Saturday, December 6, 2025

शिष्य ने पूछा-जीवन क्या है?


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लियो टॉलस्टाय का जन्म 9 सितंबर 1828 में रूस के एक धनी परिवार में हुआ था। बड़े होकर उन्होंने रूसी सेना में नौकरी कर ली और क्रीमियाई युद्ध में भाग लिया। दो साल के बाद उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ दी क्योंकि तब तक उनके भीतर लेखन प्रवृत्ति जागृत हो उठी थी। इसके बाद ही उन्होंने विश्व प्रसिद्ध उपन्यास युद्ध और शांति लिखी। अन्ना करेनिना को उनकी बेहतरीन कृति माना जाता है। 

एक बार की बात है। लियो टॉलस्ट के एक शिष्य ने उनसे सवाल किया, जीवन क्या है? शिष्य की यह भी इच्छा थी कि उसे सरल शब्दों में ही जीवन के बारे में बताया जाए ताकि वह उसके बारे में अच्छी तरह से जान सके। यह सुनकर टॉलस्टॉय कुछ देर तक सोचते रहे और फिर बोले, जीवन क्या है? यह समझाने के लिए मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। एक व्यक्ति घने जंगल से होकर जा रहा था। 

वह व्यक्ति बड़ी मस्ती में था। तभी उसके सामने से एक हाथी गुजरा। उस व्यक्ति को देखकर हाथी उसकी ओर लपका। अपनी जान बचाने के लिए कुएं में कूद गया। उसने देखा कि नीचे तो साक्षात मौत खड़ी है। कुएं में बरगद का पेड़ उगा हुआ था। वह बरगद की एक डाल पकड़कर लटक गया। उसने नीचे देखा, तो पाया कि मगरमच्छ नीचे बैठा है, जो उसे खाने के लिए तैयार है। जिस डाल  पर वह लटका हुआ था, उससे ऊपर की डाल पर मधुमक्खी का छत्ता लगा हुआ था जिससे शहद टपक रहा था। 

लियो टॉलस्टाय ने अपने शिष्य से कहा कि उस यात्री के लिए हाथी काल बनकर आया था। कुएं में बैठा मगरमच्छ मृत्यु था। वहीं शहद ही जीवन है। यह सुनकर शिष्य ने टॉलस्टाय से कहा कि आज मैं जीवन के बारे में समझ गया।

जीवन भर पीड़ा भोगती है एसिड अटैक की पीड़िता


अशोक मिश्र

किसी महिला या लड़की पर किसी भी कारणवश किया गया एसिड अटैक काफी दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। संतोष की बात यह है कि हरियाणा में एसिड अटैक की घटनाएं बहुत कम, लगभग नगण्य सामने आती हैं।  राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में महिलाओं पर एसिड  अटैक के मामले काफी संख्या में आते हैं। दिल्ली की ही एक एसिड अटैक के मामले की शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले की विस्तृत जानकारी हासिल करने के बाद न केवल आश्चर्य व्यक्त किया, बल्कि इसे राष्ट्रीय शर्म बताते हुए पुलिस को फटकार भी लगाई। 

एसिड अटैक की घटना हुए 16 साल बीत गए हैं और कोर्ट में अभी ट्रायल ही चल रहा है। पीड़िता ने खुद सुप्रीमकोर्ट में पहुंचकर अपना दुखड़ा सुनाया था। पिछले सोलह साल से रोहिणी कोर्ट में ट्रायल ही चल रहा है और अब वह आखिरी स्टेज में है। इस मामले में सबसे ज्यादा दोषी अगर कोई है, तो पुलिस प्रशासन। पुलिस एसिड अटैक जैसे मामलों में गंभीरता नहीं दिखाती है। 

ऐसा इस मामले को देखते हुए लग रहा है। जिस महिला या लड़की के चेहरे पर तेजाब फेंककर उसे बदसूरत बना दिया जाता है, उसकी जिंदगी नरक के समान हो जाती है। कभी सुंदर दिखने वाला चेहरा जब बदसूरत हो जाता है, तो पीड़िता को खुद अपने चेहरे से नफरत हो जाती है। समाज के लोग भी उसके चेहरे को देखकर मुंह फेर लेते हैं। हिसार की रहने वाली कैफी पर होली के दिन 2011 में पड़ोसी ने झगड़े के चलते उसके चेहरे पर तेजाब डाल दिया था। जिससे उसका चेहरा तो बदसूरत हुआ ही, आंखें भी चली गईं। जब कैफी पर एसिड अटैक किया गया था, तब वह बच्ची थी। लेकिन बाद में किसी तरह कैफी ने अपने को संभाला और इसी साल उसने बारहवीं की सीबीएसई परीक्षा में 95.6 प्रतिशत अंक हासिल करके अपने समान एसिड अटैक का शिकार हुई बच्चियों के सामने एक उदाहरण पेश किया है। 

अगस्त 2025 में ही भिवानी में एक शराबी पिता ने अपनी सत्रह वर्षीय बेटी के चेहरे पर तेजाब फेंककर बदसूरत बना दिया। बेटी के प्रति पिता को गुस्सा इस बात का था कि वह अपने पिता को शराब पीने से रोकती थी और कापी किताबों के लिए पैसा मांगती थी। हरियाणा में ऐसी छिटपुट घटनाएं सामने आती रहती हैं। हालांकि प्रदेश सरकार ने एसिड़ अटैक की शिकार महिलाओं और बच्चियों को मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान कर रखी है। उनकी प्लास्टिक सर्जरी भी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त होती है। इसके साथ ही पीड़िता को पच्चीस हजार रुपये की सहायता तत्कालप्रदान की जाती है। इलाज के दौरान या बाद में पचहत्तर हजार रुपये की सहायता प्रदान की जाती है।

Friday, December 5, 2025

योग्य शिक्षक ने केलर को पढ़ना सिखाया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हेलेन एडम्स केलर का जीवन हमेशा संघर्षमय रहा। इसका कारण उनका दृष्टिहीन और बधिर होना था। जब वह 19 महीने की थीं, तभी एक बीमारी की वजह से वह दृष्टिहीन और बधिर हो गई थीं। ऐसी स्थिति में केलर का पढ़ना-लिखना और बोलना कितना कठिन रहा होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है।

 केलर का जन्म 27 जून 1880 को अमेरिका के अलबामा में हुआ था। ऐसे दिव्यांग बच्चों को शिक्षा देना आज भी बहुत कठिन माना जाता है। 1880 में कितना कठिन रहा होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। माता-पिता अपनी बेटी को शिक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन कोई योग्य शिक्षक ही उन्हें पढ़ा सकता था। काफी प्रयास के बाद एनी सुलिवन नामक शिक्षिका केलर के जीवन में भगवान के रूप में आई। 

उसने मैनुअल अल्फाबेट और ब्रेल लिपि से पढ़ना लिखना सिखाना शुरू किया। धीरे-धीरे केलर ने एनी सुलिवन की सहायता से पढ़ना-लिखना शुरू किया। बोलना भी सुलिवन ने काफी प्रयास के बाद सिखा दिया। संकेतों और ब्रेल लिपि के माध्यम से केलर ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीखा।  1902 में स्नातक की पढ़ाई करने के लिए हेलन केलर ने रेडक्लिफ कॉलेज में दाखिला लिया। 

इसके बाद उनमें लेखन का शौक जागा। उन्होंने अपनी जीवनी द स्टोरी आफ माई लाइफ लिखी जिसने उन्हें दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया। इस किताब का पचास से अधिक भाषाओं में अनुवाद हुआ। केलर ने महात्मा गांधी सहित कई विषयों पर कुल 14 पुस्तकें लिखीं। वह हमेशा दिव्यांगों और मजदूरों के पक्ष में लड़ती रहीं। 1964 में उन्हें अमेरिका का सर्वोच्च सम्मान प्रेसिडेंशियल मेडल आफ फ्रीडम प्रदान किया गया।

यमुना नदी को साफ सुथरा बनाने की शुरू हुई नई पहल


अशोक मिश्र

देश में जब भी प्रदूषित नदियों की बात चलती है, तो सबसे पहले गंगा और यमुना का नाम लिया जाता है। गंगा और यमुना नदी को साफ करने के नाम पर कई हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन अभी तक गंगा और यमुना नदियां साफ और प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाई हैं। दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बहने वाली यमुना नदी का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि अब वह छूने लायक नहीं बचा है। 

औद्योगिक कचरे का बहाव, बिना ट्रीट किया हुआ सीवेज, प्लास्टिक कचरा और खेती से निकलने वाला गंदा पानी जैसे कारणों से ही यमुना नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित हुई है। मिशन यमुना क्लीन-अप जैसे उपाय से यमुना नदी के बहुत ज्यादा प्रदूषित हिस्सों को फिर से जीवंत करने की कोशिश की जा चुकी है। लेकिन इसमें भी अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है। कई उपाय करने के बावजूद यमुना साफ नहीं हो सकी है। 

राज्य सरकार ने अब यमुना को हरियाणा में साफ रखने के लिए नई पहल करने का फैसला किया है। यदि यह योजना सफल रही, तो दूसरे राज्य भी इसका उपयोग कर सकते हैं। राज्य सरकार शहरों के बीच से गुजरने वाले गंदे नालों को साफ करके यमुना नदी में डालने का फैसला किया है। इसके लिए यमुनानगर, करनाल, पानीपत, सोनीपत और फरीदाबाद से होकर गुजरने वाली यमुना नदी से मिलने वाले नालों के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने का फैसला किया है। 

उम्मीद है कि एक महीने के भीतर ही अलग-अलग शहरों में ड्रेनों के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त कर दी जाएगी। नोडल एजेंसी तय करने के बाद उनके दायित्व तय किए जाएंगे। उनको यह जिम्मेदारी दी जाएगी कि उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले नालों का पानी साफ होकर ही यमुना नदी में मिले। दिल्ली और हरियाणा में भाजपा की ही सरकार होने की वजह से उम्मीद है कि दोनों प्रदेशों की सरकारें आपसी तालमेल से काम करेंगी और यमुना नदी को साफ और प्रदूषणरहित बनाकर छोड़ेंगी। 

यमुना नदी के प्रदूषण को देखते हुए मुख्यमंत्री नायब सैनी ने सख्त रुख अपनाया है। यमुना मॉनीटरिंग कमेटी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक प्रदेश के दस जिलों में प्रतिदिन 1164 एमएलडी सीवर का पानी निकलता है। एसटीपी के सही तरीके से काम न करने की वजह से केवल 521 एमएलडी पानी बिना ट्रीट किए यमुना में मिला दिए जाते हैं। इसकी वजह से यमुना का पानी पीने लायक तो क्या छूने लायक भी नहीं बचा है। हरियाणा स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक, यमुना प्रमुख रूप से प्रदेश के छह जिलों से होकर गुजरती है। हर जिले के गंदे नालों से निकलने वाला पानी बिना शोधित किए यमुना में डाला जाता है। राज्य सरकार की नई पहल से यमुना के साफ होने की उम्मीद जगी है।

Thursday, December 4, 2025

नोबल पुरस्कार मिलने का श्रेय शिक्षक को दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अल्बर्ट कामू वस्तुत: कम्युनिस्ट विचारधारा से ओतप्रोत फ्रांसीसी लेखक, दार्शनिक, पत्रकार और राजनीतिक व्यक्ति थे। कामू का जन्म 7 नवंबर, 1913 को फ्रांस के अल्जी़रिया के मांडोवी नामक नगर में हुआ था। उन दिनों अल्जीरिया फ्रांस का एक उपनिवेश हुआ करता था। 

कामू का बचपन बहुत गरीबी में बीता था। उनकी मां ने लोगों को घरों में झाड़ू पोछा करके भी पढ़ाया लिखाया था। वह शिक्षा का महत्व समझती थीं,यह वजह है कि तमाम परेशानियों के बावजूद कामू की पढ़ाई जारी रखी। कामू की प्रतिभा को पहचान कर प्राइमरी स्कूल के शिक्षक मॉन्सियो अर्जेन ने उनकी बहुत मदद की। अर्जेन ने छुट्टियों में पढ़ाया-लिखाया, स्कूल में भी उनका विशेष ध्यान रखा। 

जरूरत पड़ने पर उन्हें किताबें उपलब्ध करवाईं। अर्जेन की मेहनत और कामू की प्रतिभा आखिरकार रंग लाई और उन्हें छात्रवृत्ति हासिल हुई। जिसने उनकी आगे की पढ़ाई का रास्ता तैयार किया। बाद में उन्होंने अल्जीयर्स विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 44 साल की उम्र में अल्बर्ट कामू को 1957 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके कुछ प्रख्यात रचनओं में शामिल हैं दी स्ट्रेंजर, दी प्लेग, दी फाल एवं दी मिथ ओफ सिसिफुस। 

कहते हैं कि जब उन्होंने अपने को नोबल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा सुनी, तो सबसे पहले उन्हें अपनी मां की याद आई जिसने तमाम परेशानियां उठाकर भी पढ़ाई जारी रखी। दूसरे उन्हें याद आए प्राइमरी स्कूल के शिक्षक अर्जेन। बाद में उन्होंने अपने अध्यापक को आभार व्यक्त करते हुए एक पत्र भी लिखा जो आज फ्रांस की एक लाइब्रेरी में वह सुरक्षित रखा हुआ है। उन्होंने नोबल पुरस्कार मिलने का श्रेय अध्यापक को दिया है।

सर्दी में बेघर लोगों को शरण देने में नाकाम हैं रैनबसेरे

 अशोक मिश्र

सर्दियां आ गई हैं। सर्दियों में उन लोगों को ज्यादा परेशानी नहीं होती है जिनके पास पैसे हैं, गर्म कपड़े हैं, मकान हैं। ऐसे लोगों को सर्दियों में बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। पैसे की गर्मी इन्हें ठंड महसूस होने नहीं देती है। इनका खान-पान अच्छा होने की वजह से सर्दियों में होने वाली बीमारियां भी बहुत कम ही होती हैं। सर्दियों में सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों को होती है जिनके पास रहने को घर नहीं होते हैं। सड़क के किनारे किसी दुकान के गेट, पार्क में किसी पेड़ की आड़ में फटी पुरानी रजाई या कंबल में सर्दी की रात काटने वालों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। ऐसे लोग वे होते हैं जो किसी दूसरे प्रदेश से रोजी रोजगार की तलाश में आए हैं या फिर भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं। 

गर्मियों में किसी भी पार्क या दुकान के सामने अथवा फुटपाथ पर ही पतली सी चादर बिछाकर सोने वाले लोग सर्दी का मौसम अपने पर भी अपने लिए किराए के मकान का बंदोबस्त नहीं करते हैं। हरियाणा के कई जिलों में कुछ रिक्शा चालक गर्मी और बरसात के दिनों में अपने रिक्शे पर ही सोकर गुजारा कर लेते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत इन्हें सर्दियों में होती है। इन लोगों की परेशानियों को समझते हुए राज्य सरकार ने हर जिले में रैनबसेरों का निर्माण कर रखा है ताकि घर से वंचित लोग इन रैन बसेरों में रहकर अपना जीवन गुजार सकें। इन रैनबसेरों में व्यवस्था करने की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों के पास है। 

लेकिन राज्य के गई जिलों में रैन बसेरों की हालत यह है कि सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है। कई जिलों के रैन बसेरों में उजाले के नाम पर कुछ नहीं है। बिजली कनेक्शन है, तो बल्ब या ट्यूबलाइट नहीं लगी है। कुछ जगहों पर तो बिजली कनेक्शन ही नहीं है। रैनबसेरे में घुप्प अंधेरा रहता है। ऐसी स्थिति में अराजक तत्वों के घुस आने और वहां रह रहे लोगों के सामान आदि चोरी हो जाना का खतरा बना रहता है। कई जिलों में स्थित रैनबसेरों में फर्श पर बिछाने के लिए गद्दे तक नहीं हैं। 

गद्दे हैं, तो रजाई या कंबल नदारद हैं। यदि रजाई या कंबल हैं भी, तो इतने फटे और पुराने हैं कि उनको ओढ़कर भीषण ठंड से बचा नहीं जा सकता है। कई बार घर वंचित लोग इन रैन बसेरों की शरण लेने की जगह फुटपाथ या दूसरी जगहों पर फटा पुराना चादर या कंबल ओढ़कर सो जाते हैं। ठंड बढ़ जाने पर कई लोगों की मौत भी हो जाती है। पिछले साल भी राज्य में फुटपाथ पर सोने वाले कुछ भिखारियों की जान भी जा चुकी है। प्रदेश सरकार इन रैनबसेरों में व्यवस्था करने का निर्देश सर्दियों के दिन शुरू होने  से बहुत पहले दे देती है, लेकिन नगर निगम, नगर महापालिका या ग्राम पंचायतों के अधिकारी कर्मचारी लापरवाही करते हैं जिसका खामियाजा बेघर लोगों को भुगतना पड़ता है। अलाव की व्यवस्था भी ढंग से नहीं होती है।

Wednesday, December 3, 2025

कार्त्यायनी अम्मा ने बुढ़ापे में पास की परीक्षा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

यदि कुछ कर गुजरने की आकांक्षा और लगन हो, तो कोई भी काम असंभव नहीं होता है। उम्र भी काम में बाधा नहीं बनती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया था केरल राज्य के हरिपद जिले के चेपड़ की रहने वाली कार्त्यायनी अम्मा ने। कार्त्यायनी अम्मा का जन्म 1922 को हुआ था। उनका बचपन काफी गरीबी में बीता था। छोटी उम्र में ही उन्हें पढ़ाई-लिखाई करने की जगह सड़कों पर झाडू लगाने और लोगों के घरों में नौकरानी का काम करना पड़ा। बड़ी होने पर उन्होंने विवाह किया और उनके छह बच्चे पैदा हुए। 

इसी तरह उनका जीवन बीतता रहा। लेकिन असली मोड़ तब आया जब उनकी बेटी ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। तब तक उनकी उम्र 94-95 साल हो चुकी थी। आमतौर पर इतनी उम्र के बाद लोग कुछ करने की चाहत नहीं रखते हैं। लेकिन जब बेटी ने उन्हें प्रेरित किया, तो उन्होंने भी ठान लिया कि अब पढ़ना-लिखना है। घर पर उनके पौत्र-पोत्रियों ने पढ़ाई में उनकी मदद की। 

उन्होंने 96 साल की उम्र में केरल राज्य साक्षरता मिशन अथारिटी की ओर से संचालित अक्षरलक्ष्यम साक्षरता परीक्षा में भाग लेने का फैसला किया। उन्होंने बड़े जोश के साथ परीक्षा दी। इस परीक्षा में उन्होंने सौ में से 98 अंक हासिल करके रिकार्ड तोड़ दिया। उस साल अक्षरलक्ष्यम परीक्षा में चालीस हजार से ज्यादा लोगों ने परीक्षा दी थी। परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद तो वह पूरे देश में मशहूर हो गईं। 

उनकी जिजीविषा को देखते हुए 2019 में उन्हें कॉमनवेल्थ आफ लर्निंग का गुडविल पुरस्कार दिया गया। अगले साल तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 2021 में उनकी मृत्यु हो गई।

आ गया धुंध और कोहरे का मौसम सावधानी से वाहन चलाएं चालक

अशोक मिश्र

आमतौर पर उत्तर भारत में नवंबर से लेकर जनवरी या फरवरी के पहले सप्ताह तक खूब सड़क हादसे होते हैं। हरियाणा में भी इन तीन महीनों में हादसे चरम पर होते हैं। पिछले साल नवंबर से जनवरी के बीच पूरे प्रदेश में 963 सड़क हादसे हुए थे। अब दिसंबर की शुरुआत हो चुकी है। नवंबर महीने में थोड़ी राहत इसलिए महसूस की गई क्योंकि इस बार नवंबर में कोहरा या स्मॉग छिटपुट स्थानों को छोड़कर कहीं नहीं देखने को मिला। लेकिन दिसंबर में कोहरा या धुंध पड़ना अनिवार्य है।

फिलहाल दो महीने तक वाहन चालकों को सावधानी बरतनी होगी। इन दो महीनों में होता यह है कि धुंध और कोहरे के चलते सड़क किनारे बिना रिफ्लेक्टर के खड़े वाहनों से सामने से आ रहे वाहन टकरा जाते हैं। सड़क पर बनी सफेद पट्टियां न होने की वजह से कई बार वाहन सड़क से नीचे चले जाते हैं। असल में इन महीनों में कोहरे या धुंध छाने की वजह से दृश्यता लगभग शून्य हो जाती है जिसकी वजह से दो-चार मीटर की दूरी के बाद कुछ भी दिखाई नहीं देता है। 

ऐसे में सड़क किनारे खड़े वाहन हादसे का कारण बन जाते हैं। इन दिनों सड़कों पर घूमने वाले लावारिस पशु भी सड़क हादसों का एक प्रमुख कारण होते हैं। धुंध की वजह से जब तक सड़क पर खड़े लावारिस पशु दिखाई देते हैं, तब तक हादसा हो चुका होता है। प्रदेश में एक जनवरी से लेकर अक्टूबर 2025 तक लगभग चार हजार लोगों को यह सड़क निगल चुकी है। इस बीच सड़क हादसों का शिकार होकर  31 हजार लोग घायल हुए हैं। इनमें कुछ ऐसे भी हैं जो सड़क हादसों के बाद दिव्यांग हो चुके हैं। अगर हम राष्ट्रीय रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ो के आधार पर बात करें, तो साल 2023 में 5533 लोगों की सड़क हादसों में जान चली गई थी। इनमें 4501 पुरुष और 832 महिलाएं थीं। यदि सीधे सपाट लहजे में बात कही जाए तो दो साल पहले 15 लोग ऐसे थे, जो घर से तो जीवित निकले थे, लेकिन बाद में उनकी लाश ही घर आई थी। 

उस वर्ष देश भर में हुए सड़क हादसों में हरियाणा की भागीदारी 3.4 प्रतिशत रही थी। हालांकि इस वर्ष ऐसी हालत न आए, इसके लिए प्रदेश सरकार ने पहले से ही सड़कों की दशा सुधारने का प्रयास करना शुरू कर दिया था। लोक निर्माण विभाग के मंत्री रणबीर गंगवा ने अधिकारियों के साथ बैठक करके सुरक्षा के सभी उपाय अपनाने का आदेश दे दिया था। फिलहाल पूरे राज्य की सड़कों पर सफेट पट्टियां बनाने से लेकर सड़क सुरक्षा के लिए साइन बोर्ड लगाए जा रहे हैं। अन्य उपाय भी अपनाए जा रहे हैं ताकि किसी को सड़क हादसों के चलते अपनी जान न गंवानी पड़े। इसके लिए जरूरी है कि वाहन चालक भी धुंध के समय अपना वाहन चलाते समय सावधानी बरतें। वाहन की गति उतनी ही रखें जितनी कि आपदा के समय वाहन को संभाल सकें।

Monday, December 1, 2025

दूसरों के सहारे जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हर व्यक्ति को अपनी प्रतिभा और ज्ञान पर भरोसा करना चाहिए। किसी दूसरे की सहायता से जीवन का थोड़ा बहुत मार्ग तो तय किया जा सकता है, लेकिन यदि व्यक्ति में खुद कुछ करने की क्षमता नहीं है, तो दूसरों की मदद से हासिल की गई सफलता टिकाऊ नहीं होती है। 

व्यक्ति को अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों का सामना खुद ही करना पड़ता है। किसी राज्य में एक गुरु ने आश्रम खोल रखा था। उस आश्रम में गुरुजी के बहुत सारे शिष्य अध्ययन करते थे। गुरु जी तमाम विषयों की शिक्षा देने के साथ-साथ जीवन के व्यावहारिक पक्ष की भी शिक्षा दिया करते थे। शिष्य भी मन लगाकर गुरु जी की बताई बातों पर ध्यान दिया करते थे। 

एक दिन ऐसा हुआ कि एक शिष्य को अपने गुरु जी से मंत्रणा करते देर हो गई। गुरु और शिष्य छत पर विचारविमर्श कर रहे थे। शिष्य जब नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों के पास आया, तो उसने देखा कि यह तो बहुत अधिक अंधेरा है। उसने अपने गुरु जी के पास जाकर कहा कि सीढ़ियों पर तो बहुत अंधेरा है। मैं कैसे नीचे उतरूं। यदि अंधेरे में उतरने का प्रयास किया
, तो गिर जाऊंगा। गुरुजी ने तत्काल एक दीपक जला दिया। जैसे ही शिष्य ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा, गुरु जी ने तत्क्षण दीपक बुझा दिया। 

अब फिर पहले की तरह अंधेरा हो गया था। शिष्य ने कहा कि गुरु जी, यह आपने क्या किया? अभी तो मैंने पहली ही सीढ़ी पर पैर रखा था। गुरुजी ने कहा कि तुम कब तक दूसरों के सहारे जीवन व्यतीत करोगे। तुम पहले तो अपने भीतर अंधकार से जूझने की शक्ति पैदा करो या फिर अंधेरे से लड़ने के लिए अपना दीपक तलाशो। दूसरों के सहारे जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता है।

निस्वार्थ सेवा करने वालों की भी कमी नहीं है हमारे समाज में

अशोक मिश्र

छह सात महीने पहले की बात है। मिलेनियम सिटी गुरुग्राम में फैली गंदगी को लेकर जब पूरे देश में चर्चा हो रही थी। फ्रांसीसी महिला मैथिलडे आर ने जब गुरुग्राम को सुअरों के रहने लायक बताते हुए पोस्ट डाली थी, तब भी कुछ लोग ऐसे थे जो गुरुग्राम को साफ-सुथरा बनाने की लगातार कोशिश कर रहे थे। उन्हें अपने काम के लिए न किसी से ईनाम की अपेक्षा थी और न ही किसी तरह के प्रचार की। वह अपना नैतिक दायित्व समझ कर अपने काम को अंजाम दे रहे थे। उन्हें इस बात की भी चिंता नहीं थी कि लोग क्या कहेंगे? 

परिचित लोग उन्हें सड़कों की सफाई करते हुए या नालियां साफ करते हुए देखेंगे, तो किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे। उन्हें तो बस अपने काम से मतलब था। ऐसे ही लोगों में सर्बिया का  नागरिक 32 वर्षीय लेजर जेनकोविक भी था जो अपने काम में लगा हुआ था। दरअसल, ऐसे लोग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। हरियाणा में भी बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जो अपनी गली या मोहल्ले में बिना किसी खास प्रयोजन के भी सड़कों को साफ सुथरा रखने लगे हुए हैं। यह काम करने के लिए किसी ने उनसे अनुरोध
नहीं किया है, उन्हें इस काम के बदले में पैसा भी नहीं मिलना है, लेकिन वह प्रदेश का नागरिक होने का दायित्व चुपचाप निभा रहे हैं। 

कभी शिक्षक रहे सीनियर सिटीजन सेवानिवृत्ति के बाद भी निजी तौर पर कमजोर छात्रों को बिना को शुल्क लिए पढ़ा रहे हैं। यदि किसी को आपात स्थिति में किसी भी ब्लड ग्रुप का रक्त चाहिए, तो प्रदेश के लगभग सभी जिलों में ऐसे लोग मिल जाएंगे जो बड़ी तत्परता से जरूरतमंद तक मांगे गए ग्रुप का ब्लड उपलब्ध करा देते हैं। इसके लिए उन्हें पारिश्रमिक भी नहीं चाहिए। सर्दी के दिनों में गरीब बस्तियों में कंबल, रजाई और पहनने के लायक गर्म कपड़े बांटने के लिए बहुत सारे लोग आगे आ जाते हैं। यह लोग चुपचाप गरीब बस्तियों में जाकर उनकी दुख-तकलीफों की जानकारी लेते हैं और उन्हें उन परेशानियों से निजात दिलाते हैं। बहुत सारी संस्थाएं और काफी संख्या में लोग निजी स्तर पर जरूरतमंदों की मदद करते हैं। वह अपने खर्चों में कभी कभी कटौती भी कर लेते हैं, लेकिन जरूरतमंद की मदद जरूर करते हैं। 

अकसर देखने में आता है कि यदि कहीं जाम लगा हुआ है, एंबुलेंस फंसी हुई है, एकाएक एक आदमी सामने आता है। वह ट्रैफिक कंट्रोल करता है, लोगों को जाम से मुक्ति दिलाता है और जैसे ही सड़क सुचारु रूप से चलने लगती है, वह व्यक्ति गायब हो जाता है। लोग समझ नहीं पाते हैं कि वह व्यक्ति कहां से आया था और कहां चला गया। लोगों की मदद करने का जज्बा आज भी इन विपरीत परिस्थितियों में भी जाग्रत है। यह सही है कि समाज में लूट-खसोट, भ्रष्टाचार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन यह भी सच है कि समाज में आज भी अच्छे और सच्चे लोग मौजूद हैं।