Thursday, September 18, 2025

अहंकार त्यागकर ही सीखा जा सकता है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे धर्मग्रंथों में मनुष्य के जीवन को बरबाद कर देने वाले छह विकारों की चर्चा की गई है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर नाम के इन छह विकारों से मनुष्य को हमेशा बचकर रहने की सलाह दी गई है। इन छह अवगुणों से जो भी ग्रसित हुआ, उसके जीवन में पतन की शुरुआत निश्चित मानी जाती है। काम और क्रोध के बाद अहंकार यानी मद तो व्यक्ति को सबसे पहले पतन की ओर ले जाते हैं। 

व्यक्ति जीवन भर उलझता रहता है, लेकिन जीवन की पहेलियां सुलझ नहीं पाती हैं। इस संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा है। किसी राज्य में एक युवा गुरुकुल में तीरंदाजी सीख रहा था। कई साल के अभ्यास के बाद वह एक अच्छा तीरंदाज बन गया। धीरे-धीरे उसमें अहंकार आता गया और उसने अपने को दुनिया का सबसे बड़ा तीरंदाज मान लिया। अब वह जगह-जगह जाकर लोगों को तीरंदाजी के लिए ललकारता और हराने के बाद हारने वाले का खूब मजाक उड़ाता। 

धीरे-धीरे उसकी ख्याति बढ़ती गई। एक दिन उसने अपने ही गुरु को तीरंदाजी के लिए चुनौती दे दी। उसकी चुनौती पर गुरु जी मुस्कुराए और उससे अपने पीछे आने को कहा। गुरु जी उसे लेकर एक ऐसी जगह पहुंचे, जहां एक जर्जर पुल बना हुआ था। उस जर्जर पुल के बीचोबीच में जाकर गुरु जी ने अपने तरकश से तीर निकाला और दूर खड़े एक पेड़ का निशाना लगाया। 

तीर जाकर पेड़ में आधा धंस गया। गुरु ने शिष्य से कहा कि अब तुम निशाना लगाओ। उस पुल पर डरता-डरता शिष्य पहुंचा और पेड़ का निशाना लगाया। शिष्य का तीर लक्ष्य तक ही नहीं पहुंच पाया। शिष्य बहुत शर्मिंदा हुआ। गुरु जी ने कहा कि जब तक सीखने की ललक रहती है, तभी तक कोई सीख सकता है। अहंकार सीखे हुए को भी भुला देता है।

हरियाणा में कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाएं चिंताजनक

अशोक मिश्र

सुप्रीमकोर्ट की ही तरह हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट ने भी आवारा कुत्तों की बढ़ती जनसंख्या और इंसानों पर हमला करने की बढ़ती घटनाओं को काफी गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा को निर्देश दिया है कि वह जल्दी से जल्दी कुत्तों के काटने की संख्या और अन्य विवरण दें। इसके साथ ही यह भी बताएं कि कुत्तों की नसबंदी जैसे कार्यक्रमों की वास्तविक स्थिति क्या है? आवारा कुत्तों के टीकाकरण के बारे में भी कोर्ट ने रिपोर्ट तलब की है। हाईकोर्ट ने आवारा कुत्तों के काटने से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान दोनों राज्यों को यह निर्देश दिए हैं। कोर्ट इस संबंध में दायर अवमानना याचिकाओं को अब सुप्रीमकोर्ट भेजेगा। सुप्रीमकोर्ट पहले ही आवारा कुत्तों के बारे में दिशा निर्देश दे चुका है। 

हरियाणा में आवारा कुत्तों के काटने की घटनाएं कम होती नहीं दिख रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक हरियाणा में रोजाना लगभग सौ घटनाएं कुत्तों के काटने के सामने आते हैं। पिछले एक दशक में अब तक लगभग 12 लाख घटनाएं सरकारी आंकड़ों में दर्ज हो चुकी हैं। बहुत सारी ऐसी भी घटनाएं होने का  अनुमान है जो सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हुई हैं। ज्यादातर लोग परिवार के किसी सदस्य को कुत्ते के काटने पर सरकारी अस्पताल में इलाज कराने की जगह निजी अस्पतालों में इलाज करवा लेते हैं। 

ऐसे मामले सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। वैसे देश भर में शायद हरियाणा पहला राज्य है जिसने गरीब व्यक्ति को कुत्ते के काटने पर न्यूनतम दस हजार रुपये और काटने पर चमड़ी उधड़ जाने पर बीस हजार रुपये मुआवजे का प्रावधान किया है। वैसे यह बात सच है कि प्रदेश में कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदेश के सभी जिलों में शायद ही कोई ऐसी गली होगी जिसमें आवारा कुत्ते दिखाई न देते हों। हर गली, हर चौराहे पर कुत्तों के झुंड दिखाई देते हैं। 

अगर कोई बच्चा इस झुंड के सामने पड़ जाए, तो उसे नोच नोच कर घायल कर देते हैं। कई बच्चों की तो मौत भी हो जाती है। रात में अगर कोई अकेला व्यक्ति किसी गली से   गुजर रहा हो, तो यह झुंड बनाकर हमला कर देते हैं। कई बार झुंड बनाकर यह कुत्ते व्यक्ति को इतना घायल कर देते हैं कि उसकी मौत तक हो जाती है। स्थानीय निकायों को आवारा कुत्तों की नसबंदी करने में तत्परता दिखानी चाहिए। इनका टीकाकरण बहुत आवश्यक है ताकि किसी भी व्यक्ति की कुत्तों के काटने पर रैबीज की वजह से जान न जाए। 

सरकारी अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाला इंजेक्शन पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए ताकि कोई भी बिना इंजेक्शन लगवाए जाने न पाए। आए दिन सरकारी अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाले इंजेक्शन की कमी की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं।

Wednesday, September 17, 2025

वक्त के बहुत पाबंद थे जार्ज वाशिंगटन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जार्ज वाशिंगटन को संयुक्त राज्य अमेरिका का संस्थापक और पिता माना जाता है। वह अमेरिका के 30 अप्रैल 1789 से 4 मार्च 1797 तक राष्ट्रपति भी रहे।1775 में जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अमेरिका में बगावत शुरू हुई, तो उन्हें महाद्वीपीय सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया। उन्होंने अमेरिका की स्वतंत्रता के लिए जी जान से प्रयास किया और अन्य क्रांतिकारियों की मदद से आखिरकार अपने देश को आजाद कराने में सफल हो गए। 

जार्ज वाशिंगटन समय के बहुत पाबंद थे। वह हर काम नियत समय पर ही करना पसंद करते थे। वह सादा जीवन उच्च विचार पर विश्वास रखते थे। उनकी सादगी को देखकर लोगों को ताज्जुब होता था कि अमेरिका का राष्ट्रपति इतना सादा जीवन जीता है। राष्ट्रपति पद संभालने के लगभग तीन महीने बाद की घटना है। उन्हीं दिनों अमेरिकी कांग्रेस के चुनाव हुए थे। 

उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के चुने हुए प्रतिनिधियों को एक दिन डिनर पर आमंत्रित किया। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि लोगों से परिचय भी हो जाएगा और वह उनके दायित्वों को उन्हें बता सकें। डिनर का जब समय हुआ, तब तक कोई भी प्रतिनिधि वहां नहीं पहुंचा था। जब डिनर का समय हुआ, तो रसोइये ने उनको भोजन परोस दिया। वह भोजन कर ही रहे थे कि तब तक सारे प्रतिनिधि भी पहुंच गए। 

उन्हें राष्ट्रपति को भोजन करता हुआ देखकर आश्चर्य हुआ कि मेहमान के आने से पहले भोजन कर रहे हैं। तब वाशिंगटन ने कहा कि मेरा हर काम का समय नियत है। समय बहुत मूल्यवान है। इसके एक-एक क्षण को बरबाद नहीं करना चाहिए। यह सुनकर सभी प्रतिनिधियों को शर्म महसूस हुई और उन्होंने क्षमा मांगते हुए हर काम समय पर करने का वायदा किया।

परिवार पर बोझ बनकर रह जाता है हादसे में दिव्यांग हुआ व्यक्ति

अशोक मिश्र

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने अनूप सिंह के मामले जो फैसला सुनाया है, वह न केवल सराहनीय है, वरन भविष्य में ऐसे ही कई मामलों की नजर भी बनेगा। दरअसल, मामला केवल अनूप सिंह का ही नहीं है, ऐसे न जाने कितने मामले देश और प्रदेश में है जिनके फैसले मानवीय आधार पर नहीं होते रहे हैं और शायद भविष्य में भी हों। अनूप सिंह का मामला 2014 का है। 5 जनवरी 2014 को अनूप सिंह एक सड़क हादसे का शिकार हुए। काफी इलाज कराया गया, लेकिन हादसे की वजह से उनका बायां पैर घुटने के पास से काटना पड़ा। 

बाद में जब अनूप सिंह अस्पताल से निकले, तो उन्होंने अपनी दिव्यांगता और हादसे के लिए इंश्योरेंस कंपनी पर मुकदमा दर्ज कराया। हिसार एमएसीटी ने फरवरी 2016 को निर्देश दिया कि कंपनी अनूप सिंह को 14.7 लाख रुपये सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करे। इंश्योरेंस कंपनी ने अनूप सिंह की दिव्यांगता को 60 प्रतिशत बताते हुए फैसले को मानने से इंकार किया और हाईकोर्ट में अपील की। उधर, अनूप सिंह ने भी क्रॉस आब्जेक्शन अपील करते हुए मुआवजे की राशि बढ़ाने की अपील की। 

हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि को बढ़ाते हुए 24 लाख 51 हजार नौ सौ कर दिया। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि दिव्यांगता का आकलन शरीर नुकसान के साथ-साथ उसके जीवन पर पड़ने वाले असर के आधार पर होना चाहिए। अब अनूप सिंह का मामला लें। वह जब हादसे का शिकार हुए थे, तब वह सीआरपीएफ भर्ती परीक्षा पास कर चुके थे और इंटरव्यू आदि के बाद शायद सीआरपीएफ में नौकरी भी पा जाते। लेकिन हादसे के बाद न केवल वह किसी भी तरह की नौकरी के अयोग्य हो गए, बल्कि वह खेती-किसानी या मजदूरी के लायक भी नहीं रह गए। 

एक हादसे ने न केवल उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया, बल्कि भावी जीवन की राह भी दुश्वार कर दी। वह जहां परिवार का सहारा बनने जा रहे थे,वहीं अब वह परिवार पर ही बोझ बनकर रह गए। यह केवल अनूप सिंह की ही कहानी नहीं है। हर साल देश और प्रदेश में हादसे का शिकार होने वाले हजारों लोगों की यही कहानी है। हादसे का शिकार होने के बाद काफी लोगों का जीवन नरक के समान हो जाता है। अगर अविवाहित हैं, तो विवाह की संभानवाएं भी खत्म हो जाती है। 

विवाह हो गया है, तो पत्नी और बच्चों का जीवन त्रासद हो जाता है। दिव्यांग हुए लोग परिवार पर बोझ बनकर रह जाते हैं। जो व्यक्ति कल तक अपने परिवार की धुरी था, वही हादसे के बाद किसी काम लायक नहीं रह जाता है। ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट ने जीवन पर पड़ने वाले असर को भी मुआवजे का आधार बनाया है, तो वह सराहनीय है।

Tuesday, September 16, 2025

भगवान बुद्ध का सिर काट लूंगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी रामतीर्थ वेदांत दर्शन के अनुयायी थे। वह भारत के महान संतों में गिने जाते हैं। स्वामी रामतीर्थ का जन्म पंजाब के गुजरावालां इलाके में 22 अक्टूबर 1873 को दीपावली के दिन हुआ था। विद्यार्थी जीवन में रामतीर्थ को काफी आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। इसी बीच इनका बाल विवाह कर दिया गया। अब पढ़ाई के साथ-साथ परिवार का भी बोझ इन पर आ गया। 

किसी तरह छात्रवृत्ति के सहारे रामतीर्थ ने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए में सर्वोच्च अंक हासिल किया, तो इन्हें 90 रुपये की छात्रवृत्ति मिली। फिर इन्होंने गणित विषय से एमए किया और जिस कालेज से एमए किया, उसी में गणित के प्रोफसर हो गए। वर्ष 1901 में इन्होंने संन्यास ले लिया और प्रो. तीर्थराम से रामतीर्थ हो गए। अमेरिका में वेदांत का प्रचार करने के बाद वह जापान पहुंचे तो उनका बहुत स्वागत किया गया। 

एक दिन उन्होंने जापान के एक बच्चे से पूछा-बच्चे! तुम किस धर्म को मानते हो? बच्चे ने जवाब दिया-बुद्ध धर्म को।  उन्होंने फिर पूछा-बुद्ध को तुम क्या मानते हो? बच्चे ने बड़े शांत भाव से जवाब दिया-बुद्ध  तो भगवान हैं। स्वामी रामतीर्थ ने फिर पूछा-कन्फ्यूशियस के बारे में तुम क्या सोचते हो? उस बच्चे ने कहा-कन्फ्यूशियस एक महान संत थे। स्वामी जी इतने पर ही नहीं रुके। 

उन्होंने उस बच्चे से पूछा-मान लो कि कोई देश तुम्हारे देश पर हमला कर दे और उस सेना के सेनापति बुद्ध  या कन्फ्यूशियस हों, तो क्या करोगे? इतना सुनते ही उस बच्चे की आंखों में क्रोध उतर आया। उसने कटु शब्दों में कहा कि मैं भगवान बुद्ध का तलवार से सिर काट लूंगा और कन्फ्यूशियस को कुचल दूंगा। यह सुनकर स्वामी रामतीर्थ आश्चर्यचकित रह गए और उसकी राष्ट्रभक्ति से गदगद हो उठे।



विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में हरियाणा की चार बेटियों ने रच दिया इतिहास

अशोक मिश्र

हरियाणा की बेटियों ने इतिहास रच दिया। वैसे भी जब से हरियाणा के लोगों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता, प्रेम और सम्मान दिया है, तब से राज्य की बेटियों ने प्रदेश के साथ-साथ देश का भी नाम रोशन किया है। हरियाणवी छोरियां जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के परचम लहरा रही हैं। कल ही लिवरपूल में हुए विश्व मुक्केबाजी चैंपयिनशिप में हरियाणा की चार बेटियों ने इतिहास रच दिया है। बेटियों ने अपने गोल्डन पंच से अपने प्रतिद्ंवद्वी को करारी शिकस्त दी है। 48 किलो भार वर्ग में मीनाक्षी हुड्डा और 57 किलो भार वर्ग में राष्ट्रमंडल खेलों की पदक विजेता जैस्मिन लंबोरिया ने स्वर्ण पदक जीता है। 

वहीं 80 प्लस किलो भार वर्ग में नूपुर श्योरण ने रजत और 80 किलो भार वर्ग में पूजा रानी ने कांस्य पदक जीता। मीनाक्षी हुड्डा विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली दसवीं लड़की हैं। भारत ने इस प्रतियोगिता में अब तक दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीता है। 1966 और 1970 में एशियाई खेलों में पदक जीतने वाले हवा सिंह की पौत्री नूपुर को फाइनल में पोलैंड की अगाथा काज्मार्स्का के हाथों हार मिली है। पिछले दो-ढाई दशकों में हरियाणा की छोरियों ने खेलों के मामले में सफलता का परचम कई बार लहराया है। हरियाणा सरकार की खेल नीतियों ने इन्हें प्रोत्साहित किया है। 

सरकार जिस तरह खिलाड़ियों को सुविधाएं मुहैया करा रही है, उससे प्रदेश के खिलाड़ी आगे बढ़कर अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं और प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं। कुश्ती हो, हाकी या कोई दूसरा खेल, हरियाणा की लड़कियों ने हमेशा आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है।  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाओं में जिस तरह हरियाणा के खिलाड़ियों ने अपना प्रदर्शन किया है, उसको देखते हुए दूसरे राज्यों ने भी हरियाणा की खेल नीतियों का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। 

हरियाणवी छोरे-छोरियां अपनी सफलता की कहानी बस लिखते ही जा रहे हैं। खेल प्रतिभाओं को निखारने और उन्हें बचपन से ही खेलों की ट्रेनिंग देने के लिए प्रदेश सरकार ने पूरे प्रदेश में 868 खेल नर्सरियों की मंजूरी दी है। इन खेल नर्सरियों में विििभन्न खेलों में रुचि रखने वाले बच्चों को ट्रेनिंग दी जाएगी। उन्हें हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाएगी ताकि वह अपने खेल को निखार सकें। पूरे देश में हरियाणा ही ऐसा राज्य है जो अपने पदक विजेताओं को सबसे ज्यादा नकद पुरस्कार देती है। 

ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक विजेता के लिए छह करोड़ रुपये, रजत पदक विजेता के लिए चार करोड़ रुपये और कांस्य पदक विजेता के लिए 2.5 करोड़ रुपये सरकार प्रदान करती है। इसके साथ उन्हें सरकारी नौकरी भी दी जाती है।

Monday, September 15, 2025

भंते! आप वृक्ष को प्रणाम क्यों कर रहे हैं?

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद जीवन भर लोगों को सदाचार और प्रकृति से सामन्जस्य बनाकर रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने किसी भगवान को पूजने की जगह प्रकृति की पूजा का संदेश दिया। उनका मानना था कि प्रकृति के समस्त अंगों और उपांगों का संरक्षण और पूजन ही सच्चा धर्म है। जब मनुष्य प्रकृति पूजा करने लगेगा, तो वह प्रकृति के अंग मनुष्य को भी संरक्षित करेगा। 

एक बार की बात है। किसी पेड़ के नीचे कुछ घंटे साधना करने के बाद जब महात्मा बुद्ध उठे, तो उन्होंने उस वृक्ष को प्रणाम किया और बड़ी श्रद्धा से उससे सामने शीश झुकाया। यह देखकर पास खड़ा उनका शिष्य आश्चर्यचकित होते हुए बोला, भंते! आप जैसा महान व्यक्ति पेड़ को झुककर प्रणाम कर रहा है। आपने ऐसा क्यों किया? तब महात्मा बुद्ध ने कहा कि मेरे इस वृक्ष को नमन करने से किसी प्रकार के अनिष्ट की आशंका है क्या? 

उस शिष्य ने कहा कि नहीं, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जब यह पेड़ आपकी बातों का कोई जवाब नहीं दे सकता है, तो आपके प्रणाम करने से क्या फायदा है? अपने शिष्य की बात सुनकर तथागत मुस्कुराए और बोले कि यह वृक्ष भले ही हमारी आपकी तरह बोलकर कुछ न कह रहा हो, लेकिन यह प्रकृति की भाषा में हमारे प्रणाम का उत्तर खुशी से झूमकर दे रहा है। जिस वृक्ष ने मुझे छाया दी, शीतल वायु प्रदान किया, सूरज की तेज किरणों से मुझे बचाया, उसके प्रति आभार व्यक्त करना मेरा कर्तव्य है। 

ध्यान से देखो, तो पता चलेगा कि यह अपनी पत्तियों को हिलाकर हमारे प्रति आभार व्यक्त कर रहा है। यह सुनकर शिष्य ने बड़े गौर से वृक्ष को निहारा, तो उसे लगा कि वृक्ष झूमते हुए महात्मा बुद्ध को नमन कर रहा है।

हरियाणा में खेत-जलघर योजना ने बदल दिया किसानों का भाग्य

अशोक मिश्र

जल के बिना जीवन संभव नहीं है और सबसे बड़ी बात यह है कि पृथ्वी पर जितना पानी है, उसका तीन या चार प्रतिशत ही पीने योग्य है। बाकी समुद्रों का पानी खारा है। ऐसी स्थिति में पेयजल की बरबादी इंसानों और अन्य जीवों को कितनी भारी पड़ सकती है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पानी को बरबाद करने में केवल इंसानों का ही हाथ है। हालांकि यह भी सही है कि अब इंसानों ने पानी का संचय और संरक्षण करना शुरू कर दिया है। वह भविष्य में आने वाले खतरे को भांप चुका है। 

हरियाणा में भी जल संरक्षण और संचय की ओर सरकार के साथ-साथ आम लोगों और किसानों ने ध्यान देना शुरू कर दिया है। दक्षिण हरियाणा में पानी की किल्लत पिछले काफी वर्षों से चली आ रही थी। गर्मी के दिनों में दक्षिण हरियाणा में पानी को लेकर त्राहि-त्राहि मच जाती थी। किसानों को अपने खेत की सिंचाई के लिए वर्षा जल पर ही निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब दक्षिण हरियाणा के किसान आधुनिक तकनीक का सहारा लेकर न केवल पानी बचा रहे हैं, बल्कि अपने खेतों की सिंचाई भी कर रहे हैं। 

अब उन्हें खेतों की सिंचाई के लिए प्रकृति पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ रहा है। दक्षिण हरियाणा के किसान कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति कर रहे हैं। इस मामले में प्रदेश सरकार की खेत-जलघर योजना और सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं का बहुत बड़ा हाथ है। इन योजनाओं की बदौलत ही किसानों की आर्थिक दशा में सुधार आया, बल्कि उनकी खेती भी उन्नत हुई है। सरकारी सब्सिडी से गांवों में सरकारी और निजी तालाब बनाए जा रहे हैं। इसकी वजह से किसान अब परंपरागत खेती को तिलांजलि देकर आधुनिक तकनीक से खेती कर रहे हैं। इसका फायदा यह हो रहा है कि हर खेत को पानी मिल रही है। 

स्प्रिंकलर और ड्रिप जैसी तकनीक अपनाकर किसान न केवल अपनी फसल की पैदावार बढ़ा रहे हैं, बल्कि वह पचास से साठ प्रतिशत पानी की बचत भी कर रहे हैं। खेतों में उतना ही पानी जा रहा है जितने की जरूरत है। इस तकनीक ने किसानों की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव की आधारशिला तैयार की है। इससे जहां जल संरक्षण हो रहा है, वहीं ऊर्जा बचत और पर्यावरण संतुलन जैसे बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति हो रही है। खेत-जलघर योजना से किसान सोलर पंपिंग सिस्टम तक चला रहे हैं। इस योजना के तहत गांव के हर किसान के लिए एक समय निर्धारित किया गया है। जिस किसान की बारी आती है, वह अपने खेत की सिंचाई कर लेता है। इससे सभी किसानों को आवश्यकता के अनुसार सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो जाता है। यह योजना पूरे प्रदेश में लागू की जा रही है।

Sunday, September 14, 2025

चंद्रशेखर वेंकटरामन की विनम्रता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

चंद्रशेखर वेंकटरामन भारत के महान भौतिक शास्त्री थे। उन्हें विज्ञान क्षेत्र में अपनी अद्वितीय कार्य के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य किया था जिसकी वजह से उन्हें भौतिकी का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया था। रामन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान पर हुआ था। 

सीवी रामन ने बारह साल की उम्र में ही मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। प्रखर बुद्धि के सीवी रामन ने बीए की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। सन 1907 में रामन ने एमए की परीक्षा में गणित विषय लेकर विशेष योग्यता हासिल की थी। उन्होंने इतने अंक हासिल किए जितने इससे पहले किसी ने हासिल नहीं किया था। एक बार की बात है। 

किसी विदेशी युवा वैज्ञानिक ने रंगों के कुछ नए प्रयोग किए। रामन उसके काम से बहुत प्रभावित हुए। तब तक रामन को नोबल पुरस्कार प्राप्त हो चुका था और उनकी दुनिया भर में ख्याति फैल चुकी थी। एक दिन वह उस वैज्ञानिक से मिलने उसकी प्रयोगशाला में मिलने पहुंच गए। वह उससे कुछ सीखना चाहते थे। उस वैज्ञानिक ने अपने सामने सीवी रामन को देखा तो वह चकित रह गया। 

उसने बड़े आदर से रामन को बैठने को कहा। उसके कहने पर भी रामन खड़े ही रहे और रंगों के प्रयोग के बारे में जानकारी हासिल करने लगे। वैज्ञानिक ने कहा कि सर, आप बैठिए तो, मैं आपको सब बताता हूं। तब रामन ने कहा कि मैं आपके सामने नहीं बैठ सकता हूं। मैं आपसे कुछ सीखने आया हूं। हमारी संस्कृति में गुरु के सामने या समक्ष बैठने की परंपरा नहीं है। यह सुनकर वह वैज्ञानिक उनकी विनयशीलता का कायल हो गया।

हरियाणा में क्या सचमुच बढ़ रही है गरीबी?

अशोक मिश्र

हरियाणा में गरीबों की संख्या को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। विपक्ष प्रदेश सरकार पर आरोप लगा रही है कि उनकी नीतियों ने प्रदेश की 75 प्रतिशत जनता को गरीबी की सीमारेखा से नीचे लगा दिया है। हालांकि सरकार विपक्ष के आरोप को नकारते हुए प्रदेश की गरीबी को दूर करने का दावा करती है। यह सवाल कई बार उठता रहता है कि क्या सचमुच हरियाणा किसी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है? लेकिन इसका कोई जवाब नहीं मिल पा रहा है। पिछले साल जब प्रदेश में चुनाव नहीं हुए थे, तब बीपीएल कार्डधारकों की संख्या में एकाएक वृद्धि दर्ज की गई थी। 

अप्रैल 2020 से लेकर सितंबर 2024 के बीच राज्य में गरीबी रेखा से नीचे राशन कार्डधारकों की संख्या में पांच गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। इस बीच 8.8 लाख से बढ़कर 46.4 लाख बीपीएल राशनकार्ड धारक हो गए थे। एक बार तो यह भी सवाल उठने लगा था कि प्रदेश में क्या एकाएक गरीबी बढ़ गई है जो दो साल में बीपीएल कार्डधारकों की संख्या में इजाफा हो रहा है। आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया, जांच कराने पर वोटबैंक प्रभावित होने का खतरा था। 

प्रदेश के सबसे गरीब व्यक्तियों के लिए चलाई जा रही अंत्योदय अन्न योजना में भी एकाएक बढ़ोतरी देखी गई। अंत्योदय अन्न योजना में लाभर्थियों की संख्या में बीस प्रतिशत की वृद्धि पाई गई। साल 2022 में जिन अंत्योदय अन्न योजना की संख्या 2.44 लाख थी, वही 2024 तक आते आते 2.92 लाख हो गए। बीपीएल कार्ड धारकों की संख्या में बढ़ोतरी ग्रामीण इलाकों में भी देखी गई। शहरों में बीपीएल कार्ड धारकों की संख्या में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी पाई गई। औद्योगिक नगरी के नाम से मशहूर फरीदाबाद में ही तीन लाख से अधिक बीपीएल कार्डधारक बढ़े। इसके अलावा करनाल और हिसार जैसे समृद्ध जिलों में भी यही रुझान पाया गया। 

अगर इस आधार पर बात की जाए, तो सचमुच हरियाणा में भीषण गरीबी है और लोग इस गरीबी को झेलने को मजबूर हैं। हरियाणा में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ने से भी बीपीएल और अंत्योदय अन्न योजना के लाभार्थियों की संख्या में इजाफा हुआ, ऐसा समाजशास्त्रियों का मानना है। इन लाभार्थियों में कुछ ऐसे भी लोग शामिल पाए गए हैं जिनके पास पहले से ही जमीनें हैं और वह सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए इसमें शामिल हुए हैंं। यही वजह है कि सरकार बनने के बाद जब मामले की छानबीन शुरू हुई, तो पूरे प्रदेश में लाखों लोगों ने अपना नाम बीपीएल से कटवा लिया या कार्ड का रिवीजन नहीं करवाया ताकि सरकारी शिकंजे में फंसने से बचा जा सके।