अशोक मिश्र
सिख धर्म के इतिहास में बाबा बुड्ढा सिंह का नाम बड़े गर्व और सम्मान के लिया गया है। बाबा बुड्ढा सिंह ही वह आदमी थे जिन्हें सिख पंथ के पांच गुरुओं गुरु अंगद देव, अमरदास, रामदास, अर्जन देव और हरगोविंद को गुरु गद्दी का तिलक लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। गुरु नानक देव की भी कृपा बाबा बुड्ढा सिंह को प्राप्त हुई। इनका वास्तविक नाम बूरा बताया जाता है।बाबा बुड्ढा सिंह नाम पड़ने के पीछे भी एक रोचक कथा है। सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव ने अपनी संगत के लिए एक नियम बना रखा था। जो भी उनके दरबार में आता था, उसे भक्तिभाव से कीर्तन करना जरूरी था। दरबार में आने वाले लोग भी बड़ी श्रद्धा के साथ कीर्तन किया करते थे। गुरु नानकदेव भी लोगों को उपदेश दिया करते थे। उनके उपदेशों को सुनकर लोग अपने को धन्य मानते थे।
वैसे भी सिख धर्म के सभी गुरुओं के उपदेश-निर्देश पूरी मानवता के लिए हैं। खैर। तो गुरुनानक देव के दरबार में एक बच्चा सबसे पहले आता था और चुपचाप खड़ा रहता था। यह क्रम काफी समय से चला आ रहा था। एक दिन बाबा नानक ने उस बच्चे से बड़े प्यार से पूछ ही लिया। तुझे नींद नहीं आती है? यह समय तो तेरे सोने का है। तेरा खेलकूद में मन नहीं लगता है?
उस बालक ने कहा कि कीर्तन सुनना मुझे अच्छा लगता है। मेरी मां रोज चूल्हा जलाते समय छोटी-छोटी लकड़ियां पहले जलाती हैं, मोटी लकड़ी को जलने में समय ज्यादा लगता है। बच्चों को ज्ञान की बात जल्दी समझ में आती है। यह सुनकर गुरु जी ने कहा कि उम्र में तू बच्चा है, लेकिन बात बुड्ढों वाली करता है। बस तभी से बूरा का नाम बाबा बुड्ढा सिंह पड़ गया।


