अशोक मिश्र
आज जो लोग चालीस से ऊपर की आयु के लोग हैं, वे अगर अपने बचपन को याद करते हैं तो क्या पाते हैं? स्कूल में साथियों के साथ धमाचौकड़ी, मस्ती, लड़ाई-झगड़े और स्कूल के बाद परिवार वालों के जबरदस्ती पढ़ने के लिए बिठा दिए जाने के बाद भी चुपके से निगाह बचाकर खेलने के लिए निकल जाना। खेलने के लिए न जाने कैसे-कैसे बहाने खोज लिए जाते थे। खेल भी क्या?
वही पतंगबाजी, कंचा, गुल्ली डंडा, कपड़े धोने वाली थापी या लकड़ी के पटरे से बना बैट और प्लास्टिक या रबर की गेंद। उस युग में खेल के यही साधन थे। स्कूल के बाद का सारा समय खेलने में ही निकल जाता था। तब के बच्चों ने यह सोचना ही नहीं होगा कि एक दिन इंटरनेट होगा, मोबाइल फोन होंगे और विभिन्न तरह के एप्स होंगे जो सच्ची-झूठी सूचनाओं का एक असीमित संसार खोलकर उसी में किसी उपग्रह की तरह भटकने को मजबूर कर देंगे।
पैंतीस चालीस साल पहले बच्चे पढ़ते कम और खेलते ज्यादा थे। ऐसा भी नहीं था कि सारे बच्चे फेल हो जाते थे या थर्ड डिवीजन पास होते थे। प्रतिभाशाली बच्चों की कमी न तब थी और न आज है। तब भी बच्चे 95-98 प्रतिशत अंक हासिल करते थे, लेकिन उनके बचपन में यह मायावी संसार नहीं था। आज के नब्बे प्रतिशत बच्चे पहले के बच्चों की तरह कम ही खेलते हैं।
आउटडोर गेम्स में उनकी रुचि उतनी नहीं है जितनी उन्हें मोबाइल, लैपटॉप या कंप्यूटर पर गेम्स खेलने, सोशल मीडिया पर समय गुजारने में मजा आता है। आज तो लगभग हर बच्चा कम से कम दो-तीन घंटा इंटरनेट पर जरूर समय बिताता है। खेल-कूद, धमाचौकड़ी, अपने दोस्तों से गपशप, लप्पाझप्पी क्या होता है, शायद ही आज के बच्चे जानते हों। उन पर दबाव भी बहुत है। ज्यादा से ज्यादा मार्क्स लाने का पैरेंट्स का दबाव, स्कूल और कोचिंग से मिले होमवर्कका दबाव जब ज्यादा हो जाता है, तब वे राहत के लिए बाहर खेलने जाने की बजाय सोशल मीडिया पर समय बिताना पसंद करते हैं।
सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के चलते होने वाले दुष्परिणामों को देखते हुए दुनिया के कई देशों ने बच्चों को इंटरनेट इस्तेमाल करने से रोकने के लिए कुछ नियम सख्ती से लागू कर दिए हैं। अब तो दुनिया भर में इस बात की मांग की जाने लगी है कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। आस्ट्रेलिया ने तो इस साल 10 दिसंबर से 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए टिकटॉक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, फेसबुक, ट्विटर आदि का उपयोग प्रतिबंधित करने का फैसला किया है।
यही नहीं अमेरिका में चिल्ड्रेन आॅनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों की जानकारी एकत्र करने के लिए मां-बाप की अनुमति को अनिवार्य कर दिया है। चीन में तो 18 साल से कम उम्र के बच्चों को सिर्फ दो घंटे ही सोशल मीडिया का उपयोग करने देने का प्रस्ताव रखा है। फ्रांस, जर्मनी, नार्वे आदि देशों में सोलह या अट्ठारह साल से कम आयु के बच्चों के सोशल मीडिया एकाउंट बनाने से पहले मां-बाप की इजाजत लेनी पड़ती है।
दरअसल, वर्चुअल दुनिया में बच्चों के शोषण का खतरा कुछ ज्यादा ही है। यही वजह है कि दुनिया भर के देशों में बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है। आईएएमएआई के अनुसार भारत में 16 वर्ष तक की आयु के लगभग 40 प्रतिशत बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। यह संख्या 7.1 करोड़ के आसपास है।
भारत में अभी डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 के तहत बच्चों की सोशल मीडिया पर उपयोग के नियम बनाए नहीं गए हैं। संभावना है कि अगले संसद सत्र में इस तरह का कोई बिल पेश किया जा सकता है।18 साल से कम उम्र के बच्चों का सोशल मीडिया एकाउंट खोलने के लिए माता-पिता की सहमति अनिवार्य की जा सकती है।