Monday, February 16, 2015

अंकल ...चंदा दो

अशोक मिश्र
मैं सोकर ही उठा था कि दस-बारह लड़कों ने मेरा घर घेर लिया। मैंने सवालिया निगाहों से उनकी ओर देखा, तो उनका गुंडा नुमा नेता अपने झुंड से बाहर आया। उसने साफ सुथरे फर्श पर पान की पीक थूकते हुए कहा, 'अंकल..चंदा दो।Ó सुबह-सुबह चंदा मांगने की बात से मैं उखड़ गया, 'तुमने मेरे घर को किसी कंपनी का दफ्तर समझ रखा है क्या कि मुंह उठाया और चले आए चंदा मांगने। मैं किसी पार्टी-शार्टी को चंदा-वंदा नहीं देता। भाग जाओ।Ó नेता नुमा गुंडा गुर्राया, 'चंदा तो आपके पुरखे भी देंगे, आप क्या चीज हैं।Ó
बात आगे बढ़ती कि तभी घरैतिन बाहर निकल आईं। पत्नी को देखते ही गुंडा नुमा नेता ने झुककर उनके चरण स्पर्श करते हुए कहा, 'आंटी..देखिए न! हजार-पांच सौ रुपये के होली के चंदे के लिए अंकल किस तरह हुज्जत कर रहे हैं। आप समझाइए न इनको।Ó घरैतिन ने पांच सौ रुपये का नोट आगे बढ़ाते हुए कहा, 'अरे बेटा! जाने दो। सठियाया आदमी ऐसा ही होता है।Ó और फिर मुझे घूर कर देखा।
चंदा मांगने आए लड़कों के चेहरे पर पांच सौ का नोट देखते ही एक चमक आ गई। लड़के ने नोट को उलट-पलट कर देखने लगा। मुझसे रहा नहीं गया, 'अबे! नोट को ऐसे क्या देख रहा है?Ó 'कुछ नहीं अंकल! देख रहा था कि कहीं कालाधन तो नहीं है। लोग आजकल काले धन को ही चंदे में देते हैं। अच्छा यह बताइए, आप इनकम टैक्स तो देते हैं न। पैन कार्ड तो होगा ही।Ó मैं गुस्से से उबल पड़ा, 'हां..हां..यह काला धन ही है। वापस कर दे मेरा पैसा। हवाला के जरिये अभी थोड़ी देर पहले स्विटजरलैंड से मंगाया है।Ó मेरी बात सुनते ही लड़के हंस पड़े। उनमें से एक ने कहा, 'अंकल! आप एक बात बताइए। आपने जो यह पांच सौ का नोट होली के चंदे में दिया है, वह किस दिन की कमाई का है? मेरा मतलब है कि इस महीने की सैलरी का है या पिछले महीने का। या फिर उससे भी पिछले महीने का? आप अपनी बचत में से दे रहे हैं या फिर आंटी की बचत का? इनकम टैक्स पेयर तो आप हैं कि नहीं? आपने पैनकार्ड बनवा रखा है कि अभी बनवाना है? आधार कार्ड तो होगा न आपके पास?Ó
'अबे! तुम लोग चंदा मांगने आए हो या चंदे के बहाने डकैती डालने की खातिर रैकी करने।Ó मैं उबल पड़ा। 'वो क्या है न, अंकल! आजकल बड़ा ध्यान रखना पड़ता है। पहले सब कुछ कितना आसान था होली का चंदा मांगना। जिसके घर चंदा मांगने गए, थोड़ी बहुत हुज्जत के साथ चंदा दे देता था। मान लीजिए नहीं दिया चंदा, तो उसकी कुर्सी-मेज, पलंग रात में उठाकर होली में डाल दिया। थोड़ी दारू ज्यादा हो गई, तो मार-पीटकर ली। होली बीती, तो माफी मंगा ली। लेकिन अब चंदा न मिलने से ज्यादा लफड़े वाला काम चंदा मिलना हो गया है। सब कुछ ध्यान रखना पड़ा है। आप तो सब कुछ समझते ही हैं अंकल। आपको क्या बताना।Ó इतना कहकर चंदा मांगने वाला का हुजूम आगे बढ़ गया।

2 comments:

  1. bahut sundar vyang likha hai ji < aap ne baaton baaton main ye jataa diya ki kezriwal se naa poochha jaaye !

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