अशोक मिश्रगुजरात से दिल्ली तक आने वाली अरावली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है। अफसोस इस बात का है कि पिछले कई दशकों से अरावली पर्वत श्रेणियों को नेस्तनाबूत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अब तो लगता है कि इस काम में सरकार भी शामिल हो गई है। नए सरकारी नियमों के मुताबिक अब अरावली पहाड़ी का मतलब तय जिलों में कोई भी जमीन होगी जिसकी ऊंचाई सौ मीटर से अधिक हो और अरावली रेंज में दो या दो से अधिक पहाड़ियों का समूह होगा जो एक दूसरे से पांच सौ मीटर के अंदर हों।
इस नियम को लेकर पर्यावरणविदों में विरोध है। उनका कहना है कि इस नए नियम से अरावली के बहुत सारे हिस्से में जो सौ मीटर की ऊंचाई से कम होंगी, उनमें वैध या अवैध खनन का मौका मिलेगा। पिछले कई दशकों से अरावली क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन और पेटों की कटाई ने हालत को बदतर बना दिया है। पिछले पंद्रह साल में खनन माफिया ने आठ से दस किमी क्षेत्र में पूरी पहाड़ी को ही वीरान कर दिया। 2023 के दौरान राजस्थान में किए एक अध्ययन के मुताबिक 1975 से 2019 के बीच अरावली की करीब आठ फीसदी पहाड़ियां गायब हो गईं।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि अगर अवैध खनन और शहरीकरण ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2059 तक यह नुकसान 22 फीसदी पर पहुंच जाएगा। स्थानीय निकायों से जुड़े कर्मचारियों और निजी कंपनियों ने शहर का कूड़ा-कचरा भी अरावली की घाटियों में डालकर उसे काफी नुकसान पहुंचाया है। प्रदेश में अरावली की 24990 हेक्टेयर भूमि ऐसी है जो बंजर हो चुकी है। इसमें फरीदाबाद की साढ़े तीन हजार हेक्टेयर भूमि भी शामिल है। सतत संपदा क्लाइमेट फाउंडेशन के संस्थापक हरजीत सिंह का मानना है कि सौ मीटर नियम से अरावली रेंज को काफी नुकसान पहुंचेगा।
अरावली की पहाड़ियां उत्तर भारत को प्राणवायु प्रदान करती हैं। बरसात के दिनों में अपनी दरार और पेड़-पौधों के माध्यम से अरावली पर्वतमाला कुओं और जमीनों को जल प्रदान करती है। नए नियम से यह सब कुछ होना बंद हो जाएगा। इससे ईको सिस्टम में काफी बदलाव आएगा। इन्हीं मुद्दों के चलते ही कुछ पर्यावरण प्रेमियों ने अरावली क्षेत्र में बनने वाले दुनिया के सबसे बड़े जंगल सफारी का मुद्दा सुप्रीमकोर्ट तक पहुंचा दिया है। मामला कोर्ट में पहुंच जाने की वजह से फिलहाल जंगल सफारी का काम रोक दिया गया है।
अरावली क्षेत्र में होने वाले अवैध खनन में डायनामाइट, सड़कें और गड्ढों की वजह से तेंदुओं के आने जाने के रास्ते नष्ट हो रहे थे। यही नहीं, अरावली रेंज में आने वाले गांवों के सार्वजनिक और दिल्ली-एनसीआर की हरित ढाल भी नष्ट हो रही थी। नए नियम में सरकार को सुधार करना चाहिए।

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