अशोक मिश्र
राजमार्ग से थोड़ा हटकर खुले मदिरालय प्रांगण में परम विपरीत विचारधारा वाले दल के कर्मठ कार्यकर्ता मिले। दोनों परम मद्यप थे, परंतु पूर्व परिचित भी। दोनों ने एक दूसरे पर इतनी तीव्रता से दृष्टिपात किया कि एक बार लगा, दोनों के चक्षु अपने-अपने कोटरों से बाहर गिर पड़ेंगे। फिर एक ने दूसरे का पाणिग्रहण कर काष्ठासन (बेंच) पर बिठाते हुए कहा, ‘भ्रात! यह सत्य है कि तुम्हारे दल के विचारों से हमारा दल रंचमात्र सहमत नहीं है, किंतु मदिरालय में क्या दल और क्या दलदल, क्या मत और क्या मतांतर, सब निरर्थक हैं। अत: हे भ्रातृश्रेष्ठ! आओ, हम सकल मतभेद का परित्याग कर प्रसन्न मन से मदिरापान करें।’
दूसरे दल के कार्यकर्ता के अधरों पर स्मित हास्य प्रस्फुटित होने लगा। उसने मदिरा विक्रेता को आसव पेश करने का संकेत किया। तीन-तीन चषक मदिरापान के बाद दोनों मद्यप मुखर हो उठे। एक मद्यप ने चषक उठाकर लंबा घूंट भरा और मुंह बिचकाते हुए कहा, ‘भ्राताश्री! आपको तो यह ज्ञात ही होगा कि आदिकाल से लेकर पांच सदी पूर्व तक भारत की विश्व में प्रतिष्ठा जगत्गुरु की रही है। ज्ञान गुरु होने का मूल कारण भारतीय पुरुषों का सुर होना रहा है। सुर अर्थात वे लोग जो सुरापान करते थे और असुर अर्थात वे लोग जो सुरापान नहीं करते थे। उस समय सुरापान करके जो व्यक्ति सुर में गायन करते थे, वे ही कालांतर ससुर कहे गए। जो थोड़ा भद्दा गाते थे, वे भसुर कहे जाते थे। लेकिन इन मूढ़मति भाषा विज्ञानियों को क्या कहूं, इन्होंने ससुर और भसुर का अर्थ ही अनुलोम-विलोम जैसा कर दिया। असुरों में लंपट, लबार, चोर, कामी बहुतायत में पाए जाते थे। किंतु सुरापान करने वालों में ऐसी प्रवृत्तियां रंचमात्र नहीं पाई जाती थीं।’
इतना कहकर संभाषण करने वाले मद्यप ने अपना चषक उठाकर सारी सुरा उदरस्थ की और फिर बोला, ‘भगवत्कृपा से अब फिर से हम अपनी पुरातन संस्कृति की ओर लौट रहे हैं। शराब या वाइन शॉपों के कायांतरण की प्रक्रिया बस शुरू होने वाली है। इनके नाम सुरालय, मदिरालय या मद्यशाला रखने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।’
यह सुनते ही दूसरे वाले ने पहले तो चषक के कंठ तक मदिरा भरी, फिर उदरस्थ किया और फिर आवेश में रिक्त चषक को भूमि पर पटकते हुए कहा, ‘तेरी तो..यह जो संस्कृत निष्ठ भाषा छांट रहा है, वह बंद कर और शुद्ध हिंदी में सुन। सरकार बन गई है न! चुपचाप शासन कर। आज तेरी सरकार एंटी रोमियो स्क्वायड बना रही है, भ्रष्टाचार की जांच कर रही है, करे। शौक से करे। कौन सा सौ-दो सौ साल तक तुम्हारी पार्टी राज करेगी। कहा भी गया है कि कभी नाव पानी पर, कभी पानी नाव पर। आज तुम्हारी सरकार है, कल हमारी थी। हो सकता है, परसों, नरसों, तरसों हमारी सरकार बने या न भी बने। कोई दूसरा शासन करे, तब..? तब तुम भी हमारी तरह भीगी बिल्ली बने ‘म्याउं..म्याउं’ कर रहे होगे। इसलिए ज्यादा अंगरेजी न बूको। समझे।’ इतना कहकर वह मद्यप उठा, मदिरा विक्रेता को पैसे दिए बिना अपने गंतव्य की ओर चला गया।
राजमार्ग से थोड़ा हटकर खुले मदिरालय प्रांगण में परम विपरीत विचारधारा वाले दल के कर्मठ कार्यकर्ता मिले। दोनों परम मद्यप थे, परंतु पूर्व परिचित भी। दोनों ने एक दूसरे पर इतनी तीव्रता से दृष्टिपात किया कि एक बार लगा, दोनों के चक्षु अपने-अपने कोटरों से बाहर गिर पड़ेंगे। फिर एक ने दूसरे का पाणिग्रहण कर काष्ठासन (बेंच) पर बिठाते हुए कहा, ‘भ्रात! यह सत्य है कि तुम्हारे दल के विचारों से हमारा दल रंचमात्र सहमत नहीं है, किंतु मदिरालय में क्या दल और क्या दलदल, क्या मत और क्या मतांतर, सब निरर्थक हैं। अत: हे भ्रातृश्रेष्ठ! आओ, हम सकल मतभेद का परित्याग कर प्रसन्न मन से मदिरापान करें।’
दूसरे दल के कार्यकर्ता के अधरों पर स्मित हास्य प्रस्फुटित होने लगा। उसने मदिरा विक्रेता को आसव पेश करने का संकेत किया। तीन-तीन चषक मदिरापान के बाद दोनों मद्यप मुखर हो उठे। एक मद्यप ने चषक उठाकर लंबा घूंट भरा और मुंह बिचकाते हुए कहा, ‘भ्राताश्री! आपको तो यह ज्ञात ही होगा कि आदिकाल से लेकर पांच सदी पूर्व तक भारत की विश्व में प्रतिष्ठा जगत्गुरु की रही है। ज्ञान गुरु होने का मूल कारण भारतीय पुरुषों का सुर होना रहा है। सुर अर्थात वे लोग जो सुरापान करते थे और असुर अर्थात वे लोग जो सुरापान नहीं करते थे। उस समय सुरापान करके जो व्यक्ति सुर में गायन करते थे, वे ही कालांतर ससुर कहे गए। जो थोड़ा भद्दा गाते थे, वे भसुर कहे जाते थे। लेकिन इन मूढ़मति भाषा विज्ञानियों को क्या कहूं, इन्होंने ससुर और भसुर का अर्थ ही अनुलोम-विलोम जैसा कर दिया। असुरों में लंपट, लबार, चोर, कामी बहुतायत में पाए जाते थे। किंतु सुरापान करने वालों में ऐसी प्रवृत्तियां रंचमात्र नहीं पाई जाती थीं।’
इतना कहकर संभाषण करने वाले मद्यप ने अपना चषक उठाकर सारी सुरा उदरस्थ की और फिर बोला, ‘भगवत्कृपा से अब फिर से हम अपनी पुरातन संस्कृति की ओर लौट रहे हैं। शराब या वाइन शॉपों के कायांतरण की प्रक्रिया बस शुरू होने वाली है। इनके नाम सुरालय, मदिरालय या मद्यशाला रखने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।’
यह सुनते ही दूसरे वाले ने पहले तो चषक के कंठ तक मदिरा भरी, फिर उदरस्थ किया और फिर आवेश में रिक्त चषक को भूमि पर पटकते हुए कहा, ‘तेरी तो..यह जो संस्कृत निष्ठ भाषा छांट रहा है, वह बंद कर और शुद्ध हिंदी में सुन। सरकार बन गई है न! चुपचाप शासन कर। आज तेरी सरकार एंटी रोमियो स्क्वायड बना रही है, भ्रष्टाचार की जांच कर रही है, करे। शौक से करे। कौन सा सौ-दो सौ साल तक तुम्हारी पार्टी राज करेगी। कहा भी गया है कि कभी नाव पानी पर, कभी पानी नाव पर। आज तुम्हारी सरकार है, कल हमारी थी। हो सकता है, परसों, नरसों, तरसों हमारी सरकार बने या न भी बने। कोई दूसरा शासन करे, तब..? तब तुम भी हमारी तरह भीगी बिल्ली बने ‘म्याउं..म्याउं’ कर रहे होगे। इसलिए ज्यादा अंगरेजी न बूको। समझे।’ इतना कहकर वह मद्यप उठा, मदिरा विक्रेता को पैसे दिए बिना अपने गंतव्य की ओर चला गया।
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