Sunday, September 21, 2025

गरीबों की मदद करने से मिलता है सम्मान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

राजा भोज का जन्म परमार वंश में हुआ था। वह खुद बहुत बड़े साहित्यकार, कला प्रेमी और गुणग्राहक थे। उन्होंने 84 ग्रंथों की रचना की थी, लेकिन वर्तमान में केवल 21 ही प्राप्य हैं। उन्होंने भोजपुर को अपनी राजधानी बनाया था जिसे बाद में भोजपाल और वर्तमान में भोपाल कहा जाता है। 

यह मध्य प्रदेश की राजधानी है। राजा भोज ने 1010 से 1055 तक शासन किया था। धारा नगरी के राजा सिंधुल के यह पुत्र थे। कहते हैं कि यह जब पांच साल के थे, तब इनके पिता सिंधुल अपने छोटे भाई मुंज को राजकाज सौंपकर स्वर्गवासी हो गए थे। मुंज इनकी हत्या करके निष्कंटक राज्य करना चाहता था। इसी लिए उसने बंगाल के वत्सराज को इन्हें मारने के लिए बुलाया। वत्सराज ने मारने की जग एक हिरन को मारकर बताया कि उसने भोज को मार दिया है। 

इसके बाद मुंज के मन में  अपने भतीजे के प्रति प्यार जागा और वह बिलख कर रोने लगा। तब वत्सराज ने सच्चाई बताई। उसी समय मुंज ने भोज को राजा बना दिया और खुद पत्नी के साथ जंगल चले गए। एक बार की बात है। भोज अपने महल में सो रहे थे। उनके सपने में एक दिव्य पुरुष आए और उनको अपने साथ उस बगीचे में ले गए जिस पर उन्हें अभिमान था। उस पुरुष ने एक पेड़ को छुआ, तो सारा बगीचा सूख गया। 

इसके बाद वह उन्हें उस मंदिर में ले गया जिसे बनवाने में काफी पैसा खर्च किया गया। उसे छूते ही वह भी काला पड़ गया। तब उस पुरुष ने कहा कि मंदिर, उपवन बनाने और उस पर अभिमान करने की जगह गरीबों की सेवा सहायता करने से लोगों में प्रतिष्ठा बढ़ती है। इसके बाद भोज की नींद खुल गई। उसके बाद भोज ने प्रजा की भलाई के काम करने शुरू किए।

स्वच्छता अभियान तो चला लेकिन नहीं दिखी सफाई

अशोक मिश्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर हरियाणा के सभी जिलों में मंत्रियों, अधिकारियों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने 17 सिंतबर बड़े जोरशोर से सड़कों पर स्वच्छता अभियान चलाया। पीएम मोदी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में भाजपा ने सेवा पखवाड़ा मनाने का ऐलान किया है। पूरे पखवाड़े प्रदेश में सेवा की जाएगी। लेकिन ज्यादातर मामलों में यह देखने में आया है कि जहां स्वच्छता अभियान चलाया गया,वह स्थान अपेक्षाकृत पहले से ही साफ सुथरे थे। जिन स्थानों पर गंदगी थी, कूड़ा करकट भरा पड़ा था, उस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया। 

साफ सड़कों पर स्वच्छता अभियान चलाने का कोई मतलब नहीं है। प्रशासन की निगाह उन जगहों पर क्यों नहीं पड़ती है जो इलाके पहले से ही गंदे हैं। शहरों में बहुत सारी जगहें ऐसी हैं जिनके किनारे से गुजरना, किसी मुसीबत से कम नहीं है। कुत्ते और लावारिस पशु इन जगहों पर अपने भोजन तलाशते हुए मिल जाते हैं। इन पशुओं की वजह से कई बार हादसे भी हो जाते हैं। कई लोगों की जान भी ऐसे हादसों में जा चुकी है। 

वैसे यह बात सही है कि मंत्रियों, अधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया है, लेकिन इससे कितने लोग जागरूक हो पाएंगे यह कह पाना बहुत मुश्किल है। सबने सफाई अभियान में भाग लेकर लोगों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि प्रदेश को स्वच्छ रखना बहुत जरूरी है। शहर के गंदा रहने से लोगों के बीमारियों से ग्रसित होने की आशंका रहती है, वहीं शहर की छवि भी खराब होती है। 

हालत यह है कि प्रदेश के लगभग सभी जिलों में थोड़ी सी बरसात होने पर सड़कों पर पानी जमा हो जाता है। सड़कों पर खुले मैनहोल और सीवेज बरसात में जानलेवा साबित हो रहे हैं। अब जब बरसात विदा हो रही है, इसके बावजूद कई जगहों पर सड़कों पर पानी भरा हुआ है। ऐसी स्थिति में शहरों में स्वच्छता अभियान चलाने का कितना फायदा होगा, इस पर भी विचार करना होगा। ऐसी स्थिति में सबसे उपयुक्त यही होगा कि बरसात खत्म होते ही यदि स्थानीय निकाय के अधिकारी-कर्मचारी सहित स्वयंसेवी संस्थाएं स्वच्छता अभियान चलाएं तो नगरों को साफ सुथरा रखा जा सकता है। 

इसके लिए जरूरी है कि जनभागीदारी के लिए स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया जाए। साथ ही रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों और गैर-सरकारी संगठनों के सदस्यों को भी अभियान से जोड़ा जाए। जब सामूहिक प्रयास होगा, तो सड़कें साफ सुथरी ही नहीं रहेंगी बल्कि जलजमाव की वजह से फैलने वाली बीमारियों पर भी अंकुश लगेगा।

Saturday, September 20, 2025

टॉलस्टाय ने किसान को भेंट किए जूते

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

उन्नीसवीं शताब्दी के सबसे सम्मानित साहित्यकारों में गिने जाते हैं लियो टॉलस्टाय। रूस के इस महान साहित्यकार ने वार एंड पीस नामक उपन्यास रचकर रूसी साहित्य में हलचल पैदा कर दी थी। कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने अहिंसा की प्रेरणा इसी पुस्तक को पढ़कर प्राप्त की थी। 

टॉलस्टाय का जन्म 9 सितंबर 1828 को मास्को से सौ मील दूर एक यास्नाया पोल्याना रियासत में हुआ था। इन माता-पिता का बचपन में ही निधन हो गया था। इनका पालन पोषण इनकी चाची तात्याना ने किया था। वह टॉलस्टॉय को एक उच्च श्रेणी का तालुकेदार बनाना चाहती थीं, लेकिन स्वभाव से मस्तमौला प्रवृत्ति का होने की वजह से वह वैसा नहीं बन पाए जैसा उनकी चाची चाहती थीं। 

उन्होंने अपने तालुके में किसानों की दशा सुधारने का कई बार प्रयास किया, लेकिन अंतत: वह नाकाम ही रहे। टॉलस्ट ने सेना की नौकरी भी की और युद्ध के दौरान ही कई रचनाएं कीं। एक बार की बात है। टालस्टाय अपने गांव में रह रहे थे। उन्होंने देखा कि एक किसान नंगे पैर खेत की जुताई कर रहा है। उसके पैर में छाले पड़े हुए थे जो फूट गए थे और उनसे खून बह रहा था। उन्होंने उस किसान से पूछा कि आपने जूते क्यों नहीं पहने हैं? उस किसान ने उत्तर दिया कि मेरे पास जूते नहीं हैं। 

मैं अपने खेतों से उतना ही अन्न उगा पाता हूं जितने में परिवार का बड़ी मुश्किल से गुजारा हो पाता है। इसके बाद टॉलस्टाय घर लौट आए। अगले दिन एक जोड़ी जूता लेकर वह खेत में पहुंचे और किसान को भेंट कर दिया। किसान ने आभार जताते हुए कहा कि आपने मेरी राह आसान कर दी है। अब मैं अपने परिवार के लिए अधिक काम कर सकूंगा। उसकी बात सुनकर टॉलस्टाय मुस्करा दिए।

फसल पंजीकरण मामले की गहनता से कराई जाए जांच

अशोक मिश्र

अब हरियाणा से मानसून विदा हो रहा है। आगामी कुछ दिनों तक कहीं छिटपुट, तो कहीं भारी बरसात हो सकती है। जब मानसून विदा होने लगता है, तो लगभग हर साल ऐसा ही होता है। हां, इस बार मानसून सीजन में हरियाणा में सामान्य से अधिक बरसात हुई। लेकिन सामान्य से अधिक बरसात और बादल फटने की घटनाएं जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कई बार हुईं। इन राज्यों में हुई भारी बारिश की वजह से पंजाब और हरियाणा में आई बाढ़ से लोगों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। 

खेतों में जलजमाव की वजह से दोनों राज्यों में किसानों की फसल डूब गई और बरबाद हो गई। दोनों राज्यों की सरकारों ने किसानों को हुए नुकसान का मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन जिस तरह दोनों राज्यों में फसल क्षतिपूर्ति के लिए दावे किए गए हैं, वह आश्चर्यजनक हैं। पंजाब के कुल 23 जिले भीषण बाढ़ की चपेट में थे। कुछ जिलों में तो अभी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है, लेकिन पंजाब के किसानों ने अभी तक क्षतिपूर्ति के लिए जो दावा किया है, उसके मुताबिक 23 जिलों में कुल चार लाख एकड़ फसल बरबाद हुई है। 

वहीं हरियाणा के कुल बारह जिलों में बाढ़ और अतिवृष्टि के चलते फसलें बरबाद हुई थीं। सरकारी ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर फसलें बरबाद होने के जो दावे किए गए हैं, वह चकित करने वाले हैं। हरियाणा ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर 32 लाख एकड़ फसल नुकसान की बात कही जा रही है यानी पंजाब के मुकाबले आठ गुना ज्यादा।  ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर इतनी ज्यादा संख्या में किए गए दावे को लेकर सरकारी एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। इन दावों को देखते हुए आशंका जाहिर की जा रही है कि प्रदेश में कोई ऐसा गैंग सक्रिय हो उठा है जो किसानों की आड़ में प्रदेश सरकार को ठगना चाहता है। 

सरकार का अनुमान है कि फसल नुकसान का वास्तविक आंकड़ा बहुत कम है, लेकिन कुछ लोगों ने फर्जी तरीके से ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर फसल नुकसान का दावा किया है। कुछ ऐसे किसानों के नाम पर भी दावा करने की बात कही है जो किसान अब इस दुनिया में हैं ही नहीं। उनकी काफी पहले मौत हो चुकी है। ऐसी स्थिति में यह बहुत जरूरी है कि सरकार इस मामले की गहनता से जांच कराए और जो वास्तविक किसान हैं, उनको जल्द से जल्द मुआवजा उपलब्ध कराए। 

फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई ऐसा दुस्साहस न कर सके। यदि वास्तव में 32 लाख एकड़ फसल का नुकसान हुआ है, तो किसानों को उनका हक दिया जाए। मामले की गहनता से जांच बहुत जरूरी है क्योंकि किसानों के नाम पर फर्जीवाड़ा रोका ही जाना चाहिए।

Friday, September 19, 2025

आंखों की रोशनी जाने के बाद लिखी पैराडाइज लास्ट

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

पैराडाइज लॉस्ट जैसी अमर कृति लिखने वाले जॉन मिल्टन का जन्म 9 दिसंबर 1608 में लंदन में हुआ था। इनके पिता साहित्य और कला प्रेमी थे। एक सुसंस्कृत परिवार में जन्म लेने का फायदा इन्हें मिला और इनके साहित्य को दुनिया भर में प्रशंसा मिली। मिल्टन की शिक्षा सेंट पॉल स्कूल तथा कैंब्रिज विश्वविद्यालय के क्राइस्ट कॉलेज में हुई। क्राइस्ट कॉलेज में वे सात वर्ष रहे। 

1629 ई० में उन्होंने स्नातक पास किया और 1632 में स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की। इसके बाद भी इनका अध्ययन जारी रहा। जॉन मिल्टन को शेक्सपियर के बाद अंग्रेजी साहित्य के दूसरे महानतम कवि माना जाता है। कहते हैं कि जॉन मिल्टन ने कालेज समय से ही गद्य और पद्य में लिखना शुरू कर दिया था। सन 1643 को मिल्टन का विवाह मैरी पावेल से हुआ। 

शादी के एक महीने बाद ही इनकी पत्नी अपने पिता के पास यह कहते हुए लौट गईं कि मिल्टन के साथ जीवन यात्रा अंधकारमय है। लेकिन दो साल बाद वह मिल्टन के पास खुद ही लौट आई। तीन पुत्रियों की मां बनने के बाद 1652 में मेरी पावेल की मौत हो गई। दुर्भाग्य से इसी दौरान मिल्टन की आंखों से रोशनी चली गई। वह उन दिनों पैराडाइज लास्ट यानी स्वर्ग से निष्कासन नामक काव्य ग्रंथ लिख रहे थे। 

अब जब कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, ऐसी स्थिति में लिखना-पढ़ना बिल्कुल बंद हो गया।  ऐसी स्थिति में उन्होंने अपनी तीनों बेटियों और मित्रों से अनुरोध किया कि वह जो कुछ बोल रहे हैं, उसे लिपिबद्ध कर दें। बेटियों और मित्रों के सहयोग से किसी तरह काव्य ग्रंथ पूरा हुआ। प्रकाशित होने पर पैराडाइज लॉस्ट बहुत लोकप्रिय हुआ। लेकिन तत्कालीन शासन ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया।

बात-बात पर उग्र क्यों हो जा रहे हैं हमारे नौनिहाल?

अशोक मिश्र

हमारे देश की युवा पीढ़ी इतनी उग्र क्यों हो रही है, इस पर समाज को गंभीरता से विचार करना होगा। बात-बात पर आक्रामक हो जाने वाली नई पीढ़ी ऐसा क्यों कर रही है? यह समस्या किसी एक परिवार की नहीं है, बल्कि पूरे समाज की समस्या है। नारनौल जिले के कनीना खंड के खेड़ी तलवाना गांव की रहने वाली एक महिला की उसके बेटे ने पीट-पीटकर जयपुर में हत्या कर दी। हत्या का कारण बहुत ही मामूली बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि वाई-फाई कनेक्शन को लेकर दोनों में कहा सुनी हुई। 

इसके बाद उसने अपनी मां को डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी। उसे बचाने के लिए जब सेवानिवृत्त फौजी पिता और बहनें आईं, तो उनसे भी मारपीट की। बुरी तरह घायल महिला को जब अस्पताल पहुंचाया गया, तो उसने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। समाज में इस तरह की बहुत सारी घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। कहीं कोई पिता अपनी बेटी की हत्या कर रहा है, तो कहीं कोई भाई अपने ही भाई-बहन को जान से मार दे रहा है। इन घटनाओं के पीछे कोई बहुत बड़े कारण नहीं होते हैं। 

बस, मामूली सी बातें होती हैं और युवा उग्र होकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे बैठते हैं। आखिर क्यों, युवाओं में यह प्रवृत्ति क्यों पनप रही है? इसके पीछे सामाजिक ढांचे आए बदलाव को प्रमुख कारण माना जा रहा है। हो यह रहा है कि एकल परिवार की अवधारणा के चलते ज्यादातर घरों में पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते जा रहे हैं। बच्चा दिन भर अकेले ही घर में रह रहा है। स्कूल या कालेज से आने के बाद बच्चा क्या कर रहा है, इस पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। शाम को घर लौटने पर थके मां-बाप के पास अपने बच्चे के लिएभी समय नहीं होता है। ऐसी दशा में वह भीतर ही भीतर कुंठित होने लगते हैं। 

उनके भीतर मां-पिता के ही प्रति नहीं, बल्कि समाज के प्रति भी आक्रोश पनपने लगता है। वह विद्रोही हो उठते हैं। थोड़ी थोड़ी बात पर ही उनका गुस्सा उबाल मारने लगता है। हिंसक हो जाते हैं। ऊपर से  परिवार पर बढ़ता महंगाई का बोझ, बेरोजगारी और माता-पिता की अपनी संतानों से बढ़ती अपेक्षाएं उन्हें उग्र बना रही हैं। ऐसा नहीं है कि गरीबी, बेकारी और महंगाई का दबाव पहले नहीं था, तब संयुक्त परिवार हुआ करते थे। परिवार के बच्चों पर सबकी निगाह रहा करती थी। 

बच्चे अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों से आत्मिक रूप से जुड़े रहते थे। तब यदि कोई परेशानी हुआ करती थी, तो  परिवार के लोग मिलकर उसे सुलझा लिया करते थे। संयुक्त परिवार हर परिस्थिति में एक सेफ्टी वाल्व के रूप में काम करता था। आपस में प्यार से लड़-झगड़कर अपने आक्रोश को निकाल दिया करते थे।

Thursday, September 18, 2025

अहंकार त्यागकर ही सीखा जा सकता है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे धर्मग्रंथों में मनुष्य के जीवन को बरबाद कर देने वाले छह विकारों की चर्चा की गई है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर नाम के इन छह विकारों से मनुष्य को हमेशा बचकर रहने की सलाह दी गई है। इन छह अवगुणों से जो भी ग्रसित हुआ, उसके जीवन में पतन की शुरुआत निश्चित मानी जाती है। काम और क्रोध के बाद अहंकार यानी मद तो व्यक्ति को सबसे पहले पतन की ओर ले जाते हैं। 

व्यक्ति जीवन भर उलझता रहता है, लेकिन जीवन की पहेलियां सुलझ नहीं पाती हैं। इस संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा है। किसी राज्य में एक युवा गुरुकुल में तीरंदाजी सीख रहा था। कई साल के अभ्यास के बाद वह एक अच्छा तीरंदाज बन गया। धीरे-धीरे उसमें अहंकार आता गया और उसने अपने को दुनिया का सबसे बड़ा तीरंदाज मान लिया। अब वह जगह-जगह जाकर लोगों को तीरंदाजी के लिए ललकारता और हराने के बाद हारने वाले का खूब मजाक उड़ाता। 

धीरे-धीरे उसकी ख्याति बढ़ती गई। एक दिन उसने अपने ही गुरु को तीरंदाजी के लिए चुनौती दे दी। उसकी चुनौती पर गुरु जी मुस्कुराए और उससे अपने पीछे आने को कहा। गुरु जी उसे लेकर एक ऐसी जगह पहुंचे, जहां एक जर्जर पुल बना हुआ था। उस जर्जर पुल के बीचोबीच में जाकर गुरु जी ने अपने तरकश से तीर निकाला और दूर खड़े एक पेड़ का निशाना लगाया। 

तीर जाकर पेड़ में आधा धंस गया। गुरु ने शिष्य से कहा कि अब तुम निशाना लगाओ। उस पुल पर डरता-डरता शिष्य पहुंचा और पेड़ का निशाना लगाया। शिष्य का तीर लक्ष्य तक ही नहीं पहुंच पाया। शिष्य बहुत शर्मिंदा हुआ। गुरु जी ने कहा कि जब तक सीखने की ललक रहती है, तभी तक कोई सीख सकता है। अहंकार सीखे हुए को भी भुला देता है।

हरियाणा में कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाएं चिंताजनक

अशोक मिश्र

सुप्रीमकोर्ट की ही तरह हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट ने भी आवारा कुत्तों की बढ़ती जनसंख्या और इंसानों पर हमला करने की बढ़ती घटनाओं को काफी गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा को निर्देश दिया है कि वह जल्दी से जल्दी कुत्तों के काटने की संख्या और अन्य विवरण दें। इसके साथ ही यह भी बताएं कि कुत्तों की नसबंदी जैसे कार्यक्रमों की वास्तविक स्थिति क्या है? आवारा कुत्तों के टीकाकरण के बारे में भी कोर्ट ने रिपोर्ट तलब की है। हाईकोर्ट ने आवारा कुत्तों के काटने से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान दोनों राज्यों को यह निर्देश दिए हैं। कोर्ट इस संबंध में दायर अवमानना याचिकाओं को अब सुप्रीमकोर्ट भेजेगा। सुप्रीमकोर्ट पहले ही आवारा कुत्तों के बारे में दिशा निर्देश दे चुका है। 

हरियाणा में आवारा कुत्तों के काटने की घटनाएं कम होती नहीं दिख रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक हरियाणा में रोजाना लगभग सौ घटनाएं कुत्तों के काटने के सामने आते हैं। पिछले एक दशक में अब तक लगभग 12 लाख घटनाएं सरकारी आंकड़ों में दर्ज हो चुकी हैं। बहुत सारी ऐसी भी घटनाएं होने का  अनुमान है जो सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हुई हैं। ज्यादातर लोग परिवार के किसी सदस्य को कुत्ते के काटने पर सरकारी अस्पताल में इलाज कराने की जगह निजी अस्पतालों में इलाज करवा लेते हैं। 

ऐसे मामले सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। वैसे देश भर में शायद हरियाणा पहला राज्य है जिसने गरीब व्यक्ति को कुत्ते के काटने पर न्यूनतम दस हजार रुपये और काटने पर चमड़ी उधड़ जाने पर बीस हजार रुपये मुआवजे का प्रावधान किया है। वैसे यह बात सच है कि प्रदेश में कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदेश के सभी जिलों में शायद ही कोई ऐसी गली होगी जिसमें आवारा कुत्ते दिखाई न देते हों। हर गली, हर चौराहे पर कुत्तों के झुंड दिखाई देते हैं। 

अगर कोई बच्चा इस झुंड के सामने पड़ जाए, तो उसे नोच नोच कर घायल कर देते हैं। कई बच्चों की तो मौत भी हो जाती है। रात में अगर कोई अकेला व्यक्ति किसी गली से   गुजर रहा हो, तो यह झुंड बनाकर हमला कर देते हैं। कई बार झुंड बनाकर यह कुत्ते व्यक्ति को इतना घायल कर देते हैं कि उसकी मौत तक हो जाती है। स्थानीय निकायों को आवारा कुत्तों की नसबंदी करने में तत्परता दिखानी चाहिए। इनका टीकाकरण बहुत आवश्यक है ताकि किसी भी व्यक्ति की कुत्तों के काटने पर रैबीज की वजह से जान न जाए। 

सरकारी अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाला इंजेक्शन पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए ताकि कोई भी बिना इंजेक्शन लगवाए जाने न पाए। आए दिन सरकारी अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाले इंजेक्शन की कमी की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं।

Wednesday, September 17, 2025

वक्त के बहुत पाबंद थे जार्ज वाशिंगटन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जार्ज वाशिंगटन को संयुक्त राज्य अमेरिका का संस्थापक और पिता माना जाता है। वह अमेरिका के 30 अप्रैल 1789 से 4 मार्च 1797 तक राष्ट्रपति भी रहे।1775 में जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अमेरिका में बगावत शुरू हुई, तो उन्हें महाद्वीपीय सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया। उन्होंने अमेरिका की स्वतंत्रता के लिए जी जान से प्रयास किया और अन्य क्रांतिकारियों की मदद से आखिरकार अपने देश को आजाद कराने में सफल हो गए। 

जार्ज वाशिंगटन समय के बहुत पाबंद थे। वह हर काम नियत समय पर ही करना पसंद करते थे। वह सादा जीवन उच्च विचार पर विश्वास रखते थे। उनकी सादगी को देखकर लोगों को ताज्जुब होता था कि अमेरिका का राष्ट्रपति इतना सादा जीवन जीता है। राष्ट्रपति पद संभालने के लगभग तीन महीने बाद की घटना है। उन्हीं दिनों अमेरिकी कांग्रेस के चुनाव हुए थे। 

उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के चुने हुए प्रतिनिधियों को एक दिन डिनर पर आमंत्रित किया। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि लोगों से परिचय भी हो जाएगा और वह उनके दायित्वों को उन्हें बता सकें। डिनर का जब समय हुआ, तब तक कोई भी प्रतिनिधि वहां नहीं पहुंचा था। जब डिनर का समय हुआ, तो रसोइये ने उनको भोजन परोस दिया। वह भोजन कर ही रहे थे कि तब तक सारे प्रतिनिधि भी पहुंच गए। 

उन्हें राष्ट्रपति को भोजन करता हुआ देखकर आश्चर्य हुआ कि मेहमान के आने से पहले भोजन कर रहे हैं। तब वाशिंगटन ने कहा कि मेरा हर काम का समय नियत है। समय बहुत मूल्यवान है। इसके एक-एक क्षण को बरबाद नहीं करना चाहिए। यह सुनकर सभी प्रतिनिधियों को शर्म महसूस हुई और उन्होंने क्षमा मांगते हुए हर काम समय पर करने का वायदा किया।

परिवार पर बोझ बनकर रह जाता है हादसे में दिव्यांग हुआ व्यक्ति

अशोक मिश्र

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने अनूप सिंह के मामले जो फैसला सुनाया है, वह न केवल सराहनीय है, वरन भविष्य में ऐसे ही कई मामलों की नजर भी बनेगा। दरअसल, मामला केवल अनूप सिंह का ही नहीं है, ऐसे न जाने कितने मामले देश और प्रदेश में है जिनके फैसले मानवीय आधार पर नहीं होते रहे हैं और शायद भविष्य में भी हों। अनूप सिंह का मामला 2014 का है। 5 जनवरी 2014 को अनूप सिंह एक सड़क हादसे का शिकार हुए। काफी इलाज कराया गया, लेकिन हादसे की वजह से उनका बायां पैर घुटने के पास से काटना पड़ा। 

बाद में जब अनूप सिंह अस्पताल से निकले, तो उन्होंने अपनी दिव्यांगता और हादसे के लिए इंश्योरेंस कंपनी पर मुकदमा दर्ज कराया। हिसार एमएसीटी ने फरवरी 2016 को निर्देश दिया कि कंपनी अनूप सिंह को 14.7 लाख रुपये सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करे। इंश्योरेंस कंपनी ने अनूप सिंह की दिव्यांगता को 60 प्रतिशत बताते हुए फैसले को मानने से इंकार किया और हाईकोर्ट में अपील की। उधर, अनूप सिंह ने भी क्रॉस आब्जेक्शन अपील करते हुए मुआवजे की राशि बढ़ाने की अपील की। 

हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि को बढ़ाते हुए 24 लाख 51 हजार नौ सौ कर दिया। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि दिव्यांगता का आकलन शरीर नुकसान के साथ-साथ उसके जीवन पर पड़ने वाले असर के आधार पर होना चाहिए। अब अनूप सिंह का मामला लें। वह जब हादसे का शिकार हुए थे, तब वह सीआरपीएफ भर्ती परीक्षा पास कर चुके थे और इंटरव्यू आदि के बाद शायद सीआरपीएफ में नौकरी भी पा जाते। लेकिन हादसे के बाद न केवल वह किसी भी तरह की नौकरी के अयोग्य हो गए, बल्कि वह खेती-किसानी या मजदूरी के लायक भी नहीं रह गए। 

एक हादसे ने न केवल उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया, बल्कि भावी जीवन की राह भी दुश्वार कर दी। वह जहां परिवार का सहारा बनने जा रहे थे,वहीं अब वह परिवार पर ही बोझ बनकर रह गए। यह केवल अनूप सिंह की ही कहानी नहीं है। हर साल देश और प्रदेश में हादसे का शिकार होने वाले हजारों लोगों की यही कहानी है। हादसे का शिकार होने के बाद काफी लोगों का जीवन नरक के समान हो जाता है। अगर अविवाहित हैं, तो विवाह की संभानवाएं भी खत्म हो जाती है। 

विवाह हो गया है, तो पत्नी और बच्चों का जीवन त्रासद हो जाता है। दिव्यांग हुए लोग परिवार पर बोझ बनकर रह जाते हैं। जो व्यक्ति कल तक अपने परिवार की धुरी था, वही हादसे के बाद किसी काम लायक नहीं रह जाता है। ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट ने जीवन पर पड़ने वाले असर को भी मुआवजे का आधार बनाया है, तो वह सराहनीय है।

Tuesday, September 16, 2025

भगवान बुद्ध का सिर काट लूंगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी रामतीर्थ वेदांत दर्शन के अनुयायी थे। वह भारत के महान संतों में गिने जाते हैं। स्वामी रामतीर्थ का जन्म पंजाब के गुजरावालां इलाके में 22 अक्टूबर 1873 को दीपावली के दिन हुआ था। विद्यार्थी जीवन में रामतीर्थ को काफी आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। इसी बीच इनका बाल विवाह कर दिया गया। अब पढ़ाई के साथ-साथ परिवार का भी बोझ इन पर आ गया। 

किसी तरह छात्रवृत्ति के सहारे रामतीर्थ ने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए में सर्वोच्च अंक हासिल किया, तो इन्हें 90 रुपये की छात्रवृत्ति मिली। फिर इन्होंने गणित विषय से एमए किया और जिस कालेज से एमए किया, उसी में गणित के प्रोफसर हो गए। वर्ष 1901 में इन्होंने संन्यास ले लिया और प्रो. तीर्थराम से रामतीर्थ हो गए। अमेरिका में वेदांत का प्रचार करने के बाद वह जापान पहुंचे तो उनका बहुत स्वागत किया गया। 

एक दिन उन्होंने जापान के एक बच्चे से पूछा-बच्चे! तुम किस धर्म को मानते हो? बच्चे ने जवाब दिया-बुद्ध धर्म को।  उन्होंने फिर पूछा-बुद्ध को तुम क्या मानते हो? बच्चे ने बड़े शांत भाव से जवाब दिया-बुद्ध  तो भगवान हैं। स्वामी रामतीर्थ ने फिर पूछा-कन्फ्यूशियस के बारे में तुम क्या सोचते हो? उस बच्चे ने कहा-कन्फ्यूशियस एक महान संत थे। स्वामी जी इतने पर ही नहीं रुके। 

उन्होंने उस बच्चे से पूछा-मान लो कि कोई देश तुम्हारे देश पर हमला कर दे और उस सेना के सेनापति बुद्ध  या कन्फ्यूशियस हों, तो क्या करोगे? इतना सुनते ही उस बच्चे की आंखों में क्रोध उतर आया। उसने कटु शब्दों में कहा कि मैं भगवान बुद्ध का तलवार से सिर काट लूंगा और कन्फ्यूशियस को कुचल दूंगा। यह सुनकर स्वामी रामतीर्थ आश्चर्यचकित रह गए और उसकी राष्ट्रभक्ति से गदगद हो उठे।



विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में हरियाणा की चार बेटियों ने रच दिया इतिहास

अशोक मिश्र

हरियाणा की बेटियों ने इतिहास रच दिया। वैसे भी जब से हरियाणा के लोगों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता, प्रेम और सम्मान दिया है, तब से राज्य की बेटियों ने प्रदेश के साथ-साथ देश का भी नाम रोशन किया है। हरियाणवी छोरियां जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के परचम लहरा रही हैं। कल ही लिवरपूल में हुए विश्व मुक्केबाजी चैंपयिनशिप में हरियाणा की चार बेटियों ने इतिहास रच दिया है। बेटियों ने अपने गोल्डन पंच से अपने प्रतिद्ंवद्वी को करारी शिकस्त दी है। 48 किलो भार वर्ग में मीनाक्षी हुड्डा और 57 किलो भार वर्ग में राष्ट्रमंडल खेलों की पदक विजेता जैस्मिन लंबोरिया ने स्वर्ण पदक जीता है। 

वहीं 80 प्लस किलो भार वर्ग में नूपुर श्योरण ने रजत और 80 किलो भार वर्ग में पूजा रानी ने कांस्य पदक जीता। मीनाक्षी हुड्डा विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली दसवीं लड़की हैं। भारत ने इस प्रतियोगिता में अब तक दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीता है। 1966 और 1970 में एशियाई खेलों में पदक जीतने वाले हवा सिंह की पौत्री नूपुर को फाइनल में पोलैंड की अगाथा काज्मार्स्का के हाथों हार मिली है। पिछले दो-ढाई दशकों में हरियाणा की छोरियों ने खेलों के मामले में सफलता का परचम कई बार लहराया है। हरियाणा सरकार की खेल नीतियों ने इन्हें प्रोत्साहित किया है। 

सरकार जिस तरह खिलाड़ियों को सुविधाएं मुहैया करा रही है, उससे प्रदेश के खिलाड़ी आगे बढ़कर अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं और प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं। कुश्ती हो, हाकी या कोई दूसरा खेल, हरियाणा की लड़कियों ने हमेशा आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है।  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाओं में जिस तरह हरियाणा के खिलाड़ियों ने अपना प्रदर्शन किया है, उसको देखते हुए दूसरे राज्यों ने भी हरियाणा की खेल नीतियों का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। 

हरियाणवी छोरे-छोरियां अपनी सफलता की कहानी बस लिखते ही जा रहे हैं। खेल प्रतिभाओं को निखारने और उन्हें बचपन से ही खेलों की ट्रेनिंग देने के लिए प्रदेश सरकार ने पूरे प्रदेश में 868 खेल नर्सरियों की मंजूरी दी है। इन खेल नर्सरियों में विििभन्न खेलों में रुचि रखने वाले बच्चों को ट्रेनिंग दी जाएगी। उन्हें हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाएगी ताकि वह अपने खेल को निखार सकें। पूरे देश में हरियाणा ही ऐसा राज्य है जो अपने पदक विजेताओं को सबसे ज्यादा नकद पुरस्कार देती है। 

ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक विजेता के लिए छह करोड़ रुपये, रजत पदक विजेता के लिए चार करोड़ रुपये और कांस्य पदक विजेता के लिए 2.5 करोड़ रुपये सरकार प्रदान करती है। इसके साथ उन्हें सरकारी नौकरी भी दी जाती है।

Monday, September 15, 2025

भंते! आप वृक्ष को प्रणाम क्यों कर रहे हैं?

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद जीवन भर लोगों को सदाचार और प्रकृति से सामन्जस्य बनाकर रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने किसी भगवान को पूजने की जगह प्रकृति की पूजा का संदेश दिया। उनका मानना था कि प्रकृति के समस्त अंगों और उपांगों का संरक्षण और पूजन ही सच्चा धर्म है। जब मनुष्य प्रकृति पूजा करने लगेगा, तो वह प्रकृति के अंग मनुष्य को भी संरक्षित करेगा। 

एक बार की बात है। किसी पेड़ के नीचे कुछ घंटे साधना करने के बाद जब महात्मा बुद्ध उठे, तो उन्होंने उस वृक्ष को प्रणाम किया और बड़ी श्रद्धा से उससे सामने शीश झुकाया। यह देखकर पास खड़ा उनका शिष्य आश्चर्यचकित होते हुए बोला, भंते! आप जैसा महान व्यक्ति पेड़ को झुककर प्रणाम कर रहा है। आपने ऐसा क्यों किया? तब महात्मा बुद्ध ने कहा कि मेरे इस वृक्ष को नमन करने से किसी प्रकार के अनिष्ट की आशंका है क्या? 

उस शिष्य ने कहा कि नहीं, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जब यह पेड़ आपकी बातों का कोई जवाब नहीं दे सकता है, तो आपके प्रणाम करने से क्या फायदा है? अपने शिष्य की बात सुनकर तथागत मुस्कुराए और बोले कि यह वृक्ष भले ही हमारी आपकी तरह बोलकर कुछ न कह रहा हो, लेकिन यह प्रकृति की भाषा में हमारे प्रणाम का उत्तर खुशी से झूमकर दे रहा है। जिस वृक्ष ने मुझे छाया दी, शीतल वायु प्रदान किया, सूरज की तेज किरणों से मुझे बचाया, उसके प्रति आभार व्यक्त करना मेरा कर्तव्य है। 

ध्यान से देखो, तो पता चलेगा कि यह अपनी पत्तियों को हिलाकर हमारे प्रति आभार व्यक्त कर रहा है। यह सुनकर शिष्य ने बड़े गौर से वृक्ष को निहारा, तो उसे लगा कि वृक्ष झूमते हुए महात्मा बुद्ध को नमन कर रहा है।

हरियाणा में खेत-जलघर योजना ने बदल दिया किसानों का भाग्य

अशोक मिश्र

जल के बिना जीवन संभव नहीं है और सबसे बड़ी बात यह है कि पृथ्वी पर जितना पानी है, उसका तीन या चार प्रतिशत ही पीने योग्य है। बाकी समुद्रों का पानी खारा है। ऐसी स्थिति में पेयजल की बरबादी इंसानों और अन्य जीवों को कितनी भारी पड़ सकती है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पानी को बरबाद करने में केवल इंसानों का ही हाथ है। हालांकि यह भी सही है कि अब इंसानों ने पानी का संचय और संरक्षण करना शुरू कर दिया है। वह भविष्य में आने वाले खतरे को भांप चुका है। 

हरियाणा में भी जल संरक्षण और संचय की ओर सरकार के साथ-साथ आम लोगों और किसानों ने ध्यान देना शुरू कर दिया है। दक्षिण हरियाणा में पानी की किल्लत पिछले काफी वर्षों से चली आ रही थी। गर्मी के दिनों में दक्षिण हरियाणा में पानी को लेकर त्राहि-त्राहि मच जाती थी। किसानों को अपने खेत की सिंचाई के लिए वर्षा जल पर ही निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब दक्षिण हरियाणा के किसान आधुनिक तकनीक का सहारा लेकर न केवल पानी बचा रहे हैं, बल्कि अपने खेतों की सिंचाई भी कर रहे हैं। 

अब उन्हें खेतों की सिंचाई के लिए प्रकृति पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ रहा है। दक्षिण हरियाणा के किसान कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति कर रहे हैं। इस मामले में प्रदेश सरकार की खेत-जलघर योजना और सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं का बहुत बड़ा हाथ है। इन योजनाओं की बदौलत ही किसानों की आर्थिक दशा में सुधार आया, बल्कि उनकी खेती भी उन्नत हुई है। सरकारी सब्सिडी से गांवों में सरकारी और निजी तालाब बनाए जा रहे हैं। इसकी वजह से किसान अब परंपरागत खेती को तिलांजलि देकर आधुनिक तकनीक से खेती कर रहे हैं। इसका फायदा यह हो रहा है कि हर खेत को पानी मिल रही है। 

स्प्रिंकलर और ड्रिप जैसी तकनीक अपनाकर किसान न केवल अपनी फसल की पैदावार बढ़ा रहे हैं, बल्कि वह पचास से साठ प्रतिशत पानी की बचत भी कर रहे हैं। खेतों में उतना ही पानी जा रहा है जितने की जरूरत है। इस तकनीक ने किसानों की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव की आधारशिला तैयार की है। इससे जहां जल संरक्षण हो रहा है, वहीं ऊर्जा बचत और पर्यावरण संतुलन जैसे बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति हो रही है। खेत-जलघर योजना से किसान सोलर पंपिंग सिस्टम तक चला रहे हैं। इस योजना के तहत गांव के हर किसान के लिए एक समय निर्धारित किया गया है। जिस किसान की बारी आती है, वह अपने खेत की सिंचाई कर लेता है। इससे सभी किसानों को आवश्यकता के अनुसार सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो जाता है। यह योजना पूरे प्रदेश में लागू की जा रही है।

Sunday, September 14, 2025

चंद्रशेखर वेंकटरामन की विनम्रता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

चंद्रशेखर वेंकटरामन भारत के महान भौतिक शास्त्री थे। उन्हें विज्ञान क्षेत्र में अपनी अद्वितीय कार्य के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य किया था जिसकी वजह से उन्हें भौतिकी का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया था। रामन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान पर हुआ था। 

सीवी रामन ने बारह साल की उम्र में ही मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। प्रखर बुद्धि के सीवी रामन ने बीए की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। सन 1907 में रामन ने एमए की परीक्षा में गणित विषय लेकर विशेष योग्यता हासिल की थी। उन्होंने इतने अंक हासिल किए जितने इससे पहले किसी ने हासिल नहीं किया था। एक बार की बात है। 

किसी विदेशी युवा वैज्ञानिक ने रंगों के कुछ नए प्रयोग किए। रामन उसके काम से बहुत प्रभावित हुए। तब तक रामन को नोबल पुरस्कार प्राप्त हो चुका था और उनकी दुनिया भर में ख्याति फैल चुकी थी। एक दिन वह उस वैज्ञानिक से मिलने उसकी प्रयोगशाला में मिलने पहुंच गए। वह उससे कुछ सीखना चाहते थे। उस वैज्ञानिक ने अपने सामने सीवी रामन को देखा तो वह चकित रह गया। 

उसने बड़े आदर से रामन को बैठने को कहा। उसके कहने पर भी रामन खड़े ही रहे और रंगों के प्रयोग के बारे में जानकारी हासिल करने लगे। वैज्ञानिक ने कहा कि सर, आप बैठिए तो, मैं आपको सब बताता हूं। तब रामन ने कहा कि मैं आपके सामने नहीं बैठ सकता हूं। मैं आपसे कुछ सीखने आया हूं। हमारी संस्कृति में गुरु के सामने या समक्ष बैठने की परंपरा नहीं है। यह सुनकर वह वैज्ञानिक उनकी विनयशीलता का कायल हो गया।

हरियाणा में क्या सचमुच बढ़ रही है गरीबी?

अशोक मिश्र

हरियाणा में गरीबों की संख्या को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। विपक्ष प्रदेश सरकार पर आरोप लगा रही है कि उनकी नीतियों ने प्रदेश की 75 प्रतिशत जनता को गरीबी की सीमारेखा से नीचे लगा दिया है। हालांकि सरकार विपक्ष के आरोप को नकारते हुए प्रदेश की गरीबी को दूर करने का दावा करती है। यह सवाल कई बार उठता रहता है कि क्या सचमुच हरियाणा किसी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है? लेकिन इसका कोई जवाब नहीं मिल पा रहा है। पिछले साल जब प्रदेश में चुनाव नहीं हुए थे, तब बीपीएल कार्डधारकों की संख्या में एकाएक वृद्धि दर्ज की गई थी। 

अप्रैल 2020 से लेकर सितंबर 2024 के बीच राज्य में गरीबी रेखा से नीचे राशन कार्डधारकों की संख्या में पांच गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। इस बीच 8.8 लाख से बढ़कर 46.4 लाख बीपीएल राशनकार्ड धारक हो गए थे। एक बार तो यह भी सवाल उठने लगा था कि प्रदेश में क्या एकाएक गरीबी बढ़ गई है जो दो साल में बीपीएल कार्डधारकों की संख्या में इजाफा हो रहा है। आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया, जांच कराने पर वोटबैंक प्रभावित होने का खतरा था। 

प्रदेश के सबसे गरीब व्यक्तियों के लिए चलाई जा रही अंत्योदय अन्न योजना में भी एकाएक बढ़ोतरी देखी गई। अंत्योदय अन्न योजना में लाभर्थियों की संख्या में बीस प्रतिशत की वृद्धि पाई गई। साल 2022 में जिन अंत्योदय अन्न योजना की संख्या 2.44 लाख थी, वही 2024 तक आते आते 2.92 लाख हो गए। बीपीएल कार्ड धारकों की संख्या में बढ़ोतरी ग्रामीण इलाकों में भी देखी गई। शहरों में बीपीएल कार्ड धारकों की संख्या में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी पाई गई। औद्योगिक नगरी के नाम से मशहूर फरीदाबाद में ही तीन लाख से अधिक बीपीएल कार्डधारक बढ़े। इसके अलावा करनाल और हिसार जैसे समृद्ध जिलों में भी यही रुझान पाया गया। 

अगर इस आधार पर बात की जाए, तो सचमुच हरियाणा में भीषण गरीबी है और लोग इस गरीबी को झेलने को मजबूर हैं। हरियाणा में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ने से भी बीपीएल और अंत्योदय अन्न योजना के लाभार्थियों की संख्या में इजाफा हुआ, ऐसा समाजशास्त्रियों का मानना है। इन लाभार्थियों में कुछ ऐसे भी लोग शामिल पाए गए हैं जिनके पास पहले से ही जमीनें हैं और वह सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए इसमें शामिल हुए हैंं। यही वजह है कि सरकार बनने के बाद जब मामले की छानबीन शुरू हुई, तो पूरे प्रदेश में लाखों लोगों ने अपना नाम बीपीएल से कटवा लिया या कार्ड का रिवीजन नहीं करवाया ताकि सरकारी शिकंजे में फंसने से बचा जा सके।

Saturday, September 13, 2025

महात्मा गांधी ने डॉक्टर को लगाई डांट

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लगभग बीस साल दक्षिण अफ्रीका में बिताने के बाद जब महात्मा गांधी भारत लौटकर आए, तो उन्होंने सबसे पहले भारत की दशा-दिशा समझने का प्रयास किया। इसके लिए उन्हें भारत का पैदल भ्रमण करना पड़ा। पदयात्रा के ही दौरान उन्हें भारत की सच्ची तस्वीर समझ में आई। वह समझ गए कि भारत में गरीबी, छुआछूत, अंधविश्वास और निरक्षरता बहुत अधिक है। जब तक लोगों को रोजगार और सामाजिक कुप्रथाओं से मुक्ति नहीं मिलेगी, तब तक देश का भला नहीं किया जा सकता है। 

इसके लिए उन्होंने दलित बस्तियों में स्वच्छता अभियान चलाने पर जोर दिया। वह जहां भी रहते थे, वहां चिकित्सा की भी व्यवस्था जरूर करते थे ताकि गांव के लोगों का इलाज किया जा सके। महात्मा गांधी के आश्रम में विदेश से पढ़कर आए भारतीय और विदेश से आए कुछ युवा डॉक्टर सेवाभाव से काम करते थे। 

एक दिन की बात है। पास के गांव की एक महिला गांधी जी के पास आई और उसने बताया कि उसके शरीर में खुजली हो रही है। गांधी जी ने उसके खुजली वाले स्थान को गंभीरता से देखा और पास खड़े एक विदेशी युवा डाक्टर से बोले कि इस महिला को नीम की पत्ती खिलाने के बाद छाछ पिलवा देना। गांधी जी प्राकृतिक चिकित्सा पर ही विश्वास करते थे। उस युवा डॉक्टर ने महिला को नीम की पत्ती खिलाई और कहा घर जाकर छाछ पी लेना। 

तीन दिन बाद डॉक्टर उस महिला का हालचाल पूछने उसके घर गया। उसने पाया कि महिला की खुजली ठीक नहीं हुई है क्योंकि छाछ नहीं था उसके पास। उस डॉक्टर ने लौटकर गांधी जी को बताया, तो डाक्टर को डांटते हुए गांधी जी ने कहा कि मैंने तुमसे छाछ पिलाने को कहा था। मैं जानता था कि उस महिला के पासछाछ पीने के पैसे नहीं हैं। तुम ऐसे ही लोगों की सेवा करोगे। तब डॉक्टर ने क्षमा मांगी और उस महिला को छाछ और नीम की पत्तियां लाकर दिया।

हरियाणा के बाढ़ग्रस्त इलाकों में बढ़ रहे मलेरिया और डेंगू के मरीज

अशोक मिश्र

बाढ़ का पानी घटने के बाद जिसका डर था, हरियाणा में वह सब कुछ सामने आने लगा है। बाढ़ घटने के बाद पूरे प्रदेश में बीमारियां प्रकोप बनकर लोगों की जान लेने लगी हैं। यही हालत लगभग पंजाब की है। वहां भी ठीक ऐसी ही स्थिति है। आमतौर पर जिस इलाके में बाढ़ आती है या जलजमाव होता है, उन इलाकों में भयंकर संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका होती है। 

यह कोई नई बात नहीं है। डूब क्षेत्र में घर बनाने वालों के साथ ऐसा ही होता रहा है। लेकिन अब जब स्वास्थ्य सुविधाएं और अन्य तककीनी सुविधाओं का बोलबाला है तो ऐसी स्थिति में शासन-प्रशासन को पहले ही इसके लिए तैयार रहना चाहिए था। 

हरियाणा में कोई पहली बार बाढ़ नहीं आई है। इन दिनों बाढ़ग्रस्त और जलजमाव वाले इलाकों में सबसे ज्यादा डायरिया, डेंगू, मलेरिया और त्वचा संक्रमण से संबंधित रोग से पीड़ित काफी संख्या में बढ़ रहे हैं। अगर हम प्रदेश में फैलने और होने वाली मौतों की बात करें, तो पानीपत में एक महीने में डायरिया और उल्टी दस्त से पीड़ित आठ लोगों की मौत हो चुकी है। डायरिया से मरने वालों में बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। इतना ही नहीं, यमुनानगर में  दो, अंबाला में साहा के बिहटा गांव में भी दो बच्चों की मौत हो चुकी है। डायरिया और उल्टी दस्त से सबसे ज्यादा परेशान बच्चे ही होते हैं।

इन्हीं की जान पर सबसे ज्यादा खतरा भी होता है। कई बार तो परिजन बच्चों की उल्टी दस्त पर ज्यादा ध्यान ही नहीं देते हैं, लेकिन जब हालात बेकाबू हो जाते हैं, तो वह अस्पताल या डॉक्टर की ओर भागते हैं। कई बार तब तक बच्चे की जान जा चुकी होती है। बाढ़ और जलभराव ग्रस्त इलाकों में इस सीजन में सोनीपत में सबसे ज्यादा डायरिया के 1816 मरीज सामने आ चुके हैं। रेवाड़ी में 145, नारनौल में सात सौ, फतेहाबाद में 45 और सिरसा में 15 मामले अस्पतालों में दर्ज किए जा चुके हैं। 

प्रदेश स्तर पर अब तक डायरिया के 2700 मरीज अस्पतालों में आ चुके हैं। इनमें से कुछ अपना इलाज करवाकर घर भी जा चुके हैं। प्रदेश में डेंगू और मलेरिया के मरीजों की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। यदि प्रदेश की बात की जाए तो डेंगू के भी 509 मरीज सामने आए हैं। निकट भविष्य में इनकी संख्या में बढ़ोतरी होने की आशंका है। मलेरिया के 125 मरीज भी अपना इलाज करवा रहे हैं। प्रदेश के सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में त्वचा से संंबंधित रोगों के मरीज बहुत बड़ी संख्या में आ रहे हैं। बरसात और लोगों के घरों के आसपास पानी भरा होने की वजह से वातावरण में नमी बहुत ज्यादा होती है। इससे त्वचा का संक्रमण कुछ ज्यादा ही तेजी से फैलता है।

Friday, September 12, 2025

डर लगने पर अपना नाम दोहराने वाला राजकवि

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अल्फ्रेड लॉर्ड टेनिसन को अंग्रेजी साहित्य में महाकवियों में गिना जाता है। इन्हें इंग्लैंड और आयरलैंड का राजकवि होने का गौरव हासिल है। महारानी विक्टोरिया को टेनिसन की कविताएं बहुत पसंद थीं। टेनिसन का जन्म 6 अगस्त 1809 में लिंकनशायर (इंग्लैंड) में हुआ था। टेनिसन के पिता एक ग्रामीण इलाके में एक चर्च के पादरी थे। प्रकृति के काफी नजदीक रहने की वजह से इनकी कविताओं में प्रकृति अपनी पूरी छटा के साथ मौजूद है। 

टेनिसन की पढ़ाई कैंब्रिज में हुई थी, लेकिन कैंब्रिज में पढ़ने जाने से पहले 18 साल की उम्र में ही कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका था। इस कविता संग्रह को पाठकों ने हाथों हाथ लिया था। इसके बाद इनकी एक और पुस्तक प्रकाशित हुई, लेकिन अचानक 1831 में पिता की मृत्यु हो जाने की वजह से इन्हें पढ़ाई बीच में छोड़ देनी पड़ी। 

टेनिसन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब मैं छोटा था, तो मुझे एक अंधेरे कमरे में सोने के लिए भेज दिया जाता था। मुझे अंधेरे से बहुत डर लगता था। रात में डर की वजह से नींद भी नहीं आती थी। किसी से कह भी नहीं सकता था क्योंकि मजाक उड़ाने और डांट पड़ने का भी डर था। ऐसी स्थिति में एक दिन मुझे पता नहीं कैसे सूझा कि यदि मैं किसी शब्द को दोहराऊं, तो डर कम हो जाता है। बस, क्या था? 

मैंने अपना नाम ही दोहराना शुरू किया। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरा डर धीरे-धीरे कम होने लगा। जब भी मुझे डर लगता, मैं अपना नाम दोहराने लगता। नाम दोहराने से धीरे-धीरे मुझे नींद आ जाती थी। टेनिसन की बात सचमुच सही है। भारत में जब लोगों को किसी बात से डर लगता है, तो उन्हें हनुमान चालीसा बोलने को कहा जाता है। इसके पीछे यही मनोविज्ञान काम करता है। हमारे शरीर में छिपी शक्ति ऐसे समय में हमारा मनोबल बढ़ाती है।

नदी के डूब क्षेत्र में बस्तियां बसाने का परिणाम तो हर हाल में भुगतना होगा

अशोक मिश्र

पिछले दो-तीन दिनों से भारी बारिश न होने से हरियाणा के कई जिलों में आई बाढ़ और जमा हुआ पानी घटने लगा है। कई जिलों में पानी इतना घट गया है कि अब खेत दिखाई देने लगे हैं। घरों में भी भरा पानी निकाला जा रहा है। यदि हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में आने वाले दिनों में भारी बारिश नहीं होती है, तो उम्मीद है कि कुछ ही दिनों में हालात सामान्य होने लगेंगे। लोगों का जीवन पहले की तरह सुचारु रूप से चलने लगेगा। लेकिन किसानों को अपनी फसल नष्ट हो जाने का दुख तो रहेगा ही क्योंकि सरकार ने प्रति एकड़ जो मुआवजा देने की घोषणा की है, वह गिरदावरी के बाद ही मिल पाएगी। 

ऐसी हालत में तत्काल किसानों को किसी किस्म की राहत नहीं मिलने वाली है। गांवों और शहरी इलाकों में जिनके घरों में पानी भर गया था, अब उन्हें अपने घर की साफ-सफाई करनी पड़ रही है। मच्छरों और कीट-पतंगों ने भी अपना डेरा ऐसे घरों में बना लिया होगा, ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि स्थानीय निकाय इन इलाकों में फागिंग करवाए, दवाओं का छिड़काव करवाए ताकि मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसे रोगों से लोगों को बचाया जा सके। 

इस बार हरियाणा सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में सामान्य से कहीं अधिक वर्षा हुई है, इसलिए बाढ़ का विकराल रूप देखने को मिला है। भविष्य में भी अगर सामान्य से अधिक बरसात हुई तो उन इलाकों के लोगों को परेशानी का सामना करना ही पड़ेगा जिन्होंने नदियों के डूब क्षेत्र में अपना घर बना रखा है। देश या विदेश में जितनी भी नदियां हैं, उनके दोनों किनारों की ओर तीन-चार किमी का क्षेत्र डूब क्षेत्र माना जाता है। 

बहुत ज्यादा बरसात होने पर जब नदियां उफान पर आती हैं, तो अतिरिक्त पानी इसी डूब क्षेत्र में भर जाता है और नदियों का उफान कम हो जाता है। इसका फायदा यह होता है कि उफान में आई हुई नदियां ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में नुकसान नहीं कर पाती हैं। इससे नदियों के आसपास बसे शहरों का भूजल स्तर भी बना रहता है, लेकिन पिछले कई दशक से लोगों ने नदियों के डूब क्षेत्र में ही घर बनाने शुरू कर दिए हैं। 

लोगों ने खेती करनी शुरू कर दी है। अब हरियाणा के कुछ जिलों की बात की जाए, तो इस बार बाढ़ और अतिवृष्टि के चलते फरीदाबाद में ही यमुना नदी के बायीं ओर 4.33 किमी और दायीं ओर 5.99 किमी तक बाढ़ का पानी भर गया था। फरीदाबाद में नदी के दोनों ओर जितनी दूरी तक पानी भर गया था, वह यमुना का डूब क्षेत्र था जिसमें अब बहुमंजिली इमारतें, बाजार और लोगों के घर बने हुए हैं। पलवल में सबसे ज्यादा बायीं ओर 8.80 किमी और दायीं ओर 2.72 किमी तक हिस्सा डूब गया जो नदी का डूब क्षेत्र था।

Thursday, September 11, 2025

बिना पैर के पायलट ने मार गिराए 15 विमान

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ब्रिटिश रायल एयरफोर्स के सबसे जांबाज पायलटों में से एक थे डगलस बेडर। उनके पिता प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश फौज में मेजर थे। सन 1917 में युद्ध के दौरान उनके शरीर में कुछ छर्रे लगने से वह घायल हो गए थे और इन घावों के चलते ही 1922 में उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद उनका परिवार आर्थिक दबाव में आ गया था। डगलस बेडर को इसके बाद आक्सफोर्ड के सेंट एडवर्ड स्कूल में खेल छात्रवृत्ति मिल गई। 

उन्होंने 1928 में क्रैनवेल एयर फोर्स अकादमी में पुरस्कार स्वरूप कैडेटशिप भी जीती। बेडर ने पानी में उड़ने की कला सीखी तथा केवल साढ़े छह घंटे की ट्रेनिंग के बाद ही अकेले उड़ान भरने लगे। लेकिन एक हवाई दुर्घटना में उन्होंने 1931 में अपने दोनों पैर गवां दिए। एक पैर घुटने से नीचे और दूसरा पैर घुटने से ऊपर काट दिया गया। 

इसके बाद भी डगलस ने अपना साहस नहीं खोया और उन्होंने अपने अधिकारियों से मिलकर एयरफोर्स में दोबारा काम करने का निवेदन किया। सेनाधिकारियों ने अपनी मजबूरी जताई क्योंकि शारीरिक अक्षम व्यक्ति को सेना में कैसे भर्ती किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि पाटलट बनने के लिए जो परीक्षाएं ली जाती हैं, उससे कहीं ज्यादा कठिन परीक्षा मेरी ली जाए।

अंतत: उस कठिन परीक्षा में भी वह पास हुए। ब्रिटिश रायल एयरफोर्स में उन्हें दोबारा पायलट बना लिया गया। उन्होंने इंग्लैंड-जर्मनी युद्ध में दुश्मन के 15 विमान मार गिराए। जंग खत्म होने के बाद जब विजय दिवस मनाया गया, तो सारा लंदन उन्हें सलामी देने के लिए इकट्ठा हुआ था। लोगों ने उनकी वीरता और साहस की प्रश्ांसा की। ब्रिटेन ने उनके देशप्रेम की भूरि भूरि सराहना की।

उदासी और क्षणिक आवेश बन रहा आत्महत्या का प्रमुख कारण

अशोक मिश्र

आज का युवा सबसे ज्यादा दबाव में है। उसके साथ-साथ अधेड़ और बुजुर्ग भी अवसादग्रस्त नजर आते हैं। हरियाणा भी इससे अपवाद नहीं है। हरियाणा में भी आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। मई 2025 में पंचकूला में एक परिवार के सात लोगों ने एक साथ जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। इसमें दंपति सहित उसके बच्चे और बुजुर्ग माता-पिता तक शामिल थे। 

यह दंपति मूलरूप से हिसार का रहने वाला था, लेकिन जब परिवार ने आत्महत्या की थी, तब वह देहरादून में रहने लगा था। परिवार पर कर्ज का बोझ बहुत ज्यादा हो गया था और लोग अपना पैसा मांग रहे थे, इसके दबाव में आकर परिवार ने यह आत्मघाती कदम उठा लिया था। सन 2014 में तो हरियाणा में आत्महत्या करने वालों की संख्या 3203 तक पहुंच गई थी। उस साल यह आंकड़ा उत्तर भारत के राज्यों में सबसे ज्यादा था। वैसे सन 2015 में आत्महत्या की दर एक लाख की आबादी पर 13 प्रतिशत और 2020 में 13.7 प्रतिशत हो गई थी। 

हरियाणा में 2022 में 3785 लोगों ने आत्महत्या की थी जो देश की कुल आत्महत्या का 2.2 प्रतिशत था। सच बात यह है कि प्रदेश की एक बहुत बड़ी आबादी किसी न किसी तरह के दबाव में जी रही है। प्रदेश में बेरोजगारी की दर भले ही सरकारी कागजों पर कुछ भी दर्ज हो, लेकिन वास्तविकता में प्रदेश में बेरोजगारी के हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं। भारी संख्या में बेरोजगार युवा नौकरी या रोजगार का कोई जरिया न देखकर आत्मघात कर रहे हैं। समाज और परिवार के ताने उन्हें मजबूर कर देते हैं, ऐसा कदम उठाने को। 

बड़ों में खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण जो उभरकर सामने आता है, वह है उदासी और अकेलापन। जब बुजुर्गों को उदासी घेर लेती है, तो वह डिप्रेशन का शिकार होकर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। पति या पत्नी में किसी एक की मौत या कोई गंभीर बीमारी भी मजबूर कर देती है कि वह कठोर कदम उठा लें। उदासी के पीछे वित्तीय नुकसान, शारीरिक अक्षमता, कुछ हद तक प्रेम प्रसंग जैसे मुद्दे हो सकते हैं। युवाओं में यह प्रवृत्ति ज्यादातर उनमें दिखाई देती है जो पिछले कई वर्षों से बेरोजगार हैं या जिनके परिजन उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं। जहां तक किशोरों के आत्मघात करने की बात है, तो वह क्षणिक आवेश या गुस्से में ऐसा कदम उठा लेते हैं। 

इसके लिए वह पहले से कोई सोच-विचार या योजना नहीं बनाते हैं। इधर कुछ वर्षों से लाइव आत्महत्या का चलन काफी बढ़ा है। लोग आत्महत्या को लाइव दिखाते हैं या फिर वीडियो बना लेते हैं। इसका कारण यह माना जाता है कि लोग उनकी समस्या पर ध्यान दें ताकि यदि कोई उनके जैसी स्थिति में हो, तो लोग मदद कर सकें।

Wednesday, September 10, 2025

तुम्हारी पत्नी पर पूरे देश को गर्व है

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

भारत ने कभी किसी भी देश पर हमला नहीं किया। यह भारत का इतिहास रहा है। यहां के राजा-महाराजा भले ही आपस में लड़ते-भिड़ते रहे हों, लेकिन राज्य विस्तार की कामना से हमारे देश का कोई भी शासक दूसरे देश पर कब्जा करने नहीं गया। लेकिन जब भी किसी देश ने हमारे देश पर हमला किया, तो उसका मुंहतोड़ जवाब जरूर दिया गया है। 

बात 1965 की है। भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था। हमारे देश की सेना पाक सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दे रही थी। उन दिनों तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को किसी नगर में जाना पड़ा। जिस रास्ते से उनकी कार जा रही थी, उसी रास्ते पर सामने से एक बारात आ रही थी। दूल्हा आगे-आगे घोड़ी पर चल रहा था, उसके पीछे दुल्हन की डोली चल रही थी। 

बाराती भी साथ में चल रहे थे। उन दिनों जो अमीर लोग थे, वही घोड़ी और डोली की व्यवस्था बारात के लिए कर सकते थे। जब शास्त्री जी की कार दुल्हन की डोली के बगल से गुजरी, तो दुल्हन ने उन्हें नमस्कार किया। शास्त्री जी को लगा कि दुल्हन उनसे कुछ कहना चाहती है। तो उन्होंने कार रुकवाई और डोली की ओर बढ़े। तब तक दुल्हन भी डोली से बाहर आ गई। 

उसने अपने हाथ की दोनों सोने की चूड़ियां निकालकर शास्त्री जी को देते हुए बोली, मेरी ओर से सीमा पर लड़ने वाले सिपाहियों के लिए यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए। इतना कहकर वह शास्त्री जी के पैर छूने को झुकी, तो शास्त्री जी ने उसे रोकते हुए कहा कि हम बेटियों से पैर नहीं छुआते हैं। 

इतने में दूल्हा भी घोड़ी से उतरकर आ गया और शास्त्री जी को प्रणाम करते हुए बोला, मुझे अपनी पत्नी पर गर्व है। तब शास्त्री जी ने कहा कि इस बेटी पर पूरे देश को गर्व है। इन्हीं बेटियों की बदौलत देश तरस्की करेगा।

हरियाया के बाढ़ प्रभावित इलाकों में बीमारियों के फैलने की आशंका

अशोक मिश्र

पंजाब के साथ-साथ हरियाणा भी इन दिनों बाढ़ और अतिवृष्टि की वजह से संकट का सामना कर रहा है। हरियाणा के लगभग दस-ग्यारह जिले बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। शहरों में नुकसान कम हुआ है, लेकिन  कई हजार गांवों को भारी नुकसान पहुंचा है। इसके लिए सरकार ने प्रभावित लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाए हैं। वैसे गांवों में कई स्वयं सेवी संस्थाएं और धार्मिक संगठन राहत और बचाव कार्य में लगे हुए हैं। प्रभावित लोगों तक खाद्य सामग्री और आर्थिक मदद पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन बाढ़ पीड़ितों के सामने कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं। सबसे बड़ी समस्या तो खाद्य सामग्री की है। 

बाढ़ में ज्यादातर लोगों की खाद्य सामग्री या तो भीग गई है या फिर नष्ट हो गई है। ऐसी स्थिति में उन्हें दाने-दाने को मोहताज होना पड़ रहा है। यही नहीं, जिन इलाकों में ज्यादा दिनों से पानी जमा हुआ है, उन इलाकों में कई तरह की बीमारियों के फैलने का खतरा भी पैदा हो गया है। जलभराव वाले इलाकों में मक्खी और मच्छरों का प्रकोप काफी बढ़ गया है। इसकी वजह से मलेरिया, चिकनगुनिया और डेंगू जैसे रोगों की आशंका बढ़ गई है। हालांकि अभी इन रोगों से पीड़ित कुछ ही मरीज जलभराव वाले इलाके से आए हैं, लेकिन यदि सावधानी नहीं बरती गई, तो हालात बदतर हो सकते हैं। 

इसके अलावा फंगल इंफेक्शन, आंखों में ड्राइनेस, शरीर के विभिन्न हिस्सों पर चकत्ते और एलर्जी सहित कई तरह की बीमारियां जलभराव वाले इलाकों में फैल रही हैं। यदि इन इलाकों पर मेडिकल टीम भेजकर गंभीरता से निगरानी नहीं रखी गई, तो हालात काफी बिगड़ सकते हैं। हालांकि स्वास्थ्य विभाग की टीमें प्रभावित इलाकों का दौरा कर रही हैं। लोगों की जांच भी कर रही हैं, लेकिन टीमें अभी कई इलाकों में पहुंच भी नहीं पाई हैं। 

जिन इलाकों या गांवों का संपर्ककटा हुआ है या दूरदराज में स्थित हैं, उन गांवों तक जल्दी से जल्दी मेडिकल टीम का पहुंचना बहुत जरूरी है। यह भी सही है कि शासन स्तर पर बाढ़ प्रभावित इलाकों में हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराने का आदेश दिया जा चुका है। सीएम सैनी  ने बाढ़ से प्रभावित फसलों का मुआवजा भी तय कर दिया है। फसलों के नुकसान पर 15 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा दिया जाएगा। 

प्रदेश में 5385 गांवों में पंद्रह लाख एकड़ फसल का नुकसान होने का अनुमान है। फसल नुकसान का मुआवजा जिलों में गिरदावरी के बाद जारी की जाएगी। राज्य में बाढ़ या बारिश के चलते 13 लोगों की मौत हुई है। इसके लिए मुख्यमंत्री सैनी ने 52 लाख रुपये जारी कर दिए हैं ताकि मृतक के परिवार वालों को सांत्वना मिल सके।

Tuesday, September 9, 2025

महाराज! मुझे ज्ञान दान चाहिए

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अट्ठारवीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के प्रधान न्यायाधीश थे राम शास्त्री प्रभूणे। राम शास्त्री की न्यायप्रियता और सदाचार के किस्से आज भी सुने-सुनाए जाते हैं। शास्त्री का जन्म सतारा जिले के माहुल गांव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में 1724 ईस्वी में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। तीव्र बुद्धि के राम शास्त्री पढ़ना चाहते थे। 

उन्होंने सुन रखा था कि मराठा साम्राज्य के शासक माधवराव पेशवा अपने जन्मदिन पर सबको इच्छित वस्तु प्रदान करते हैं। जिस दिन माधव राव पेशवा का जन्मदिन आया, राम शास्त्री पहुंच गया राजदरबार। उन्होंने देखा किसी ने धन मांगा, किसी ने संपत्ति। जिसकी जो इच्छा थी, उसको वह मिला। जब राम शास्त्री का नंबर आया, तो पेशवा ने पूछा, बेटा तुम्हें क्या चाहिए? 

राम शास्त्री ने कहा कि मैं आज आपके सामने एक विशेष मांग रखना चाहता हूं। शास्त्री के शब्दों की दृढ़ता और आत्म विश्वास को देखकर पूरा राजदरबार चकित था। पेशवा ने कहा कि बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है? राम शास्त्री ने कहा कि महाराज! मुझे ज्ञान दान चाहिए। इसके सिवा मुझे कुछ नहीं चाहिए। धन तो एक न एक दिन खत्म हो जाएगा। भूमि यदि मांगू, तो भी उससे मुझे कोई फायदा नहीं होगा। महाराज, मैं एक अनाथ ब्राह्मण पुत्र हूं। मेरे माता-पिता की मौत हो चुकी है। मैं पढ़ना चाहता हूं। आप मेरे पढ़ने की व्यवस्था कर दें।

पेशवा ने तुरंत शास्त्री के पढ़ने की व्यवस्था की। कई साल बाद राम शास्त्री मराठा साम्राज्य के प्रधान न्यायाधीश बनाए गए। एक बार उनके पुत्र गोपाल शास्त्री को भी सम्मानित होने वाले विद्वानों की सूची में शामिल किया गया, तो रामशास्त्री को पता चलते ही अपने पुत्र का नाम उस सूची से हटवा दिया।

प्राचीन स्मारकों को बचाने का हर संभव प्रयास करे सरकार

अशोक मिश्र

जो संतान अपने पुरखों की विरासत को सहेज नहीं पाती हैं, उन्हें समाज में नालायक समझा जाता है। हरियाणा प्राचीनकाल में सिंधु घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इसके अवशेष भी समय-समय पर मिले हैं। इतना ही नहीं, यहां पर बौद्ध सभ्यता के भी अवशेष बहुतायत में पाए जाते हैं।सैनी सरकार ने बौद्ध सर्किट बनाने का सराहनीय फैसला लिया है। सैनी सरकारी की बौद्ध सर्किट में चनेटी, आदिबद्री, ब्रह्मसरोवर, असंध, अग्रोहा जैसे तमाम स्थलों को शामिल करने की योजना है। 

लेकिन हरियाणा के पुरातत्व विभाग की लापरवाही की वजह से कई ऐसे पुरातात्वित स्थल हैं जो अपना अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच चुके हैं। इनमें से यमुनानगर का प्राचीन सुघ टीला एक है। प्राचीन सुघ टीले के आसपास हो रहा अवैध कब्जा इसके अस्तित्व पर खतरे की तरह मंडरा रहा है। इतिहासकार बताते हैं कि सुघ टीला प्राचीन श्रूघना नगरी का बेहद अहम हिस्सा रहा है। यह बात प्राचीन इतिहास में भी दर्ज है। सुघ टीले का संबंध महात्मा बुद्ध से भी बताया जाता है। 

यमुनानगर का सुघ टीला अमादलपुर दयालगढ़ गांव में स्थित है। इतिहास की पुस्तकें बताती हैं कि मौर्य काल में सुघ टीला और उसके आसपास का क्षेत्र बौद्ध धर्म का बहुत बड़ा केंद्र था। यहां बौद्ध धर्म से जुड़े बड़े-बड़े विद्वान आया करते थे। धर्म चर्चाएं किया करते थे। बौद्ध धर्मावलंबियों के एक बड़े केंद्र के रूप में यह इलाका विख्यात था। हरियाणा के कई इलाके बौद्ध धर्मावलंबियों से जुड़े हुए हैं। सन 1862 में ब्रिटिश पुरातत्वविद अक्लेक्जेंडर कनिंघम और 19वीं सदी के हरियाणा गजेटियर में यह बात दर्ज है कि प्रदेश में 39 सती स्मारक पाए जाते थे, लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनमें से केवल पांच स्मारक ही आज मिलते हैं। 

बाकी स्मारक समय की मार न झेल पाने और देखभाल न होने की वजह से अपना अस्तित्व गंवा बैठे। यदि इन स्मारकों को सुरक्षित रखा जाता तो आज पर्यटन स्थल के रूप में हरियाणा और भी समृद्ध होता। जहां तक सुघ टीले की बात है। इसके आसपास अवैध खेती, खनन और अतिक्रमण ने टीले को बरबाद करना शुरू कर दिया है। इसके पास में ही एक कब्रिस्तान बना हुआ है। 

स्थानीय निवासियों, पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का कहना है कि कब्रिस्तान सुघ टीले के संरक्षित दायरे में ही बना हुआ है। लेकिन हरियाणा के पुरातत्व विभाग का इससे विपरीत बयान है। वह कब्रिस्तान को संरक्षित क्षेत्र से बाहर बता रहा है। पुरातत्व विभाग की बात का सारे लोग विरोध कर रहे हैं। हालांकि यह मामला अब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और प्रदेश सरकार तक पहुंच चुका है। उम्मीद है कि सुघ टीले को बचाने का हर संभव प्रयास किया जाएगा।

Monday, September 8, 2025

सेठ ने जो दावा किया है, वह सही है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हिंदी भाषा के परिष्कार में भारतेंदु हरिश्चंद्र का योगदान किसी से कम नहीं है। भारतेंदु को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। वैसे इनका जन्म वाराणसी में 9 सितंबर 1850 में हुआ था। इनका परिवार सुंघनी साहू के नाम से विख्यात था।भारतेंदु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने निबंध, कहानी, उपन्यास और कविता में कई प्रसिद्ध रचनाएं देकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया था। 

भारतेंदु ने अपनी रचनाओं से सामंती रूढ़ियों का विरोध करते हुए नवीन भारत के निर्माण की बात कही। पांच साल की आयु में दोहा रचकर अपने पिता से सुकवि होने का आशीर्वाद भी हासिल किया। इनकी रचनाओं में ब्रिटिश हुकूमत के प्रति रोष बहुतायत में देखने को मिलता है। कहते हैं कि इनकी उदारता और लापरवाही के चलते व्यापार चौपट हो गया। 

भारतेंदु को किसी कारणवश काशी के ही एक सेठ से नाव खरीदने और दूसरे कामों के लिए तीन हजार रुपये उधार लेने पड़े। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से वह समय पर सेठ की रकम लौटा नहीं पाए। उस सेठ ने भारतेंदु पर अपने पैसे की वापसी के लिए मुकदमा कर दिया। जब अदालत में केस गया, तो जज ने उनसे पूछा कि क्या दावे में जो रकम लिखी गई है, वह सही है? 

भारतेंदु ने कहा कि सेठ ने अपने दावे में जो कहा है, वह बिल्कुल सही है। जज ने उन्हें अकेले में बुलाकर पूछा कि सचमुच इतनी रकम उधार ली थी? भारतेंदु ने कहा कि सेठ का दावा एकदम सही है। मैंने इनसे यही रकम ली थी। एक मित्र ने कहा कि तुम जाने माने लेखक हो। तुम इनकार कर दो, सेठ तुम्हारा क्या कर लेगा। तब भारतेंदु ने कहा कि जाना-माना होने के नाते में मेरा कर्तव्य है कि मैं सच बोलूं। लेखक की कथनी-करनी में भेद नहीं होना चाहिए। यह देखकर सेठ ने अपना दावा वापस ले लिया।

आपदा काल में सबको एक साथ बढ़ाना चाहिए मदद के लिए हाथ

अशोक मिश्र

मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने बिल्कुल सही बात कही है कि आपदा के समय सबको मिलकर सहयोग करना चाहिए। ऐसे संकट के समय में यह भूल जाना चाहिए कि कौन पक्ष में है या कौन विपक्ष में। आपदा काल में यह भेद यदि भुलाकर काम किया जाए, तो जो लोग पीड़ित हैं, उन्हें जल्दी से जल्दी राहत मिल सकेगी और उनका बचाव हो सकेगा। यह बात सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पर लागू होती है। जो आज सत्तापक्ष में है, वह कभी विपक्ष में भी रहा होगा, तब  उसने ऐसे अवसर पर जनता की कितनी मदद की है, यह भी उसे स्मरण रखना चाहिए। 

सच तो यह है कि इसमें आम जनता को भी जोड़ लेना चाहिए। राज्य के जिस इलाके में आपदा का असर नहीं है, उस इलाके के आम लोगों को अपने आपदा पीड़ित भाइयों की हर संभव मदद करनी चाहिए। यदि वह शारीरिक रूप से आपदा पीड़ितों की मदद नहीं कर सकते हैं, तो राहत सामग्री जुटाकर उनकी मदद कर सकते हैं। गैर आपदाग्रस्त इलाके के लोग यदि छोटी-छोटी मदद को इकट्ठा करके पीड़ितों तक पहुंचाने की व्यवस्था करें, तो यह उनको बहुत ज्यादा राहत प्रदान करेगी। 

वैसे तो सरकार अपने स्तर पर आपदा पीड़ितों का हर संभव मदद करती ही है, लेकिन आमजनता की मदद और शामिल हो जाने से संकटग्रस्त लोग थोड़ा जल्दी अपनी परेशानियों से उबर जाएंगे। अब हरियाणा को ही लीजिए। हरियाणा के कुछ इलाके अतिवृष्टि और बाढ़ का दंश झेल रहे हैं। इन इलाकों के लिए बाकी जिलों की जनता यदि थोड़ी-थोड़ी मदद करे,तो बाढ़ पीड़ितों की अच्छी खासी मदद हो जाएगी। इस मामले में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोग बड़े कारगर साबित हो सकते हैं। सियासी दलों के पास अनुशासित कार्यकर्ताओं की एक फौज होती है। 

यदि इनको बाढ़ पीड़ितों की मदद और बचाव के लिए उतार दिया जाए, तो सेना, पुलिस, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ जैसी संस्थाओं को काफी राहत मिल जाएगी। उनका उत्साह दोगुना हो जाएगा। यह बात सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं पर लागू होती है। इस बार बाढ़ और अतिवृष्टि से राज्य के तीन हजार से अधिक गांव प्रभावित हुए हैं। लगभग दस लाख एकड़ फसल बरबाद हो चुकी है। बहुत सारे इलाके ऐसे भी हैं जिनसे संपर्ककटा हुआ है। ऐसी स्थिति में फसलों के खराब होने का आंकड़ा कुछ दिनों में बढ़ भी सकता है। बाढ़ प्रभावित गांवों में फसल और अन्य नुकसान की भरपाई के लिए सैनी सरकार ने ई क्षतिपूर्ति पोर्टल खोल दिया है। इस पोर्टल पर अभी तक 1,69,738 किसानों ने अपना पंजीकरण कराया है। अंतिम तिथि आने तक यह संख्या और भी बढ़ सकती है।

Sunday, September 7, 2025

बेईमान किसान नहीं, दुकानदार है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे देश में एक बहुत पुरानी कहावत कही जाती है-जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। आदमी यह सोचकर दूसरे के साथ बेईमानी करता है कि किसी को उसका पता नहीं चलेगा। लेकिन जब कोई दूसरा उसके साथ बेईमानी करता है, तो वह आगबबूला हो जाता है। किसी गांव में एक किसान रहता था। उसने गाय और भैंस पाल रखी थीं। वह रोज मक्खन बेचने पास के कस्बे में जाया करता था। 

एक दुकानदार उससे पावभर मक्खन रोज लिया करता था। यह क्रम कई साल से चला आ रहा था। एक दिन दुकानदार के मन में आया कि क्यों न इस मक्खन को तौल लिया जाए। उसने मक्खन को तौला, तो पाया कि पचास ग्राम मक्खन कम है। वह बहुत नाराज हुआ। उसने उस किसान को बेईमान बताकर मुकदमा दायर कर दिया। न्यायाधीश ने पहले दुकानदार की पूरी बात बड़ी गंभीरता से सुनी। 

उसे लगा कि सचमुच किसान ने बेईमानी की है। इतने साल से वह दुकानदार को कम मक्खन देकर पूरे पैसे लेता आ रहा है। न्यायाधीश ने उस किसान से पूछा कि तुम मक्खन रोज तौलकर बेचते हो? किसान ने बड़ी मासूमियत से कहा कि मेरे पास तराजू तो है, लेकिन मापने के लिए बाट नहीं है। तब न्यायाधीश से कहा कि तुम बाट क्यों नहीं खरीद लेते हो? 

किसान ने कहा कि हुजूर, मैं एक गरीब किसान हूं। मेरे पास बाट खरीदने के पैसे नहीं हैं। न्यायाधीश ने कहा कि तब तुम मक्खन को तौलते कैसे हो? किसान ने बताया कि वह मक्खन बेचने से पहले दुकानदार से रोज पावभर गुड़ लेता हूं। जब मक्खन तैयार हो जाता है, तो उसी गुड़ से मैं मक्खन तौल लेता हूं। यह सुनकर न्यायाधीश को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में बेईमान किसान नहीं, बल्कि दुकानदार है। वह रोज किसान को पचास ग्राम गुड़ कम देता आ रहा है।

बैंकों को धोखाधड़ी का जरिया बना रहे साइबर क्रिमिनल्स

अशोक मिश्र

हरियाणा में साइबर ठगी के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। साइबर ठग नए-नए तरीके अख्तियार करके लोगों को न केवल ठग रहे हैं, बल्कि वह मनीलांड्रिंग और काले धन को सफेद करने में भी लगे हुए हैं। हरियाणा पुलिस की साइबर यूनिट ने पांच सिंतबर को एक मामले का खुलासा किया है। साइबर क्रिमिनल्स ने बैंक आफ इंडिया की पानीपत शाखा में  आर्टिफिशियल ज्वैल्स प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी का खाता खोला। सात महीने तक इस खाते से करोड़ों रुपये का लेन-देन किया गया। 

बताया जाता है कि इस खाते से करीब 52 करोड़ रुपये खाते में जमा किए गए और निकाले गए। जब साइबर क्राइम यूनिट को इस खाते को लेकर शक हुआ, तो उसने कंपनी के बारे में जांच शुरू की। जांच करने पर पता चला कि इस नाम की तो कोई कंपनी ही नहीं है। निदेशक और कार्यालय आदि का पता भी फर्जी निकला। इस खाते में कहां से रुपया आया और कहां गया किसी को पता नहीं है। 

दरअसल, इस तरह के फ्राड पूरे देश में हो रहा हो, तो कोई ताज्जुब नहीं है। हरियाणा साइबर क्राइम यूनिट ने पूरे राज्य में 91 ऐसे म्यूचुअल खातों का पता लगाया है जिसमें करोड़ों रुपये का लेन-देन किया जा रहा है। यह लेन-देन धोखाधड़ी से कमाई गई रकम की हो सकती है। यह तो साइबर क्राइम का एक रूप है। साइबर ठग तो पहले अपना टारगेट फिक्स करते हैं और उसके बाद फेसबुक, इंस्टाग्राम या दूसरे सोशल मीडिया मंच के माध्यम से दोस्ती करते हैं। चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसाकर अपने टॉरगेट से छोटा-मोटा निवेश कराते हैं। 

इस पर काफी अच्छा मुनाफा देते हैं। जब शिकार का इन पर विश्वास जम जाता है, तो एक मोटी रकम निवेश करने को कहते हैं। इसके बाद विभिन्न चार्जेज के नाम पर अच्छी खासी रकम वसूली जाती है। इसके बाद जब पीड़ित व्यक्ति इनसे संपर्क करने की कोशिश करता है, तो पता चलता है कि वह ठगा जा चुका है। कुछ मामलों में तो पीड़ित को जान से मारने की धमकी तक दी जाती है। बिना कुछ किए एक मोटी कमाई की लालच में कुछ लोग फंस ही जाते हैं। लोग यह नहीं सोचते हैं कि एक अनजान व्यक्ति उनको धोखा भी दे सकता है। इधर साइबर क्राइम का एक नया रूप सामने आया है-डिजिटल अरेस्ट। 

ऐसे मामलों में अपने टॉरगेट को विभिन्न तरह से डराया जाता है। डिजिटल अरेस्ट व्यक्ति को पुलिस अधिकारी बनकर इस तरह मजबूर कर दिया जाता है कि वह वही करता है, जो उससे करने को कहा जाता है। लाखों रुपये लेने के बाद साइबर ठग रफूचक्कर हो जाते हैं। बाद यदि पीड़ित ने पुलिस या दूसरे सोर्स से पता किया, तो मालूम होता है कि वह ठगा जा चुका है।

Saturday, September 6, 2025

मांगने पर ही बेटों को सलाह देता हूं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

एथेंस के प्राचीन यूनानी दार्शनिकों में सुकरात का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। एथेंस में सुकरात का जन्म 470 ईसा पूर्व हुआ माना जाता है। इनके पिता एक अच्छे मूर्तिकार थे और अच्छी खासी जमीन जायदाद भी थी। उसका एक हिस्सा सुकरात को विरासत में मिला था जिसकी वजह से वह जीवन भर आर्थिक संकट से बहुत दूर रहे। यूनान में 399 ईसा पूर्व सुकरात पर युवाओं को पथभ्रष्ट करने और परायणहीनता के लिए प्रेरित करने के अपराध में मौत की सजा सुनाई गई थी। 

तत्कालीन परंपरा के मुताबिक उन्हें सजा के रूप में जहर का प्याला पीने को दिया गया था। सुकरात से जुड़ी एक रोचक कथा कही जाती है। एक बार की बात है। वह घूमते हुए एक बुजुर्ग आदमी से मिले। उस आदमी ने सुकरात का बड़ी आत्मीयता से स्वागत किया और उन्हें अपने घर ले गया। 

वह बुजुर्ग अपने जमाने का एक नाम व्यापारी था। उसके घर में सुकरात ने देखा कि उसके बेटे और बहुएं बड़े सलीके से रहते हैं। सुकरात ने उस बुजुर्ग से पूछा कि आपके यहां तो सब बहुत मिल जुलकर रहते हैं। उस बुजुर्ग ने कहा कि मैंने अपना सारा कारोबार अपने बेटों को सौंप दिया है। घर की देखभाल का जिम्मा बहुओं पर है। मैं अब उनके काम में किसी तरह का दखल नहीं देता हूं। 

यदि वह मुझसे किसी मामले में सलाह मांगते हैं, तो मैं अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर उन्हें बता देता हूं। यदि वह मेरी सलाह नहीं मानते हैं, तो भी मैं दुखी नहीं होता हूं। वह जो खाने को दे देते  हैं, मैं खा लेता हूं। मेरे बेटे या बहुएं मेरी इच्छा के अनुसार चलें, ऐसी मेरी कोई इच्छा भी नहीं है। सलाह देने के बाद भी यदि वह गलती करते हैं, तो भी मैं दुखी नहीं होता हूं। यह सुनकर सुकरात ने कहा कि आपने तो सुखी जीवन जीने का रहस्य जान लिया है। यही उचित है।

स्कूलों में भी दी जानी चाहिए सिविल डिफेंस की ट्रेनिंग

अशोक मिश्र

हरियाणा सरकार ने फैसला लिया है कि वह सरकारी कर्मचारियों को भी सिविल डिफेंस वालंटियर बनाएगी। इन कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। यदि कोई कर्मचारी आपदा राहत कार्यों में सिविल डिफेंस वालंटियर के रूप में काम करता है, तो उसे विशेष आकस्मिक अवकाश भी दिया जाएगा। सैनी सरकार की यह योजना वाकई सराहनीय है। 

अक्सर होता यह है कि जब बाढ़, भूकंप, युद्ध या महामारी जैसी स्थितियां पैदा होती हैं, तो सेना, एनडीआरएफ, सीडीआरएफ जैसी तमाम संस्थाएं लोगों की मदद को आगे आती हैं। वह आपदा काल में लोगों तक दवाएं, खाद्य सामग्री या उन्हें सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने का भरसक प्रयास करती हैं। अब पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में बाढ़ आई हुई है। सेना, एनडीआरएफ, सीडीआरएफ जैसी तमाम संस्थाएं लोगों को राहत पहुंचाने में लगी हुई हैं। इसके बावजूद इन राज्यों में कई ऐसे इलाके हैं जहां इन संस्थाओं की पहुंच अभी तक नहीं हो पाई है। इसका कारण कुछ भी हो सकता है। 

सड़कों का खराब होना,  इन संस्थाओं के वालंटियरों की संख्या कम होना, उनका दूसरी जगहों पर बचाव एवं राहत कार्य में व्यस्त होना भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में यदि स्थानीय स्तर पर सरकारी कर्मचारी ही बचाव एवं राहत कार्य में जुट जाएं तो इससे आपदा से घिरे लोगों को काफी राहत महसूस होगी। सिविल डिफेंस एक ऐसा संगठनात्मक ढांचा है जो आपदा के समय पीड़ितों को राहत पहुंचाने का प्रयास करता है। भूकंप, बाढ़, तूफान, अग्निकांड, रासायनिक  रिसाव, औद्योगिक क्षेत्रों में हुई दुर्घटनाओं, युद्ध या आतंकी हमले के दौरान लोगों को बचाने के लिए सिविल डिफेंस के स्वयंसेवक सक्रिय होते हैं। 

इसमें आम जनता से भी लोग जुड़े होते है। स्थानीय नागरिकों को इसके लिए बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है। गांव या शहर में कोई छोटी-मोटी आपदा होती है, तो सिविल डिफेंस के वालंटियर ही उसे संभाल लेते हैं। वैसे इन दिनों हरियाणा लगभग एक दर्जन जिलों में बाढ़ जैसे हालात हैं। घरों, दुकानों, खेतों में पानी भर गया है। कुछ गांवों का तो बाकी सबसे संपर्क ही कट गया है, ऐसी स्थिति में सिविल डिफेंस वालंटियर बड़े काम का साबित हो सकता है। यदि सिविल डिफेंस की ट्रेनिंग दसवीं और बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियों को दिया जाए, तो शायद ज्यादा कारगर होगा। यह विद्यार्थी आगे चलकर आपदा के समय काफी काम आ सकते हैं। इस प्रशिक्षण में विद्यार्थियों में अनुशासन, सेवाभाव और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना का उदय होगा और वह समाज और राष्ट्र के प्रति ज्यादा समर्पित भाव से काम करेंगे। वह एक अच्छे नागरिक भी बनेंगे।

Friday, September 5, 2025

राधाकृष्णन ने संभाला कुलपति का पद

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

मदन मोहन मालवीय ने बनारस में एक विश्वविद्यालय की स्थापना करने की सोची, तो उन्होंने सबसे पहले इसके लिए आवश्यक धन जुटाने की सोची। उन्होंने देश के सभी राजाओं, महाराजाओं से लेकर आम जनता तक से चंदा लिया। जहां जहां भी उन्हें चंदा मिलने की उम्मीद थी, वहां वहां गए। बस एक ही धुन थी कि देश के युवकों को शिक्षित करने के इस पुनीत कार्य को किसी तरह पूरा करना है। 

सबके सहयोग से जब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी बनकर तैयार हुई, तो लोग उसकी भव्यता को देखकर दंग रह गए। सन 1939 में काफी मेहनत और भागदौड़ की वजह से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति मालवीय जी बीमार रहने लगे। उनकी इच्छा हुई कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन अब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति का भार संभालें। मालवीय जी अपने दायित्व से मुक्त होना चाहते थे। 

ऐसी स्थिति में डॉ. राधाकृष्णन ही उन्हें सबसे उपयुक्त लगे। मालवीय जी ने उनसे कुलपति का पदभार संभालने का अनुरोध किया, लेकिन उस समय तक बीएचयू आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था। यह बात राधाकृष्णन को मालूम थी। उन्होंने दो दिन बिना वेतन के काम करने की स्वीकृति दी। उन्हीं दिनों दूसरा विश्व महायुद्ध छिड़ जाने की वजह से राधाकृष्णन का आक्सफोर्ड जाना टल गया। 

सर्वपल्ली राधाकृष्णन को यह सुनहरा अवसर महसूस हुआ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को पुन: पटरी पर लाने का। उन्होंने कुलपति की हैसियत से सबसे पहले फिजूलखर्ची पर रोक लगाई। यूनिवर्सिटी के खर्चों के लिए राधाकृष्णन ने मालवीय जी की तरह दानदाताओं से गुहार लगाई। इस बार भी लोगों ने खुले मन से सहायता  की। 20 मार्च 1941 को उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर का पद त्यागकर पूरी तरह वीएचयू को समर्पित हो गए।

आवक घटने से फल और सब्जियों के दामों में बढ़ोतरी

अशोक मिश्र

हरियाणा के किसान और आढ़ती पिछले कुछ दिनों से हो रही बारिश के चलते काफी परेशान हैं। किसानों की परेशानी यह है कि बारिश और बाढ़ के चलते उनकी फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। लगातार अतिवृष्टि के कारण फसलें खेतों में खड़ी खड़ी गल गई हैं जिनसे किसी प्रकार के उपज की आशा नहीं है। बाढ़ ने जहां मिट्टी को काट दिया है, वहीं खेत में खड़ी फसल को अपने साथ बहा ले गई है। 

अगर संयोग से फसल बच भी गई है, तो इस महीने में भी भारी बरसात की आशंका के चलते किसान परेशान है। सब्जियों और फलों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। कुछ जिलों में जहां थोड़ी बहुत सब्जियां और फल बच भी गए हैं, तो उनकी सप्लाई बाधित हो रही है। जलजमाव और बाढ़ की वजह से किसानों की सब्जियों और फलों को खरीदने के लिए आढ़ती उन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। यदि किसी तरह कोई आढ़ती या दूसरे लोग किसान तक पहुंच भी रहे हैं, तो उसे दूसरे शहरों तक पहुंचाना भी एक मुसीबत महसूस हो रही है। यही वजह है कि हरियाणा के ज्यादातर शहरों में फल और सब्जियों के दाम आकाश छूने लगे हैं। 

सब्जियां और फल उपभोक्ताओं को काफी महंगे दामों पर खरीदना पड़ रहा है। लोग सब्जियों के महंगे हो जाने से परेशान हैं। फलों और सब्जियों की आवक राज्य में 32 से 40 फीसदी तक घट गई है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड से आने वाले सेब राज्य की मंडियों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। इसका कारण यह है कि इन पर्वतीय राज्यों में भूस्खलन और सड़कों के बह जाने से आना-जाना दुश्वार हो गया है। इन रास्तों पर चलना भी एक जोखिम का काम है। हरियाणा में उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों, राजस्थान के जयपुर और करनाल आदि जिलों से सब्जियों की आपूर्ति सामान्य दिनों में होती है। 

लेकिन जब से प्रदेश में बाढ़ और अत्यधिक बारिश का दौर शुरू हुआ है, मंडियों तक सब्जियों का आना प्रभावित हुआ है। बेंगलुरु से आने वाला टमाटर भी या तो रास्ते में ही पड़ा सड़ रहा है या फिर बीच रास्ते में ही रुका हुआ है। जब रास्ता सुरक्षित होगा, तभी वह प्रदेश की मंडियों तक पहुंचेगा। इस बीच आढ़ती को कितना नुकसान होगा, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। हिमाचल में जो रास्ते अभी तक सुरक्षित बचे हैं, उन्हीं रास्तों से सेब, शिमला मिर्च, गाजर, गोभी आदि सब्जियां बहुत कम मात्रा में आ रही हैं। हिमाचल और जम्मू में काफी मात्रा में पैदा होने वाला सेब भी राज्य में नहीं पहुंच पा रहा है। प्रदेश में सब्जी और फलों की आवक कम होने की वजह से इनकी मांग भी घटती जा रही है। पिछले एक सप्ताह से मंडियों में चहल-पहल काफी घट गई है। 

जो भी आता, मंदिर में टंगे घंटे की तरह बजा जाता

शिक्षक दिवस पर बचपन को याद किया

अशोक मिश्र

आज शिक्षक दिवस है। माता-पिता के बाद अगर जीवन में किसी की सबसे बड़ी भूमिका होती है, तो वह शिक्षक ही होता है। शिक्षक केवल स्कूल-कालेज में ही नहीं होता है, जीवन के किसी भी मोड़ पर यदि कोई जीवन की शिक्षा दे जाए, वह भी गुरु होता है। आज जब मैं पीछे लौटता हूं, तो मुझे याद आता है लखनऊ के आलमबाग थाना क्षेत्र में स्थित छोटा बरहा मोहल्ले का बरहा जूनियर हाई स्कूल। अनगिनत दृश्य इस समय मेरी आंखों के सामने चलचित्र की तरह दिखाई दे रहे हैं। सत्या दीदी, सुरेंदर कौर, बीना सिंह, मुन्ना सिंह राठौर, हरिश्चंद्र यादव,  एसपी शुक्ल यानी शिव प्रसाद शुक्ल आदि। स्कूल से बाहर बाबू जी और भइया।

दरअसल, इन लोगों ने मेरे शरीर में समाए हुए खोट को गढ़ि-गढ़ि काढ़ने का भरसक प्रयास किया। जब-जब मौका मिला, काढ़ा, खूब काढ़ा, लेकिन खोट मुहझौंसा कुछ ऐसा समाया हुआ था कि आठवीं में रिजल्ट देते समय पांचवीं से आठवीं तक क्लास टीचर रहीं सुरेंद्र कौर को भी कहना पड़ा, भइया! मुझसे जितना बन पड़ा, जैसा बन पड़ा, तुम्हें इंसान बनाने की कोशिश की। अब आगे तुम पर और तुम्हारे नए अध्यापकों पर निर्भर है कि वह तुम्हें कितना इंसान बना सकते हैं। मार्कशीट लेते हुए मैं रो पड़ा था। आज का समय होता तो शायद ‘दुनिया को सुधारकर, धरती का बोझ उतारकर,पर हम नहीं सुधरेंगे’ गाते हुए कह देता-दीदी, आपने जितना इंसान बना दिया, उससे आगे काम चला लूंगा। इससे ज्यादा इंसान बनने की वैसे भी जरूरत नहीं है।सुरेंद्र दीदी हमें साइंस और अंग्रेजी पढ़ाती थीं। एसपी शुक्ल जी हमें भूगोल, हिंदी और संस्कृत पढ़ाते थे। वह अक्सर कहा करते थे जैसे राम को हनुमान पसंद थे, वैसे ही मुझे अशोक पसंद है। वैसे मैं अपनी कक्षा का होशियार (हो-सियार) विद्यार्थी था, लेकिन कोई ऐसा भी दिन शायद जाता हो जिस दिन मैं पिटता नहीं था।

अब मुझे याद आ रहा है। रिसेस चल रहा है। सारे लड़के-लड़कियां या तो खेलने में मस्त हैं, या फिर घर से लाया गया टिफिन खत्म करने में लगे हैं। लड़कियां ग्रुप बनाएं बाहर धीमे-धीमे स्वर में पता नहीं क्या फुसफुसा रही हैं। बीच-बीच में उनकी खिलखिलाहट भी सुनाई दे रही है। और मैं? पूरी तरह खाली क्लास में बीना की साइंस कापी दिनेश के बस्ते में, सलीम का ज्यामेट्री बाक्स मालती सिंह के बस्ते में रखने के बाद अभी-अभी कंचन का बस्ता क्लास की छत पर फेंककर आया हूं। शांति का बस्ता दिनेश की जगह और दिनेश का बस्ता छठी क्लास में रखकर अभी अभी लौटा हंू। अभी पूरी क्लास को अस्त-व्यस्त भी नहीं कर पाया था कि रिसेस खत्म होने की घंटी बज गई। घंटी बजते ही मैं बाहर की ओर भागा। जब सारे बच्चे क्लास में पहुंचे, तो मैंने प्रवेश किया ताकि लोग जान जाएं कि मैं सबसे बाद में आया हूं।

साइंस पढ़ाने सुरेंद्र मैडम आई हैं। वहीं क्लास सब्जी मंडी बना हुआ है। कोई अपनी भूगोल की कापी को  रो रहा है, तो किसी को अपना ज्यामेट्री बाक्स नहीं मिल रहा है। कोई पगलाया हुआ है कि उसका बस्तवै गायब है। सुरेंद्र कौर के सामने दिक्कत यह है कि वह पढ़ाएं या यहां जो महाभारत मची है, उसको शांत कराएं। पंद्रह-बीस मिनट बाद जब सब कुछ शांत हुआ, तो अपराधी को खोजा जाने लगा। किसने किया, किसने किया की राग भैरवी के बीच दिनेश ने कहा, दीदीजी, जब मैं रिसेस में पानी पीकर खेलने जा रहा था, तो अशोक कंचन के बस्ते से कुछ निकाल रहा था। बस क्या था? मुझ जैसे मासूम पर टूट पड़ा सुरेंद्र कौर का कहर। कितने बेंत पड़े यह न मैडम ने गिने न मुझे गिनने की फुरसत थी। सजा मिली, दो क्लास बाहर कान पकड़कर खड़े होने की। फिर तो दो पीरियड तक जो भी टीचर उधर से गुजरता। मंदिर में टंगे घंटे की तरह बजा जाता। यह लगभग रोज का सीन था। घर पहुंचता तो अगर भइया होते, तो राजेश जाकर उनके सामने कच्चा चिट्ठा खोल देता। फिर भइया भी मुझे इंसान बनाने पर तुल जाते। तस्मै श्री गुरवे नम:।

Thursday, September 4, 2025

मेरी लगन ने मुझे वैज्ञानिक बनाया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अल्बर्ट आइंस्टीन ने सापेक्षता का सिद्धांत देने के साथ साथ द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण (e=mc2) भी दिया था जिसने विज्ञान के क्षेत्र में तहलका मचा दिया था। आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 में जर्मनी के एक यहूदी परिवार में हुआ था। हालांकि इनके पिता धर्म को नहीं मानते थे। 

यही वजह है कि  इन्हें पढ़ने के लिए कैथोलिक स्कूलों में भेजा गया। आइंस्टीन को बचपन में बोलने में कठिनाई होती थी। पढ़ने-लिखने में भी कोई बहुत ज्यादा अच्छे छात्र नहीं थे, लेकिन कठिन मेहनत और लगन की वजह से ही वह दुनिया के महान वैज्ञानिक बन पाए। बचपन में उनका खूब मजाक भी उड़ाया जाता था। कुछ लोग और उनके सहपाठी तो बचपन में उन्हें मंदबुद्धि कहकर मजाक भी उड़ाते थे। 

घटना तब की है, जब आइंस्टीन का नाम पूरी दुनिया में फैल गया। एक दिन इनके पास एक युवक आया और उसने कहा कि मुझे आप कोई ऐसा गुरुमंत्र दें जिससे मैं आपकी ही तरह जीवन में सफलता पा सकूं। तब आइंस्टीन ने उस युवक को अपने बचपन का किस्सा बताया। उन्होंने कहा कि मैं पढ़ने-लिखने में अच्छा नहीं था। गणित में तो फेल हो जाया करता था। मेरे मित्र मेरा खूब मजाक उड़ाते थे। मैं सोचता रहता था कि आखिर मुझ में कौन सी कमी है जिससे मैं गणित में फेल हो जात हूं। 

गणित के भय को दूर करने के लिए मैंने गणित में रुचि लेनी शुरू की। पहले तो कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन लगे रहने के बाद थोड़ा-थोड़ा समझ में आने लगा। कठिन सवाल फिर भी परेशान करते थे। फिर मैंने कठिन सवालों को भी हल करना शुरू किया और नतीजा तुम्हारे समाने है। मैंने लगन से ही सब कुछ हासिल किया है। तुम भी लगन से अपने लक्ष्य में जुट जाओ, सफलता जरूर मिलेगी। यह सुनकर युवक ने उन्हें धन्यवाद दिया और लौट गया।

पानी की कमी को दूर करने को नदियों के किनारे सौ टैंक बनाने की योजना

अशोक मिश्र

हरियाणा, पंजाब और दिल्ली के कई इलाकों में पानी भर जाने से बुरी तरह प्रभावित हैं। खेती बरबाद हो गई है। किसानों के सामने आर्थिक समस्या पैदा होने की आशंका है। बरसात के दिनों में जिस पानी की अधिकता यानी बाढ़ से लोग परेशान रहते हैं, वही पानी जब गर्मियों के दिनों में कम हो जाता है, तब भी लोग परेशान रहते हैं। यदि पानी की मात्रा कम रहे, तो दिक्कत और पानी की मात्रा अधिक हो जाए, तब भी दिक्कत। 

ऐसी स्थिति में यदि बरसात के दिनों में जरूरत से ज्यादा पानी को सहेज लिया जाए, तो इस पानी का उपयोग गर्मी के दिनों में किया जा सकता है। बरसात के दिनों में जो जरूरत से ज्यादा पानी है, उसको यदि तालाबों, टैंकों आदि में भरकर रख लिया जाए, तो मई जून में इसका उपयोग पीने, पशुओं को पिलाने और खेती के कामों में आ सकता है। इससे भूमि का जलस्तर भी बना रहेगा। 

वैसे आम तौर पर हरियाणा में गर्मी के दिनों में बारह लाख करोड़ लीटर पानी की कमी पड़ती है। बरसात के दिनों में इससे कहीं अधिक पानी नदियों और नालों के माध्यम से बहकर बेकार चला जाता है। वैसे जैसे-जैसे लोगों की जनसंख्या बढ़ेगी, खेती का रकबा बढ़ेगा, पानी की जरूरत बढ़ती जाएगी। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर सैनी सरकार ने प्रदेश में सौ टैंक बनवाने का फैसला किया है जिसमें बरसात के दिनों का अतिरिक्त पानी सहेजा जाएगा। प्रदेश में अभी माना जाता है कि पानी की मांग 42,07,267 करोड़ लीटर पानी की मांग है। प्रदेश में विभिन्न स्रोतों से अभी कुल 30,05,930 करोड़ लीटर पानी ही लोगों को उपलब्ध हो पाता है। 

यानी लगभग 12 लाख करोड़ लीटर पानी की प्रदेश में कमी है। सरकार का मानना है कि सौ टैंक बनाकर यदि छह लाख करोड़ लीटर पानी दो साल में बचा लिया जाए, तो पानी की कमी केवल पचास प्रतिशत ही रह जाएगी। वैसे सरकारी आंकड़े के अनुसार प्रदेश में उपलब्ध कुल पानी का 84.45 प्रतिशत पानी कृषि कार्यों में ही खर्च होता है। सरकार यमुना, मारकंडा और घग्गर नदियों के किनारे टैंक बनाने की योजना बना रही है। हालांकि पचास टैंक बनाए भी जा चुके हैं। जो बन गए हैं उनका मेंटिनेंस भी चालू है। 

प्रदेश के 7403 गांवों में भूजल का स्तर काफी गिर चुका है। इनमें से रेड कैटेगरी में 2246 गांव आ चुके हैं, जबकि 52 नए गांव इनमें और जुड़ गए हैं। इन गांवों का जलस्तर 30 मीटर से नीचे जा चुका है। यदि इन गांवों में जलस्तर नहीं बढ़ा, तो हालात काफी बदतर हो जाएंगे। वहीं 20 से 30 मीटर नीचे जलस्तर वाले गांव 1243 गांव पिंक कैटेगरी में आ चुके हैं। हालांकि सुखद बात यह है कि 7403 गांवों में से 2147 गांवों में जलस्तर बढ़ रहा है।

Wednesday, September 3, 2025

राजा से करवा ली अपनी सेवा

प्रतीकात्मक चित्र
बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

व्यक्तियों के समूह से ही परिवार और परिवारों के समूह से गांव और शहर का निर्माण होता है। गांवों और शहरों के समुच्चय से ही प्रदेश और देश अस्तित्व में आते हैं। देश और प्रदेश के विकास में वहां रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका होती है। किसी की कम और किसी की ज्यादा। लेकिन किसी भी नागरिक की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। 

प्राचीनकाल में अफ्रीका में एक राजा हुआ करता था कमेराका। वह बहुत घमंडी और क्रूर था। अपने राजदरबार में बैठकर वह केवल अपनी प्रशंसा किया करता था और गप्पें हांकता था। यदि उसकी बात का कोई विरोध करता था, तो वह मौत या दूसरी किस्म की क्रूर सजाएं दिया करता था। उसे अपनी बुद्धि पर बहुत अभिमान था। वह मानता था कि उसके बराबर बुद्धिमान व्यक्ति दुनिया में कोई दूसरा नहीं है। 

एक दिन उसने अपने दरबार में कहा कि सब लोग मेरे सेवक हैं। उसी दरबार में बैठे बुजुर्ग बोकबार ने कहा कि दुनिया का हर आदमी एक दूसरे का सेवक है। बुजुर्ग बोकबार काफी बुद्धिमान आदमी थे  और वह अपने अध्ययन के लिए प्रसिद्ध थे। राजा नाराज हो उठा। उसने कहा कि यदि तुम आज शाम तक मुझसे अपनी सेवा नहीं करवा पाए, तो मैं तुम्हें मृत्यु दंड दूंगा। यह सुनकर दरबारी सहम गए। 

बोकबार ने कहा, ठीक है। शाम को जब राजा और बोकबार दरबार से निकलने लगे, तो सामने एक भिखारी को खड़े देखकर बोकबार ने कहा कि यदि आप कहें, तो इस भिखारी को भोजन दे दूं। जब बोकबार उस भिखारी को भोजन देने को आगे बढ़े, उनकी छड़ी गिर गई। यह देखकर राजा ने तुरंत छड़ी उठाकर बोकबार को दे दी। तब बोकबार ने कहा कि देखा, आपने मेरी सेवा की या नहीं। यह सुनकर राजा प्रसन्न हो गया। उसने बोकबार को अपना मंत्री बना लिया।