कतरब्योंत
मैंने तो पाया है यही कि सच बोलने पर कतर दी जाती है जुबां
Tuesday, August 19, 2025
या खुदा! कैसे कहूं तू आग पानी लिख।
फूलों को शायद मैं नहीं देख पाऊंगी
अशोक मिश्र
न्यूयार्कमें 1875 को स्थापित थियोसाफिकल सोसाइटी की स्थापना में रूसी मूल की अमेरिकी नागरिक हेलेना पेत्रोव्ना ब्लावत्स्की की अहम भूमिका रही है। थियोसाफिकल सोसाइटी का संबंध आर्य समाज से भी रहा है। ब्लावत्स्की कई साल तक भारत के कई शहरों में रहीं और उन्होंने भारत में सामाजिक सुधार के प्रयास भी किए। ब्लावत्स्की का जन्म 12 अगस्त 1831 को यूक्रेन के एक शहर में हुआ था।
इनके पिता जर्मन के राजघराने से संबंध रखते थे। ब्लावत्स्की के दादा आंद्रेई रूस के ही एक शहर के गवर्नर थे। ब्लावत्स्की ने जीवन भर भ्रमण करके अपने विचारों का प्रचार प्रसार किया। वह भारत, तिब्बत, श्रीलंका सहित दुनिया के कई देशों में गईं। कहा जाता है कि उनके विचारों में कुछ हद तक स्पष्टता नहीं थी। उनके जीवन के वृत्तांत कई जगह एक दूसरे से साम्यता नहीं रखते हैं।
इसके बावजूद यह सच है कि ब्लावत्स्की ने अपना सारा जीवन मानव सेवा और आध्यात्मिक विचारों के प्रसार में लगा दिया था। एक बार की बात है। वह ट्रेन से यात्रा कर रही थीं। उनके पास एक मोटा सा थैला था। वह थोड़ी-थोड़ी देर बाद थैले में से मुट्ठी भर कुछ निकालती थीं और उसे खिड़की से बाहर फेंक देती थीं। साथ में यात्रा कर रहे लोगों को उनकी यह हरकत अटपटी लग रही थी। काफी समय तक उनके यही करने से एक यात्री ने पूछ ही लिया। तब ब्लावत्स्की ने कहा कि वह फूलों के बीज बाहर फेंक रही थीं।
उस व्यक्ति ने पूछा कि इससे क्या होगा? उन्होंने कहा कि समय आने पर फूलों के यह बीच अंकुरित होंगे। तो इन फूलों को देखकर लोग खुश होंगे। उस व्यक्ति ने कहा कि क्या तुम इन्हें देखने आओगी। उन्होंने कहा कि शायद नहीं। लेकिन जिन फूलों को देखकर मुझे खुशी हुई, उन्हें भी मैंने नहीं लगाया था।
अपराधियों को सुधरने का सैनी सरकार देगी एक अवसर
कोई भी व्यक्ति अपराधी के रूप में पैदा नहीं होता है। हर व्यक्ति एक सामान्य इंसान के रूप में पैदा होता है, लेकिन आगे चलकर परिस्थितियां, समाज की दशाएं और मनोवृत्ति में आए विकार की वजह से आदमी अपराधी हो जाता है। एक तरह से कहा जाए कि कोई भी व्यक्ति अपराधी नहीं बनना चाहता है, लेकिन कुछ कारणों से वह अपराध कर बैठता है। यह कारण उसकी आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक भी हो सकता है और क्षणिक आवेश भी। समाज में बढ़ते अपराध को रोकने के प्रयास कानूनी और सामाजिक स्तर पर किए जाते रहे हैं। लेकिन हरियाणा की सैनी सरकार ने सामुदायिक सेवा दिशा निर्देश 2025 तैयार करके सामाजिक स्तर पर भी सुधार करने का बीड़ा उठाया है।
सैनी सरकार ने उन अपराधियों को सुधरने का एक मौका देने का फैसला किया है जो किसी गंभीर अपराध या राष्ट्रद्रोह जैसे अपराध में लिप्त नहीं रहे हैं। यह जेलों को कैदियों के बढ़ते बोझ से बचाने का एक नायाब तरीका है। वे अपराधी जिन्होंने मामूली अपराध किए हैं और जो पेशेवर अपराधी नहीं हैं, उनको समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए एक अच्छा उपाय है। सैनी सरकार की यह नीति पहली बार अपराध करने वाले कुछ लोगों के लिए जेल की सजा को व्यवस्थित करने तथा सामाजिक रूप से उपयोगी कार्यों में बदलने के लिए बनाई गई है।
असल में किसी अपराधी को जेल में इसलिए भी डाला जाता है ताकि उसे यह एहसास हो सके कि उसने अपराध किया है। उसने समाज के नियमों और कानून का उल्लंघन किया है। ऐसी स्थिति में ज्यादातर अपराधी अपने कृत्य के लिए ग्लानि भी महसूस करते हैं। यदि ऐसे लोगों को जेल भेजने की जगह समाज के किसी काम में लगा दिया जाए, तो समाज और प्रशासन के प्रति उनका मन साफ हो जाता है। वह भविष्य में किसी किस्म का अपराध नहीं करेंगे। सरकार ने फैसला किया है कि पहली बार और मामूली अपराध करने वालों को किसी पार्ककी देखरेख सौंपी जा सकती है।
धर्म स्थलों की साफ-सफाई की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इतना ही नहीं, ऐसे अपराधियों को नदी के किनारे पेड़ लगाने, ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में सहायता करने, विरासत स्थलों का रखरखाव करने, सार्वजनिक पार्कों की सफाई करने और स्वच्छ भारत सरीखे सामाजिक कल्याण अभियानों में योगदान देने के लिए कहा जा सकता है। इससे जेलों में अपराधियों की भीड़ में कमी आएगी। कम जोखिम वाले अपराधियों को रचनात्मक सेवा की ओर मोड़ा जा सकेगा। वैसे भी समाज में एक भ्रांति फैली हुुई है कि जेल अपराधी को सुधारने की जगह बिगाड़ती ज्यादा हैं।
Monday, August 18, 2025
मेरी प्रकाशित पुस्तकें
बलरामपुर जिले के नथईपुरवा घूघुलपुर गांव में 13 अप्रैल 1967 को मेरा जन्म हुआ। मेरे पिता दिवंगत रामेश्वर दत्त मानव मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारक और कवि थे। मैं पिछले 23-24 वर्षों से व्यंग्य लिख रहा हूं. कई छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में खूब लिखा. दैनिक स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित अखबारों में भी खूब लिखा. कई पत्र-पत्रिकाओं में नौकरी करने के बाद आठ साल दैनिक अमर उजाला के जालंधर संस्करण में काम करने के बाद लगभग दस महीने रांची में रहा. लगभग एक साल दैनिक जागरण और एक साल कल्पतरु एक्सप्रेस में काम करने के बाद साप्ताहिक हमवतन में स्थानीय संपादक, गोरखपुर से प्रकाशित न्यूज फॉक्स में समाचार संपादक और पंजाब केसरी देहरादून में उप समाचार संपादक पद पर कार्यरत रहने के बाद 27 अगस्त 2021 को पलवल से प्रकाशित होने जा रहे दैनिक देश रोजाना में समाचार संपादक के पद पर ज्वाइन किया था। छह महीने बाद दैनिक देश रोजाना का संपादक बना दिया गया। तब से अद्यतन उसी पद पर कार्यरत हूं। मेरा एक व्यंग्य संग्रह 'हाय राम!...लोकतंत्र मर गया' दिल्ली के भावना प्रकाशन से फरवरी 2009 में प्रकाशित हुआ है. इसके बाद वर्ष 2013 में उपन्यास सच अभी जिंदा है भी भावना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। पुस्तक दयानंद पांडेय समीक्षकों की नजर में का संपादन और वर्ष 2018 को वनिका प्रकाशन से व्यंग्य संग्रह दीदी तीन जीजा पांच प्रकाशित हुआ।
मैंने तुम्हारे साथ यह क्या कर दिया?
अशोक मिश्र
दक्षिण भारत में संत और कवि वेमना की कविताएं आज भी जनमानस में पढ़ी पढ़ाई जाती है। वैसे दक्षिण भारतीय साहित्य में संत वेमना के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है, लेकिन माना जाता है कि उनका जन्म आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में 1652 ईस्वी में हुआ था। कुछ लोग वेमना का जन्म विभिन्न शताब्दियों में मानते हैं। वैसे वेमना का वास्तविक नाम गोना वेना बुद्धा रेड्डी बताया जाता है।
तेलुगू साहित्य के इतिहास में वेमना की रचनाएं वेमना शतकालु नाम से संग्रहीत हैं। कहा जाता है कि बचपन में वेमना पढ़ाई लिखाई में बहुत कमजोर थे। जिस गुरुकुल में वह शिक्षा ग्रहण करते थे, उस गुरुकुल के आचार्य उनकी कम अकली के कारण परेशान रहते थे। गुरुकुल में जो कुछ पढ़ाया जाता था, वह उनके पल्ले नहीं पड़ता था। पंद्रह साल की उम्र तक वह अक्षरज्ञान तक हासिल नहीं कर पाए थे। गुरु को यह विश्वास हो चला था कि उनका यह शिष्य जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा।
एक दिन नदी में स्नान करने जाते समय गुरु ने कपड़े देते हुए कहा कि इसे हाथ में पकड़े रहो, ताकि कपड़ों पर मिट्टी न लग जाए। स्नान के बाद जब गुरु जी ने आवाज दी, तो वह कपड़े जमीन पर फेंककर दौड़े आए। कपड़ों पर मिट्टी लगने से नाराज गुरु ने उन्हें खड़िया मिट्टी (चॉक) देते हुए कहा कि इस पत्थर पर राम राम लिखो। वेमना उस पत्थर पर राम राम लिखने लगे। थोड़ी देर बाद चाक खत्म हो गई। फिर भी वह लिखते रहे। थोड़ी देर बाद नाखून घिस गया, फिर अंगुलियां घिसने लगीं।
लेकिन उन्होंने राम राम लिखना नहीं छोड़ा। शाम को गुरु जी लौटे, तो देखा कि वेमना अब भी राम राम लिख रहा है, लेकिन उसकी अंगुली पूरी तरह घिस चुकी है। उन्होंने वेमना को रोते हुए गले लगा लिया और बोले, मैंने तुम्हारे साथ यह क्या कर दिया। इसके बाद वेमना ने मन लगाकर पढ़ाई की और एक संत और कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए।
ठीक से विरोध भी नहीं कर पातीं घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं
हमारे देश में घरेलू हिंसा और उत्पीड़न को लेकर शहरों की महिलाएं तो थोड़ा बहुत जागरूक हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की ज्यादातर महिलाएं इसको लेकर सजग नहीं है। सामाजिक परंपराओं और सोच के चलते गांवों की नब्बे फीसदी महिलाएं इसे भाग्य का लेखा-जोखा मानकर जीवन भर उत्पीड़न सहती रहती है और इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाती हैं। यदि कोई महिला इसके खिलाफ आवाज भी उठाना चाहे, तो घर की बड़ी बूढ़ी महिलाएं उसको समझा बुझाकर शांत कर देती हैं।
शनिवार को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की है कि घरेलू हिंसा के मामले में अदालतों को शिकायत का आकलन करते समय लाइन के बीच पढ़ना जरूरी है क्योंकि ज्यादातर उत्पीड़न घर पर ही होती है और इसे साबित कर पाना महिला के लिए आसान नहीं होता है। हाईकोर्ट की यह बात बिल्कुल सही है। उत्पीड़न या घरेलू हिंसा होने पर जब मामला कचहरी तक पहुंचा है, तो घर के लोग पुरुष को ही बचाने की जुगत में लग जाते हैं।
इसमें पीड़ित महिला की सास, ननद, देवरानी, जेठानी जैसी महिलाएं भी शामिल होते हैं। कई बार तो यह भी देखने में आया है कि उसके मां-बाप, बहन और भाभियां दबाव में या स्वेच्छा से पुरुष का ही साथ देते हैं। इस तरह के मामलों में अदालतें आम तौर पर यह देखती हैं कि पीड़ित महिला ने जो आरोप लगाए हैं, उसमें तथ्य कितने सही हैं। मामले में दम है या नहीं। ऐसे मामले में अदालत को फैसला लेते समय इन सभी परिस्थितियों का ध्यान रखना चाहिए। वैसे भी महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 में घरेलू हिंसा की परिभाषा सीमित नहीं है। अधिनियम में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक और आर्थिक हिंसा को भी घरेलू हिंसा के दायरे में रखा गया है। यदि कोई व्यक्ति मौखिक रूप से महिला को अपशब्द कहता है, उस को किसी भी प्रकार प्रताड़ित करता है, तो वह घरेलू हिंसा के दायरे में आता है।
अगर किसी महिला को संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत किसी प्रकार की धन-संपत्ति, रुपये पैसे प्राप्त हैं, उसका उपयोग न करने देना आर्थिक उत्पीड़न माना जाएगा। यदि किसी कारणवश दंपति में तलाक हो गया हो तो पत्नी और बच्चों के भरण पोषण के लिए व्यवस्था अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। दरअसल, घरेलू हिंसा और वैवाहिक जीवन के सुचारू रूप से न चलने का सबसे ज्यादा प्रभाव छोटे-छोटे बच्चों पर पड़ता है।
उनका भविष्य अधर में लटक जाता है। कई बार तो बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। घरेलू हिंसा का प्रभाव न केवल उनकी पढ़ाई लिखाई पर पड़ता है, बल्कि उनके भविष्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
Sunday, August 17, 2025
यह सीता रमैय्या की हार नहीं मेरी हार है
जो तुमने दिया, उसे वापस कर दूंगा
अशोक मिश्र
गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश में प्राणि मात्र के कल्याण की बात की है। वह हर मायने में अहिंसा का पालन करने पर जोर देते थे। किसी का उपहास उड़ाना भी उनकी नजर में हिंसा थी। वह कहा करते थे कि किसी को दुख पहुंचाना, सबसे बुरा कर्म है। वह मन को पवित्र रखने की सीख देते हुए कहते थे कि यदि मनुष्य अपने मन को पवित्र रखना सीख जाए, तो दुनिया भर में हिंसक घटनाएं होनी बंद हो जाएंगी।
मन की चंचलता ही कई बार हिंसा के लिए प्रेरित करती है। महात्मा बुद्ध वर्षाकाल को छोड़कर बाकी समय भ्रमण ही किया करते थे। एक बार की बात है। वह किसी गांव से गुजर रहे थे। उनके साथ उस समय कुछ शिष्य भी थे। गांव वालों ने जब उनकी वेशभूषा को देखा तो वह उनका उपहास उड़ाने लगे। गांव वालों को भला बुरा कहते और उपहास उड़ाते देखकर तथागत वहीं शांत चित्त से खड़े हो गए।
गांववालों ने काफी देर तक उनको भला बुरा कहा और उपहास उड़ाया। लोग जब थक गए, तो गौतम बुद्ध ने उन गांववालों से कहा कि अभी कुछ और करना है या नहीं। अगर कुछ और नहीं करना है, तो मैं अगले गांव जाऊं? गांव वाले काफी हैरान हुए कि हमने इस आदमी का इतना अपमान किया और यह शांत खड़ा हुआ है। एक व्यक्ति ने कहा कि आपका हम लोगों ने इतना उपहास उड़ाया, अब आप क्या करेंगे? महात्मा बुद्ध ने कहा कि वही करूंगा जो पिछले गांव वालों के साथ किया था।
पिछले गांववाले मेरे लिए खूब खाने पीने की वस्तुएं लाए थे। खूब स्वागत सत्कार किया था, लेकिन मैंने उनसे कहा कि मेरा पेट भरा हुआ है। मैंने सब वापस कर दिया। अब आप लोगों ने मेरे साथ जो किया, वह सब मैं आपको वापस करता हूं। यह सुनकर गांववाले बहुत शर्मिंदा हुए और माफी मांगी।
शहर को साफ-सुथरा रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी
मिलेनियम सिटी के नाम से विख्यात गुरुग्राम में फैली गंदगी के बारे में कुछ सप्ताह पहले मीडिया और सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हुई थी। फ्रांसीसी महिला मैथिलडे आर ने तो इसे सुअरों के रहने लायक बताते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली थी। इसको लेकर काफी चर्चा भी हुई थी। एक पूर्व सेनाधिकारी ने कूड़े के ढेर पर अपना भोजन तलाशते पशुओं की एक वीडियो डालकर गुरुग्राम की गंदगी पर अपना रोष भी जाहिर किया था। मिलेनियम सिटी गुरुग्राम में फैली गंदगी और कूड़े के ढेर से शायद ही कोई इनकार करे। सच बात तो यह है कि हर चमचमाते शहर का दो चेहरा होता है।
शहर में चमचमाते होटल, शापिंग माल्स और पाश कालोनियां बाहर से देखने पर मन मोह लेती हैं। लेकिन इन चमचमाती कालोनियों, होटलों और शापिंग माल्स के पीछे जाकर देखिए। आगे से चमचमाने के अनुपात में ही पीछे कूड़ा कचरा पड़ा होता है। यह सब अपने आगे का हिस्सा बहुत साफ रखते हैं, लेकिन इस सफाई के दौरान निकला कूड़ा-कचरा पीछे ही फेंक देते हैं। अगर उधर से कोई शख्स निकलना चाहे तो उसे अपनी नाक पर रुमाल रखने को मजबूर होना पड़ेगा। यह लगभग हर शहर की सच्चाई है। लेकिन जिस गुरुग्राम की गंदगी को लेकर कुछ दिनों पहले तक इतनी हाय-तौबा मची हुई थी।
उसी बीच सर्बिया के एक युवक चुपचाप गुरुग्राम को साफ करने में भी लगा हुआ था। पिछले एक साल से गुरुग्राम में सर्बिया के नागरिक 32 वर्षीय लेजर जेनकोविक रोज एक फावड़ा और बड़े कचरे का बैग लेकर निकल पड़ते हैं गुरुग्राम की किसी गली को साफ करने। वैसे तो लेजर वर्ष 2018 को भारत में माडलिंग करने आए थे। छह साल तक बेंगलुरु में रहकर मॉडलिंग की, लेकिन पिछले साल वह गुरुग्राम आ गए थे। तब से वह रोज ‘एक दिन एक गली’ अभियान चला रहे हैं। वह सुबह निकलते हैं और जो भी गली उन्हें गंदी दिखाई देती है, तो वह उसे साफ करने में जुट जाते हैं।
वह यह नहीं सोचते हैं कि लोग क्या कहेंगे? शुरुआत में तो कुछ लोगों ने उन्हें सिरफिरा समझकर तंज भी किया था, लेकिन अब लोग उनकी मुहिम में हंसी-खुशी से हिस्सा ले रहे हैं। गुरुग्राम के लोग जब उनसे पूछते हैं कि तुम क्या कर रहे हो? तो वह पूछने वाले से ही पूछ बैठते हैं कि आप खुद से पूछिए कि आप क्यों नहीं कर रहे हैं? वैसे भी वह इससे पहले ऋषिकेश में सफाई अभियान चला चुके हैं। यह एक नई मिसाल है। यदि लेजर से ही सीखकर लोग सिर्फ अपनी गली को ही साफ सुथरा रखने का प्रण कर लें, तो शायद देश का हर शहर साफ सुथरा और प्रदूषण रहित होगा। लोग स्वच्छ वातावरण में सांस ले सकेंगे।
Saturday, August 16, 2025
स्वाधीनता दिवस पर अपने शहीद क्रांतिकारियों को हरियाणा ने किया याद
पंद्रह अगस्त को हम आजादी के उन्यासीवें वर्ष में प्रवेश कर जाएंगे। देश को आजाद कराने के लिए हजारों रणबांकुरों ने अपनी शहादत दी, ब्रिटिश हुकूमत की लाठियां गोलियां खाईं, कारागार की यातनाएं सही। न जाने कितने लोगों को फांसी दी गई। भारत का स्वाधीनता संग्राम बीसवीं सदी का सबसे लंबा चलने वाला संग्राम था। भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह अत्तिंगल विद्रोह था, जो 1721 में हुआ था। इस विद्रोह में मालाबार के लोगों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के 140 सैनिकों की हत्या कर दी थी और अंजेंगो किले को घेर लिया था। इसके बाद तो छिटपुट विद्रोह होते रहे, लेकिन 1857 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रजवाड़ों ने संगठित विद्रोह किया। इसके बाद होने वाले विद्रोह में जनता भी शामिल होती गई।
भारत के स्वाधीनता संग्राम में हरियाणा (तब पंजाब प्रांत) की भूमिका रही है। वर्तमान हरियाणा की यदि बात की जाए, तो राव तुलाराम और राजा नाहर सिंह 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी शहादत देने वालों में अग्रगण्य हैं। इन्होंने बड़ी बहादुरी से अंग्रेजी फौजों का मुकाबला किया और अंतत: अपनी शहादत देकर अमर हो गए। हरियाणा के क्रांतिकारियों में सर छोटूराम का नाम गर्व से लिया जाता है। इसके अलावा सुल्तान सिंह गहलोत, शेर सिंह कादयान, मतू राम हुड्डा, गुलाब सिंह बुराक, धर्मपाल सिंह भालोठिया, देवक राम सूरह, बंसी लाल, भोपाल सिंह आर्य, बुजा राम खीचर ने भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर अपना नाम प्रदेश के इतिहास में अमर कर लिया।
1857 की जंग में मेवात के दस हजार लड़ाकों ने अपनी शहादत देकर अपना नाम अमर कर लिया। ऐसे रणबांकुरों और अपनी मातृभूमि पर प्राण न्यौछावर करने वालों की जन्म और कर्मभूमि पर 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। 15 अगस्त को पूरे प्रदेश के लोग अपने पूर्वज शहीदों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देकर उनको नमन करेंगे। देश भर के क्रांतिकारियों और स्वाधीनता संग्राम सेनानियों की मूर्तियों पर फूल चढ़ाकर उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाएगा क्योंकि इनकी ही शहादत के परिणाम स्वरूप हमें आजादी हासिल हुई थी।
प्रदेश की सैनी सरकार ने भी बड़े पैमाने पर स्वाधीनता दिवस कार्यक्रम आयोजित किए हैं जिसमें सरकार के नुमाइंदे भाग लेंगे। प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष, सांसद, मंत्रियों, विधायकों को प्रत्येक जिले में होने वाले कार्यक्रमों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ-साथ प्रदेश की सभी संस्थाएं स्वाधीनता दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे। स्कूल-कालेजों में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम होंगे और झांकियां निकाली जाएंगी।