-अशोक मिश्र
अगर आपसे पूछा जाए कि पुराण कितने हैं, तो आप अपने बचपन में रटा हुआ ‘अष्टादश पुराणेषु..’ सुना देेंगे। जी नहीं, इन पुराणों के अलावा एक पुराण होता है ‘मोहल्ला पुराण’। यह पुराण वाचिक परंपरा का वाहक होता है। वाचिक और श्रव्य परंपरा में समय-असमय, रात-विरात हर मोहल्ले में ‘मोहल्ला पुराण’ का लेखन अनवरत चलता रहता है। समय के अदृश्य पृष्ठ पर मोहल्लावासी मौखिक रूप से मोहल्ला पुराण लिखते रहते हैं। इस पुराण के पुराने पृष्ठ दिन, सप्ताह, महीने में खुद ब खुद काल कवलित होते रहते हैं और नए पृष्ठ स्वत: जुड़ते चले जाते हैं। मोहल्ला वालों में लेखकीय गुण या उनका संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, पाली, पाकृत जैसी भाषाओं में प्रवीण होना कतई जरूरी नहीं है। कानाफूसी, बतकूचन या अफवाह फैलाने की कला में निष्णात स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध इसके रचनाकार हो सकते हैं। बस, रचनाकार के पास चटपटी, मसालेदार खबरों का अकूत कोष होना चाहिए।
किसका किससे टांका भिड़ा है। किसने अपने अड़ोसी या पड़ोसी को कुत्ता, गधा, बदतमीज, नकारा, आवारा, पागल या घमंडी कहा, तो अड़ोसी या पड़ोसी ने ऐसा कहने वाले की मां-बहन, बेटी से अंतरंग रिश्ते कायम किए। पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी, तिवारी जी, कुशवाहा जी आदि जितने भी ‘जी’ टाइप के व्यक्ति हैं, उनके घर की कलह या प्रणय कथाओं का वाचन-श्रवण मोहल्ला पुराण की दैनिक, साप्ताहिक या मासिक कतई अनैतिक नहीं माना जाता है। नैतिकता-अनैतिकता जैसी वाहियात दर्शन और सिद्धांत मोहल्ला पुराण में वर्ज्य माने जाते हैं। किसकी बहन, बेटी, मां सुबह घर से निकली थी और देर रात को घर वापस आई थी। पड़ोसी के घर में आज सब्जी बनी थी या कढ़ाई पनीर िकसी होटल से आया था। मिसेज वर्मा की रामू की अम्मा, प्रदीप की भाभी, शकुंतला की ननद से लड़ाई होने वाली है। ऐसी खबरें मोहल्ला पुराण में सबसे ऊपर स्थान पाती हैं।
जैसे कोई ठीक-ठीक यह नहीं बता सकता कि ‘अट्ठारह पुराण’कब लिखे गए और किसने लिखा, ठीक उसी तरह मोहल्ला पुराण भी कालातीत हैं। जब से समाज अस्तित्व में आया है, तब से मोहल्ला पुराण में रोज कुछ न कुछ जोड़ा-घटाया जा रहा है। इससे पहले जब आबादी कम थी, लोग गांवों या नगरों में रहते थे, तब इसे गांव या नगर पुराण कहते रहे होंगे। बाद में जैसे-जैसे समाज का विकास हुआ, नगर, कस्बा, मोहल्ला और गांव के नाम पर इसका नामकरण होता गया। मोहल्ला या गांव पुराण में ऐसे-ऐसे चुटीले और व्यंग्यीले (कुछ-कुछ रंगीले जैसा) प्रसंग रोज दर्ज होते रहते हैं, जिसको पढ़कर दुनिया भर के व्यंग्यकारों की चुटैया खड़ी हो जाए। अगर देश के व्यंग्यकार मोहल्ला पुराण के लेखकों से कुछ सीख सकें, तो व्यंग्य का बहुत भला होगा।
अगर आपसे पूछा जाए कि पुराण कितने हैं, तो आप अपने बचपन में रटा हुआ ‘अष्टादश पुराणेषु..’ सुना देेंगे। जी नहीं, इन पुराणों के अलावा एक पुराण होता है ‘मोहल्ला पुराण’। यह पुराण वाचिक परंपरा का वाहक होता है। वाचिक और श्रव्य परंपरा में समय-असमय, रात-विरात हर मोहल्ले में ‘मोहल्ला पुराण’ का लेखन अनवरत चलता रहता है। समय के अदृश्य पृष्ठ पर मोहल्लावासी मौखिक रूप से मोहल्ला पुराण लिखते रहते हैं। इस पुराण के पुराने पृष्ठ दिन, सप्ताह, महीने में खुद ब खुद काल कवलित होते रहते हैं और नए पृष्ठ स्वत: जुड़ते चले जाते हैं। मोहल्ला वालों में लेखकीय गुण या उनका संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, पाली, पाकृत जैसी भाषाओं में प्रवीण होना कतई जरूरी नहीं है। कानाफूसी, बतकूचन या अफवाह फैलाने की कला में निष्णात स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध इसके रचनाकार हो सकते हैं। बस, रचनाकार के पास चटपटी, मसालेदार खबरों का अकूत कोष होना चाहिए।
किसका किससे टांका भिड़ा है। किसने अपने अड़ोसी या पड़ोसी को कुत्ता, गधा, बदतमीज, नकारा, आवारा, पागल या घमंडी कहा, तो अड़ोसी या पड़ोसी ने ऐसा कहने वाले की मां-बहन, बेटी से अंतरंग रिश्ते कायम किए। पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी, तिवारी जी, कुशवाहा जी आदि जितने भी ‘जी’ टाइप के व्यक्ति हैं, उनके घर की कलह या प्रणय कथाओं का वाचन-श्रवण मोहल्ला पुराण की दैनिक, साप्ताहिक या मासिक कतई अनैतिक नहीं माना जाता है। नैतिकता-अनैतिकता जैसी वाहियात दर्शन और सिद्धांत मोहल्ला पुराण में वर्ज्य माने जाते हैं। किसकी बहन, बेटी, मां सुबह घर से निकली थी और देर रात को घर वापस आई थी। पड़ोसी के घर में आज सब्जी बनी थी या कढ़ाई पनीर िकसी होटल से आया था। मिसेज वर्मा की रामू की अम्मा, प्रदीप की भाभी, शकुंतला की ननद से लड़ाई होने वाली है। ऐसी खबरें मोहल्ला पुराण में सबसे ऊपर स्थान पाती हैं।
जैसे कोई ठीक-ठीक यह नहीं बता सकता कि ‘अट्ठारह पुराण’कब लिखे गए और किसने लिखा, ठीक उसी तरह मोहल्ला पुराण भी कालातीत हैं। जब से समाज अस्तित्व में आया है, तब से मोहल्ला पुराण में रोज कुछ न कुछ जोड़ा-घटाया जा रहा है। इससे पहले जब आबादी कम थी, लोग गांवों या नगरों में रहते थे, तब इसे गांव या नगर पुराण कहते रहे होंगे। बाद में जैसे-जैसे समाज का विकास हुआ, नगर, कस्बा, मोहल्ला और गांव के नाम पर इसका नामकरण होता गया। मोहल्ला या गांव पुराण में ऐसे-ऐसे चुटीले और व्यंग्यीले (कुछ-कुछ रंगीले जैसा) प्रसंग रोज दर्ज होते रहते हैं, जिसको पढ़कर दुनिया भर के व्यंग्यकारों की चुटैया खड़ी हो जाए। अगर देश के व्यंग्यकार मोहल्ला पुराण के लेखकों से कुछ सीख सकें, तो व्यंग्य का बहुत भला होगा।
No comments:
Post a Comment