Friday, October 31, 2025

संत एकनाथ को क्रोध दिला पाना असंभव

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रामचरित मानस जैसा महाकाव्य रचने वाले गोस्वामी तुलसीदास की ही तरह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत एकनाथ का जन्म भी मूल नक्षत्र में हुआ था। एकनाथ के भी माता-पिता का इनके जन्म के बाद निधन हो गया था। कहा जाता है कि मूल नक्षत्र में पैदा होने वाले बालक के माता-पिता पर घोर विपत्ति आती है। संत एकनाथ ने महाराष्ट्र के सबसे चर्चित संत ज्ञानेश्वर की परंपरा को ही आगे बढ़ाया। 

इनके पितामहं भानुदास भी बहुत बड़े संत थे। संत एकनाथ ने भावार्थ रामायण और भागवत जैसे ग्रंथ की रचना की थी। वह पैठण में रहते थे। जब संत एकनाथ की ख्याति महाराष्ट्र में बढ़ने लगी, तो कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगा। ऐसे लोग हर पल एकनाथ का बुरा करने का प्रयास करने लगे। इसके बावजूद संत एकनाथ अपनी साधना में लगे रहे। 

एक दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति ने उनकी ख्याति से चिढ़कर घोषणा की कि जो संत एकनाथ को गुस्सा दिला देगा, तो उसे दो स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। दो स्वर्ण मुद्राओं की लालच में एक गरीब किंतु बेरोजगार ब्राह्मण तैयार हो गया। वह एकनाथ के घर गया। उस समय एकनाथ पूजा कर रहे थे। वह युवक जाकर एकनाथ की गोद में बैठ गया। उसने सोचा कि ऐसा करने से एकनाथ को क्रोध आ जाएगा। लेकिन एकनाथ ने हंसते हुए कहा कि भैया! तुम से मिलकर अत्यंत आनंद आ गया। तुम्हारा प्रेम तो विलक्षण है। 

दोपहर में जब एकनाथ की पत्नी गिरिजा देवी भोजन परोसने लगीं, तो युवक उनकी पीठ पर चढ़ गया। एकनाथ ने कहा कि देखो, ब्राह्मण को गिरा मत देना। तब उनकी पत्नी ने हंसते हुए कहा कि बेटा हरि को पीठ पर लादकर काम करने का अभ्यास है, तो ब्राह्मण को कैसे गिरने दूंगी। यह सुनकर  युवक समझ गया कि इस दंपति को क्रोध दिलाना असंभव है। उसने दोनों से क्षमा मांगी और अपने घर चला गया। 

अरावली पर्वत शृंखला में फिर होने लगे अवैध निर्माण?

अशोक मिश्र

दो दिन बाद शादियों का सीजन शुरू होने वाला है। एक नवंबर से देश में शादियां होनी शुरू हो जाएंगी। वैसे तो इसमें कोई खास बात नहीं है। खास बात यह है कि जून महीने में अरावली क्षेत्र में जिन 240 से अधिक अवैध निर्माणों को तोड़ा गया था, उनमें ज्यादातर बैंक्विट हाल, मैरिज गार्डन, रिसॉर्ट और फार्म हाउस थे। कुछ लोगों ने वहां पर अपने घर भी बना लिए थे। शादियों का सीजन नजदीक आने से पहले ही लोगों ने बैंक्विट हाल और मैरिज गार्डन की रिपेयरिंग और पुनर्निमाण शुरू कर दिया है। 

ध्वस्त किए गए मैरिज गार्डन, बैंक्विट हाल और रिसॉर्ट को दोबारा खड़ा करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की है। जून में सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर अरावली क्षेत्र में अवैध निर्माणों को गिराया गया था। अरावली पर्वत शृंखला के प्रतिबंधित क्षेत्र में कुछ भाजपा नेताओं, अधिकारियों और उद्योगपतियों के अवैध रूप से रिसॉर्ट, बैंक्विट हॉल और मैरिज गार्डन्स बना रखे थे। सुप्रीमकोर्ट कई बार इन्हें तोड़ने का आदेश दे चुका था।  

सुप्रीमकोर्ट ने जब राज्य सरकार को कटु शब्दों में अरावली क्षेत्र को अवैध कब्जे से मुक्त कराने और कार्रवाई रिपोर्ट उसके सामने पेश करने का आदेश दिया, तो मजबूरन स्थानीय निकाय को कार्रवाई करनी पड़ी और 240 से अधिक अवैध निर्माणों को ध्वस्त करना पड़ा। यहां तक आने वाले रास्तों को भी खोद दिया गया था, लेकिन अवैध निर्माण करने वालों ने बाद में इसे धीरे-धीरे पाटना शुरू कर दिया था। बता दें कि अरावली वन क्षेत्र में पंजाब भू-संरक्षण अधिनियम 1900 की धारा चार और पांच लागू होती है। 

इस अधिनियम के मुताबिक, अरावली क्षेत्र से सटे चार गांवों अनंगपुर, अनखीर, मेवला महाराजपुर और लकड़पुर के जंगलों में किसी प्रकार का पक्का या कच्चा निर्माण नहीं किया जा सकता है। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हुआ। भूमाफियाओं ने स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से लोगों को जमीनें बेच दीं। खरीदने वालों ने इन जमीनों पर अपनी जरूरत के मुताबिक अवैध निर्माण खड़े कर दिए। किसी ने फार्म हाउस बनाया, तो किसी ने बैंक्विट हाल। किसी ने अधिक लाभ कमाने के लिए मैरिज गार्डन बनाकर अरावली पर्वतमाला को संकट में डालना शुरू किया। जब कुछ लोगों ने इसकी शिकायत की, तो उनकी बात पर प्रशासन ने ध्यान ही नहीं दिया। 

नतीजतन लोगों को विभिन्न अदालतों की शरण लेनी पड़ी। सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया और अवैध निर्माण को ढहाने का सख्त आदेश स्थानीय निकायों को दिया। जून में जब अवैध निर्माण गिराए जा रहे थे, तब भी कुछ लोगों ने इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। बहरहाल, स्थानीय निकायों को इस मामले में ध्यान देना चाहिए और सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पूरी तरह पालन करना चाहिए।



Thursday, October 30, 2025

ललिता शास्त्री ने सादगी से गुजारा जीवन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बारे में यह सभी जानते हैं कि वह अत्यंत सादगी पसंद थे। वह महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे जिसकी वजह से वह हमेशा खादी के ही वस्त्र पहनते थे। वह सादगी और ईमानदारी से जीवन यापन करने में विश्वास रखते थे। 

शास्त्री जी का जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ था। वह कांग्रेस के लोकप्रिय नेताओं में शुमार किए जाते थे। उनकी पत्नी का नाम ललिता देवी था। बताया जाता है कि ललिता देवी का जन्म 11 जनवरी 1910 को एक संपन्न परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही काफी अमीरी में पली-बढ़ी थीं। उनके पिता शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर थे। 

मिर्जापुर में उनके पिता की अच्छी खासी संपत्ति थी। उनका परिवार उन दिनों मोटरकार रखने की हैसियत में था। इससे उनकी अमीरी का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब ललिता देवी विवाह योग्य हुईं, तो उनके पिता की इच्छा थी कि वह अपनी बेटी का विवाह ऐसे युवक से करें जो पढ़ा लिखा हो। संयोग से ललिता की मां रामदुलारी देवी अपने मायके मिर्जापुर आईं, तो उनके कुछ परिचितों ने लाल बहादुर शास्त्री से ललिता के विवाह का प्रस्ताव रखा। रामदुलारी देवी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 

16 मई 1928 को लाल बहादुर शास्त्री का विवाह ललिता देवी के साथ हुआ था। शास्त्री जी ने विवाह के समय किसी प्रकार का दहेज लेने से मना करते हुए कहा कि वह अपनी पत्नी को दो खादी की साड़ियों में ही स्वीकार करेंगे। लेकिन ललिता के पिता ने अपनी बेटी को रेशमी साड़ियों के साथ बहुत सारा सामान विवाह में दिया। शादी के कुछ महीनों बाद शास्त्री ने अपनी पत्नी से कहा कि तुम खादी की साड़ी पहना करो। ललिता ने पति की इच्छा मानकर इसके बाद जीवन भर खादी की साड़ी पहनी।

सड़कों पर आवारा घूमते कुत्ते बन रहे लोगों के लिए मुसीबत

अशोक मिश्र

कुछ महीने पहले सुप्रीमकोर्ट ने आवारा कुत्तों के संदर्भ में विभिन्न राज्यों सहित दिल्ली सरकार के लिए आदेश जारी किया था कि रैबीज वाले कुत्तों सहित सभी कुत्तों को शहर के बाहर छोड़ दिया जाए। इन कुत्तों की नसबंदी की जाए, ताकि इनकी लगातार बढ़ती जनसंख्या को काबू किया जा सके। सुप्रीमकोर्ट के फैसले को लेकर कुछ संगठनों ने तब बहुत हायतौबा मचाई थी। 

मजबूरन सुप्रीमकोर्ट को अपना संशोधित आदेश जारी करना पड़ा। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि टीकाकरण और नसबंदी के बाद कुत्तों को उनके उसी स्थल पर छोड़ा जाए, जहां से उन्हें उठाया गया था। कुत्तों की सार्वजनिक स्थानों पर फीडिंग पर भी रोक लगा दी गई। यह आदेश दिल्ली-एनसीआर के अलावा पूरे देश में लागू होगा। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में अपना अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। सुप्रीमकोर्ट के आदेश का कितना पालन हुआ या नहीं, यह तो अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। 

फिरोजपुर झिरका में स्थानीय निकाय के अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा पांच बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। फिरोजपुर झिरका में एक पागल कुत्ते ने पांच बच्चों को बुरी तरह नोच डाला है। पागल कुत्ते का शिकार हुए बच्चे डेढ़ से सात साल की आयु के हैं। हरियाणा के कई जिलों में पागल कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है। अकसर देखने में यह आता है कि सड़कों पर आवारा घूमने वाले कुत्ते स्कूल से आते-जाते बच्चों पर हमला करके उन्हें घायल कर देते हैं। कई बार तो यह झुंड बनाकर राहगीरों पर हमला कर देते हैं। उन्हें घायल कर देते हैं। आवारा कुत्तों का शिकार हुए लोग सरकारी और निजी अस्पतालों का चक्कर काटने पर मजबूर हो जाते हैं। 

बात अगर फिरोजपुर झिरका वाले में ही की जाए, तो काफी समय से एक कुत्ते के पागल हो जाने की खबरें स्थानीय निकाय के अधिकारियों को मिल रही थी, लेकिन उचित कार्रवाई करने की कोशिश नहीं की गई। फिरोजपुर झिरका के एसडीएम लक्ष्मी नारायण का कहना है कि नगर पालिका सचिव को कई बार पत्र लिखकर आवारा कुत्तों के बारे में चेताया गया था, लेकिन सचिव ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसकी वजह से पांच बच्चों को एक पागल कुत्ते के काटने का शिकार होना पड़ा। 

यदि सचिव ने उचित समय पर कार्रवाई की होती, तो पांच बच्चों को यह पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती। हरियाणा के लगभग सभी जिलों का यही हाल है। हर शहर और गांव में आवारा कुत्ते जरूर दिखाई पड़ जाते हैं। शाम ढलते ही यह कुत्ते राह चलते लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाते हैं। लोग सड़कों पर पैदल चलते हुए डरते हैं। यदि सरकार इन आवारा कुत्तों की नसबंदी करके छोड़ दे, तो इनकी संख्या में भारी कमी आ सकती है और  लोगों को ऐसी परिस्थितियों से छुटकारा मिल जाता।

Wednesday, October 29, 2025

हरियाणा की सैनी सरकार ने किया पीएमजेएवाई नीतियों में बदलाव

अशोक मिश्र

आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) की नीतियों में हरियाणा सरकार ने बदलाव किया है। अब पीएमजेएवाई के अंतरगत आने वाले लोग 11 बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों में नहीं करा सकेंगे। इन ग्यारह बीमारियों में  कूल्हा या घुटना बदलना, हरनिया, कान के पर्दे का आपरेशन, अपेंडिक्स का आपरेशन शामिल है। इसके अलावा टॉंसिल, गले की समस्याओं जैसे कई और समस्या से पीड़ित लोगों का इलाज निजी अस्पतालों में नहीं होगा। 

सरकार ने इन रोगों के इलाज पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए यह कदम उठाया है। पीएमजेएवाई के लाभार्थियों को अब तक प्रदेश के 650 निजी अस्पतालों में इलाज कराने की सुविधाएं मिल रही थीं। सरकारी आंकड़ा बताता है कि प्रदेश में लगभग सात सौ सरकारी अस्पताल हैं। इन सरकारी अस्पतालों में 119 किस्म की बीमारियों का इलाज होता था। नए सरकारी आदेश के बाद इन बीमारियों की संख्या 130 हो जाएगी। वैसे सरकार पीएमजेएवाई पर खर्च होने वाली रकम को घटना चाहती है और सरकारी चिकित्सा तंत्र का पूर्ण उपयोग करना चाहती है, यह किसी भी मायने में गलत नहीं है। 

हर सरकार को यह हक हासिल है कि वह अपने खर्चों की समीक्षा करे और जरूरत के मुताबिक उसमें कटौती करे। लेकिन प्रदेश सरकार का यह फैसला कुछ मामलों में विचार की मांग करता है। प्रदेश के सात सौ सरकारी अस्पतालों की दशा का भी राज्य सरकार को ध्यान में रखना चाहिए। सवाल यह है कि जिन ग्यारह किस्म की बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों की जगह सरकारी अस्पताल में कराने का आदेश दिया गया है, उस हालत में सरकारी अस्पताल क्या यह बोझ उठाने को तैयार हैं। सरकारी अस्पताल में वह सभी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं जो निजी अस्पताल मुहैया कराते हैं। 

सरकारी अस्पतालों की हालत यह है कि चिकित्सा और आपरेशन में काम आने वाली मशीनें या तो हैं नहीं या अगर हैं, तो वह किसी कबाड़ की तरह अस्पताल के किसी कोने में पड़ी हुई हैं। कहीं मशीने हैं, तो उनको संचालित करने वाले टेक्नीशियन नहीं है। कहीं डॉक्टर नहीं हैं, तो कहीं चिकित्सा कर्मी नहीं। नर्स हैं, तो अटेंडेंट नहीं हैं। कहीं लैब नहीं है, तो कहीं चिकित्सा के उपकरण का अभाव है। ऐसी स्थिति में जब सरकारी अस्पतालों में नई चिकित्सा का बोझ बढ़ेगा, तो क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। 

अव्यवस्था और चिकित्सा कर्मियों की कमी की वजह से पहले से ही कराह रहे सरकारी अस्पतालों के सिर पर पड़ने वाला नया बोझ वे कितना संभाल पाएंगे, यह तो समय ही बताएगा। वैसे तो यह फैसला सरकार ने कुछ सोच समझ कर ही लिया होगा, लेकिन सरकारी अस्पतालों पर बढ़ने वाले बोझ को भी ध्यान में रखना चाहिए था।

Sunday, October 19, 2025

गृहस्थ जीवन में बिठाना होगा सामंजस्य

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संत कबीरदास भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन वह समाज को बहुत गहराई से समझते थे। दार्शनिक जगत में भी उनका बेहतरीन दखल था। वह पाखंड को बहुत नापसंद करते थे। यही वजह है कि कई सौ साल पहले रची गई उनकी कविताएं आज भी समाज का मार्गदर्शन करती है। 

एक बार की बात है। एक युवक उनसे यह मार्गदर्शन लेने आया कि उसे विवाह करके गृहस्थ आश्रम में जाना चाहिए या संन्यासी हो जाना चाहिए। कबीरदास ने किसी प्रकार का प्रवचन देने की जगह उसे व्यावहारिक रूप से समझाने की बात सोची। उस समय दोपहर था। उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा कि दीपक जला लाओ। उनकी पत्नी ने सहज भाव से दीपक जलाकर उनके पास रख दिया। 

थोड़ी देर बीतने के बाद उनकी पत्नी दो गिलास में दूध लाकर दोनों को दे दिया। कुछ देर बात उनकी पत्नी ने कबीरदास से पूछा कि दूध मीठा है या और चीनी लाऊं। तब तक युवक थोड़ा दूध पी चुका था। उसने पाया कि दूध में चीनी की जगह नमक डाला गया था। कबीरदास ने बड़े शांत भाव से कहा कि नहीं, दूध मीठा है। यह सुनकर युवक आश्चर्यचकित रह गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खारे दूध को कबीरदास मीठा क्यों बता रहे हैं। 

तब कबीरदास ने उस युवक से कहा कि यदि तुम गृहस्थ जीवन में ऐसी स्थितियों का सामना कर सकते हो, तो विवाह कर लो। मेरी पत्नी जानती थी कि भरपूर उजाला है, लेकिन मेरे कहने पर वह दीपक जला लाई। उसने कुछ नहीं पूछा। यदि मैं उससे कहता कि दूध में नमक पड़ा है, तो उसे अच्छा नहीं लगता। उसकी कमियों को बड़ी सहजता से मैंने स्वीकर कर लिया। जीवन में दोनों को एक दूसरे के साथ ऐसे ही रहना होगा।

आइए! दीपावली पर हम मन के तिमिर को मिटाने का संकल्प लें

अशोक मिश्र

आज दीपावली है। दरअसल, दीप पर्व ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ को चरितार्थ करने का उत्सव है। अंधकार से प्रकाश की ओर चलने का संकल्प लेने का अवसर है दीपावली। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रकाश है क्या? ऊर्जा का एक परिवर्तित रूप है प्रकाश। एक विशेष किस्म की ऊर्जा ही प्रकाश है। और ऊर्जा किसमें? चेतन में, अचेतन (यानी जड़) में यानी समस्त पदार्थ में। इस संपूर्ण प्रकृति के प्रत्येक अंग, उपांग में ऊर्जा मौजूद है। 

इसका एक निहितार्थ यह हुआ कि संपूर्ण प्रकृति में जो कुछ भी है, वह ऊजार्वान है। इसी ऊर्जा के कारण के कारण प्रकृति में गति है। प्रकृति का निर्माण भी पदार्थ और गति से हुआ है। गतिमय पदार्थ और पदार्थ में गति। और अंधकार क्या है? प्रकाश का न होना अंधकार है। जब किसी पदार्थ में एक विशेष किस्म की ऊर्जा अनुपस्थित होती है, तब अंधकार होता है। अंधकार और प्रकाश पदार्थ के बिना नहीं हो सकते। अभौतिक नहीं हो सकते, अपदार्थिक नहीं हो सकते। प्रकृति विज्ञानी कहते हैं कि संपूर्ण प्रकृति की ऊर्जा का योग शून्य होता है। 

जब हमारे वैज्ञानिक कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, इसका एक मतलब यह भी है कि इस प्रकृति में कहीं न कहीं किसी जगह पर उतना ही तापमान घट रहा है क्योंकि इस संपूर्ण ब्रह्मांड में सभी तरह की ऊर्जा नियत है, निश्चित है। न उसे घटाया जा सकता है, न बढ़ाया जा सकता है। यह हमारी पृथ्वी या ब्रह्मांड के किसी हिस्से में हो सकता है, पृथ्वी से बाहर भी हो सकता है। यही प्रकृति की द्वंद्वात्मकता है। अंधकार और प्रकाश एक दूसरे के पूरक हैं। 

इस प्रकृति में जितना महत्व प्रकाश का है, उतना ही महत्व अंधकार का भी है। अंधकार उतना भी बुरा नहीं होता है, जितना हम समझते हैं। अंधकार के बिना प्रकाश का कोई महत्व नहीं है। संख्या एक का महत्व तभी तक है, जब तक संख्या दो मौजूद है। इस दीप पर्व पर हम संपूर्ण जगत को प्रकाशित तो करें, लेकिन तिमिर के महत्व को भी न भूलें। भारतीय दार्शनिक जगत में महात्मा बुद्ध ने ‘अप्प दीपो भव’ कहकर प्रकाश और तिमिर को पारिभाषित किया। उन्होंने कहा कि अपना प्रकाश खुद बनो। इसका एक तात्पर्य यह भी हुआ कि अपने भीतर प्रकाश पैदा करो। भीतर तम है, प्रकाश की आवश्यकता है। 

तम किसका है? अज्ञानता का है, रूढ़ियों का है, अंध विश्वासों का है, सामाजिक, राजनीतिक वर्जनाओं का है। पाबंदियों का है। इन्हें दूर करने के लिए महात्मा बुद्ध कहते हैं कि अप्प दीपो भव। इसका एक दूसरा तात्पर्य यह हुआ कि अपना आदर्श खुद बनो। आज दीप पर्व पर हमें यही संकल्प लेना है कि हम अपनी अज्ञानता रूपी अंधकार से मुक्ति पाएं। अंध विश्वास से दूर रहें। लोगों के कल्याण की भावना ही हमारा अभीष्ट हो। दीपावली समस्त संसार के लिए शुभ हो।

सुकरात के अमीर मित्र का भौंड़ा प्रदर्शन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कुछ लोग अपनी धन-संपदा का भौंडा प्रदर्शन करने में ही अपनी शान समझते हैं। पुराने समय में जमींदार या धनी लोग समाज से किसी प्रकार के आयोजन में जब बुलाए जाते थे, तो पहली बात वह अपने किसी प्रतिनिधि को भेज दिया करते थे। यदि किसी कारणवश उन्हें जाना भी पड़ा, तो अपनी संपन्नता का प्रदर्शन करने से नहीं चूकते थे। 

यदि सामूहिक रूप से भोज का आयोजन किया जाए, तो वह विशेष बर्तन जैसे सोने-चांदी से बने बर्तन में ही खाना पसंद करते थे। पहनावे में भी उनके अमीरी झलकती थी। यूनान के महान दार्शनिक सुकरात के समय में भी कुछ लोग ऐसा ही करते थे। पता नहीं,यह कथा कितनी सही है, लेकिन कही जाती है। 

सुकरात के एक मित्र को अपनी अमीरी का प्रदर्शन करने का बड़ा शौक था। वह कहीं भी जाते थे, तो अपने साथ एक नौकर ले जाते थे जो उनके खाने-पीने के बर्तन साथ लेकर चलता था। वह अपने बर्तन के अलावा किसी दूसरे के बर्तन में खाते-पीते नहीं थे। सुकरात को अपने मित्र की यह आदत पसंद नहीं थी, लेकिन मित्रता की वजह से उन्हें कटु वचन कहना नहीं चाहते थे। 

एक दिन सुकरात ने अपने उस मित्र को खाने पर आमंत्रित किया। जैसे ही मित्र सुकरात के घर पहुंचा, वह उसे पुरुषों की भीड़ में ले गए। उनके नौकर को दरवाजे पर ही रोक दिया गया। उसी समय लोगों के लिए खाना परोस दिया गया। साधारण थाली में अपने सामने खाना देखकर मित्र असहज हो गया, लेकिन लोगों के अनुरोध करने पर खाना पड़ा। खाना खाने के बाद उनका मित्र जब विदा होने लगा, तो सुकरात अपने मित्र की थाली में खाना लेकर पहुंचे और कहा कि महिलाओं ने सोचा कि तुम इस थाली में अपने परिवार के लिए खाना लेकर जाओगे। इसलिए यह खाना औरतों ने भिजवाया है। यह सुनकर मित्र बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने यह आदत छोड़ दी।

किसानों, गरीबों और महिलाओं की हितचिंतक सैनी सरकार

अशोक मिश्र

हरियाणा की सैनी सरकार ने एक साल पूरे कर लिए हैं। अभी दो दिन पहले राज्य सरकार ने एक साल में पूरे किए गए 64 संकल्पों यानी वायदों की सूची भी जारी की है। एक तरह से इस सूची के माध्यम से सैनी सरकार ने अपने एक साल का हिसाब-किताब पेश किया है। सूची में यह भी बताया गया था कि लगभग साठ वायदों पर काम तेजी से चल रहा है। इन वायदों के भी बहुत जल्दी पूरे हो जाने की संभावना है। 

सरकार का दावा है कि उसने पिछले एक साल में किसानों की आय को बढ़ाने वाली नीतियों पर विशेष ध्यान दिया है। सैनी सरकार अपने आपको किसान, गरीब, युवा और महिलाओं के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध बता रही है। राज्य सरकार ने शुक्रवार को ही बुढ़ापा पेंशन में दो सौ रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी की है। अब बुजुर्गों को पेंशन के रूप में 32 सौ रुपये मिलेंगे। सरकार का कहना है कि वह देश में सबसे ज्यादा राशि बुढ़ापा पेंशन में दे रही है। जहां तक किसानों की बात है, यह सही है कि प्रदेश में किसानों की 24 फसलों की खरीद एमएसपी पर हो रही है। इसके चलते किसानों को अपनी उपज का वाजिब दाम मिल रहा है। फसल बेचने के दो दिन बाद ही किसानों के खाते में उनके पैसे आ जाते हैं। 

पिछले 11 फसल सीजन में 12 लाख किसानों के खाते में 1.54 लाख करोड़ रुपये डाले गए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार किस तरह किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें सुविधाएं प्रदान करने की कोशिश कर रही है। प्रदेश सरकार ने वंचित रह गई अनुसूचित जातियों को उनका अधिकार दिलाने की दिशा में भी काफी सराहनीय कार्य किया है। सरकार के ही प्रयास से सरकारी नौकरियों, पंचायत और स्थानीय चुनावों में भागीदारी सुनिश्चित की जा सकी है। 

पिछड़ा वर्ग बी को पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में आरक्षण सैनी सरकार ने प्रदान किया है। सरपंच पद पर पांच प्रतिशत और अन्य पदों पर जनसंख्या का पचास प्रतिशत आरक्षण देना, सबसे बड़ा काम है। शुक्रवार को ही गरीबों को सौ-सौ गज के 8029 प्लाट वितरित किए गए हैं। किसी भी व्यक्ति यह सपना होता है कि उसका भी एक घर हो। वह अपने घर को अपनी मनमर्जी के मुताबिक सजाए, अपने हिसाब से उसमें रहे। यह सौभाग्य हासिल करने में कम से कम गरीब लोग कम ही सफल होते हैं। 

ऐसी स्थिति में यदि सस्ते दाम पर कोई सरकार गरीबों को प्लाट या मकान दिला दे, तो इससे बढ़कर सराहनीय कार्य और क्या हो सकता है। पिछले एक साल में विभिन्न आवास योजनाओं के माध्यम से प्रदेश के 77 हजार से अधिक परिवारों को यह लाभ दिया गया है। दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना के माध्यम से प्रदेश सरकार नारी शक्ति को मजबूत करने जा रही है। लक्ष्मी योजना से महिलाएं स्वावलंबन की ओर अग्रसर होंगी।

Saturday, October 18, 2025

गांधी का सत्याग्रह निकला अचूक हथियार


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद पहले देश और यहां के लोगों के रहन-सहन आदि का अध्ययन करने का फैसला किया। उन्होंने शहर से लेकर गांव-देहात की पदयात्राएं कीं, भारत की कमियों और खूबियों को अच्छी तरह से समझा। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस में काम करना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्हें यह समझ में आ गया कि भारत के लोगों को कैसे जगाना होगा। उन्हें आजादी के लिए कैसे प्रेरित करना होगा, ताकि अहिंसा के रास्ते से आजादी हासिल हो सके। उन्होंने सत्याग्रह करने का फैसला किया। सत्याग्रह करने का विचार महात्मा गांधी को भारत से नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका से मिला था। एक बार की बात है। महात्मा गांधी रेलगाड़ी से डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे। उनके पास पहले दर्जे का टिकट था। वह गाड़ी में बैठे हुए थे, तभी एक अंग्रेज अफसर आया। उसने महात्मा गांधी को तीसरे दर्जे में जाकर बैठने को कहा। महात्मा गांधी ने कहा कि उनके पास पहले दर्जे का टिकट है। लेकिन अंग्रेज नहीं माना। उसने महात्मा गांधी को जबरदस्ती प्लेटफार्म पर धक्का देकर उतार दिया। महात्मा गांधी को बहुत बुरा लगा। एक बार उन्होंने सोचा कि यह अपमान सहने से बेहतर है कि वह अपना काम अधूरा ही छोड़कर वापस लौट जाएं। क्या वह अपमान सहने के लिए ही पैदा हुए हैं? लेकिन उनकी अंतरात्मा ने कहा कि उन्हें इसका प्रतिरोध करना चाहिए। वह जाकर वेटिंग रूम में बैठ गए। उनका ओवरकोट और सामान गाड़ी में रह गया था। इसके बाद उन्होंने अफ्रीका में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। जिसके कारण वह दक्षिण अफ्रीका में बहुत मशहूर हो गए और हुकूमत को कई मामलों में पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।