Sunday, February 22, 2015

वित्तमंत्री के सामने चुनौतियां का पहाड़

अशोक मिश्र
आगामी २८ फरवरी को बजट पेश करने जा रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने लोगों की अपेक्षाओं का बहुत बड़ा पहाड़ खड़ा हुआ है। नौकरी पेशा मध्यम वर्ग, निवेशक, उद्योगपतियों से लेकर इस देश के मजदूर, किसान तक की निगाहें अरुण जेटली के आम बजट पर टिकी हुई हैं। कहा तो यह जा रहा है कि वित्त मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की इकोनॉमी रेट को ७-८ फीसदी के लक्ष्य तक पहुंचाने और उस स्तर को बनाए रखने की है। अगर वित्त मंत्री जेटली आर्थिक विकास की दर बरकरार रखने में सफल हो जाते हैं, तो यह उनकी बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। माना यह भी जा रहा है कि आगामी दो वर्षों के लिए डेफिसिट का टारगेट घरेलू आय का क्रमश: 3.6 फीसदी और 3.0 फीसदी रखेंगे। जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, तब से प्रधानमंत्री देश-विदेश में पूंजी निवेशकों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत में पूंजी निवेश के संबंध में आने वाली बाधाओं को दूर करने की भरपूर कोशिश की जा रही है। यहां पंूजी निवेश का अच्छा माहौल उनकी सरकार बना रही है। ऐसे में स्वाभाविक है कि इन निवेशकों को बजट में डीजल पर से मूल्य प्रतिबंध हटाने और सब्सिडी पर दिए जा रहे अन्य पेट्रोलियम पदार्थों पर सुधार की दिशा में कदम उठाए जाते रहेंगे। निवेशकों को यह भी उम्मीद है कि वे इस बार के बजट में खाद्य और उर्वरकों पर दी जा रही सब्सिडी पर होने वाले खर्च में कटौती को कोई कारगर कदम उठाएंगे। वित्त मंत्री अरुण जेटली से सबसे अधिक देश के मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों मसलन, सरकारी नौकरी पेशा, मजदूर, किसान और बेरोजगारों को है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) की जब से शुरुआत हुई है, तब से यह विवादों में है। कभी इसमें होने वाले भ्रष्टाचार की चर्चा होती है, तो कभी इससे ग्रामीणों को मिलने वाले लाभ की। मनरेगा  दुनिया भर में आम जनता के हित में चलने वाली सबसे बड़ी योजना मानी जाती है। इस योजना से देश में करीब पांच करोड़ परिवारों को वर्ष में सौ दिन से अधिक रोजगार मिलता है। हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह योजना उन करदाताओं पर बोझ है जिनके खून पसीने की कमाई से उगाहे गए कर का उपयोग किया जाता है। यदि इस धनराशि का उपयोग अन्य उत्पादक कार्यों में किया जाता, तो शायद विकास की गति कुछ ज्यादा ही तेज होती। वित्त मंत्री से उम्मीद है कि वे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून में संतुलन स्थापित करने की कोशिश करेंगे।
दिसंबर में संसद में पेश एक रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय ने कमजोर कार्पोरेट खर्च को गति देने के लिए भारी सरकारी निवेश का आहवान किया था। वित्त मंत्रालय का मानना है कि भारत को हर साल 7 फीसदी ग्रोथ के लिए करीब 50,000 अरब रुपये निवेश की जरूरत है। जेटली से उम्मीद है कि वह नई सड़कों, रेल लाइनों, बंदरगाहों और सिंचाई की सुविधा पर खर्च करने के लिए बजट में करीब 800 अरब रुपये का प्रावधान कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशी और विदेशी पूंजी निवेश को आकर्षित करने के लिए मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम की शुरुआत की है। हालांकि इस क्रार्यक्रम की आलोचना भी सबसे ज्यादा हो रही है। कहा तो यह जा रहा है कि इस योजना के माध्यम से उन देशों को राहत पहुंचाने की कोशिश की जा रही है जिन देशों में श्रम बहुत महंगा है। भारत में श्रम सस्ता होने से विदेशी कंपनियां भारतीय श्रम का उपयोग तो करेंगी, लेकिन उससे होने वाले अतिरिक्त मूल्य यानी मुनाफा सिमटकर उन देशों में चला जाएगा, जिस देश की ये कंपनियां हैं। बहरहाल, इन पूंजी निवेशकों को इस बजट से यह उम्मीद तो है कि वर्ष २०१५-१६ के लिए वित्त मंत्री मेक इन इंडिया जैसे दूसरे कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए कई सेक्टरों को टैक्स में छूट का प्राविधान कर सकते हैं। उन्हें दूसरे किस्म की सुविधाएं भी प्रदान की जा सकती हैं। लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा ने घोषणा की थी कि यदि उनकी सरकार बनी, तो पूरे देश में वस्तु एवं सेवा कर लागू किया जाएगा। वह मौका अब आ गया है। भारतीय उद्योगपतियों को यह उम्मीद है कि वित्तमंत्री एक अप्रैल से पूरे देश में एक समान वस्तु एवं सेवा कर लागू करके अपना वायदा पूरा करेंगे। हालांकि, इससे होने वाले राजस्व घाटे को कैसे पूरा करेंगे, इसका आश्वासन जब तक सरकार नहीं देती, तब तक यह अभी दूर की कौड़ी लग रही है। इन्वेस्टर्स जनरल ऐंटी एवायडेंस रूल्स (गार) और बैंकिंग रिफॉम्र्स जैसे मुद्दों पर अभी संशय के बादल छंटे नहीं हैं। इस संबंध में केंद्रीय वित्त मंत्री का रवैया क्या होगा, यह बजट पेश होने पर ही पता चलेगा।

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