Tuesday, April 5, 2011

रिश्वत बिना सब सून


-अशोक मिश्र


‘भाई साहब! यह अन्ना हजारे क्या बला है?’ कल पीडब्ल्यूडी का एक जूनियर इंजीनियर खन्ना मुझसे पूछ रहा था। ‘भल बताइए, यह भी कोई बात हुई। भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठ गए।’ मैंने उसकी बुद्धि पर तरस खाते हुए कहा, ‘अन्ना हजारे एक बहुत बड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनकी हनक इतनी है कि मुंबई का बड़े से बड़ा दादा और भाई रोज सुबह शाम पांव छूने आते हैं। केंद्र सरकार तक उनकी ईमानदारी और साफगोई की कसमें खाती है।’ ‘तो इसका मतलब अन्ना हजारे सामाजिक क्षेत्र के दादा हैं, ठीक वैसे ही जैसे आपराधिक क्षेत्र के दादा अपने दाऊद भाई हैं।’ जूनियर इंजीनियर ने अपना ज्ञान बघारा। मैं कुछ बोलता, इससे पहले खन्ना बोल उठा, ‘ यह बताओ, उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठने की क्या जरूरत थी। अगर दाल या सब्जी में से नमक गायब कर दिया जाए, तो दाल या सब्जी कैसी लगेगी। बिल्कुल फीकी, स्वादहीन। इसे खाने में मजा आएगा? अब अगर कोई कहे कि इस दुनिया से सभी रंगों को गायब कर दो, तो दुनिया कैसी लगेगी। रंगहीन दुनिया की कल्पना करके देखो, पसीने छूट जाएंगे। ठीक ऐसे ही कल्पना करो कि इस देश-दुनिया से भ्रष्टाचार खत्म हो गया है, तो फिर क्या इस दुनिया में जीना पसंद करेगा। भ्रष्टाचार खत्म होते ही हम सबके जीने का मकसद ही खत्म हो जाएगा।’ मैंने प्रतिवाद किया, ‘अन्ना दादा जो कुछ कर रहे हैं, वह राष्ट्रहित में है। भ्रष्टाचार खत्म होते ही देश के विकास की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगेगी। सब तरफ खुशहाली और अमीरी छा जाएगी। यह तुम क्यों नहीं सोचते।’ ‘अरे, विकास की गाड़ी दौड़ाने के लिए और भी तो कई रास्ते हैं। उस पर तुम्हारे ये अन्ना दादा चाहे रेलगाड़ी चलाएं, चाहे ट्रक। किसी ने रोका है उन्हें। लेकिन वे हम लोगों के पेट पर लात क्यों मारते हैं। अगर भ्रष्टाचार खत्म हो गया, तो क्या हम-आप जैसे लोग अपने बच्चों को महंगे-महंगे स्कूलों में पढ़ा सकेंगे। उन्हें ऐश करने के लिए ढेर सारे पैसे और मोटर बाइक आदि कहां से लेकर दे पाएंगे। सूखी तनख्वाह से तो दाल-रोटी चल जाए, यही बहुत है। यह बताओ, अन्ना हजारे अपने को गांधीवादी कहते हैं, लेकिन गांधी जी ने तो कभी भ्रष्टाचार का विरोध नहीं किया। अरे, गांधी बाबा तो अपनी बकरी को भी मेवे खिलाते थे, ताकि वह उन्हें बदले में पौष्टिक दूध दे। वे कभी भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी के खिलाफ अनशन पर नहीं बैठे। यदि वे रिश्वतखोरी को बुरा समझते, तो विरोध कर सकते थे। लेकिन उन्होंने कभी इसका विरोध किया हो, ऐसा कहीं लिखा नहीं है।’ मैं कुछ कहता, इससे पहले खन्ना ने अपनी बाइक उठायी और चलता बना। मैं वहीं खड़ा उसकी बातो पर गौर करता रहा।

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