हैं। सवाल यह है कि इस तरह के आयोजनों से कितने  लोगों को प्रेरणा मिली, कितने लोगों ने नशे से दूर रहने का संकल्प लिया और नशे से दूर हो गए। अक्सर देखा जाता है कि ऐसे कार्यक्रमों को सामान्य लोग एक आयोजन की तरह लेते हैं। 

रैली या सेमिनार में भाग लेते हैं और फिर अपनी सामान्य दिनचर्या में संलिप्त हो जाते हैं। हजार लोगों में कहीं एकाध लोगों का हृदय परिवर्तन होता हो, तो नहीं कहा जा सकता है। असल में ऐसे आयोजन समाज पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाते हैं। सबसे जरूरी यह है कि नशीले पदार्थों की आपूर्ति को ही रोक दिया जाए। प्रदेश सरकार का कहना है कि एक जनवरी से 31 जुलाई 2025 तक कुल 21591 मामले दर्ज किए गए। इतना ही नहीं, 2046 आरोपियों को अदालत से सजा भी दिलवाई गई। 

सबसे सार्थक तरीका यही है कि कानून का पहरा इतना कड़ा कर दिया जाए कि लोगों को नशीला पदार्थ मिले ही नहीं। जो लोग नशीले पदार्थ के चलते रोगी हो गए हैं, उनका इलाज करवाया जाए। जब लोगों को नशीले पदार्थ मिलेंगे ही नहीं, लोग इस बुराई से दूर रहने को मजबूर होंगे। नए लोगों को भी इसकी लत नहीं लगेगी। दरअसल, प्रदेश में नशा तस्करी का जाल काफी बड़े पैमाने पर फैला हुआ है। यह नशा कारोबारी और नशीले पदार्थ प्रदेश की जनता के लिए मुसीबत का कारण बनते जा रहे हैं। 

सरकार को नशे की जड़ पर ही प्रहार करना होगा। नशा कारोबारियों और नशीले पदार्थ का उत्पादन करने वालों की गर्दन मरोड़नी होगी, तभी प्रदेश के लाखों युवाओं और बुजुर्गों को नशे से मुक्ति मिल सकेगी। हां, सरकार को स्कूलों के आसपास नशीले पदार्थ  बेचने वालों पर भी सख्ती से शिकंजा कसना होगा।

Wednesday, August 27, 2025

थोड़े दिन पहले ही आंखों में रोशनी आई है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जब कोई बच्चा किसी वस्तु को देखता है, तो वह उसकी ओर आकर्षित होता है। वह उसे छूने की भी कोशिश करता है। बच्चे ने अपने जीवन में बहुत सारी चीजें नहीं देखी होंगी। बच्चों में वस्तुओं को जानने और समझने की उत्सुकता बहुत होती है। 

यही उत्सुकता उसका ज्ञान बढ़ाती है, उसे दुनिया को समझने के लायक बनाती है। हम जब भी किसी वस्तु या व्यक्ति को पहली बार देखते हैं, तो उसके बारे में हर बात जान लेना चाहते हैं। कई बार तो पागलों की तरह हरकत करने लगते हैं। इस संबंध में एक रोचक प्रसंग है। एक पिता-पुत्र रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे। पुत्र की आयु लगभग चौबीस साल थी, वहीं पिता चालीस-पैंतालिस वर्ष का था। 

पिता को खिड़की वाली सीट मिली थी। बेटे ने अपने पिता से खिड़की की तरफ वाली सीट पर बैठने की जिद की। पिता ने एकाध बार उसे वहीं बैठने के लिए कहा, लेकिन बेटे की जिद देखकर वह वहां से हटकर दूसरी जगह बैठ गया। बेटा खिड़की के पास बैठकर बाहर देखने लगा। बाहर देखते ही पुत्र तालियां बजाने लगा और अपने पिता से कहा कि पापा...पापा, देखो पेड़ भाग रहे हैं। वह गाय भी भागती जा रही है। पापा, तालाब दौड़ रहा है। इतना कहकर वह खुश हो जाता और तालियां बजाने लगता। 

आसपास बैठे दूसरे यात्रियों को युवक बहुत असामान्य लगा। थोड़ी देर तक वह युवक की हरकतों को देखते रहे। फिर एक आदमी ने कहा कि आप इसे किसी अच्छे डाक्टर को दिखाते क्यों नहीं हैं। आपके पुत्र की हरकतें सही नहीं लग रही हैं। इस पर पिता ने जवाब दिया-इसे डॉक्टर को ही दिखा कर आ रहे हैं। मेरा बेटा जन्म से अंधा था। थोड़े दिन पहले ही उसे रोशनी मिली है। तो वह हर चीज देखकर चकित हो जाता है। यह सुनकर लोग चुप बैठ गए।

सचमुच विदेशी पर्यटकों को सफाई करते देख हमें शर्म आनी चाहिए

अशोक मिश्र

सचमुच यह बहुत शर्म की बात है कि मिलेनियम सिटी के नाम से विख्यात गुरुग्राम में जगह-जगह फैली गंदगी को देखकर विदेशी पर्यटक उसकी सफाई करने के लिए आगे आ जाएं। यह गुरुग्राम के स्थानीय निकाय के लिए शर्मनाक है ही, स्थानीय निवासियों को भी शर्मिंदा होना चाहिए। गुरुग्राम में गलियों से लेकर मुख्य सड़कों और प्रमुख स्थलों पर फैली गंदगी को लेकर पहले भी कई बार सोशल मीडिया पर चर्चा हो चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खिल्ली उड़ाई जा चुकी है। 

बरसात के मौसम में चारों ओर फैली गंदगी को देखकर विदेशी पर्यटकों ने सोमवार को गुरु द्रोणाचार्य मेट्रो स्टेशन से लेकर नया गुरुग्राम क्षेत्र तक सफाई की। विदेशी पर्यटकों के समूह को सफाई करते देखकर कुछ स्थानीय लोगों को शायद लज्जा आई और उन्होंने भी इस काम में हाथ बंटाया। लेकिन स्थानीय निकाय के कर्मचारी दूर-दूर तक नजर नहीं आए। बरसात के दिनों में वैसे तो अच्छे खासे शहर की हालत बिगड़ जाती है, लेकिन गुरुग्राम में छोटी-छोटी तंग गलियों से लेकर प्रमुख स्थलों तक फैली गंदगी को अनदेखा कर शहर वाले आगे बढ़ जाते हैं। कोई इसको लेकर विरोध प्रदर्शन भी नहीं करता है। 

कोई सड़कों पर बजबजाती और बीमारी का कारण बनती गंदगी को लेकर विरोध भी नहीं करता है। इन सब बातों को देखकर ही शायद विदेशी पर्यटकों ने शायद एक ग्रुप बनाया है जो रोज गुरुग्राम की सड़कों की सफाई किया करेगा। पूरी दुनिया में आईटी, टेलिकाम, आटोमोबाइल, गारमेंट और मेडिकल हब के रूप में विख्यात गुरुग्राम की सड़कों की भी दशा काफी खराब है। बरसात के दिनों में सड़कों पर बने गड्ढे किसी बड़े हादसों का इंतजार कर रहे हैं। सच तो यह है कि पिछले कई महीनों से गुरुग्राम में जगह-जगह पर कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। शहर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है। 

इसी गंदगी को देखकर कुछ सप्ताह पहले फ्रांसीसी महिला मैथिलडे आर ने इसे सुअरों के रहने लायक बताते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली थी। एक पूर्व सेनाधिकारी ने कूड़े के ढेर पर अपना भोजन तलाशते पशुओं की एक वीडियो डालकर गुरुग्राम की गंदगी पर अपना रोष भी जाहिर किया था। इसके बावजूद स्थानीय निकाय के कान पर जूं तक नहीं रेगीं। इसी बीच सर्बिया का एक युवक चुपचाप गुरुग्राम को साफ करने में भी लगा हुआ है। 

पिछले एक साल से गुरुग्राम में सर्बिया के नागरिक 32 वर्षीय लेजर जेनकोविक रोज एक फावड़ा और बड़े कचरे का बैग लेकर सड़कों की सफाई करते हैं। कुछ स्थानीय लोग भी उनका साथ देते हैं। लेकिन इतने से तो शहर की सफाई नहीं हो सकती है। स्थानीय निकाय को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

Tuesday, August 26, 2025

हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए हेमू कालाणी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हेमनदास कालाणी यानी हेमू कालाणी का जन्म 23 मार्च 1923 को एक सिंधी परिवार में हुआ था। सिंध के जिस सक्कर गांव में हेमू का जन्म हुआ था, आज वह पाकिस्तान में है, लेकिन उन दिनों बांबे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। वह पेसुमल कालाणी और जेठी बाई के पुत्र थे। उन दिनों भारत में महात्मा गांधी का विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और असहयोग आंदोलन बड़े जोरों पर चल रहा था। 

इसका प्रभाव हेमू कालाणी पर भी पड़ा। उन्होंने किशोरावस्था में ही विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आंदोलन भाग लेना शुरू कर दिया था। हेमू महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया था। सिंध प्रांत में यह आंदोलन इतना बढ़ा कि उसे दबाने के लिए अंग्रेजों को सैन्य टुकड़ी भेजनी पड़ी। इसी दौरान हेमू कालाणी को यह जानकारी मिली कि अंग्रेजों की हथियार से भरी एक रेलगाड़ी 22 अक्टूबर 1942 को इधर से गुजरने वाली है। बस फिर क्या था? 

हेमू कालाणी ने उन हथियारों को लूटने और क्रांतिकारियों तक यह हथियार पहुंचाने की योजना बनाई। उन्होंने रेल की पटरियों की फिश प्लेटें तोड़ने और हथियारों को लूटने प्लानिंग की। उन्होंने दो और साथियों को इस काम के लिए तैयार किया। पहले तो उन लोगों ने इस काम से इंकार कर दिया। लेकिन बाद में वह मान गए। फिश प्लेटें निकालने के बाद रेलगाड़ी आती उससे पहले पुलिस आ गई। 

हेमू के दोनों साथी तो भाग गए, लेकिन हेमू पकड़ लिए गए। अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। फांसी वाले दिन हेमू सवेरे उठे। हंसते-गाते फांसी की जगह पर पहुंचे। फांसी चढ़ाने वाले मजिस्ट्रेट ने पूछा कि तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा है? उन्होंने कहा कि मैं भारत माता की जय बोलना चाहता हूं। इसके बाद जेल परिसर में भारत माता की जय का नारा गूंज उठा। 19 साल उम्र में 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया।

गुटबाजी खत्म होने तक कांग्रेस हरियाणा में मजबूत होने से रही

अशोक मिश्र

कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश संगठनों के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में जोश भरना शुरू कर दिया है। उन्होंने हरियाणा और मध्य प्रदेश के जिलाध्यक्षों से साफ कह दिया है कि उन्हें किसी नेता के दबाव में आने की जरूरत नहीं है। उनका कहना है कि आपको अपनी पिच तैयार करके बैटिंग करनी होगी। दूसरों के पिच पर खेलने पर जल्दी आउट हो जाओगे और दूसरे के इशारे पर खेलना होगा। वैसे राहुल गांधी की यह बात बिल्कुल सही है। 

यदि जिलाध्यक्षों को अपने जिले में कांग्रेस की एक मजबूत टीम तैयार करनी है, तो सबसे पहले अपने विश्वसनीय और पार्टी के प्रति समर्पित लोगों को जिम्मेदारियां देनी होगी। जिम्मेदार लोगों को आगे लाकर उन्हें जिला कांग्रेस का चेहरा बनाना होगा। इसके बाद ब्लाक और बूथ स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम तैयार करनी होगी। यह टीम ऐसी होनी चाहिए जो जनता से जुड़ी हुई हो। लोगों की छोटी से छोटी समस्याओं को दूर करने का हरसंभव प्रयास कर सके। लोगों की दिक्कतों को जिला प्रशासन तक पहुंचाकर उनका समाधान कराए। जरूरत पड़ने पर जनता के लिए सड़कों पर उतरे और जिला प्रशासन को अपने आंदोलन से समस्याओं के निराकरण के लिए मजबूर कर दे। 

अगर जिला स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करना है, तो सबसे पहले युवाओं को आगे करना होगा। युवाओं की ऊर्जा और जुझारूपन को नियंत्रित करने के लिए अनुभवी आदमियों को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देनी होगी। युवा शक्ति और वरिष्ठ नेताओं के अनुभव के तालमेल से ही कांग्रेस को संगठित और मजबूत किया जा सकता है। इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि कांग्रेस का हर पदाधिकारी और कार्यकर्ता अपने मतभेद को भुलाकर सिर्फ संगठन के लिए काम करें। हरियाणा में कांग्रेस की पराजय के पीछे नेताओं की आपसी गुटबाजी का सबसे बड़ा हाथ रहा है। हरियाणा कांग्रेस में तीन गुट साफतौर पर नजर आते थे। 

हुड्डा गुट पूरे प्रदेश संगठन पर हावी दिखाई देता था। सैलजा गुट और सुरजेवाला गुट दोनों हुड्डा के कार्यक्रम में दिखाई नहीं पड़ते थे। इन दोनों गुटों के कार्यक्रम में हुड्डा गुट भाग नहीं लेता था। कांग्रेस के तीनों गुट चुनाव से पहले ही इस बात के लिए लड़ने लगे थे कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? इस कलह ने भी जीती हुई कांग्रेस को हरा दिया। भाजपा इस कलह का फायदा उठा ले गई। अब कांग्रेस नेता भाजपा पर हरियाणा में वोट चोरी का आरोप लगा रहे हैं। इस आरोप में कितनी सच्चाई है, यह तो जांच होने पर ही पता चलेगा। लेकिन यह भी सही है कि कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में लुटिया कांग्रेसियों ने ही डुबोई थी।

जब नहीं होंगे हम

कविता

अशोक मिश्र


 जब नहीं होंगे हम

तो किसे याद आएगा
हमारा रूठना, मनाना
बच्चे भी पता नहीं
रस्म अदायगी के तौर
याद करेंगे या भूल जाएंगे
हमें
संभव है याद भी न करें
क्या पता उनके पास भी हों
हम-तुम जैसी
अपार परेशानियां, कुंठाएं,
बच्चों की चिंताएं
संभव यह भी है
वे हमें याद करने लायक ही न समझें
और फिर
हम क्यों करें उनसे कोई उम्मीद?
क्यों मोहताज हों हम
याद किए जाने के
तो फिर
क्यों न..
हम पहले की तरह
रूढ़ें और मनाएं
एक दूसरे को।

परिचय
बलरामपुर जिले के नथईपुरवा घूघुलपुर गांव में 13 अप्रैल 1967 को मेरा जन्म हुआ। मेरे पिता दिवंगत रामेश्वर दत्त मानव मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारक और कवि थे। मैं पिछले 23-24 वर्षों से व्यंग्य लिख रहा हूं. कई छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में खूब लिखा. दैनिक स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित अखबारों में भी खूब लिखा. कई पत्र-पत्रिकाओं में नौकरी करने के बाद आठ साल दैनिक अमर उजाला के जालंधर संस्करण में काम करने के बाद लगभग दस महीने रांची में रहा. लगभग एक साल दैनिक जागरण और एक साल कल्पतरु एक्सप्रेस में काम करने के बाद साप्ताहिक हमवतन में स्थानीय संपादक, गोरखपुर से प्रकाशित न्यूज फॉक्स में समाचार संपादक और पंजाब केसरी देहरादून में उप समाचार संपादक पद पर कार्यरत रहने के बाद 27 अगस्त 2021 को पलवल से प्रकाशित होने जा रहे दैनिक देश रोजाना में समाचार संपादक के पद पर ज्वाइन किया। छह महीने बाद दैनिक देश रोजाना का संपादक बना दिया गया। तब से अद्यतन उसी पद पर कार्यरत हूं। मेरा एक व्यंग्य संग्रह 'हाय राम!...लोकतंत्र मर गया' दिल्ली के भावना प्रकाशन से फरवरी 2009 में प्रकाशित हुआ है. इसके बाद वर्ष 2013 में उपन्यास सच अभी जिंदा है भी भावना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। पुस्तक दयानंद पांडेय समीक्षकों की नजर में का संपादन और वर्ष 2018 को वनिका प्रकाशन से व्यंग्य संग्रह दीदी तीन जीजा पांच प्रकाशित हुआ।

Monday, August 25, 2025

चंड अशोक बौद्ध बनने के बाद बना धम्म अशोक

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

मां अगर चाहे तो अपनी संतान का हृदय परिवर्तन कर सकती है। वह चाहे तो उसे अच्छे या बुरे कामों में लगा सकती है। यह मां की प्रवृत्ति पर निर्भर है। कुछ लोग मानते हैं कि कलिंग युद्ध की समाप्ति के बाद जब अशोक अहंकार भरे स्वर में अपनी मां धर्मा को यह बता रहा था कि उसने कलिंग विजय कर लिया है, तो उस समय उसकी मां की आंखों से आंसू गिर रहे थे। 

कहा जाता है कि कलिंग युद्ध में एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और डेढ़ लाख से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हुए थे। लोगों की लाशें देखकर अशोक की मां धर्मा रोए जा रही थी। तब अशोक ने अपनी मां से पूछा कि क्या आप कलिंग विजय से खुश नहीं हैं? उनकी मां ने कहा कि इस युद्ध में लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई है। अपनी जान गंवाने वाले व्यक्ति किसी के पुत्र, पति, भाई या पिता रहे होंगे। इन लाखों परिवारों को आज कितना दुख हो रहा होगा। यदि तू इस युद्ध में मर जाता तो मुझे कितना दुख होता। 

यह सुनकर सम्राट अशोक के कलेजे में चोट लगी। उसे सच्चाई का एहसास हुआ। उसी क्षण से उसका हृदय परिवर्तन हो गया। कुछ इतिहासकार बौद्ध द्वारा हृदय परिवर्तन की बात लिखते हैं। कुछ इतिहासकारों ने सम्राट अशोक को चंड अशोक भी लिखा है।  इसका कारण यह बताया जाता है कि अशोक शुरू से ही बहुत क्रूर था। वह किसी को भी क्षमा नहीं करता था। 

यह भी कहा जाता है कि उसने अपने 99 सौतेले भाइयों का वध किया था। तभी से उसे चंड अशोक कहा जाने लगा था। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक ने अपने को पूरी तरह से बदल लिया था जिसकी वजह से उसे बाद में धम्म अशोक भी कहा गया। आज उसे मौर्य राजवंश का सबसे महान शासक माना जाता है।

हरियाणा के किसानों में घट रहा प्राकृतिक खेती के प्रति रुझान

अशोक मिश्र

दुनिया में जब भी खेती की शुरुआत हुई थी, तो वह प्राकृतिक खेती ही  थी। कई हजार साल पहले जब मानव बस्तियों के आसपास चारागाह कम पड़ने लगे और पालतू पशुओं की संख्या बढ़ने लगी, तब इंसानों ने खेती की शुरुआत की। वह अपने आसपास की जमीन पर विभिन्न प्रजाति के पौधों के बीजों का छिड़काव कर दिया करते थे। जो भी पैदा हो जाता था, उससे काम चलाते थे। लौह युग में लोहे के हल का आविष्कार होने के बाद जमीन की जुताई भी होने लगी। लेकिन एक मायने में खेती का यह स्वरूप भी प्राकृतिक ही रहा। कालांतर में पशुओं के गोबार से खाद बनाकर भी खेतों में डाला जाना लगा। 

बाद में विभिन्न किस्म के रासायनिक खादों का चलन शुरू हुआ, तो फिर खेती का स्वरूप ही बदल गया। अब रासायनिक खादों के उपयोग से होने वाले दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। अनाज में हानिकारक तत्वों की उपस्थिति ने सरकारों का ध्यान प्राकृतिक खेती की ओर गया। भाजपा सरकार ने भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित करना शुरू किया। 

पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने किसानों से प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील की और उनके लिए कई तरह की छूट और अनुदान की घोषणा की। मनोहर लाल सरकार ने वर्ष 2022-23 में स्थायी कृषि रणनीतिक पहल और किसान कल्याण कोष योजना के अंतर्गत प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करना शुरू किया था। उस वर्ष हरियाणा में 5205 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती हुई थी। हालांकि यह भी सही है कि शुरुआती दौर में जिस तरह किसानों ने प्राकृतिक खेती की ओर रुचि दिखाई, वह रुझान अब देखने को नहीं मिल रहा है। सैनी सरकार ने इस साल प्राकृतिक खेती का लक्ष्य एक लाख एकड़ रखा था, लेकिन अभी तक किसानों ने केवल 1357 एकड़ की प्राकृतिक खेती अपनाई है। 

इससे पहले साल की बात करें, तो प्रदेश में वर्ष 2024-25 में कुल 8036 एकड़ खेती हुई थी। इससे पहले वर्ष 2023-24 में 10,109 एकड़ प्राकृतिक खेती की गई थी। सैनी सरकार ने अब नए सिरे से प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। अब पंचायती जमीन पर प्राकृतिक खेती कराने का निर्णय सरकार ने लिया है। इसके लिए राज्य सरकार ने गुरुग्राम में जैविक और प्राकृतिक गेहूं, धान के साथ-साथ दाल और हिसार में फल एवं सब्जियों की बिक्री को बढ़ावा देने वाली मंडियों को स्थापित करने का फैसला किया है। इससे किसानों को कई तरह की समस्याओं से निजात मिलने की उम्मीद है। इन दोनों जिलों में प्राकृतिक खेती-जैविक उत्पादों की गुणवत्ता आदि के परीक्षण के लिए एक-एक प्रयोगशाला स्थापित की जाएगी।

Sunday, August 24, 2025

आपकी तस्वीर देखी और अशर्फी खर्च कर ली

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जो लोग अपनी बुद्धि विवेक का उपयोग करते हैं, वह जीवन भर सफल ही रहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जब लकीर के फकीर बने रहते हैं। कोई भी काम हो, वह एक रुटीन समझकर काम को निपटाते हैं और अपने में मस्त रहते हैं। वह यह भी नहीं सोचते हैं कि उनके काम का उद्देश्य क्या था? यह काम क्यों किया गया? यदि उन्हें कोई ऐसा काम दे दिया जाए जिसमें अपनी तर्कबुद्धि का उपयोग करना हो, तो ऐसे कामों में वह लोग विफल ही रहते हैं। इस संबंध में एक कथा कही जाती है। 

किसी राज्य में एक राजा था। वह अपने दरबारियों की बुद्धि का परीक्षण करना चाहता था। वह जानना चाहता था कि उसके दरबारी किसी काम में अपनी बुद्धि विवेक का उपयोग करते हैं या नहीं। एक दिन उसने अपने दरबारियों को बुलाया और सबको अशर्फियों से भरी एक-एक थैली देते हुए कहा कि आपको मेरा चेहरा देखकर एक सप्ताह के भीतर इसे खर्च करना होगा। 

इसके सात दिन के बाद लौटकर बताना होगा कि आपने क्या खरीदा? यह सुनकर कुछ दरबारी चकराए। उन्होंने मन ही मन राजा को बुरा भला कहा और चले गए। सात दिन बीत गए। राजा ने आठवें दिन सभी दरबारियों को बुलाया और पूछा कि आप लोगों ने क्या क्या खरीदारी की है? कोई कुछ नहीं बोला, तब एक दरबारी ने बड़ा साहस दिखाते हुए कहा कि महाराज! आपने कहा था कि मेरा चेहरा देखकर खर्च करना, तो खरीदते समय आपका चेहरा कैसे देखते? इसलिए हमने अशर्फी खर्च ही नहीं की। 

तब एक मंत्री ने कहा कि महाराज! मैंने खरीदारी कर ली है। अशर्फी पर आपकी तस्वीर थी। तो उस तस्वीर को प्रणाम किया और जो खरीदना था, वह खरीद लिया। यह सुनकर राजाा ने मंत्री शाबाशी देते हुए कहा कि यही मैं देखना चाहता था कि लोग अपनी बुद्धि का उपयोग करते हैं या नहीं।

हरियाणा विधानसभा के मानसून सत्र को शांति से चलने देने में समझदारी

अशोक मिश्र

हरियाणा विधानसभा के मानसून सत्र का आगाज ऐसा ही कुछ होगा, इसकी आशंका तो थी, लेकिन छह बार विधानसभा की कार्रवाई को स्थगित करना पड़ेगा, ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी। शुक्रवार को शुरू हुए हरियाणा विधानसभा सत्र का पहला दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। हरियाणा के विधानसभा सत्र के इतिहास में शायद यह पहला मौका है, जब विपक्ष ने इतना उग्र व्यवहार किया है। भिवानी के गांव ढाणी लक्ष्मण की शिक्षिका मनीषा की मौत को लेकर जिस तरह पुलिस ने लापरवाही बरती। 

कई दिनों तक मामला हत्या या आत्महत्या के बीच झूलता रहा। पुलिस अपनी जांच के दौरान यह तक तय नहीं कर पाई कि मामला हत्या का है या आत्महत्या का। फिर पता नहीं कहां से सुसाइड नोट भी पुलिस ने बरामद कर लिया। इसने  गांव ढाणी लक्ष्मण के लोगों को उग्र कर दिया। हालात इतने बिगड़े कि पुलिस को तीन बार मनीषा का पोस्टमार्टम कराना पड़ा। अब मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की तैयारी की जा रही है। विपक्ष के लिए यह मुद्दा सरकार को घेरने के लिए काफी था। विपक्ष ने सदन में हंगामे के दौरान पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था कायम न होने का आरोप लगाते हुए हंगामा किया। 

सीएम सैनी ने भी पलटवार करते हुए कांग्रेस के शासनकाल की घटनाओं को उदारण के रूप में पेश करते हुए कानून व्यवस्था के ध्वस्त होने का दावा किया। सत्तापक्ष और विपक्ष की इस गहमागहमी के बीच न तो प्रश्नकाल हुआ और न ही शून्यकाल। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर भी चर्चा नहीं हो पाई। विपक्ष ने सदन में सरकार पर आरोप लगाया कि प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध बढ़ रहे हैं। प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति काफी बिगड़ चुकी है। सरकार हर मोर्चे पर विफल साबित हो रही है। 

अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ है। वह व्यापारियों को धमकाकर रंगदारी वसूल रहे हैं। जबकि सत्ता पक्ष विपक्ष के आरोपों को इनकार कर रहा है। यह सही है कि प्रदेश में अपराध हो रहे हैं, लेकिन ज्यादातर अपराध असंगठित तौर तरीके वाले हैं। सरकार काफी हद तक संगठित अपराध रोकने में सफल है। इसमें कोई दो राय नहीं है। सरकार ने कई नामी-गिरामी अपराधियों को गिरफ्तार करके उनको जेल में डाल दिया है। उनकी संपत्तियां जब्त की हैं। 

खनन माफियाओं, नशा तस्करों के खिलाफ सख्त और त्वरित कार्रवाई की जा रही है। लेकिन असंगठित अपराध को रोक पाना, किसी भी सरकार के वश में नहीं होता है। अब राह चलते दो लोग भिड़ जाएं और एक आदमी दूसरे वाले को गोली मार दे, तो क्या ऐसे अपराध रोके जा सकते हैं। कोई भी आदमी अगला कदम क्या उठाएगा? कोई कैसे जान सकता है। विपक्ष को इस बात को समझना चाहिए।

Saturday, August 23, 2025

वीर और न्यायप्रिय राजा छत्रसाल की महानता

बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
औरंगजेब को पराजित करके बुंदेलखंड में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने वाले छत्रसाल वीर और न्यायप्रिय राजा था। उनका जन्म 4 मई 1649 में बुंदेला राजपूत परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम छत्रसाल जूदेव बुंदेला था, लेकिन वे छत्रसाल के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके पिता चंपतराय जू देव बुंदेला परम प्रतापी और न्यायप्रिय शासक थे। जब वे अपने जीवन के संकटकाल से गुजर रहे थे, तभी छात्रसाल का जन्म हुआ था। 
कहा जाता है कि छत्रसाल देखने में काफी सुंदर और आकर्षक थे। एक बार की बात है। उनके सुंदर और गठीले शरीर को देखकर एक युवती उन पर मोहित हो गई। उसने सोचा कि यदि उसकी शादी छत्रसाल से हो जाती, तो वह धन्य हो जाती। उन दिनों छत्रसाल वेष बदलकर अपनी प्रजा के दुखों को जानने का प्रयास करते थे। जहां भी लोग उन्हें दुखी या परेशान दिखते, वे उसकी मदद करते थे। 
एक दिन युवती ने छत्रसाल से कहा कि मैं बहुत दुखी हूं। मेरी समस्या का निदान नहीं हो रहा है। छत्रसाल यह सुनकर बहुत दुखी हुए। उन्होंने कहा कि मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं। इस पर युवती ने कहा कि मैं चाहती हूं कि मेरी आप जैसी संतान हो। यह सुनते ही छत्रसाल सारी बात समझ गए। उन्होंने कहा कि पता नहीं, आपकी संतान मेरी जैसी हो या न हो, लेकिन आज से मैं आपका बेटा हुआ। आप मेरी मां हुईं आज से। 
छत्रसाल की बात सुनकर युवती को भान हुआ कि उसने कितनी गलत बात कह दी है। उसने छत्रसाल से क्षमा मांगी। लेकिन उसी दिन से छत्रसाल ने उस युवती को राजमाता का दर्जा दे दिया और जीवन पर्यंत उसे राजमाता का अधिकार मिलता रहा।

लड़कों के स्कूल में पढ़ने वाली मुत्तुलक्ष्मी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे देश के मंदिरों में देवदासी रखने की प्रथा के उन्मूलन में सबसे अहम भूमिका निभाने वाली डॉ. मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी थीं। उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से आती थीं। उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं और बच्चों की तस्करी रोकने के लिए कानून बनाने  में भी अभूतपूर्व भूमिका निभाई थी। लड़कियों के लिए विवाह की आयु 14 वर्ष करने और उनकी अनुमति लेने का विधेयक भी लेकर आई थीं। 

वह जीवनभर महिलाओं के उत्थान और विकास के लिए प्रयास करती रहीं। लड़कों के स्कूल में पढ़ने वाली मुत्तुलक्ष्मी तमिलनाडु की पहली लड़की थीं। उनके पिता महाराजा कालेज के प्राचार्य थे। वह शिक्षा का महत्व भलीभांति जानते थे। यही वजह है कि उन्होंने अपनी बेटी को न केवल पढ़ाया लिखाया बल्कि हमेशा आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी। वह पर्देवाली गाड़ी में बैठकर स्कूल जाती थीं। 

तमिलनाडु की रियासत पुदुकोट्टे में 30 जुलाई 1886 को मुत्तुलक्ष्मी का जन्म हुआ था। मुत्तुलक्ष्मी ने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की, जबकि उन दिनों मैट्रिक की परीक्षा बहुत विद्यार्थी पास कर पाते थे। समाज के तानों और कठोर वचनों की परवाह न करते हुए उनकी मां चंद्रामाई ने अपनी बेटी को डॉक्टरी पढ़ने की इजाजत दी, तो होशियार मुत्तुलक्ष्मी के लिए पुदुकोट्टे के महाराज ने भागदौड़ करके सन 1907 में उनका प्रवेश मद्रास मेडिकल कालेज में करवा दिया। 

सन 1927 में वह मद्रास विधान काउंसिल की सदस्य बनीं। समय आने पर उन्हें सेंदुरा रेड्डी से विवाह किया। मुत्तु ने राजनीतिक क्षेत्र में भी बहुत सारे सुधार किए। देश आजाद होने पर 1956 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण अलंकरण से सम्मानित किया।

सरकार का हरियाणा को स्टार्टअप का हब बनाने का संकल्प

 अशोक मिश्र

हरियाणा में धीरे-धीरे नए उद्योगों और स्टार्टअप को लेकर सरकार और बेरोजगार युवाओं ने रुचि लेना शुरू कर दिया है। महिलाएं भी बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं। महिलाएं घर संभालने के साथ-साथ अपने स्टार्टअप को भी अच्छी तरह से संभालना शुरू कर दिया है। इससे समाज में बड़े पैमाने पर गतिशीलता आई है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सीएम नायब सिंह सैनी ने हरियाणा राज्य उद्यमिता आयोग की स्थापना करने की घोषणा की है। 

सीएम सैनी ने आयोग की स्थापना का बताते हुए कहा है कि आयोग का उद्देश्य केवल व्यवसाय शुरू करना या पैसा कमाना नहीं हैं, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना है। इसकी शुरुआत विचार से होती है कि मेरे पास कौशल क्या है और करना क्या है, ये विचार नई दिशा देता है। यदि सरकार समाज और युवाओं के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाए तो युवा स्वरोजगार क्षेत्र में जोखिम उठाने को तैयार होते हैं। 

उनमें आत्मविश्वास पैदा होता है कि सरकार न केवल उनके साथ है, बल्कि जरूरत पड़ने पर हर संभव मदद भी करेगी। यही वजह है कि हरियाणा के स्टार्टअप में महिलाओं की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत हो गई है। सरकार इस हिस्सेदारी को दस प्रतिशत और बढ़ाने की फिराक में है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार जल्दी ही कदम उठाएगी। यह उपलब्धि बताती है कि प्रदेश की महिलाओं ने घर की चहारदीवारी से निकलकर समाज में अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी है। 

अब वह चूल्हा-चौका संभालने के साथ-साथ उद्योगों को भी अच्छी तरह संभालने का हुनर भी रखती हैं। स्टार्टअप के मामले में हरियाणा सातवां सबसे बड़ा राज्य है जहां 9100 स्टार्टअप पंजीकृत हैं और वह अच्छी तरह संचाालित भी हो रहे हैं। देश के 117 यूनिकार्न में से 19 हरियाणा के हैं जो इस बात की गवाही दे रहे हैं कि प्रदेश में उद्यमशीलता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। प्रदेश के युवा जिनमें खासतौर पर महिलाएं हैं, न केवल स्वरोजगार अपना रहे हैं, बल्कि वह दूसरों को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं। 

वैसे भी सरकार ने प्रदेश में स्टार्टअप की संख्या को तीन गुना बढ़ाने का निर्णय लिया हैं, इसलिए बजट में भी विशेष प्रावधान किया गया है। प्रदेश सरकार ने हरियाणा को स्टार्टअप का हब बनाने का संकल्प लिया है। इसके लिए सरकार ने प्रदेश में स्टार्टअप प्रतियोगिता कराने का फैसला किया है। इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले विजेता प्रतियोगी को एक करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। स्टार्टअप प्रतियोगिता शुरू होने से प्रदेश में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा होगी। लोग आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होंगे और नए नए स्टार्टअप शुरू होंगे।

Friday, August 22, 2025

सिकंदर को जवाब देते नहीं बना

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

दार्शनिक डायोजनीज का जन्म यूनान के सिनोप में 324 ईसा पूर्व हुआ माना जाता है। यह अपनी प्रकृतिवादी विचारों और सनक की वजह से प्रसिद्ध हुए। कहते हैं कि यह एक बड़े से घड़े में रहते थे और दिन में लालटेन जलाकर घूमते रहते थे। वह हिकेसियास के पुत्र थे जो विभिन्न मुद्राओं की अदला-बदली करते थे। हिकेसियास अपने समय में काफी अमीर माने जाते थे। 

जब डायोजनीज ने भी अपने पिता की तरह मुद्रा की अदला-बदली के कारोबार में कदम रखा, तो उन पर और उनके पिता पर मुद्रा को विकृत करने का आरोप लगा और डायोजनीज को देश निकाला दे दिया गया। डायोजनीज प्रकृतिवादी दार्शनिक थे और भौतिक सुखों को त्यागने की बात करते थे। एक बार की बात है। मकदूनिया के सम्राट सिकंदर ने उनसे पूछा कि क्या मैं जान सकता हूं कि आप इतने प्रसन्न कैसे रहते हैं? आखिर आपके पास ऐसी कौन सी वस्तु है जिसकी वजह से आप हमेशा खुश रहते हैं? 

डायोजनीज ने सिकंदर की बात का जवाब देने की जगह सवाल करते हुए कहा कि तुम खुश क्यों नहीं रहते हो? तुम्हें किस बात की चिंता है जो तुम्हें खुश होने से रोकती है। सिकंदर ने कहा कि मुझे अभी पूरी दुनिया जीतनी है। मुझे विश्व सम्राट बनना है। पूरी दुनिया को जीतने से पहले मैं खुश कैसे हो सकता हूं। जब तक मेरा लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता, तब तक मैं चैन से नहीं बैठ सकता हूं। 

तब डायोजनीज ने पूछा कि जब तुम पूरी दुनिया जीत लोगे, तब क्या करोगे? सिकंदर ने कहा कि तब मैं खुश हो जाऊंगा। मैं भी आपकी तरह आनंद उठाऊंगा। इस पर डायोजनीज ने कहा कि तो इसके लिए तुम्हें दुनिया जीतने की क्या जरूरत है। अभी से आनंद उठा सकते हो। तुम्हें किसने रोका है। यह सुनकर सिकंदर चुप हो गया।

स्कूली बच्चों को भी नशा मुक्त अभियान से जोड़ना होगा

अशोक मिश्र

हरियाणा में नशा तस्करी और मादक पदार्थों के दुरुपयोग को लेकर प्रदेश सरकार ने कमर कस ली है। प्रदेश में नशा तस्करी का जाल काफी व्यापक रूप से फैला हुआ है। यह नशा कारोबारी और नशीले पदार्थ लोगों के लिए भारी मुसीबत बनते जा रहे हैं। नशीले पदार्थ के चंगुल में प्रदेश के युवा, महिलाएं और बुजुर्ग आते जा रहे हैं। नशा किसी भी समाज के पतन का कारण बन सकता है। वैसे प्रदेश सरकार को सख्त प्रवर्तन, व्यापक जनसहयोग और जागरूकता के साथ मजबूत पुनर्वास तंत्र की बदौलत बनाई गई समन्वित रणनीति के चलते वर्ष 2025 में नशा कारोबार को कम करने में भारी सफलता मिली है। 

हरियाणा नारकोटिक्स विभाग ने पिछले साल चार सौ से ज्यादा नशा तस्करों को गिरफ्तार किया था।  गुरुग्राम एंटी नारकोटिक्स क्राइम ब्रांच ने जून महीने में कई ऐसे तस्करों को गिरफ्तार किया था जो प्रदेश में सक्रिय नशा तस्करों के लिए मुंबई और नेपाल में काम कर रहे थे और डार्क वेब और सिग्नल एप के जरिये नशीले पदार्थों की सप्लाई कर रहे थे। जनवरी से जुलाई 2025 के बीच पूरे प्रदेश में नशा तस्करी मामले में 2161 एफआईआर दर्ज की गई, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 2022 था। 

इस साल जुलाई तक 3629 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ सम्यक कार्रवाई की गई। उनके कारोबार को खत्म करने का हरसंभव प्रयास किया गया। पड़ोसी राज्यों की मदद से भी नशा कारोबार पर करारा प्रहार किया गया। दूसरे राज्यों के साथ समन्वय बिठाकर 293 नशा तस्करों को गिरफ्तार किया गया और उनके पास से अच्छी खासी मात्रा में नशीले पदार्थ बरामद किए गए। नशा कारोबारियों की संपत्तियां जब्त करके 1.31 करोड़ रुपये की वसूली की गई। यह रकम पिछले साल के मुकाबले में 23.41 लाख रुपये ज्यादा थी। पिछले काफी दिनों से चलाया जा रहा ‘नशामुक्त हरियाणा अभियान’ प्रदेश को नशा मुक्त बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो रहा है। 

अब तक प्रदेश के लगभग 40 प्रतिशत से अधिक गांवों को नशामुक्त घोषित किया जा चुका है। इसके बावजूद अभी और प्रयास करने की जरूरत है। अगर प्रदेश को नशामुक्त बनाना है, तो इसमें जनसहयोग बहुत जरूरी है। कोई भी सरकार केवल अपने दम पर किसी राज्य को नशा मुक्त या अपराध मुक्त नहीं कर सकती है। यह सफलता तभी हासिल होगी, जब इसमें हर गांव और हर शहर से लोग स्वत: उठकर शामिल होंगे और नशे के खिलाफ माहौल बनाएंगे। इसमें स्कूलों और स्वयं सेवी संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। स्कूली बच्चों को नशे के खिलाफ चलने वाली मुहिम में शामिल करना होगा।

हमारे देश में अब न गुरु कुम्हार है, न शिष्य कुंभ

अशोक मिश्र

पिछले महीने 11 जुलाई को हिसार के करतार मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल जगबीर सिंह की उनके ही चार नाबालिग छात्रों ने चाकू मारकर हत्या कर दी। प्रिंसिपल का अपराध इतना था कि उन्होंने इन छात्रों से बेढंगे तरीके से रखे गए बालों को कटवाने और स्कूल में अनुशासन में रहने को कहा था। यह बात इन चारों नाबालिग छात्रों को बहुत नागवार गुजरी थी। नागवार गुजरना ही था। अगर छात्रों की शरारत पर अध्यापक उन्हें डांट दे, तो माता-पिता को बहुत बुरा लगता है कि उनके लाडले को डांटने की हिम्मत कैसे की टीचर ने। इतनी मोटी-मोटी फीस क्या अपने बच्चों को डांटने के लिए देते हैं। स्कूल में बच्चों को पीटने पर तो अब रोक ही लगा दी गई है।

जब मैं यह सुनता हूं कि स्कूल में बच्चा चाहे जितनी शरारत करे, न खुद पढ़े और न दूसरों को पढ़ने दे, तो भी टीचर बच्चों को शारीरिक दंड नहीं दे सकते हैं, तो मुझे अपना बचपन याद आ जाता है। जब जरा सी खुराफात करने पर हम बच्चे पिट जाया करते थे। हमारी क्लास टीचर सुरेंद्र कौर तो हाथ में लकड़ी की बड़ी सी स्केल लेकर चलती थीं। कोई भी क्लास से बाहर घूमता या खेलता दिखा, तो पिटाई निश्चित थी। मैं तो अपनी शरारत के चलते लगभग रोज पीटा जाता था। घर पर शिकायत पहुंचने पर भइया भी अच्छी तरह से खातिरदारी करते थे। इसका यह मतलब नहीं था कि हमारे दौर के टीचर क्रूर थे। उन्हें बच्चों से प्रेम नहीं था। भइया हमें जानबूझकर पीटते थे। ऐसा कुछ भी नहीं था। यह वह पीढ़ी थी जो मानती थी कि अनुशासन जीवन संवारता है। अनुशासन का अभ्यास अगर बचपन से ही कराया जाए, तो बच्चा आगे चलकर अहंकारी, अनुशासनहीन और असामाजिक नहीं बनेगा। इसके लिए अगर थोड़ी सी सजा भी देनी पड़े, तो कोई अपराध नहीं है। यदि आज कोई टीचर किसी बच्चे को थोड़ा सा भी पीट दे, तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है। ऐसी स्थिति में ज्यादातर शिक्षक यही सोचकर कुछ नहीं कहते हैं कि कौन मुसीबत मोल ले। बच्चे को कुछ बनना है, तो बने, बिगड़ना है, बिगड़े, उनकी बला से।

रामचंद्र भी यही मानते थे कि भय बिनु होई न प्रीत। यदि बच्चों को अनुशासन में रखना है, उनका ध्यान पढ़ाई की ओर लगाना है, तो उनके चारों ओर एक बाउंड्री खड़ी करनी होगी। और वह बाउंड्री है भय की। यह भय उन्हें डराता नहीं है, रात को सोते समय चौंकाता नहीं है। लेकिन उन्हें हर गलत काम करते समय यह एहसास जरूर कराता है कि टीचर को पता चल गया, पीठ पर एक थपकी, गाल पर एक चांटा या हाथ पर एक छड़ी जरूर पड़ेगी। यह भय, यह अनुशासन उन्हें गलत करने से रोकता था। किसी बच्चे के गाल पर पड़ा एक चांटा, पीठ पर थपकी या हाथ पर लगी छड़ी उसके मन के अहम पर चोट करती थी। जब वह दूसरों को भी पिटते हुए देखता था, तो वह अपने साथियों में एक साम्यता महसूस करता था। 

ऐसी स्थिति में उसका ‘अहं’ उभरने नहीं पाता था। कबीरदास बहुत पहले कह गए हैं कि गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट। अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट। कुछ विकृति मनोवृत्ति वाले अध्यापकों को छोड़कर किसी को अपने शिष्यों को पीटने या सजा देने में मजा नहीं आता है। वह तो अपने शिष्य की भलाई के लिए ही दंडित करता है। उसमें उसका क्या स्वार्थ है?

लेकिन आज हालात बदल गए हैं। मानवाधिकार और बच्चों के मां-पिता की मांग पर स्कूलों में किसी बच्चे को दंडित करने पर रोक लगा दी गई है। शरारत करने पर आप मौखिक रूप से डांट सकते हैं, लेकिन उसे छू नहीं सकते हैं। आप कल्पना कीजिए, कोई शरारती बच्चा पूरी क्लास को डिस्टर्ब कर रहा है, टीचर बार-बार उस बच्चे से अनुशासन में रहने को कह रहा है, लेकिन बच्चा मान नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में टीचर क्या करेगा? उसे गुस्सा तो आएगा ही। पूरी क्लास के बच्चों की पढ़ाई का मामला है, लेकिन वह अपने भविष्य की सोचकर चुप रह जाएगा। कुछ नहीं बोलेगा, क्योंकि उसे नौकरी जो बचानी है।

Thursday, August 21, 2025

नेपोलियन में कूट-कूटकर भरा था साहस

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

नेपोलियन बोनापार्ट को फ्रांस का महान सेनापति कहा जाता है। उसका जन्म  15 अगस्त 1769 में हुआ था। बोनापार्ट का पिता कार्लो बोनापार्ट एक कुलीन वंश का था। नेपोलियन को बचपन से ही सैन्य वातावरण में रहने का अवसर मिला। यही वजह है कि उसके भीतर निहित शक्तियां उपयुक्त वातावरण में पुष्पित पल्लवित होती रहीं जिसने नेपोलियन को उच्च शिखर तक पहुंचने में काफी सहायता की। 

नेपोलियन ने फ्रांस क्रांति के दौरान पैदा हुए अराजक वातावरण का भरपूर लाभ उठाया और देखते ही देखते वह सैन्य अधिकारी होने के साथ फ्रांस का सम्राट तक बन गया। नेपोलियन ने सम्राट बनने के लिए भले ही हथकंडे अपनाए हों, लेकिन उसमें खतरा उठाने का साहस बहुत था और वह युद्ध नीति बनाने में बहुत माहिर था। बात 2 दिसंबर 1805 की है। 

उन दिनों अपने 73 हजार सैनिकों को साथ लेकर वह आस्टरलिट्ज और रूस के साथ जंग लड़ रहा था। आस्टरलिट्ज और रूस के करीब 85 हजार सैनिक थे। वैसे सैन्य बल के हिसाब से देखा जाए, तो फ्रांस पर दोनों देशों की सेनाएं भारी थीं। लेकिन इसके बावजूद नेपोलियन के चेहरे पर कोई शिकन नहीं था। आधी रात में नेपोलियन को एक अधिकारी ने जगाया और कहा कि फ्रांस की सेना के दक्षिण मोर्चे पर शत्रुओं ने हमला कर दिया है।

 यह सुनकर नेपोलियन मुस्कुराया और उसने अपनी सेना को केंद्र और बाएं हिस्से पर जोरदार  आक्रमण करने का निर्देश दिया। नेपोलियन ने जानबूझकर सेना के दायें हिस्से को कमजोर रखा था। बस, दोनों देशों की सेनाएं चारों ओर घिर गईं। शत्रु सेना के पास हारने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। इस तरह नेपोलियन दोनों देशों को पराजित कर दिया।

छात्रों को दिए गए टैबलेट को मैथ ओलंपियाड से जोड़ने की तैयारी

अशोक मिश्र

समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोग अपने जीवन में सफल होते हैं और वह समाज को कुछ दे भी सकते हैं। आज का युग तकनीक का है। पूरी दुनिया में रोज नई-नई तकनीक का आविष्कार हो रहा है। उनका उपयोग बढ़ता जा रहा है। ऐसे दौर में जो लोग तकनीक के साथ कदमताल कर सकते हैं, वह उसका उपयोग आत्म विकास के साथ-साथ रोजगार में भी कर सकते हैं। हरियाणा सरकार ने यही सोचकर कोरोना काल में बच्चों को टैबलेट उपलब्ध कराया था ताकि इसका इस्तेमाल वह अपनी पढ़ाई लिखाई और अपना ज्ञान बढ़ाने में करेंगे। 

नौवीं से बारहवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को टैबलेट देने का मकसद यही था कि वह अपने घर पर ही रहकर आनलाइन पढ़ाई करेंगे। सरकार ने इस मद में 620 करोड़ रुपये खर्च किए। प्रदेश के पांच लाख बच्चों को दो जीबी डाटा भी उपलब्ध कराया गया। सरकार के ऐसा करने के पीछे सोच तो सकारात्मक थी, लेकिन व्यावहारिक उतनी नहीं थी। दरअसल, कोरोना काल में स्कूल, कार्यालय और बाजार आदि  बंद होने की वजह से बच्चों से लेकर उनके माता-पिता तक घर में ही एक तरह से नजरबंद हो गए थे। 

आनलाइन पढ़ाई भी मुश्किल से घंटा-डेढ़ घंटा ही हो पाती थी। इसके बाद के बचे समय का छात्रों ने दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। टैबलेट पर इन्होंने फिल्में देखना, गेम खेलना, गेमिंग के नाम पर आनलाइन जुआ खेलना, अश्लील साहित्य पढ़ना और अश्लील फिल्में देखना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि बच्चे पढ़ाई में पिछड़ने लगे। उनका मन पढ़ाई की बजाय अनुचित कामों में लगने लगा। नतीजा यह हुआ कि उनके माता-पिता भी अपने बच्चों की करतूत से परेशान रहने लगे। इसकी शिकायत भी ग्रामपंचायत स्तर और स्कूलों में की जाने लगी। ऐसी शिकायतें जब प्रशासनिक स्तर पर पहुंचने लगीं, तो सरकार के कान खड़े हो गए। 

ऐसी स्थिति में मजबूरन प्रदेश सरकार को टैबलेट वापस लेने का फैसला करना पड़ा। हालांकि प्रदेश सरकार छात्र-छात्राओं को दिए गए टैबलेट का सकारात्मक उपयोग करने की दिशा में विचार कर रही है। वह टैबलेट को ओलंपियाड से जोड़ने जा रही है। बजट में इस बार मैथ ओलंपियाड शुरू करने का फैसला किया गया है। मैथ ओलंपियाड से टैबलेट को जोड़कर उनकी गणितीय और तर्क क्षमता को बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। इसके लिए इससे संबंधित विभागों से विचार-विमर्श किया जा रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग से भी कहा गया है कि वे गैर बोर्ड परीक्षाओं में टैबलेट के उपयोग की रूपरेखा तैयार करें। तकनीक का इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन जब उसका दुरुपयोग होने लगता है, तो वह अभिशाप बन जाता है।

ग़ांधी जी और माओ के बीच समानताएं

 आनंद प्रकाश मिश्र  

गांधी जी ने समाज के वर्गों में विभाजित होने और वर्ग संघर्ष की मार्क्सवादी व्याख्या को अस्वीकार करते हुए राज्य के ट्रस्टीशिप का फार्मूला पेश किया था, जिसमें पूंजीपति राज्य रूपी घर के मुखिया की भूमिका में होता है और यह परिवार के सदस्यों मजदूरों-किसानों आदि की भलाई और पालन-पोषण करता है। राज्य ट्रस्टी की भूमिका निभाता है। माओ वर्ग और वर्ग-संघर्ष की बात तो करते हैं, किंतु व्यवहार में गांधी जी के बेहद करीब खड़े होते हैं। उनके  न्यू पीपुल्स रिपब्लिक में चार वर्गों-राष्ट्रीय पूंजीपति, देशभक्त बुद्धिजीवी, किसान और श्रमजीवी की संयुक्त सत्ता होती है! उनके श्रमजीवी का अर्थ औद्योगिक सर्वहारा नहीं, खेतिहर मजदूर है। 

20, सितम्बर 1954 को लागू किए गए संविधान में चार वर्गों की इस संयुक्त सत्ता के माध्यम से शान्तिपूर्ण ढंग से (सर्वहारा क्रांति की अनिवार्यता से इंकार) समाजवाद लाने की गारंटी दी गई है अर्थात् वर्ग संघर्ष की जगह वर्ग सहयोग से समाजवाद !  यह मार्क्सवाद -लेनिनवाद के प्रतिकूल और गांधी जी के ट्रस्टीशिप के नजदीक है। मार्क्स-लेनिन के अनुसार राज्य एक वर्ग का दूसरे वर्ग के दमन का अस्त्र होता है। बहुवर्गीय राज्य की बात सत्य पर पर्दा डालने जैसा है। आगे चलकर इसी क्रम में 1957 में माओ ने '"सभी फूल एक साथ खिलने दो " का नारा दिया जो गांधीवाद  की मूल आत्मा- 'सब का उदय' का ही दूसरा रूप है।

गांधी जी व्यक्तिगत स्वामित्व को पवित्रतम वस्तु मानते थे और उसकी सुरक्षा में पूरी तरह कटिबद्ध रहे। माओ ने भी व्यक्तिगत सम्पत्ति को सुरक्षित बनाए रखने का ही प्रयास किया। इसीलिए 1954 के चीनी संविधान के अनुच्छेद 8 से 12 तक में व्यक्तिगत सम्पत्ति को वैधानिक सुरक्षा दी गई, जबकि मार्क्स ने कम्युनिस्ट घोषणा पत्र में ही लिख दिया था कि  कम्युनिस्टों (सच्चे साम्यवादियों) के लक्ष्य को एक वाक्य में कहा जाए तो वह है -व्यक्तिगत स्वामित्व का उन्मूलन ! गांधी जी को श्रेय है कि उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यशाही की औपनिवेशिक गुलामी से मुक्त कर भारतीय पूंजीवाद का स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित करने में राजनीतिक सफलता प्राप्त की। 

यह सफलता उन्होंने राष्ट्रीय जन-क्रांति की पीठ में छूरा भोंक कर प्राप्त की। वहीं माओ  ने भी 1911 में  डॉ. सन्यात सेन के नेतृत्व में हुई राष्ट्रीय जनतांत्रिक क्रांति के बाद चीनी पूंजीवाद के विकास हेतु अवशेष सामंती अवरोधों, जापानी और ब्रिटिश साम्राज्यवादी पूँजी  के विरुद्ध कथित नवजनवादी क्रांति सम्पन्न की और समाजवादी क्रांति की पीठ में छूरा भोंक कर चीनी राष्ट्रीय पूंजीवाद का मार्ग प्रशस्त किया। जो काम गांधी ने सत्य-अहिंसा और राम राज्य की चादर  ओढ़ कर की, वही काम माओ ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद और समाजवाद का बैनर टांग कर किया। 

इस तरह गांधी जी और माओ दोनों समान रूप से अपने पूंजीवादी मध्यमवर्गीय वर्ग सहयोगवादी सिद्धांतों के सहारे मरणासन्न विश्व पूंजीवाद के प्रबल सुरक्षा गार्ड बने। पूंजीवादी मध्यम वर्गीय वर्ग सहयोगवादी स्तालिनवाद--ट्राटस्कीवाद के साथ गांधीवाद-माओवाद भी मरणासन्न विश्व पूंजीवाद का प्रथम रक्षा कवच बना और आज भी बना हुआ है।

जहांं तक माओ के कथित सांस्कृतिक क्रांति की बात है, वह किसी भी प्रकार की कोई क्रांति थी ही नहीं, बल्कि पार्टी व शासन में अपने प्रभुत्व व नियंत्रण को बनाए रखने के लिए विरोधियों के विरुद्ध की गई दमनात्मक कार्रवाई मात्र थी। उसका आर्थिक ढॉंचेे सेे कोई संबंध न था।

Wednesday, August 20, 2025

भाभी को सती होने से नहीं बचा सके

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सती प्रथा पर करारी चोट करके उसे गैरकानूनी घोषित करवाने वाले का नाम राजा राम मोहन राय था। वह पश्चिम बंगाल के हुबली जिले में  22 मई 1772 में पैदा हुए थे। वह ब्रह्म समाज के संस्थापक और समाज में पुनर्जागरण के अग्रदूत थे। उन्होंने न केवल सती प्रथा का विरोध किया, बल्कि विधवा विवाह के लिए भी आवाज उठाई। यही वजह है कि कुछ लोग उन्हें अंग्रेजों का समर्थक तक कहते थे। 

सती प्रथा के विरोध का कारण उनके जीवन में घटी एक घटना थी। उनके माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। उनका पालन-पोषण उनकी भाभी और बड़े भाई ने किया था। उनकी भाभी उनका बड़ा खयाल रखती थीं। राजा राम मोहन राय के खाने-पीने, नहाने-धोने से लेकर कापी किताब, सबका खयाल उनकी भाभी रखती थी। लोगों को उनके आपसी व्यवहार को देखकर लगता ही नहीं था कि वह देवर-भाभी हैं। लोग उन्हें मा-बेटे मानते थे। 

आखिर, एक दिन उनकी भाभी को अपने कलेजे पर पत्थर रखकर पढ़ने  के लिए अपने से दूर भेजना पड़ा पड़ा। कई साल तक बाहर रहकर मोहन राय ने पढ़ाई की। दुर्भाग्य से एक दिन उनके बड़े भाई की मृत्यु हो गई। गांव के लोगों ने भाई की मृत्यु पर राय की भाभी को भी ढोल-नगाड़े बजाकर सती कराने के लिए जबरदस्ती ले गए। वह विरोध करती रहीं, लेकिन लोग नहीं माने। 

वह अपने देवर से एक बार मिलना चाहती थीं। दूसरे दिन लोगों ने देखा कि उनकी भाभी अधजली अवस्था में एक झाड़ी में छिपी हुई हैं। तो उन्हें पकड़कर दोबारा चिता पर बिठा दिया गया। जब मोहन राय को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने ठान लिया कि अब और किसी महिला को सती नहीं होने देंगे। वह अपनी भाभी को तो नहीं बचा सके, लेकिन इस प्रथा को समाप्त कराकर लाखों महिलाओं को जलने से बचा लिया।

अग्रोहा में संरक्षित की जाएंगी पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं

अशोक मिश्र

हरियाणा सरकार ने अग्रोहा में अत्याधुनिक संग्रहालय बनाने का फैसला किया है। इस संग्रहालय में अग्रोहा में मिलने वाले पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं संरक्षित की जाएंगी ताकि आने वाली पीढ़ी को प्रदेश के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराया जा सके। सैनी सरकार ने फैसला किया है कि अग्रोहा को विश्व पुरातात्विक मानचित्र पर लाकर नई पहचान दिलाई जाए। इसके लिए अग्रोहा और उसके आसपास के पुरातात्विक क्षेत्रों को विकसित किया जाएगा। प्राचीनकाल का इतिहास बताता है कि अग्रोहा महाराजा अग्रसेन की राजधानी थी। महाराजा अग्रेसन भगवान रामचंद्र के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशज थे। 

अग्रेसन का राज्य खांडवप्रस्थ, बल्लभगढ़ और अग्र जनपद यानी दिल्ली, बल्लभगढ़ और आगरा तक फैला हुआ था। उन्होंने प्रजा की भलाई के लिए यज्ञों में पशुवध को निषेध कर दिया था। इस आधार पर हिसार के अग्रोहा शहर का महत्व और भी बढ़ जाता है। यही वजह है कि सैनी सरकार पुरातात्विक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण शहर अग्रोहा के चहुंमुखी विकास पर भी ध्यान दे रही है। 

वैसे अगर हरियाणा प्रदेश के चप्पे-चप्पे को खंगाला जाए तो यहां पुरातात्विक और पौराणिक काल के अवशेष बहुतायत में मिलेंगे। सरकार इस मामले में लगातार प्रयास कर रही है ताकि हरियाणा के गौरवशाली इतिहास से दुनिया को परिचित कराया जा सके। दरअसल, हरियाणा में सिंधु घाटी युग से लेकर मध्ययुगीन सभ्यता के प्रमाण जगह-जगह पर मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता काल के अवशेष भिवानी जिले के मीताथल में पाए गए हैं। मीताथल तीसरी-दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की ताम्र-कांस्य युगीन संस्कृति के अवशेषों के लिए जाना जाता है। इसी जिले के नौरंगाबाद का संबंध भी सिंधु घाटी सभ्यता से पाया गया है। 

विश्व विख्यात महाभारत का युद्ध तो हरियाणा के कुरुक्षेत्र में ही लड़ा गया था। कुरुक्षेत्र में सत्य और असत्य के बीच लड़ाई हुई थी जिसमें अंतत: सत्य की विजय हुई थी। पानीपत को भी तीन महत्वपूर्ण लड़ाइयों के लिए जाना जाता है। सातवीं शताब्दी में हर्षवर्धन ने पानीपत को अपनी राजधानी बनाकर इसे ऐतिहासिक महत्व प्रदान कर दिया था। धोलावीरा के बाद हिसार में ही स्थित राखीगढ़ी में सिंधुघाटी सभ्यता के सबसे ज्यादा प्रमाण मिले हैं। प्रदेश सरकार इन सभी पुरातात्विक महत्व के स्थलों को संरक्षित करने और उन्हें पर्यटन स्थल में बदलने का प्रयास कर रही है। ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को पर्यटन स्थलों में बदलने से यहां देश-विदेश से लोगों का आवागमन बढ़ेगा। इससे  न केवल प्रदेश के लोगों की आय बढ़ेगी, बल्कि युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। हरियाणा में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।



Tuesday, August 19, 2025

या खुदा! कैसे कहूं तू आग पानी लिख।

गजल

अशोक मिश्र
हो सके तो झोपड़ी की ही जुबानी लिख
रोटियों पर फिर नई कोई कहानी लिख।
कल भरे बाजार में जो बिक गई उसको
तू किसी मजलूम की बेटी सयानी लिख।
आंख के नीचे पड़ी ये झुर्रियां मत गिन
किस तरह बिकती रही उसकी जवानी लिख।
हाल मुझ से पूछता है वो मिरे दिल का
या खुदा! कैसे कहूं तू आग पानी लिख।
वो समझता है कि वो आजाद है लेकिन
हो गई है बात ये झूठी, पुरानी, लिख।
फेंक कर पत्थर हवा में एक बच्चे ने
कल किया ऐलान जो तू वो कहानी लिख।

परिचय------------------
बलरामपुर जिले के नथईपुरवा घूघुलपुर गांव में 13 अप्रैल 1967 को मेरा जन्म हुआ। मेरे पिता दिवंगत रामेश्वर दत्त मानव मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारक और कवि थे। मैं पिछले 27-28 वर्षों से व्यंग्य लिख रहा हूं. कई छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में खूब लिखा. दैनिक स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित अखबारों में भी खूब लिखा. कई पत्र-पत्रिकाओं में नौकरी करने के बाद आठ साल दैनिक अमर उजाला के जालंधर संस्करण में काम करने के बाद लगभग दस महीने रांची में रहा. लगभग एक साल दैनिक जागरण और एक साल कल्पतरु एक्सप्रेस में काम करने के बाद साप्ताहिक हमवतन में स्थानीय संपादक, गोरखपुर से प्रकाशित न्यूज फॉक्स में समाचार संपादक और पंजाब केसरी देहरादून में उप समाचार संपादक पद पर कार्यरत रहने के बाद 27 अगस्त 2021 को पलवल से प्रकाशित होने जा रहे दैनिक देश रोजाना में समाचार संपादक के पद पर ज्वाइन किया। छह महीने बाद दैनिक देश रोजाना का संपादक बना दिया गया। तब से अद्यतन उसी पद पर कार्यरत हूं। मेरा एक व्यंग्य संग्रह 'हाय राम!...लोकतंत्र मर गया' दिल्ली के भावना प्रकाशन से फरवरी 2009 में प्रकाशित हुआ है. इसके बाद वर्ष 2013 में उपन्यास सच अभी जिंदा है भी भावना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। पुस्तक दयानंद पांडेय समीक्षकों की नजर में का संपादन और वर्ष 2018 को वनिका प्रकाशन से व्यंग्य संग्रह दीदी तीन जीजा पांच प्रकाशित हुआ।

फूलों को शायद मैं नहीं देख पाऊंगी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

न्यूयार्कमें 1875 को स्थापित थियोसाफिकल सोसाइटी की स्थापना में रूसी मूल की अमेरिकी नागरिक हेलेना पेत्रोव्ना ब्लावत्स्की की अहम भूमिका रही है। थियोसाफिकल सोसाइटी का संबंध आर्य समाज से भी रहा है। ब्लावत्स्की कई साल तक भारत के कई शहरों में रहीं और उन्होंने भारत में सामाजिक सुधार के प्रयास भी किए। ब्लावत्स्की का जन्म 12 अगस्त 1831 को यूक्रेन के एक शहर में हुआ था। 

इनके पिता जर्मन के राजघराने से संबंध रखते थे। ब्लावत्स्की के दादा आंद्रेई रूस के ही एक शहर के गवर्नर थे। ब्लावत्स्की ने जीवन भर भ्रमण करके अपने विचारों का प्रचार प्रसार किया। वह भारत, तिब्बत, श्रीलंका सहित दुनिया के कई देशों में गईं। कहा जाता है कि उनके विचारों में कुछ हद तक स्पष्टता नहीं थी। उनके जीवन के वृत्तांत कई जगह एक दूसरे से साम्यता नहीं रखते हैं। 

इसके बावजूद यह सच है कि ब्लावत्स्की ने अपना सारा जीवन मानव सेवा और आध्यात्मिक विचारों के प्रसार में लगा दिया था। एक बार की बात है। वह ट्रेन से यात्रा कर रही थीं। उनके पास एक मोटा सा थैला था। वह थोड़ी-थोड़ी देर बाद थैले में से मुट्ठी भर कुछ निकालती थीं और उसे खिड़की से बाहर फेंक देती थीं। साथ में यात्रा कर रहे लोगों को उनकी यह हरकत अटपटी लग रही थी। काफी समय तक उनके यही करने से एक यात्री ने पूछ ही लिया। तब ब्लावत्स्की ने कहा कि वह फूलों के बीज बाहर फेंक रही थीं। 

उस व्यक्ति ने पूछा कि इससे क्या होगा? उन्होंने कहा कि समय आने पर फूलों के यह बीच अंकुरित होंगे। तो इन फूलों को देखकर लोग खुश होंगे। उस व्यक्ति ने कहा कि क्या तुम इन्हें देखने आओगी। उन्होंने कहा कि शायद नहीं। लेकिन जिन फूलों को देखकर मुझे खुशी हुई, उन्हें भी मैंने नहीं लगाया था।

अपराधियों को सुधरने का सैनी सरकार देगी एक अवसर

अशोक मिश्र

कोई भी व्यक्ति अपराधी के रूप में पैदा नहीं होता है। हर व्यक्ति एक सामान्य इंसान के रूप में पैदा होता है, लेकिन आगे चलकर परिस्थितियां, समाज की दशाएं और मनोवृत्ति में आए विकार की वजह से आदमी अपराधी हो जाता है। एक तरह से कहा जाए कि कोई भी व्यक्ति अपराधी नहीं बनना चाहता है, लेकिन कुछ कारणों से वह अपराध कर बैठता है। यह कारण उसकी आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक भी हो सकता है और क्षणिक आवेश भी। समाज में बढ़ते अपराध को रोकने के प्रयास कानूनी और सामाजिक स्तर पर किए जाते रहे हैं। लेकिन हरियाणा की सैनी सरकार ने सामुदायिक सेवा दिशा निर्देश 2025 तैयार करके सामाजिक स्तर पर भी सुधार करने का बीड़ा उठाया है। 

सैनी सरकार ने उन अपराधियों को सुधरने का एक मौका देने का फैसला किया है जो किसी गंभीर अपराध या राष्ट्रद्रोह जैसे अपराध में लिप्त नहीं रहे हैं। यह जेलों को कैदियों के बढ़ते बोझ से बचाने का एक नायाब तरीका है। वे अपराधी जिन्होंने मामूली अपराध किए हैं और जो पेशेवर अपराधी नहीं हैं, उनको समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए एक अच्छा उपाय है। सैनी सरकार की यह नीति पहली बार अपराध करने वाले कुछ लोगों के लिए जेल की सजा को व्यवस्थित करने तथा सामाजिक रूप से उपयोगी कार्यों में बदलने के लिए बनाई गई है। 

असल में किसी अपराधी को जेल में इसलिए भी डाला जाता है ताकि उसे यह एहसास हो सके कि उसने अपराध किया है। उसने समाज के नियमों और कानून का उल्लंघन किया है। ऐसी स्थिति में ज्यादातर अपराधी अपने कृत्य के लिए ग्लानि भी महसूस करते हैं। यदि ऐसे लोगों को जेल भेजने की जगह समाज के किसी काम में लगा दिया जाए, तो समाज और प्रशासन के प्रति उनका मन साफ हो जाता है। वह भविष्य में किसी किस्म का अपराध नहीं करेंगे। सरकार ने फैसला किया है कि पहली बार और मामूली अपराध करने वालों को किसी पार्ककी देखरेख सौंपी जा सकती है। 

धर्म स्थलों की साफ-सफाई की जिम्मेदारी  दी जा सकती है। इतना ही नहीं, ऐसे अपराधियों को नदी के किनारे पेड़ लगाने, ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में सहायता करने, विरासत स्थलों का रखरखाव करने, सार्वजनिक पार्कों की सफाई करने और स्वच्छ भारत सरीखे सामाजिक कल्याण अभियानों में योगदान देने के लिए कहा जा सकता है। इससे जेलों में अपराधियों की भीड़ में कमी आएगी। कम जोखिम वाले अपराधियों को रचनात्मक सेवा की ओर मोड़ा जा सकेगा। वैसे भी समाज में एक भ्रांति फैली हुुई है कि जेल अपराधी को सुधारने की जगह बिगाड़ती ज्यादा हैं।

Monday, August 18, 2025

मेरी प्रकाशित पुस्तकें

 बलरामपुर जिले के नथईपुरवा घूघुलपुर गांव में 13 अप्रैल 1967 को मेरा जन्म हुआ। मेरे पिता दिवंगत रामेश्वर दत्त मानव मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारक और कवि थे। मैं पिछले 23-24 वर्षों से व्यंग्य लिख रहा हूं. कई छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में खूब लिखा. दैनिक स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित अखबारों में भी खूब लिखा. कई पत्र-पत्रिकाओं में नौकरी करने के बाद आठ साल दैनिक अमर उजाला के जालंधर संस्करण में काम करने के बाद लगभग दस महीने रांची में रहा. लगभग एक साल दैनिक जागरण और एक साल कल्पतरु एक्सप्रेस में काम करने के बाद साप्ताहिक हमवतन में स्थानीय संपादक, गोरखपुर से प्रकाशित न्यूज फॉक्स में समाचार संपादक और पंजाब केसरी देहरादून में उप समाचार संपादक पद पर कार्यरत रहने के बाद 27 अगस्त 2021 को पलवल से प्रकाशित होने जा रहे दैनिक देश रोजाना में समाचार संपादक के पद पर ज्वाइन किया था। छह महीने बाद दैनिक देश रोजाना का संपादक बना दिया गया। तब से अद्यतन उसी पद पर कार्यरत हूं। मेरा एक व्यंग्य संग्रह 'हाय राम!...लोकतंत्र मर गया' दिल्ली के भावना प्रकाशन से फरवरी 2009 में प्रकाशित हुआ है. इसके बाद वर्ष 2013 में उपन्यास सच अभी जिंदा है भी भावना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। पुस्तक दयानंद पांडेय समीक्षकों की नजर में का संपादन और वर्ष 2018 को वनिका प्रकाशन से व्यंग्य संग्रह दीदी तीन जीजा पांच प्रकाशित हुआ।