Friday, November 7, 2025

साधु वेश का अपमान होता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रामपुर रियासत की स्थापना राम सिंह ने की थी। 1774 में जब नवाब फैजुल्लाह खान ने सत्ता संभाली, तो इसके नाम में कोई बदलाव नहीं किया। राजा राम सिंह की कई पीढ़ी बाद कोई राजा रणवीर सिंह हुए हैं। कहा जाता है कि वह बहुत दयालु, प्रजावत्सल और कला पारखी थे। उनके दरबार में कलाकारों, साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का बड़ा सम्मान होता था। वह कला प्रेमी थे। एक दिन की बात है। 

जब वह अपने दरबार में बैठे राज्य की समस्याओं पर विचार-विमर्श कर रहे थे। उसी समय एक बहुरूपिया महादेवी का रूप धर पहुंचा। दरबारियों ने उसे देखा तो वह आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि इससे पहले बिना कोई सूचना दिए महारानी दरबार में नहीं आई थीं। लेकिन कुछ देर बाद बहुरूपिया अपने असली वेष में आ गया। उसकी कला से राजा बहुत प्रसन्न हुए। 

उन्होंने उसे खूब इनाम देते हुए कहा कि तुम साधु का रूप धरो और मैं पहचान पाऊं, तब तुम्हारी कला का लोहा मान लूंगा। बहुरूपिये ने कहा-ठीक है। इस बात को दो महीने बीत गए। एक दिन नगर में चर्चा चली कि एक साधु सेठ की बगिया में ठहरा हुआ है। वह लोगों के भाग्य बताता है, लेकिन लेता कुछ नहीं है। यह चर्चा राजा तक पहुंची। वह ढेरा सारा उपहार लेकर साधु से मिलने पहुंचा। 

राजा ने साधु को ढेर सारा उपहार भेंट किया, लेकिन साधु ने बड़े आदर से लौटा दिया। दूसरे दिन बहुरूपिया राजमहल पहुंचा और कहा कि आप कल मुझे पहचान नहीं पाए। राजा प्रसन्न हुआ। उसने खूब ईनाम दिया और पूछा कि कल तुम्हारे पर खूब स्वर्णाभूषण और पैसे मैं दे रहा था, लेकिन तुमने क्यों नहीं लिया? बहुरूपिये ने कहा कि यह वह मैं स्वीकार कर लेता, तो उस रूप का अपमान होता। साधु के वेश में मैं वह सब कैसे ले सकता था। यह सुनकर राजा और भी खुश हुआ।

क्षय रोग मुक्त भारत का लक्ष्य अभी पूरा होने की उम्मीद नहीं

अशोक मिश्र

जनवरी 2025 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं जनकल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने सौ दिन में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलाकर देश से टीबी को ख्तम करने की बात कही थी। सौ दिन में टीबी उन्मूलन का देशव्यापी अ्भियान तो जरूर चला, लेकिन टीबी उन्मूलन नहीं हो पाया। यह कार्यक्रम अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया। 

वैसे भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशानुसार भारत ने इस साल के अंत तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा है, लेकिन जब एक महीने चौबीस-पच्चीस दिन ही लक्ष्य प्राप्ति के बचे हैं, ऐसी हालत में यह लक्ष्य हासिल होता नहीं दिखाई दे रहा है। टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस अर्थात तपेदिक को चार-पांच दशक पहले जानलेवा रोग माना जाता था। इसका इलाज नहीं था। आज इसका सफल इलाज है, लेकिन यदि समुचित इलाज न किया जाए तो यह आज भी जानलेवा है। 

हरियाणा में टीबी के संबंध में जो आंकड़े अभी हाल में सामने आए हैं, वह चिंताजनक है। प्रदेश में लगातार टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं। निक्षय पोर्टल का ताजा आंकड़ा बताता है कि सात दिसंबर 2024 से  19 अक्टूबर 2025 के बीच हरियाणा में क्षय रोग के 43, 879 नए मरीज पाए गए हैं। यह आंकड़ा यह बताने के लिए पर्याप्त है कि दिसंबर तक क्षय रोग से देश को मुक्ति नहीं मिलने वाली है। हरियाणा में पाए गए नए रोगियों में सबसे ज्यादा फरीदाबाद में पाए गए हैं। इसके बाद गुरुग्राम दूसरे, पानीपत तीसरे, रोहतक चौथे और नूंह पांचवें स्थान पर हैं। पिछले साल 7 दिसंबर 2024 से केंद्र सरकार ने सौ दिन में पूरे देश को टीबी मुक्त करने का अभियान चलाया था। 

यह अभियान हरियाणा में भी चला था। बड़े पैमाने पर लोगों की जांच की गई थी। अभी हाल में ही पूरे प्रदेश में 6,39,977 असुरक्षित लोगों की टीबी मानीटिरिंग की गई थी। इन लोगों को ट्यूबरकुलोसिस का खतरा था। इनमें से 43,879 लोग टीबी से संक्रमित पाए गए। इस मामले में सबसे चिंताजनक बात यह है कि कुछ लोग अपने रोग को गंभीरता से नहीं लेते हैं। नतीजा यह होता है कि जब हालात बिगड़ जाते हैं, तो वह डॉक्टर के पास भागते हैं। तब दवा का हाई डोज उन्हें लेना पड़ता है। 

स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने टीबी निवारक उपचार के लिए 1,15,996 लोगों से संपर्क किया, तो 57,583 लोग ही इलाज के लिए तैयार हुए। बाकी लोगों ने इलाज कराने से इनकार कर दिया। जिन लोगों ने अपना इलाज कराने से इनकार कर दिया है, वह लोग अपने आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरा हैं। उनके यहां वहां थूकने से उस थूक के संपर्क में आने वाले लोगों के भी टीबी से संक्रमित होने का खतरा है। दूसरे राज्यों के वह रोगी जो अपना इलाज पूरा नहीं करवाते हैं और अपने राज्य लौट जाते हैं, वह भी लोगों के लिए खतरा साबित होते हैं। हरियाणा सरकार को ऐसे रोगियों पर निगाह रखने के लिए संबंधित राज्य से संपर्क करना चाहिए।

Thursday, November 6, 2025

महाराजा रणजीत सिंह की दयालुता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महाराणा रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब का खिताब दिया गया था। वह अपने समय के सबसे लोकप्रिय महाराजा थे। रणजीत सिंह ने कई रियासतों में बंटे पंजाब को एक करके अंग्रेजों के खिलाफ जीवन भर लड़ाई लड़ी। सन 1780 में रणजीत सिंह का जन्म गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में महाराजा महा सिंह के घर में हुआ था। 

चेचक की वजह से रणजीत सिंह की एक आंख चली गई थी। जब वह बारह साल के थे, तो उनके कंधे पर शासन का कार्यभार आ गया था। एक बार की बात है। महाराजा रणजीत सिंह अपने लश्कर के साथ कहीं जा रहे थे। जब वह एक बाग के नजदीक से गुजर रहे थे, तो उनके सिर पर एक पत्थर आ लगा। उनके सिर से खून बहने लगा। सैनिकों ने तत्काल पत्थर मारने वाले की खोज शुरू की। 

थोड़ी देर बाद सैनिक एक बुजुर्ग महिला को पकड़कर लाए। महिला डर से थर थर कांप रही थी। सैनिकों ने उस महिला से पूछा-तुमने पत्थर क्यों मारा? तब तक महाराजा रणजीत सिंह भी उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंच चुके थे। उस महिला ने कांपते हुए कहा कि महाराज! मेरे घर में दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन्होंने दो दिन से कुछ नहीं खाया है। मैं भोजन की तलाश में घर से निकली थी। 

किसी के यहां से कुछ खाने को नहीं मिला, तो इस बाग से कुछ फल तोड़ने का प्रयास कर रही थी ताकि बच्चों का पेट भरा जा सके। लेकिन यहां भी मेरे दुर्भाग्य ने आ घेरा। वह पत्थर आपको लग गया। महाराजा रणजीत सिंह उस महिला के पास गए और उसको सांत्वना देते हुए अफसरों से कहा कि माता जी को कुछ अशर्फियां देकर सम्मान के साथ विदा कर दो। लोगों को ताज्जुब हुआ कि यह कैसा न्याय है? एक सैनिक ने कहा कि वह तो सजा की हकदार थी। रणजीत सिंह ने हंसते हुए कहा कि पत्थर मारने पर जब पेड़ भी फल देता है, मैं तो मनुष्य हूं।

हरियाणा के स्टेडियमों और खेल परिसरों पर ध्यान दे सरकार

अशोक मिश्र

हरियाणा में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। देश में सभी तरह के खेलों में हरियाणा का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहता है। चाहे ओलिंपिक हो, कामन वेल्थ गेम्स हों या दूसरी तरह की अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाएं, हरियाणा के खिलाड़ी हमेशा आगे रहते हैं। खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए प्रदेश सरकार पैसा भी बहुत खर्च करती है। जब कोई खिलाड़ी कोई पदक जीतकर आता है, तो सरकार उसका स्वागत भी अच्छी तरह करती है। 

इसके बावजूद यह भी सच है कि अभी प्रदेश में बहुत कुछ ऐसा किया जाना बाकी है जिसके चलते ढेर सारी प्रतिभाएं अपना कौशल नहीं दिखा पा रही है। खेल और खिलाड़ियों को निखारने के लिए प्रदेश सरकार बजट में अच्छा खासा पैसा देती है, लेकिन उन पैसों का सदुपयोग नहीं होने से सारा किया धरा बेकार हो रहा है। इस बात का सबसे बढ़िया उदाहरण राजीव गांधी ग्रामीण खेल परिसर हैं। 

प्रदेश के विभिन्न जिलों में कांग्रेस शासनकाल में ग्रामीण इलाकों में खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए राजीव गांधी ग्रामीण खेल परिसरों का निर्माण किया गया था। इन परिसरों के माध्यम में उन ग्रामीण खेल प्रतिभाओं को निखारने की योजना थी जिनकी आर्थिक स्थिति खराब थी। ग्रामीण क्षेत्र के गरीब बच्चों को सरकारी सहायता और सुविधा प्रदान करके उनकी प्रतिभाओं को निखारने के लिए ही ये परिसर बनाए गए थे। इन परिसरों में कांग्रेस शासनकाल तक थोड़ा बहुत काम हुआ, लेकिन भाजपा शासनकाल में भारी भरकम बजट तो जारी होता रहा, लेकिन धरातल पर उतना काम नहीं हुआ जितने की अपेक्षा थी। 

इन खेल परिसरों के निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन एक भी खेल प्रतिभाओं की तलाश इन परिसरों से नहीं हो पाई। दस साल पहले भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में छह जिलों के 27 ग्रामीण खेल परिसरों को खेल के लिए अनफिट करार दिया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में खेल परिसरों के नाम पर किस तरह धन का दुरुपयोग किया गया है। कई शहरों में बने स्टेडियम के भी हालत काफी खराब हैं। सोनीपत में स्टेडियम का रखरखाव ठीक से नहीं होने से वहां घास उग आई हैं। कल की ही खबर है कि हाकी खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करने के लिए पहले वहां उगी घास काटनी पड़ी। 

उसके खेलने लायक बनाना पड़ा, तब वह प्रैक्टिस कर पाईं। इस स्टेडियम में न पानी की व्यवस्था है, न किसी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं। स्टेडियम में चौकीदार और ग्राउंडमैन तक नियुक्त नहीं किए गए हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भी यदि प्रदेश के खिलाड़ी विभिन्न खेलों में पदक जीतकर लाते हैं, तो इन खिलाड़ियों के साहस, लगन और जुझारूपन की प्रशंसा की जानी चाहिए। सरकार को इन खेल परिसरों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि ग्रामीण प्रतिभाएं निखर सकें।

Wednesday, November 5, 2025

हर दृष्टिकोण सत्य होते हुए भी अधूरा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सत्य सापेक्ष होता है। जो व्यक्ति किसी वस्तु या विचार को देखते है, तो वह अपने नजरिये के अनुसार पाता है। जो बात किसी व्यक्ति के लिए सत्य हो सकती है, वह किसी दूसरे व्यक्ति के लिए असत्य हो सकती है। जो आग किसी व्यक्ति को जला सकती है, वही आग ठंड से ठिठुरते व्यक्ति को राहत दे सकती है। जबकि दोनों मामलों में आग एक ही है। इस संबंध में एक रोचक कथा है। किसी शहर में एक हाथी आया। 

उस शहर के लोगों ने पहली बार हाथी देखा था। इसकी खूब चर्चा हुई। यह चर्चा उड़ती हुई अंधे लोगों के एक समूह तक पहुंची। अंधे लोगों ने आपस में विचार किया कि शहर में एक अजीबोगरीब जानवर आया है, जिसे हाथी कहा जाता है। लेकिन उन अंधे लोगों को हाथी का आकार-प्रकार नहीं पता था। वह भिन्न प्रकार के आकार-प्रकार की कल्पना करने लगे। काफी सोच विचार और मंथन के बाद अंधे लोगों के समूह ने फैसला किया कि एक बार हमें हाथी को छूकर देखना चाहिए। 

बेकार की कल्पना करने से बेहतर है कि हम उसे छूकर उसकी सच्चाई का पता लगाएं। इसलिए उन्होंने हाथी के मालिक से मिलने का फैसला किया। आखिर में उन्हें मालिक से हाथी को छूने की इजाजत मिल गई। पहले व्यक्ति का हाथ सूंड पर पड़ा। उसने कहा, हाथी एक मोटे साँप जैसा है। दूसरे व्यक्ति का हाथ उसके कान तक पहुँचा, उसे वह एक पंखे जैसा लगा। एक और व्यक्ति का हाथ पैर पर था। 

उसने कहा, हाथी पेड़ के तने जैसा है। इस तरह सभी अंधों ने हाथी के विभिन्न अंगों को छुआ और उसके मुताबिक ही हाथी का आकार बताया। वैसे जिसने हाथी देखा है, वह जानता है कि हाथी कैसा होता है, लेकिन अंधों ने जैसा महसूस किया था, उनके लिए वही सत्य था।

लावारिस पशुओं से मुक्ति की बाट जोह रही हरियाणा की जनता

अशोक मिश्र

मई महीने में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने डेयरी संचालकों और पशु पालकों को चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि सड़कों पर लावारिस पशु दिखाई दिए, तो डेयरी संचालकों और पशु पालकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। इस चेतावनी को डेयरी संचालकों और पशु पालकों ने कितनी गंभीरता से लिया, इसका पता इस बात से चलता है कि आज भी सड़कों पर लावारिस पशु अच्छी खासी संख्या में दिखाई दे जाते हैं। प्रदेश का शायद  ही कोई ऐसा जिला हो, जहां सड़कों और गलियों में लावारिस पशु न दिखाई देते हों। 

सड़कों पर घूमते लावारिस पशु लोगों के लिए भारी मुसीबत का कारण बन रहे हैं। कुछ पशु तो इतने आक्रामक होते हैं कि वह साइकिल या स्कूटी, मोटरसाइकिल सवार को देखते ही मारने दौड़ पड़ते हैं। लावारिस पशु से बचने के प्रयास में कई बार सवार हादसे का शिकार हो जाते हैं। कुछ लोग हादसों में अपनी जान भी गंवा बैठते हैं। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो ऐसे हादसों में जीवन भर के लिए अपंग हो जाते हैं। 

सरकार के बार-बार चेतावनी देने के बाद भी लोग अपने पशुओं को खुले में छोड़ देने की आदत से बाज नहीं आते हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने अगस्त में एक राज्यव्यापी अभियान चलाया था जिसमें हरियाणा की सड़कों को पशु मुक्त करने की बात कही गई थी। प्रदेश सरकार ने स्थानीय निकायों को यह स्पष्ट आदेश दिया था कि वह अपने-अपने इलाकों में घूम रहे लावारिस पशुओं को पकड़कर गौशालाओं में ले जाएं। इनको वहां रखें। इसके लिए राज्य सरकार ने गौशालाओं को आर्थिक सहायता देने का भी प्रावधान किया था। प्रति बछड़े के लिए तीन सौ रुपये, प्रति गाय के लिए छह सौ रुपये और प्रति बैल आठ सौ रुपये देने की व्यवस्था की थी। यह अभियान पूरे एक महीने तक चला था। 

इस अभियान में स्थानीय शहरी निकाय, हरियाणा गौशाला आयोग और पशुपालन विभाग ने हिस्सा लिया था। लेकिन यह अभियान कितना सफल हुआ, इसकी पुष्टि सड़कों पर घूमते लावारिस पशु करते हैं। अभियान के दौरान पाए गए लावारिस पशुओं की टैगिंग की व्यवस्था की गई थी। उनका एक रिकार्ड तैयार करने की भी बात कही गई थी। आज सड़कों पर घूमते कई लावारिस पशुओं में टैग वाले पशु भी देखे गए हैं। सड़कों पर विचरण करने वाले लावारिस पशुओं की वजह से सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग परेशान होते हैं। 

जब दो पशुओं में लड़ाई होती है या पशु ही आक्रामक हो तो इनकी चपेट में आने से बच्चे और बुजुर्ग कम ही बच पाते हैं। ऐसी स्थिति में उनको गंभीर चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है। कई जगहों पर तो लावारिस पशु यातायात व्यवस्था के लिए भी एक संकट साबित होते हैं। लावारिस पशु सड़कों, गलियों में गदंगी भी फैलाते हैं। भोजन की तलाश में यह कूड़ा-करकट भी बिखेर देते हैं।

Tuesday, November 4, 2025

अपने कर्तव्य का पालन न करना पड़ा भारी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे देश में यह बहुत पुरानी मान्यता रही है कि सबको अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए। यहां धर्म का मतलब रिलीजन या धार्मिक मान्यताओं से नहीं है। यहां धर्म का मतलब अपने कर्तव्य से है। यदि किसी व्यक्ति का पेशा रात भर चौकीदारी करने का है, तो उसे अपने कर्तव्य का पालन बड़ी ईमानदारी से करना चाहिए। 

प्राचीन पुस्तकों में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने काम को ईमानदारी से नहीं करता है, वह समाज में अच्छा इंसान नहीं माना जाता है। इस बात को एक कथा के माध्यम से भी समझाया जा सकता है। किसी गांव में एक धोबी रहता था। उसने अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता पाल रखा था। इतना ही नहीं, उसने कपड़ों को घाट तक लाने-ले जाने के लिए एक गधा भी पल रखा था। 

धोबी जब गधे और कुत्ते को खाना देता, तो कुत्ते को गुस्सा आ जाता था। वह सोचने लगता था कि गधे को ज्यादा खाना क्यों दिया। रोज यह भेदभाव देखने की वजह से कुत्ता अपने मालिक से नाराज हो गया। एक दिन धोबी के घर में कुछ चोर घुस आए। उन्होंने घर का सारा सामान समेटा और रफूचक्कर हो गए। उस समय घोबी अपने घर में ही सोया हुआ था, लेकिन उसे चोरी होने की खबर ही नहीं हुई। 

चोरों को घर में घुसते हुए गधे और कुत्ते ने देख लिया था। गधे ने कुत्ते से कहा कि उसे इस समय भौंकना चाहिए, ताकि मालिक जाग जाएं। इस समय उसका चुप रहना उचित नहीं है। लेकिन कुत्ता नहीं भौंका। यह देखकर गधे ने रेंकना शुरू कर दिया। धोबी उठा, तो उसने पाया कि चोर सब कुछ लेकर जा चुके हैं। धोबी ने उठाया डंडा और गधे को मार-मार कर लहूलुहान कर दिया। इसके बाद कुत्ते का नबंर आया। थोड़ी देर दोनों घायल पड़े थे। एक को मार इसलिए पड़ी क्योंकि उसने दूसरे का धर्म निभाया था। दूसरे को मार इस वजह से पड़ी कि उसने अपने धर्म का निर्वाह नहीं किया था।

नशीले पदार्थों की बिक्री रोकने को केमिस्टों पर दर्ज होगा केस

अशोक मिश्र

नशा किसी व्यक्ति का जीवन ही नहीं लेता, बल्कि पूरे परिवार को एक असहनीय दर्द दे जाता है। नशा परिवार के लोगों का जीवन नरक जैसा बना देता है। नशीले पदार्थों का आदी व्यक्ति जरूरत पड़ने पर अपने घर से ही चोरी करने पर मजबूर हो जाता है जिसकी वजह से घर में क्लेश बढ़ता है। प्रदेश में कुछ ऐसी भी घटनाएं देखने को मिली हैं जिसमें पति-पत्नी के बीच तलाक की नौबत तक आ गई है। कुछ महिलाओं ने तो अपने पति की नशाखोरी की आदत से परेशान होकर आत्महत्या तक कर ली है।

यह स्थिति हरियाणा की ही नहीं, देश के लगभग हर राज्य की है। नशीले पदार्थों की बिक्री और सेवन से कोई भी राज्य अछूता नहीं है। नशाखोरी का चलन किस कदर बढ़ रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हरियाणा में नशे की ओवरडोज से लोगों के मरने की संख्या लगातार बढ़ रही है। सिरसा समेत कई जिलों में पिछले दिनों में काफी संख्या में लोग नशे की ओवरडोज के चलते अपने प्राण गंवा चुके हैं। मरने वाले ज्यादातर लोगों की बाजू और शरीर के अन्य हिस्सों में बार-बार सुई लगाने के निशान पाए हैं जिससे यह साबित हुआ कि मरने वाले ने गलती से ओवरडोज नशा कर लिया था। 

इसी समस्या से पंजाब भी जूझ रहा है। पिछले छह महीनों के भीतर पंजाब में सैकड़ों लोग नशे की ओवरडोज से अपनी जान गंवा बैठे हैं। पंजाब और हरियाणा में नशीले पदार्थों की बहुत ज्यादा होने की खबरें हैं। आमतौर पर नशा या फार्मास्यूटिकल ड्रग से होने वाली मौतों के मामले में पुलिस परिजनों के बयान दर्ज करती थी और शव को  पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया जाता था। 

पुलिस कोई कार्रवाई भी नहीं करती थी जब तक कि परिजन किसी के खिलाफ कोई शिकायत न दर्ज कराएं। लेकिन अब हरियाणा पुलिस ने फैसला लिया है कि यदि किसी की नशे की ओवरडोज से मौत होती है, तो उस ड्रग्स को बेचने वाले केमिस्ट के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा और उसे दंडित किया जाएगा। इसके लिए पुलिस मरने वाले के फोन की लोकेशन ट्रेस करेगी और जिस मेडिकल स्टोर से उसने ड्रग्स खरीदा होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी। वैसे हरियाणा सरकार पिछले काफी दिनों से नशीले पदार्थ की बिक्री रोकने का भरसक प्रयास कर रही है। 

उसने पुलिस अधिकारियों को पूरी छूट दे रखी है कि वह अवैध नशा विक्रेताओं के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई करें। इसके बावजूद प्रदेश में अवैध नशे का कारोबार रुक नहीं रहा है। पुलिस कभी कभार छापा मारकर नशे का अवैध कारोबार करने वालों को पकड़ पाने में सफल हो जाती है, लेकिन बाद में वह जमानत पर बाहर आते हैं और फिर नशा तस्करी में लग जाते हैं। पुलिस प्रशासन को नशा तस्करों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। तभी हालात सुधरेंगे।

Monday, November 3, 2025

यह ताबूत तुम्हारे बेटे के काम आएगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कहा जाता है कि आदमी यदि अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करता है, उनका अनादर करता है, तो वह इंसान कहलाने लायक नहीं होता है। माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। एक बार की बात है। किसी गांव में एक किसान रहता था। उसने अपने परिवार का बहुत अच्छी तरह से पालन पोषण किया। 

जीवन भर उसने कठिन परिश्रम करके परिवार को सम्मानजनक तरीके से रहने की व्यवस्था की थी। समय के साथ एक दिन ऐसा भी आया जब वह बूढ़ा हो गया। अब किसान किसी काम का नहीं रह गया। वह घर में दिन भर बैठा रहता था। उसका बेटा अब अपने पिता की जगह पर खेतों में काम करने लगा था। 

रोज अपने पिता को खाली बैठा देखकर उसे बहुत चिढ़ पैदा होने लगी थी। वह यह भी भूल गया था कि उसके इसी पिता ने उसका पालन-पोषण किया था। जब वह बच्चा था, तो उसकी देखभाल की थी। वह अपने पिता के किए गए उपकारों को भूल चुका था। जब भी वह अपने बुजुर्ग पिता को देखता, तो मन ही मन यही सोचता था कि यह बैठे-बैठे खा रहा है। अब तो इसे मर जाना चाहिए। फालतू में जी रहा है। एक दिन बेटे ने कुछ निश्चय करके उसने लकड़ी का एक ताबूत बनवाया। 

उसने उस ताबूत में अपने पिता को डालकर वह खेतों के पास पहाड़ी पर ले गया। जब वह ताबूत को पहाड़ी से नीचे फेंकने ही वाला था कि ताबूत में खटखटाने की आवाज आई। उसने ताबूत खोला, तो उसके पिता ने कहा कि मैं जानता हूं कि तुम मुझे पहाड़ी से फेंकने वाले हो। इस सुंदर ताबूत को खराब करने की क्या जरूरत है। मुझे ऐसे ही फेंक दो। यह ताबूत तुम्हारे बेटे के काम आएगा। यह सुनकर बेटे को बड़ी लज्जा आई। वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसने पिता से क्षमा मांगी और उसे वापस घर ले आया।



हालात बिगड़े, लोगों के लिए गैस चैंबर बनी हरियाणा की हवा

अशोक मिश्र

यह हमारे स्वभाव में है कि जब तक कोई समस्या हमारे सिर पर आकर सवार नहीं हो जाती है, तब तक हम शुतुरमुर्ग की तरह अपनी चोंच रेत में घुसेड़े रहते हैं। इन दिनों दिल्ली एनसीआर सहित हरियाणा के जिलों में वायु गुणवत्ता सूचकांक काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है, लेकिन इस स्थिति से बचने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। उत्तर भारत में रहने वाला आम नागरिक भी यह बात जानता है कि दिवाली के बाद प्रदूषण हर हालत में बढ़ जाता है। पटाखों और पराली को जलाने से रोकने का हर संभव प्रयास करने के बावजूद हालात बदतर ही रहते हैं। 

इसके बावदू प्रशासन वायु प्रदूषण रोकने की कवायद तब शुरू करता है, जब हालात बेकाबू हो चुके होते हैं। कल से ही दिल्ली एनसीआर में हरियाणा के पुराने डीजल वाहनों का प्रवेश निषेध किया गया है। कहने को तो यह फरमान जारी कर दिया गया, लेकिन बार्डर पर इतनी सख्ती नहीं बरती गई जितनी कि जरूरत थी। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान वन बहुत पहले भी लागू किया जा चुका है, लेकिन इसका उल्लंघन करने वालों पर समुचित कार्रवाई केवल छिटपुट ही की गई। 

नतीजा यह हुआ कि आज हालात काफी बदतर हो चुके हैं। हरियाणा में भी कई जिलों की हालत गैस चैंबर जैसी हो गई है। कई जिलों में सुबह से लेकर रात तक स्माग छा जाने की वजह से लोगों का दम घुट रहा है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी होता नहीं दिखाई दे रहा है। स्माग की वजह से लोगों की आंखों में जलन हो रही है, आंखों से पानी गिर रहा है। कुछ मामलो में तो यह भी देखने को मिला है कि स्माग के चलते कई लोगों की आंखों की रोशनी तक चली गई है। चिकित्सक बताते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्मॉग के चलते कार्निया पर प्रदूषित कण जमा हो जाते हैं जिसकी वजह से आंख खराब हो जाती है। पिछले कुछ दिनों से हरियाणा में दमा रोगियों की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है। 

इसके साथ ही स्किन रोग भी लोगों में बढ़ता जा रहा है। यदि प्रदूषण पर जल्दी ही काबू नहीं पाया गया, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। शनिवार को प्रदेश के लगभग सभी जिलों में पूरा दिन स्मॉग छाया रहा जिसकी वजह से लोगों को काफी परेशानी हुई। रोहतक, सोनीपत, गुरुग्राम, नारनौल और फरीदाबाद जैसे शहरों का हाल तो बहुत बुरा रहा। इन शहरों में 389 से लेकर 200 के बीच एयर क्वालिटी इंडेक्स रहा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हरियाणा में किस कदर वायु प्रदूषण फैला हुआ है। 

हरियाणा और दिल्ली सरकार को चाहिए कि वह जल्दी से जल्दी ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान को सख्ती से लागू करे। यदि कोई ग्रेप का उल्लंघन करता पाया जाए तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। इतना ही नहीं, समस्या पैदा होने से पहले ही सरकार कदम उठाए, ऐसे हालात पैदा ही न हों।