अशोक मिश्र
सुबह सोकर उठा ही था कि मुसद्दी लाल किसी आतंकवादी की तरह घर में घुस आए। आते ही बिना कोई दुआ-सलाम किए गोला-बारी करने लगे, ‘पंडी जी, अब तो जीने की तमन्ना ही नहीं रही। जब हुस्न पर ही पहरा हो, तो फिर जीने का क्या फायदा? आप किसी के हुस्न का ठीक से दीदार नहीं कर सकते, उससे बातें नहीं कर सकते, उससे छेड़छाड़ नहीं कर सकते, तो फिर इतनी सुंदर दुनिया में रहने का क्या मतलब है? आप पल-दो पल के लिए किसी पार्क, मॉल या रेस्त्रां में नहीं जा सकते, किसी चौराहे पर खड़े बतरस का आनंद नहीं उठा सकते? भला बताओ, यह भी कोई बात हुई?’ मुसद्दी लाल की बात सुनकर मैं भौंचक रह गया। मैंने पूछा, ‘बात क्या है, मुसद्दी भाई?’
मुसद्दी लाल गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘पंडी जी, चलो मान लिया कि शोहदों, मनचलों को रोकने के लिए आपने एंटी रोमिया स्क्वाड बना लिया। उन्हें श्लील-अश्लील हरकत करने और प्रताड़ित करने से रोक दिया। लेकिन आप प्यार पर ही पहरा बिठा देंगे। हुस्न का दीदार बंद करा देंगे? यह कहां का जहांगीरी इंसाफ है, भई! मेरे एक मित्र सीएम साहब के खास हैं। कल बता रहे थे कि मुख्यमंत्री जी जल्दी ही एंटी हसबैंड स्क्वाड बनने वाले हैं। पति छेड़छाड़ निरोधक अधिनियम पारित होने वाला है। अब पति अपनी बीवियों से चुहुल नहीं कर पाएंगे, उन्हें घूर नहीं पाएंगे।
पार्क और रेस्त्रां तो छोड़ो, घर में भी पति अपनी घरैतिन से छेड़छाड़ नहीं कर सकेगा। हर पति को थाने जाकर शपथपत्र पर दस्तखत करके थानेदार के समक्ष शपथ लेनी होगी कि मैं फलां वल्द फलां शपथ लेता हूं कि आज से मैं अपनी बीवी से न चुहुल करूंगा, न उसे छेडूंगा। साली, सलहजों, भाभियों को बहन-बेटी के समान मानते हुए न तो उनसे किसी किस्म का मजाक करूंगा, न उनके मजाक का जवाब दूंगा। पूर्व में जिन रिश्तों के तहत छेड़छाड़, चुहुलबाजी, हंसी-मजाक के विशेषाधिकार पुरुषों को प्राप्त थे, उन्हें मैं स्वेच्छा से त्याग रहा हूं। मैं यह भी शपथ लेता हूं कि यदि बीवी, साली, सलहज, भाभी आदि चुहुल करती हैं, छेड़छाड़ करती हैं, चिकोटी काटती हैं, तो उसे प्रसन्नतापूर्वक सहन करूंगा, प्रतिवाद नहीं करूंगा।’
इतना कहकर मुसद्दी लाल ने गहरी सांस ली। फिर बोले, ‘पंडी जी! आप ही बताएं, यदि ऐसा हो गया, तो क्या होगा?’ मैंने कहा, ‘आप चिंता न करें, मुसद्दी लाल जी। ऐसा कोई अधिनियम पारित हुआ, तो सबसे पहले महिलाएं ही इसके विरोध में सड़कों पर उतरेंगी। छेड़छाड़, चुहुलबाजी, नैन-मटक्का हर इंसान के जीवन में प्रेरक का काम करते हैं। यह मानव स्वभाव का अभिन्न अंग है, इसे कोई कानून खत्म नहीं कर सकता है। अच्छा बताओ, महिलाएं घर से निकलते समय सजती क्यों हैं? ताकि लोग उन्हें देखें, उनके सौंदर्य को सराहें। अगर ऐसा हुआ, तो अरबों-खरबों रुपये के सौंदर्य प्रसाधन बेकार हो जाएंगे। बाजार चौपट हो जाएगा।’यह सुनते ही मुसद्दी लाल उठे और बिना चाय-पानी पिये अपने घर चले गए।
बढ़िया लिखा है। बधाई!
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