Thursday, November 6, 2025

महाराजा रणजीत सिंह की दयालुता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महाराणा रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब का खिताब दिया गया था। वह अपने समय के सबसे लोकप्रिय महाराजा थे। रणजीत सिंह ने कई रियासतों में बंटे पंजाब को एक करके अंग्रेजों के खिलाफ जीवन भर लड़ाई लड़ी। सन 1780 में रणजीत सिंह का जन्म गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में महाराजा महा सिंह के घर में हुआ था। 

चेचक की वजह से रणजीत सिंह की एक आंख चली गई थी। जब वह बारह साल के थे, तो उनके कंधे पर शासन का कार्यभार आ गया था। एक बार की बात है। महाराजा रणजीत सिंह अपने लश्कर के साथ कहीं जा रहे थे। जब वह एक बाग के नजदीक से गुजर रहे थे, तो उनके सिर पर एक पत्थर आ लगा। उनके सिर से खून बहने लगा। सैनिकों ने तत्काल पत्थर मारने वाले की खोज शुरू की। 

थोड़ी देर बाद सैनिक एक बुजुर्ग महिला को पकड़कर लाए। महिला डर से थर थर कांप रही थी। सैनिकों ने उस महिला से पूछा-तुमने पत्थर क्यों मारा? तब तक महाराजा रणजीत सिंह भी उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंच चुके थे। उस महिला ने कांपते हुए कहा कि महाराज! मेरे घर में दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन्होंने दो दिन से कुछ नहीं खाया है। मैं भोजन की तलाश में घर से निकली थी। 

किसी के यहां से कुछ खाने को नहीं मिला, तो इस बाग से कुछ फल तोड़ने का प्रयास कर रही थी ताकि बच्चों का पेट भरा जा सके। लेकिन यहां भी मेरे दुर्भाग्य ने आ घेरा। वह पत्थर आपको लग गया। महाराजा रणजीत सिंह उस महिला के पास गए और उसको सांत्वना देते हुए अफसरों से कहा कि माता जी को कुछ अशर्फियां देकर सम्मान के साथ विदा कर दो। लोगों को ताज्जुब हुआ कि यह कैसा न्याय है? एक सैनिक ने कहा कि वह तो सजा की हकदार थी। रणजीत सिंह ने हंसते हुए कहा कि पत्थर मारने पर जब पेड़ भी फल देता है, मैं तो मनुष्य हूं।

हरियाणा के स्टेडियमों और खेल परिसरों पर ध्यान दे सरकार

अशोक मिश्र

हरियाणा में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। देश में सभी तरह के खेलों में हरियाणा का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहता है। चाहे ओलिंपिक हो, कामन वेल्थ गेम्स हों या दूसरी तरह की अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाएं, हरियाणा के खिलाड़ी हमेशा आगे रहते हैं। खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए प्रदेश सरकार पैसा भी बहुत खर्च करती है। जब कोई खिलाड़ी कोई पदक जीतकर आता है, तो सरकार उसका स्वागत भी अच्छी तरह करती है। 

इसके बावजूद यह भी सच है कि अभी प्रदेश में बहुत कुछ ऐसा किया जाना बाकी है जिसके चलते ढेर सारी प्रतिभाएं अपना कौशल नहीं दिखा पा रही है। खेल और खिलाड़ियों को निखारने के लिए प्रदेश सरकार बजट में अच्छा खासा पैसा देती है, लेकिन उन पैसों का सदुपयोग नहीं होने से सारा किया धरा बेकार हो रहा है। इस बात का सबसे बढ़िया उदाहरण राजीव गांधी ग्रामीण खेल परिसर हैं। 

प्रदेश के विभिन्न जिलों में कांग्रेस शासनकाल में ग्रामीण इलाकों में खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए राजीव गांधी ग्रामीण खेल परिसरों का निर्माण किया गया था। इन परिसरों के माध्यम में उन ग्रामीण खेल प्रतिभाओं को निखारने की योजना थी जिनकी आर्थिक स्थिति खराब थी। ग्रामीण क्षेत्र के गरीब बच्चों को सरकारी सहायता और सुविधा प्रदान करके उनकी प्रतिभाओं को निखारने के लिए ही ये परिसर बनाए गए थे। इन परिसरों में कांग्रेस शासनकाल तक थोड़ा बहुत काम हुआ, लेकिन भाजपा शासनकाल में भारी भरकम बजट तो जारी होता रहा, लेकिन धरातल पर उतना काम नहीं हुआ जितने की अपेक्षा थी। 

इन खेल परिसरों के निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन एक भी खेल प्रतिभाओं की तलाश इन परिसरों से नहीं हो पाई। दस साल पहले भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में छह जिलों के 27 ग्रामीण खेल परिसरों को खेल के लिए अनफिट करार दिया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में खेल परिसरों के नाम पर किस तरह धन का दुरुपयोग किया गया है। कई शहरों में बने स्टेडियम के भी हालत काफी खराब हैं। सोनीपत में स्टेडियम का रखरखाव ठीक से नहीं होने से वहां घास उग आई हैं। कल की ही खबर है कि हाकी खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करने के लिए पहले वहां उगी घास काटनी पड़ी। 

उसके खेलने लायक बनाना पड़ा, तब वह प्रैक्टिस कर पाईं। इस स्टेडियम में न पानी की व्यवस्था है, न किसी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं। स्टेडियम में चौकीदार और ग्राउंडमैन तक नियुक्त नहीं किए गए हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भी यदि प्रदेश के खिलाड़ी विभिन्न खेलों में पदक जीतकर लाते हैं, तो इन खिलाड़ियों के साहस, लगन और जुझारूपन की प्रशंसा की जानी चाहिए। सरकार को इन खेल परिसरों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि ग्रामीण प्रतिभाएं निखर सकें।

Wednesday, November 5, 2025

हर दृष्टिकोण सत्य होते हुए भी अधूरा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सत्य सापेक्ष होता है। जो व्यक्ति किसी वस्तु या विचार को देखते है, तो वह अपने नजरिये के अनुसार पाता है। जो बात किसी व्यक्ति के लिए सत्य हो सकती है, वह किसी दूसरे व्यक्ति के लिए असत्य हो सकती है। जो आग किसी व्यक्ति को जला सकती है, वही आग ठंड से ठिठुरते व्यक्ति को राहत दे सकती है। जबकि दोनों मामलों में आग एक ही है। इस संबंध में एक रोचक कथा है। किसी शहर में एक हाथी आया। 

उस शहर के लोगों ने पहली बार हाथी देखा था। इसकी खूब चर्चा हुई। यह चर्चा उड़ती हुई अंधे लोगों के एक समूह तक पहुंची। अंधे लोगों ने आपस में विचार किया कि शहर में एक अजीबोगरीब जानवर आया है, जिसे हाथी कहा जाता है। लेकिन उन अंधे लोगों को हाथी का आकार-प्रकार नहीं पता था। वह भिन्न प्रकार के आकार-प्रकार की कल्पना करने लगे। काफी सोच विचार और मंथन के बाद अंधे लोगों के समूह ने फैसला किया कि एक बार हमें हाथी को छूकर देखना चाहिए। 

बेकार की कल्पना करने से बेहतर है कि हम उसे छूकर उसकी सच्चाई का पता लगाएं। इसलिए उन्होंने हाथी के मालिक से मिलने का फैसला किया। आखिर में उन्हें मालिक से हाथी को छूने की इजाजत मिल गई। पहले व्यक्ति का हाथ सूंड पर पड़ा। उसने कहा, हाथी एक मोटे साँप जैसा है। दूसरे व्यक्ति का हाथ उसके कान तक पहुँचा, उसे वह एक पंखे जैसा लगा। एक और व्यक्ति का हाथ पैर पर था। 

उसने कहा, हाथी पेड़ के तने जैसा है। इस तरह सभी अंधों ने हाथी के विभिन्न अंगों को छुआ और उसके मुताबिक ही हाथी का आकार बताया। वैसे जिसने हाथी देखा है, वह जानता है कि हाथी कैसा होता है, लेकिन अंधों ने जैसा महसूस किया था, उनके लिए वही सत्य था।

लावारिस पशुओं से मुक्ति की बाट जोह रही हरियाणा की जनता

अशोक मिश्र

मई महीने में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने डेयरी संचालकों और पशु पालकों को चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि सड़कों पर लावारिस पशु दिखाई दिए, तो डेयरी संचालकों और पशु पालकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। इस चेतावनी को डेयरी संचालकों और पशु पालकों ने कितनी गंभीरता से लिया, इसका पता इस बात से चलता है कि आज भी सड़कों पर लावारिस पशु अच्छी खासी संख्या में दिखाई दे जाते हैं। प्रदेश का शायद  ही कोई ऐसा जिला हो, जहां सड़कों और गलियों में लावारिस पशु न दिखाई देते हों। 

सड़कों पर घूमते लावारिस पशु लोगों के लिए भारी मुसीबत का कारण बन रहे हैं। कुछ पशु तो इतने आक्रामक होते हैं कि वह साइकिल या स्कूटी, मोटरसाइकिल सवार को देखते ही मारने दौड़ पड़ते हैं। लावारिस पशु से बचने के प्रयास में कई बार सवार हादसे का शिकार हो जाते हैं। कुछ लोग हादसों में अपनी जान भी गंवा बैठते हैं। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो ऐसे हादसों में जीवन भर के लिए अपंग हो जाते हैं। 

सरकार के बार-बार चेतावनी देने के बाद भी लोग अपने पशुओं को खुले में छोड़ देने की आदत से बाज नहीं आते हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने अगस्त में एक राज्यव्यापी अभियान चलाया था जिसमें हरियाणा की सड़कों को पशु मुक्त करने की बात कही गई थी। प्रदेश सरकार ने स्थानीय निकायों को यह स्पष्ट आदेश दिया था कि वह अपने-अपने इलाकों में घूम रहे लावारिस पशुओं को पकड़कर गौशालाओं में ले जाएं। इनको वहां रखें। इसके लिए राज्य सरकार ने गौशालाओं को आर्थिक सहायता देने का भी प्रावधान किया था। प्रति बछड़े के लिए तीन सौ रुपये, प्रति गाय के लिए छह सौ रुपये और प्रति बैल आठ सौ रुपये देने की व्यवस्था की थी। यह अभियान पूरे एक महीने तक चला था। 

इस अभियान में स्थानीय शहरी निकाय, हरियाणा गौशाला आयोग और पशुपालन विभाग ने हिस्सा लिया था। लेकिन यह अभियान कितना सफल हुआ, इसकी पुष्टि सड़कों पर घूमते लावारिस पशु करते हैं। अभियान के दौरान पाए गए लावारिस पशुओं की टैगिंग की व्यवस्था की गई थी। उनका एक रिकार्ड तैयार करने की भी बात कही गई थी। आज सड़कों पर घूमते कई लावारिस पशुओं में टैग वाले पशु भी देखे गए हैं। सड़कों पर विचरण करने वाले लावारिस पशुओं की वजह से सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग परेशान होते हैं। 

जब दो पशुओं में लड़ाई होती है या पशु ही आक्रामक हो तो इनकी चपेट में आने से बच्चे और बुजुर्ग कम ही बच पाते हैं। ऐसी स्थिति में उनको गंभीर चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है। कई जगहों पर तो लावारिस पशु यातायात व्यवस्था के लिए भी एक संकट साबित होते हैं। लावारिस पशु सड़कों, गलियों में गदंगी भी फैलाते हैं। भोजन की तलाश में यह कूड़ा-करकट भी बिखेर देते हैं।

Tuesday, November 4, 2025

अपने कर्तव्य का पालन न करना पड़ा भारी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे देश में यह बहुत पुरानी मान्यता रही है कि सबको अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए। यहां धर्म का मतलब रिलीजन या धार्मिक मान्यताओं से नहीं है। यहां धर्म का मतलब अपने कर्तव्य से है। यदि किसी व्यक्ति का पेशा रात भर चौकीदारी करने का है, तो उसे अपने कर्तव्य का पालन बड़ी ईमानदारी से करना चाहिए। 

प्राचीन पुस्तकों में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने काम को ईमानदारी से नहीं करता है, वह समाज में अच्छा इंसान नहीं माना जाता है। इस बात को एक कथा के माध्यम से भी समझाया जा सकता है। किसी गांव में एक धोबी रहता था। उसने अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता पाल रखा था। इतना ही नहीं, उसने कपड़ों को घाट तक लाने-ले जाने के लिए एक गधा भी पल रखा था। 

धोबी जब गधे और कुत्ते को खाना देता, तो कुत्ते को गुस्सा आ जाता था। वह सोचने लगता था कि गधे को ज्यादा खाना क्यों दिया। रोज यह भेदभाव देखने की वजह से कुत्ता अपने मालिक से नाराज हो गया। एक दिन धोबी के घर में कुछ चोर घुस आए। उन्होंने घर का सारा सामान समेटा और रफूचक्कर हो गए। उस समय घोबी अपने घर में ही सोया हुआ था, लेकिन उसे चोरी होने की खबर ही नहीं हुई। 

चोरों को घर में घुसते हुए गधे और कुत्ते ने देख लिया था। गधे ने कुत्ते से कहा कि उसे इस समय भौंकना चाहिए, ताकि मालिक जाग जाएं। इस समय उसका चुप रहना उचित नहीं है। लेकिन कुत्ता नहीं भौंका। यह देखकर गधे ने रेंकना शुरू कर दिया। धोबी उठा, तो उसने पाया कि चोर सब कुछ लेकर जा चुके हैं। धोबी ने उठाया डंडा और गधे को मार-मार कर लहूलुहान कर दिया। इसके बाद कुत्ते का नबंर आया। थोड़ी देर दोनों घायल पड़े थे। एक को मार इसलिए पड़ी क्योंकि उसने दूसरे का धर्म निभाया था। दूसरे को मार इस वजह से पड़ी कि उसने अपने धर्म का निर्वाह नहीं किया था।

नशीले पदार्थों की बिक्री रोकने को केमिस्टों पर दर्ज होगा केस

अशोक मिश्र

नशा किसी व्यक्ति का जीवन ही नहीं लेता, बल्कि पूरे परिवार को एक असहनीय दर्द दे जाता है। नशा परिवार के लोगों का जीवन नरक जैसा बना देता है। नशीले पदार्थों का आदी व्यक्ति जरूरत पड़ने पर अपने घर से ही चोरी करने पर मजबूर हो जाता है जिसकी वजह से घर में क्लेश बढ़ता है। प्रदेश में कुछ ऐसी भी घटनाएं देखने को मिली हैं जिसमें पति-पत्नी के बीच तलाक की नौबत तक आ गई है। कुछ महिलाओं ने तो अपने पति की नशाखोरी की आदत से परेशान होकर आत्महत्या तक कर ली है।

यह स्थिति हरियाणा की ही नहीं, देश के लगभग हर राज्य की है। नशीले पदार्थों की बिक्री और सेवन से कोई भी राज्य अछूता नहीं है। नशाखोरी का चलन किस कदर बढ़ रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हरियाणा में नशे की ओवरडोज से लोगों के मरने की संख्या लगातार बढ़ रही है। सिरसा समेत कई जिलों में पिछले दिनों में काफी संख्या में लोग नशे की ओवरडोज के चलते अपने प्राण गंवा चुके हैं। मरने वाले ज्यादातर लोगों की बाजू और शरीर के अन्य हिस्सों में बार-बार सुई लगाने के निशान पाए हैं जिससे यह साबित हुआ कि मरने वाले ने गलती से ओवरडोज नशा कर लिया था। 

इसी समस्या से पंजाब भी जूझ रहा है। पिछले छह महीनों के भीतर पंजाब में सैकड़ों लोग नशे की ओवरडोज से अपनी जान गंवा बैठे हैं। पंजाब और हरियाणा में नशीले पदार्थों की बहुत ज्यादा होने की खबरें हैं। आमतौर पर नशा या फार्मास्यूटिकल ड्रग से होने वाली मौतों के मामले में पुलिस परिजनों के बयान दर्ज करती थी और शव को  पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया जाता था। 

पुलिस कोई कार्रवाई भी नहीं करती थी जब तक कि परिजन किसी के खिलाफ कोई शिकायत न दर्ज कराएं। लेकिन अब हरियाणा पुलिस ने फैसला लिया है कि यदि किसी की नशे की ओवरडोज से मौत होती है, तो उस ड्रग्स को बेचने वाले केमिस्ट के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा और उसे दंडित किया जाएगा। इसके लिए पुलिस मरने वाले के फोन की लोकेशन ट्रेस करेगी और जिस मेडिकल स्टोर से उसने ड्रग्स खरीदा होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी। वैसे हरियाणा सरकार पिछले काफी दिनों से नशीले पदार्थ की बिक्री रोकने का भरसक प्रयास कर रही है। 

उसने पुलिस अधिकारियों को पूरी छूट दे रखी है कि वह अवैध नशा विक्रेताओं के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई करें। इसके बावजूद प्रदेश में अवैध नशे का कारोबार रुक नहीं रहा है। पुलिस कभी कभार छापा मारकर नशे का अवैध कारोबार करने वालों को पकड़ पाने में सफल हो जाती है, लेकिन बाद में वह जमानत पर बाहर आते हैं और फिर नशा तस्करी में लग जाते हैं। पुलिस प्रशासन को नशा तस्करों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। तभी हालात सुधरेंगे।

Monday, November 3, 2025

यह ताबूत तुम्हारे बेटे के काम आएगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कहा जाता है कि आदमी यदि अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करता है, उनका अनादर करता है, तो वह इंसान कहलाने लायक नहीं होता है। माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। एक बार की बात है। किसी गांव में एक किसान रहता था। उसने अपने परिवार का बहुत अच्छी तरह से पालन पोषण किया। 

जीवन भर उसने कठिन परिश्रम करके परिवार को सम्मानजनक तरीके से रहने की व्यवस्था की थी। समय के साथ एक दिन ऐसा भी आया जब वह बूढ़ा हो गया। अब किसान किसी काम का नहीं रह गया। वह घर में दिन भर बैठा रहता था। उसका बेटा अब अपने पिता की जगह पर खेतों में काम करने लगा था। 

रोज अपने पिता को खाली बैठा देखकर उसे बहुत चिढ़ पैदा होने लगी थी। वह यह भी भूल गया था कि उसके इसी पिता ने उसका पालन-पोषण किया था। जब वह बच्चा था, तो उसकी देखभाल की थी। वह अपने पिता के किए गए उपकारों को भूल चुका था। जब भी वह अपने बुजुर्ग पिता को देखता, तो मन ही मन यही सोचता था कि यह बैठे-बैठे खा रहा है। अब तो इसे मर जाना चाहिए। फालतू में जी रहा है। एक दिन बेटे ने कुछ निश्चय करके उसने लकड़ी का एक ताबूत बनवाया। 

उसने उस ताबूत में अपने पिता को डालकर वह खेतों के पास पहाड़ी पर ले गया। जब वह ताबूत को पहाड़ी से नीचे फेंकने ही वाला था कि ताबूत में खटखटाने की आवाज आई। उसने ताबूत खोला, तो उसके पिता ने कहा कि मैं जानता हूं कि तुम मुझे पहाड़ी से फेंकने वाले हो। इस सुंदर ताबूत को खराब करने की क्या जरूरत है। मुझे ऐसे ही फेंक दो। यह ताबूत तुम्हारे बेटे के काम आएगा। यह सुनकर बेटे को बड़ी लज्जा आई। वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसने पिता से क्षमा मांगी और उसे वापस घर ले आया।



हालात बिगड़े, लोगों के लिए गैस चैंबर बनी हरियाणा की हवा

अशोक मिश्र

यह हमारे स्वभाव में है कि जब तक कोई समस्या हमारे सिर पर आकर सवार नहीं हो जाती है, तब तक हम शुतुरमुर्ग की तरह अपनी चोंच रेत में घुसेड़े रहते हैं। इन दिनों दिल्ली एनसीआर सहित हरियाणा के जिलों में वायु गुणवत्ता सूचकांक काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है, लेकिन इस स्थिति से बचने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। उत्तर भारत में रहने वाला आम नागरिक भी यह बात जानता है कि दिवाली के बाद प्रदूषण हर हालत में बढ़ जाता है। पटाखों और पराली को जलाने से रोकने का हर संभव प्रयास करने के बावजूद हालात बदतर ही रहते हैं। 

इसके बावदू प्रशासन वायु प्रदूषण रोकने की कवायद तब शुरू करता है, जब हालात बेकाबू हो चुके होते हैं। कल से ही दिल्ली एनसीआर में हरियाणा के पुराने डीजल वाहनों का प्रवेश निषेध किया गया है। कहने को तो यह फरमान जारी कर दिया गया, लेकिन बार्डर पर इतनी सख्ती नहीं बरती गई जितनी कि जरूरत थी। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान वन बहुत पहले भी लागू किया जा चुका है, लेकिन इसका उल्लंघन करने वालों पर समुचित कार्रवाई केवल छिटपुट ही की गई। 

नतीजा यह हुआ कि आज हालात काफी बदतर हो चुके हैं। हरियाणा में भी कई जिलों की हालत गैस चैंबर जैसी हो गई है। कई जिलों में सुबह से लेकर रात तक स्माग छा जाने की वजह से लोगों का दम घुट रहा है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी होता नहीं दिखाई दे रहा है। स्माग की वजह से लोगों की आंखों में जलन हो रही है, आंखों से पानी गिर रहा है। कुछ मामलो में तो यह भी देखने को मिला है कि स्माग के चलते कई लोगों की आंखों की रोशनी तक चली गई है। चिकित्सक बताते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्मॉग के चलते कार्निया पर प्रदूषित कण जमा हो जाते हैं जिसकी वजह से आंख खराब हो जाती है। पिछले कुछ दिनों से हरियाणा में दमा रोगियों की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है। 

इसके साथ ही स्किन रोग भी लोगों में बढ़ता जा रहा है। यदि प्रदूषण पर जल्दी ही काबू नहीं पाया गया, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। शनिवार को प्रदेश के लगभग सभी जिलों में पूरा दिन स्मॉग छाया रहा जिसकी वजह से लोगों को काफी परेशानी हुई। रोहतक, सोनीपत, गुरुग्राम, नारनौल और फरीदाबाद जैसे शहरों का हाल तो बहुत बुरा रहा। इन शहरों में 389 से लेकर 200 के बीच एयर क्वालिटी इंडेक्स रहा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हरियाणा में किस कदर वायु प्रदूषण फैला हुआ है। 

हरियाणा और दिल्ली सरकार को चाहिए कि वह जल्दी से जल्दी ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान को सख्ती से लागू करे। यदि कोई ग्रेप का उल्लंघन करता पाया जाए तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। इतना ही नहीं, समस्या पैदा होने से पहले ही सरकार कदम उठाए, ऐसे हालात पैदा ही न हों।

Sunday, November 2, 2025

मूर्ख से बहस करना बुद्धिमानी नहीं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

किसी दार्शनिक ने कहा है कि मूर्ख व्यक्ति से बहस नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह आपकी सही बात को भी गलत ठहरा देंगे। यह बात सामान्य जीवन में भी कई बार सच साबित होती है। मूर्ख व्यक्ति पहले तो ज्ञानी व्यक्ति को बातचीत के दौरान अपने स्तर पर ले आएगा और फिर अपनी मूर्खतापूर्ण बातों से ज्ञानी को हरा देगा। इस संदर्भ में एक बहुत ही रोचक कथा कही जाती है। 

एक बार की बात है। चार मेंढक एक बड़े से लट्ठे पर बैठे हुए थे। यह लट्ठा नदी में पड़ा हुआ था। तभी नदी का जलस्तर बढ़ने लगा और लट्ठा पानी में बहने लगा। मेंढकों को बहुत आनंद आया। यह एक अनोखी यात्रा थी। इससे पहले लट्ठे या किसी दूसरी वस्तु पर बैठकर मेंढकों ने यात्रा नहीं की थी। यह देखकर एक मेंढक ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा कि नदी के पानी में गति होने की वजह से देखो, हम जिस लट्ठे पर बैठे हैं, वह बहा जा रहा है। 

यह सुनकर दूसरे मेंढक ने कहा कि तुम्हें मालूम ही नहीं है। गति पानी में नहीं है, गति लट्ठे में है। इसी वजह से यह लट्ठा तैरता जा रहा है। यह ठीक उसी तरह तैर रहा है जिस प्रकार तालाब या नदी में मगरमच्छ आदि तैरते हैं। यह सुनकर तीसरा मेंढक बोल उठा-तुम सब लोग पागल हो। भला पानी या लट्ठे में गति हो सकती है क्या? 

दरअसल,सच तो यह है कि हमारे विचारों में गति है जिसकी वजह से हमें लट्ठा घूमता प्रतीत होता है। यदि हमारे विचारों में गति नहीं होती, तो हमें यह लट्ठा बहता हुआ नहीं दिखता। जब मामला नहीं सुलझा, तो तीनों मेंढकों ने चौथे से पूछा। उसने कहा कि तुम सबकी बात सही है। पानी में गति है,लट्ठे में गति है, विचारों में गति है। यह सुनकर तीनों मेंढकों को गुस्सा आया। उन्होंने आपस में मिलकर चौथे मेंढक को नदी में ढकेल दिया।

हरियाणा में पांच लाख से अधिक महिलाओं के खाते में पहुंचे 21 सौ

अशोक मिश्र

महिलाएं किसी भी देश और समाज की आधारशिला होती हैं। देश या समाज में महिलाओं की स्थिति ही बताती है कि देश या समाज कितना सभ्य, सुदृढ़ और विकसित है। देश या प्रदेश की अर्थव्यवस्था की धुरी भी महिलाएं ही होती हैं क्योंकि देश या प्रदेश के कार्यबल में उनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंकने की सदियों पुरानी मानसिकता रही है। 

उन्हें काम पर रखते समय भी पुरुषों के मुकाबले में कम ही वेतन दिया जाता है, जबकि वह काम पुरुषों के बराबर ही करती हैं। यही वजह है कि कुछ प्रदेश सरकारों ने महिलाओं की आर्थिक दशा सुधारने के लिए कई योजनाएं संचालित की हैं ताकि वह आर्थिक रूप से मजबूत हो सकें। ऐसी ही एक योजना हरियाणा सरकार ने संचालित की है जिसको दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना के नाम से जाना जाता है। 

एक नवंबर को हरियाणा दिवस पर सीएम नायब सिंह सैनी ने प्रदेश की  5,22,162 महिलाओं के बैंक खातों में 109 करोड़ रुपये डाले गए हैं। प्रत्येक महिला के खाते में 21सौ रुपये आए हैं। लाडो लक्ष्मी योजना के लिए 6,97,697 आवेदन  आए थे। जिनमें से 6,51,529 विवाहित महिलाएं और 46,168 कुंवारी हैं। अभी 1,75,179 महिलाओं के आवेदन पेंडिंग में हैं। इन महिलाओं के आवेदन पर विचार किया जा रहा है। सैनी सरकार ने घोषणा की है कि दूसरे चरण में 1.40 लाख रुपये वार्षिक आय वाली महिलाओं को शामिल किया जाएगा। वहीं 1.80 हजार आय वाली महिलाओं को तीसरे चरण में और तीन लाख तक वार्षिक आय वाली महिलाओं को चौथे चरण में शामिल किया जाएगा। एक लाख अस्सी हजार से तीन लाख रुपये वार्षिक आय वाली महिलाओं की अनुमानित संख्या 46 लाख 62 हजार बताई जा रही है।  

योजना के तहत परिवार पहचान पत्र की बजाय आधार कार्ड की इनकम का डेटा इस्तेमाल किया गया है। इसलिए पात्रों की संख्या तय अनुमान से कम रही है। पहले सरकार ने दावा किया था कि फैमिली आईडी के हिसाब से 19.62 लाख महिलाएं इस योजना के लाभ की पात्र हैं।  इतनी कम महिलाओं के आवेदन करने के पीछे कुछ कारण बताए जा रहे हैं। दरअसल रजिस्ट्रेशन की कड़ी शर्तों के साथ-साथ महिलाओं का एक डर इसकी प्रमुख वजह है। ये डर है पीला-गुलाबी राशन कार्ड कटने का खतरा। महिलाओं को लग रहा है कि सरकार से 2100 रुपए प्रतिमाह लेने पर उनके बीपीएल राशन कार्ड कट जाएंगे। 

इसलिए उन्होंने स्कीम के प्रति ऐसी बेरुखी दिखाई। महिलाएं पीला या गुलाबी राशन कार्ड से मिलने वाली सुविधाओं को छोड़ना नहीं चाहती हैं। यही वजह है कि उन्होंने लाडो लक्ष्मी योजना में आवेदन करना उचित नहीं समझा। सरकार इस प्रयास में है कि बाकी बची महिलाओं को भी योजना का लाभ मिले।

Saturday, November 1, 2025

संत अलवार की दयालुता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

दक्षिण भारत में पैदा हुए अलवार तमिल भाषा के संत और कवि थे। वैसे तमिल साहित्य में 12 अलवार संतों का जिक्र मिलता है। यह सभी संत भगवान विष्णु के उपासक माने जाते हैं। तमिल साहित्य में नयनार संतों का भी जिक्र मिलता है, जो शैव उपासक माने जाते हैं। इनके आराध्य भगवान शिव थे। तमिल साहित्य में 76 नयनार संतों का जिक्र पाया जाता है। 

संतों की यह दोनों धाराएं तमिलनाडु और उसके आसपास के राज्यों में फलती फूलती रही हैं। विष्णु और शिव को आराध्य मानने वाले दोनों तरह के संत काफी उदार रहे हैं। एक बार की बात है। संत अलवार ने अपनी जरूरतों को काफी कम कर लिया था। वह बहुत कम चीजों में ही अपना काम चला लेते थे। उनकी कुटिया भी बहुत छोटी थी। उस कुटिया में केवल एक ही आदमी सो सकता था। 

बस इतनी सी जगह थी। एक रात बहुत तेज बारिश हो रही थी। संत अलवार अपनी कुटिया में लेटे हुए थे। तभी एक आदमी ने उनकी कुटिया का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दरवाजा खोल कर बाहर देखा, तो पाया कि एक आदमी पानी से भीगा हुआ खड़ा है। उस व्यक्ति ने संत से याचना की कि बहुत तेज बारिश हो रही है। वह रास्ता भी भटक गया है, उसे रात भर के लिए झोपड़ी में रुकने की जगह मिल सकती है क्या? संत ने कहा कि मेरी कुटिया में एक आदमी सो सकता है, एक बैठ सकता है। या दोनों बैठ सकते हैं। 

थोड़ी देर बाद एक आदमी और आया। वह ठंड से कांप रहा था। संत ने उससे भी कहा कि मेरी कुटिया में तीन लोग पैठ सकते हैं, केवल एक आदमी सो सकता है। वह व्यक्ति अंदर आ गया। थोड़ी देर बात एक और आदमी ने अंदर आने की इजाजत मांगी। संत ने उसे भी अंदर बुला लिया और खुद बाहर खड़े हो गए। वह खुद बाहर जाकर खड़े हो गए। रातभर बारिश में भीगते रहे, लेकिन मेहमान को भीतर ही रखा।

हरियाणा के कई जिलों में गंभीर स्तर पर पहुंचा प्रदूषण, घुटने लगी सांस

अशोक मिश्र

हमारे देश प्रदेश में विकास की रफ्तार बहुत तेज रही है। हर तरफ आलीशान इमारतें, चौड़ी-चौड़ी सड़कें और जरूरत की वस्तुओं से सजे बाजार देखने को मिल जाएंगे। ज्यादातर शहरों में सुबह शाम वाहनों की लंबी-लंबी कतारें अब तो आम बात हो गई है। इस विकास की जनता को भारी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। वायु, जल और मृदा प्रदूषण ने जीवन को सांसत में डाल दिया है। 

हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे कई राज्य प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। हरियाणा में ही वीरवार को रोहतक और धारूहेड़ा का वायु गुणवत्ता सूचकांक देश में सबसे ज्यादा पहुंच गया था। रोहतक का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 426 और धारूहेड़ा का एक्यूआई 406 तक पहुंच गया था। यह सबसे खतरनाक स्थिति मानी जाती है। इतनी प्रदूषित में लोगों की सांस घुटने लगती है। हालात गैस चैंबर जैसे बन जाते हैं। स्वस्थ लोगों को भी कई तरह की बीमारियों का शिकार बनना पड़ता है। 

पिछले चौबीस घंटों में प्रदेश के कई शहरों की हालत काफी खराब थी। प्रदेश के नौ जिलों में एक्यूआई बहुत खराब रहा। जींद में 347, चरखी दादरी में 392, सोनीपत में 350, बहादुरगढ़ में 344, बल्लभगढ़ में 320, पानीपत में 283, मानेसर में 280, गुरुग्राम में 248 और भिवानी में 264 एक्यूआई दर्ज किया गया था। दीपावली के बाद से ही प्रदेश के कई जिलों में ऐसी स्थिति बनी हुई है। वायु प्रदूषण के चलते सरकारी और निजी अस्पतालों में सांस, हृदय और त्वचा से जुड़ी बीमारियों के मरीज काफी संख्या में आ रहे हैं। 

इन मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या बच्चों और बुजुर्गों की है। ऐसी खराब वायु का सबसे पहला अटैक बच्चों और बुजुर्गों पर ही होता है।अब तो यह हर साल की समस्या बनती जा रही है। जैसे ही ठंडक के दिन आने शुरू होते हैं, विभिन्न राज्यों की सरकारें एहतियाती कदम उठाने लगती हैं। लेकिन कोई भी सरकार स्थायी समाधान की ओर ध्यान ही नहीं दे रही हैं। जिस तरह के विकास को बढ़ावा इन दिनों विभिन्न सरकारें दे रही हैं, वह दरअसल विकास नहीं बल्कि विनाश ही है। लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए खेती की जमीनों पर रिहायशी कालोनियां बसाई जा रही हैं। सड़कें बनाने के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं। यदि इन पेड़ों को काटने की प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो हालात और भी बदतर होंगे। वन क्षेत्र को मिटाया जा रहा है। 

अब तो सरकार ने भी पांच एकड़ से कम जमीन पर उगी वनस्पतियों और पेड़-पौधों को वनक्षेत्र मानने से इनकार कर दिया है। इतना ही नहीं, लोग जागरूकता की कमी की वजह से कूड़ा-करकट, पराली और कोयला जला रहे हैं। प्रशासन हालत बदतर होने पर आदेश तो जारी करता है, लेकिन इन आदेशों पर कितना अमल हुआ, इसके देखने की फुरसत उसके पास नहीं होती है।

Friday, October 31, 2025

संत एकनाथ को क्रोध दिला पाना असंभव

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रामचरित मानस जैसा महाकाव्य रचने वाले गोस्वामी तुलसीदास की ही तरह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत एकनाथ का जन्म भी मूल नक्षत्र में हुआ था। एकनाथ के भी माता-पिता का इनके जन्म के बाद निधन हो गया था। कहा जाता है कि मूल नक्षत्र में पैदा होने वाले बालक के माता-पिता पर घोर विपत्ति आती है। संत एकनाथ ने महाराष्ट्र के सबसे चर्चित संत ज्ञानेश्वर की परंपरा को ही आगे बढ़ाया। 

इनके पितामहं भानुदास भी बहुत बड़े संत थे। संत एकनाथ ने भावार्थ रामायण और भागवत जैसे ग्रंथ की रचना की थी। वह पैठण में रहते थे। जब संत एकनाथ की ख्याति महाराष्ट्र में बढ़ने लगी, तो कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगा। ऐसे लोग हर पल एकनाथ का बुरा करने का प्रयास करने लगे। इसके बावजूद संत एकनाथ अपनी साधना में लगे रहे। 

एक दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति ने उनकी ख्याति से चिढ़कर घोषणा की कि जो संत एकनाथ को गुस्सा दिला देगा, तो उसे दो स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। दो स्वर्ण मुद्राओं की लालच में एक गरीब किंतु बेरोजगार ब्राह्मण तैयार हो गया। वह एकनाथ के घर गया। उस समय एकनाथ पूजा कर रहे थे। वह युवक जाकर एकनाथ की गोद में बैठ गया। उसने सोचा कि ऐसा करने से एकनाथ को क्रोध आ जाएगा। लेकिन एकनाथ ने हंसते हुए कहा कि भैया! तुम से मिलकर अत्यंत आनंद आ गया। तुम्हारा प्रेम तो विलक्षण है। 

दोपहर में जब एकनाथ की पत्नी गिरिजा देवी भोजन परोसने लगीं, तो युवक उनकी पीठ पर चढ़ गया। एकनाथ ने कहा कि देखो, ब्राह्मण को गिरा मत देना। तब उनकी पत्नी ने हंसते हुए कहा कि बेटा हरि को पीठ पर लादकर काम करने का अभ्यास है, तो ब्राह्मण को कैसे गिरने दूंगी। यह सुनकर  युवक समझ गया कि इस दंपति को क्रोध दिलाना असंभव है। उसने दोनों से क्षमा मांगी और अपने घर चला गया। 

अरावली पर्वत शृंखला में फिर होने लगे अवैध निर्माण?

अशोक मिश्र

दो दिन बाद शादियों का सीजन शुरू होने वाला है। एक नवंबर से देश में शादियां होनी शुरू हो जाएंगी। वैसे तो इसमें कोई खास बात नहीं है। खास बात यह है कि जून महीने में अरावली क्षेत्र में जिन 240 से अधिक अवैध निर्माणों को तोड़ा गया था, उनमें ज्यादातर बैंक्विट हाल, मैरिज गार्डन, रिसॉर्ट और फार्म हाउस थे। कुछ लोगों ने वहां पर अपने घर भी बना लिए थे। शादियों का सीजन नजदीक आने से पहले ही लोगों ने बैंक्विट हाल और मैरिज गार्डन की रिपेयरिंग और पुनर्निमाण शुरू कर दिया है। 

ध्वस्त किए गए मैरिज गार्डन, बैंक्विट हाल और रिसॉर्ट को दोबारा खड़ा करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की है। जून में सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर अरावली क्षेत्र में अवैध निर्माणों को गिराया गया था। अरावली पर्वत शृंखला के प्रतिबंधित क्षेत्र में कुछ भाजपा नेताओं, अधिकारियों और उद्योगपतियों के अवैध रूप से रिसॉर्ट, बैंक्विट हॉल और मैरिज गार्डन्स बना रखे थे। सुप्रीमकोर्ट कई बार इन्हें तोड़ने का आदेश दे चुका था।  

सुप्रीमकोर्ट ने जब राज्य सरकार को कटु शब्दों में अरावली क्षेत्र को अवैध कब्जे से मुक्त कराने और कार्रवाई रिपोर्ट उसके सामने पेश करने का आदेश दिया, तो मजबूरन स्थानीय निकाय को कार्रवाई करनी पड़ी और 240 से अधिक अवैध निर्माणों को ध्वस्त करना पड़ा। यहां तक आने वाले रास्तों को भी खोद दिया गया था, लेकिन अवैध निर्माण करने वालों ने बाद में इसे धीरे-धीरे पाटना शुरू कर दिया था। बता दें कि अरावली वन क्षेत्र में पंजाब भू-संरक्षण अधिनियम 1900 की धारा चार और पांच लागू होती है। 

इस अधिनियम के मुताबिक, अरावली क्षेत्र से सटे चार गांवों अनंगपुर, अनखीर, मेवला महाराजपुर और लकड़पुर के जंगलों में किसी प्रकार का पक्का या कच्चा निर्माण नहीं किया जा सकता है। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हुआ। भूमाफियाओं ने स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से लोगों को जमीनें बेच दीं। खरीदने वालों ने इन जमीनों पर अपनी जरूरत के मुताबिक अवैध निर्माण खड़े कर दिए। किसी ने फार्म हाउस बनाया, तो किसी ने बैंक्विट हाल। किसी ने अधिक लाभ कमाने के लिए मैरिज गार्डन बनाकर अरावली पर्वतमाला को संकट में डालना शुरू किया। जब कुछ लोगों ने इसकी शिकायत की, तो उनकी बात पर प्रशासन ने ध्यान ही नहीं दिया। 

नतीजतन लोगों को विभिन्न अदालतों की शरण लेनी पड़ी। सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया और अवैध निर्माण को ढहाने का सख्त आदेश स्थानीय निकायों को दिया। जून में जब अवैध निर्माण गिराए जा रहे थे, तब भी कुछ लोगों ने इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। बहरहाल, स्थानीय निकायों को इस मामले में ध्यान देना चाहिए और सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पूरी तरह पालन करना चाहिए।



Thursday, October 30, 2025

ललिता शास्त्री ने सादगी से गुजारा जीवन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बारे में यह सभी जानते हैं कि वह अत्यंत सादगी पसंद थे। वह महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे जिसकी वजह से वह हमेशा खादी के ही वस्त्र पहनते थे। वह सादगी और ईमानदारी से जीवन यापन करने में विश्वास रखते थे। 

शास्त्री जी का जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ था। वह कांग्रेस के लोकप्रिय नेताओं में शुमार किए जाते थे। उनकी पत्नी का नाम ललिता देवी था। बताया जाता है कि ललिता देवी का जन्म 11 जनवरी 1910 को एक संपन्न परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही काफी अमीरी में पली-बढ़ी थीं। उनके पिता शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर थे। 

मिर्जापुर में उनके पिता की अच्छी खासी संपत्ति थी। उनका परिवार उन दिनों मोटरकार रखने की हैसियत में था। इससे उनकी अमीरी का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब ललिता देवी विवाह योग्य हुईं, तो उनके पिता की इच्छा थी कि वह अपनी बेटी का विवाह ऐसे युवक से करें जो पढ़ा लिखा हो। संयोग से ललिता की मां रामदुलारी देवी अपने मायके मिर्जापुर आईं, तो उनके कुछ परिचितों ने लाल बहादुर शास्त्री से ललिता के विवाह का प्रस्ताव रखा। रामदुलारी देवी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 

16 मई 1928 को लाल बहादुर शास्त्री का विवाह ललिता देवी के साथ हुआ था। शास्त्री जी ने विवाह के समय किसी प्रकार का दहेज लेने से मना करते हुए कहा कि वह अपनी पत्नी को दो खादी की साड़ियों में ही स्वीकार करेंगे। लेकिन ललिता के पिता ने अपनी बेटी को रेशमी साड़ियों के साथ बहुत सारा सामान विवाह में दिया। शादी के कुछ महीनों बाद शास्त्री ने अपनी पत्नी से कहा कि तुम खादी की साड़ी पहना करो। ललिता ने पति की इच्छा मानकर इसके बाद जीवन भर खादी की साड़ी पहनी।

सड़कों पर आवारा घूमते कुत्ते बन रहे लोगों के लिए मुसीबत

अशोक मिश्र

कुछ महीने पहले सुप्रीमकोर्ट ने आवारा कुत्तों के संदर्भ में विभिन्न राज्यों सहित दिल्ली सरकार के लिए आदेश जारी किया था कि रैबीज वाले कुत्तों सहित सभी कुत्तों को शहर के बाहर छोड़ दिया जाए। इन कुत्तों की नसबंदी की जाए, ताकि इनकी लगातार बढ़ती जनसंख्या को काबू किया जा सके। सुप्रीमकोर्ट के फैसले को लेकर कुछ संगठनों ने तब बहुत हायतौबा मचाई थी। 

मजबूरन सुप्रीमकोर्ट को अपना संशोधित आदेश जारी करना पड़ा। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि टीकाकरण और नसबंदी के बाद कुत्तों को उनके उसी स्थल पर छोड़ा जाए, जहां से उन्हें उठाया गया था। कुत्तों की सार्वजनिक स्थानों पर फीडिंग पर भी रोक लगा दी गई। यह आदेश दिल्ली-एनसीआर के अलावा पूरे देश में लागू होगा। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में अपना अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। सुप्रीमकोर्ट के आदेश का कितना पालन हुआ या नहीं, यह तो अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। 

फिरोजपुर झिरका में स्थानीय निकाय के अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा पांच बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। फिरोजपुर झिरका में एक पागल कुत्ते ने पांच बच्चों को बुरी तरह नोच डाला है। पागल कुत्ते का शिकार हुए बच्चे डेढ़ से सात साल की आयु के हैं। हरियाणा के कई जिलों में पागल कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है। अकसर देखने में यह आता है कि सड़कों पर आवारा घूमने वाले कुत्ते स्कूल से आते-जाते बच्चों पर हमला करके उन्हें घायल कर देते हैं। कई बार तो यह झुंड बनाकर राहगीरों पर हमला कर देते हैं। उन्हें घायल कर देते हैं। आवारा कुत्तों का शिकार हुए लोग सरकारी और निजी अस्पतालों का चक्कर काटने पर मजबूर हो जाते हैं। 

बात अगर फिरोजपुर झिरका वाले में ही की जाए, तो काफी समय से एक कुत्ते के पागल हो जाने की खबरें स्थानीय निकाय के अधिकारियों को मिल रही थी, लेकिन उचित कार्रवाई करने की कोशिश नहीं की गई। फिरोजपुर झिरका के एसडीएम लक्ष्मी नारायण का कहना है कि नगर पालिका सचिव को कई बार पत्र लिखकर आवारा कुत्तों के बारे में चेताया गया था, लेकिन सचिव ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसकी वजह से पांच बच्चों को एक पागल कुत्ते के काटने का शिकार होना पड़ा। 

यदि सचिव ने उचित समय पर कार्रवाई की होती, तो पांच बच्चों को यह पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती। हरियाणा के लगभग सभी जिलों का यही हाल है। हर शहर और गांव में आवारा कुत्ते जरूर दिखाई पड़ जाते हैं। शाम ढलते ही यह कुत्ते राह चलते लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाते हैं। लोग सड़कों पर पैदल चलते हुए डरते हैं। यदि सरकार इन आवारा कुत्तों की नसबंदी करके छोड़ दे, तो इनकी संख्या में भारी कमी आ सकती है और  लोगों को ऐसी परिस्थितियों से छुटकारा मिल जाता।

Wednesday, October 29, 2025

हरियाणा की सैनी सरकार ने किया पीएमजेएवाई नीतियों में बदलाव

अशोक मिश्र

आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) की नीतियों में हरियाणा सरकार ने बदलाव किया है। अब पीएमजेएवाई के अंतरगत आने वाले लोग 11 बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों में नहीं करा सकेंगे। इन ग्यारह बीमारियों में  कूल्हा या घुटना बदलना, हरनिया, कान के पर्दे का आपरेशन, अपेंडिक्स का आपरेशन शामिल है। इसके अलावा टॉंसिल, गले की समस्याओं जैसे कई और समस्या से पीड़ित लोगों का इलाज निजी अस्पतालों में नहीं होगा। 

सरकार ने इन रोगों के इलाज पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए यह कदम उठाया है। पीएमजेएवाई के लाभार्थियों को अब तक प्रदेश के 650 निजी अस्पतालों में इलाज कराने की सुविधाएं मिल रही थीं। सरकारी आंकड़ा बताता है कि प्रदेश में लगभग सात सौ सरकारी अस्पताल हैं। इन सरकारी अस्पतालों में 119 किस्म की बीमारियों का इलाज होता था। नए सरकारी आदेश के बाद इन बीमारियों की संख्या 130 हो जाएगी। वैसे सरकार पीएमजेएवाई पर खर्च होने वाली रकम को घटना चाहती है और सरकारी चिकित्सा तंत्र का पूर्ण उपयोग करना चाहती है, यह किसी भी मायने में गलत नहीं है। 

हर सरकार को यह हक हासिल है कि वह अपने खर्चों की समीक्षा करे और जरूरत के मुताबिक उसमें कटौती करे। लेकिन प्रदेश सरकार का यह फैसला कुछ मामलों में विचार की मांग करता है। प्रदेश के सात सौ सरकारी अस्पतालों की दशा का भी राज्य सरकार को ध्यान में रखना चाहिए। सवाल यह है कि जिन ग्यारह किस्म की बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों की जगह सरकारी अस्पताल में कराने का आदेश दिया गया है, उस हालत में सरकारी अस्पताल क्या यह बोझ उठाने को तैयार हैं। सरकारी अस्पताल में वह सभी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं जो निजी अस्पताल मुहैया कराते हैं। 

सरकारी अस्पतालों की हालत यह है कि चिकित्सा और आपरेशन में काम आने वाली मशीनें या तो हैं नहीं या अगर हैं, तो वह किसी कबाड़ की तरह अस्पताल के किसी कोने में पड़ी हुई हैं। कहीं मशीने हैं, तो उनको संचालित करने वाले टेक्नीशियन नहीं है। कहीं डॉक्टर नहीं हैं, तो कहीं चिकित्सा कर्मी नहीं। नर्स हैं, तो अटेंडेंट नहीं हैं। कहीं लैब नहीं है, तो कहीं चिकित्सा के उपकरण का अभाव है। ऐसी स्थिति में जब सरकारी अस्पतालों में नई चिकित्सा का बोझ बढ़ेगा, तो क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। 

अव्यवस्था और चिकित्सा कर्मियों की कमी की वजह से पहले से ही कराह रहे सरकारी अस्पतालों के सिर पर पड़ने वाला नया बोझ वे कितना संभाल पाएंगे, यह तो समय ही बताएगा। वैसे तो यह फैसला सरकार ने कुछ सोच समझ कर ही लिया होगा, लेकिन सरकारी अस्पतालों पर बढ़ने वाले बोझ को भी ध्यान में रखना चाहिए था।

Sunday, October 19, 2025

गृहस्थ जीवन में बिठाना होगा सामंजस्य

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संत कबीरदास भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन वह समाज को बहुत गहराई से समझते थे। दार्शनिक जगत में भी उनका बेहतरीन दखल था। वह पाखंड को बहुत नापसंद करते थे। यही वजह है कि कई सौ साल पहले रची गई उनकी कविताएं आज भी समाज का मार्गदर्शन करती है। 

एक बार की बात है। एक युवक उनसे यह मार्गदर्शन लेने आया कि उसे विवाह करके गृहस्थ आश्रम में जाना चाहिए या संन्यासी हो जाना चाहिए। कबीरदास ने किसी प्रकार का प्रवचन देने की जगह उसे व्यावहारिक रूप से समझाने की बात सोची। उस समय दोपहर था। उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा कि दीपक जला लाओ। उनकी पत्नी ने सहज भाव से दीपक जलाकर उनके पास रख दिया। 

थोड़ी देर बीतने के बाद उनकी पत्नी दो गिलास में दूध लाकर दोनों को दे दिया। कुछ देर बात उनकी पत्नी ने कबीरदास से पूछा कि दूध मीठा है या और चीनी लाऊं। तब तक युवक थोड़ा दूध पी चुका था। उसने पाया कि दूध में चीनी की जगह नमक डाला गया था। कबीरदास ने बड़े शांत भाव से कहा कि नहीं, दूध मीठा है। यह सुनकर युवक आश्चर्यचकित रह गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खारे दूध को कबीरदास मीठा क्यों बता रहे हैं। 

तब कबीरदास ने उस युवक से कहा कि यदि तुम गृहस्थ जीवन में ऐसी स्थितियों का सामना कर सकते हो, तो विवाह कर लो। मेरी पत्नी जानती थी कि भरपूर उजाला है, लेकिन मेरे कहने पर वह दीपक जला लाई। उसने कुछ नहीं पूछा। यदि मैं उससे कहता कि दूध में नमक पड़ा है, तो उसे अच्छा नहीं लगता। उसकी कमियों को बड़ी सहजता से मैंने स्वीकर कर लिया। जीवन में दोनों को एक दूसरे के साथ ऐसे ही रहना होगा।

आइए! दीपावली पर हम मन के तिमिर को मिटाने का संकल्प लें

अशोक मिश्र

आज दीपावली है। दरअसल, दीप पर्व ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ को चरितार्थ करने का उत्सव है। अंधकार से प्रकाश की ओर चलने का संकल्प लेने का अवसर है दीपावली। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रकाश है क्या? ऊर्जा का एक परिवर्तित रूप है प्रकाश। एक विशेष किस्म की ऊर्जा ही प्रकाश है। और ऊर्जा किसमें? चेतन में, अचेतन (यानी जड़) में यानी समस्त पदार्थ में। इस संपूर्ण प्रकृति के प्रत्येक अंग, उपांग में ऊर्जा मौजूद है। 

इसका एक निहितार्थ यह हुआ कि संपूर्ण प्रकृति में जो कुछ भी है, वह ऊजार्वान है। इसी ऊर्जा के कारण के कारण प्रकृति में गति है। प्रकृति का निर्माण भी पदार्थ और गति से हुआ है। गतिमय पदार्थ और पदार्थ में गति। और अंधकार क्या है? प्रकाश का न होना अंधकार है। जब किसी पदार्थ में एक विशेष किस्म की ऊर्जा अनुपस्थित होती है, तब अंधकार होता है। अंधकार और प्रकाश पदार्थ के बिना नहीं हो सकते। अभौतिक नहीं हो सकते, अपदार्थिक नहीं हो सकते। प्रकृति विज्ञानी कहते हैं कि संपूर्ण प्रकृति की ऊर्जा का योग शून्य होता है। 

जब हमारे वैज्ञानिक कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, इसका एक मतलब यह भी है कि इस प्रकृति में कहीं न कहीं किसी जगह पर उतना ही तापमान घट रहा है क्योंकि इस संपूर्ण ब्रह्मांड में सभी तरह की ऊर्जा नियत है, निश्चित है। न उसे घटाया जा सकता है, न बढ़ाया जा सकता है। यह हमारी पृथ्वी या ब्रह्मांड के किसी हिस्से में हो सकता है, पृथ्वी से बाहर भी हो सकता है। यही प्रकृति की द्वंद्वात्मकता है। अंधकार और प्रकाश एक दूसरे के पूरक हैं। 

इस प्रकृति में जितना महत्व प्रकाश का है, उतना ही महत्व अंधकार का भी है। अंधकार उतना भी बुरा नहीं होता है, जितना हम समझते हैं। अंधकार के बिना प्रकाश का कोई महत्व नहीं है। संख्या एक का महत्व तभी तक है, जब तक संख्या दो मौजूद है। इस दीप पर्व पर हम संपूर्ण जगत को प्रकाशित तो करें, लेकिन तिमिर के महत्व को भी न भूलें। भारतीय दार्शनिक जगत में महात्मा बुद्ध ने ‘अप्प दीपो भव’ कहकर प्रकाश और तिमिर को पारिभाषित किया। उन्होंने कहा कि अपना प्रकाश खुद बनो। इसका एक तात्पर्य यह भी हुआ कि अपने भीतर प्रकाश पैदा करो। भीतर तम है, प्रकाश की आवश्यकता है। 

तम किसका है? अज्ञानता का है, रूढ़ियों का है, अंध विश्वासों का है, सामाजिक, राजनीतिक वर्जनाओं का है। पाबंदियों का है। इन्हें दूर करने के लिए महात्मा बुद्ध कहते हैं कि अप्प दीपो भव। इसका एक दूसरा तात्पर्य यह हुआ कि अपना आदर्श खुद बनो। आज दीप पर्व पर हमें यही संकल्प लेना है कि हम अपनी अज्ञानता रूपी अंधकार से मुक्ति पाएं। अंध विश्वास से दूर रहें। लोगों के कल्याण की भावना ही हमारा अभीष्ट हो। दीपावली समस्त संसार के लिए शुभ हो।

सुकरात के अमीर मित्र का भौंड़ा प्रदर्शन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कुछ लोग अपनी धन-संपदा का भौंडा प्रदर्शन करने में ही अपनी शान समझते हैं। पुराने समय में जमींदार या धनी लोग समाज से किसी प्रकार के आयोजन में जब बुलाए जाते थे, तो पहली बात वह अपने किसी प्रतिनिधि को भेज दिया करते थे। यदि किसी कारणवश उन्हें जाना भी पड़ा, तो अपनी संपन्नता का प्रदर्शन करने से नहीं चूकते थे। 

यदि सामूहिक रूप से भोज का आयोजन किया जाए, तो वह विशेष बर्तन जैसे सोने-चांदी से बने बर्तन में ही खाना पसंद करते थे। पहनावे में भी उनके अमीरी झलकती थी। यूनान के महान दार्शनिक सुकरात के समय में भी कुछ लोग ऐसा ही करते थे। पता नहीं,यह कथा कितनी सही है, लेकिन कही जाती है। 

सुकरात के एक मित्र को अपनी अमीरी का प्रदर्शन करने का बड़ा शौक था। वह कहीं भी जाते थे, तो अपने साथ एक नौकर ले जाते थे जो उनके खाने-पीने के बर्तन साथ लेकर चलता था। वह अपने बर्तन के अलावा किसी दूसरे के बर्तन में खाते-पीते नहीं थे। सुकरात को अपने मित्र की यह आदत पसंद नहीं थी, लेकिन मित्रता की वजह से उन्हें कटु वचन कहना नहीं चाहते थे। 

एक दिन सुकरात ने अपने उस मित्र को खाने पर आमंत्रित किया। जैसे ही मित्र सुकरात के घर पहुंचा, वह उसे पुरुषों की भीड़ में ले गए। उनके नौकर को दरवाजे पर ही रोक दिया गया। उसी समय लोगों के लिए खाना परोस दिया गया। साधारण थाली में अपने सामने खाना देखकर मित्र असहज हो गया, लेकिन लोगों के अनुरोध करने पर खाना पड़ा। खाना खाने के बाद उनका मित्र जब विदा होने लगा, तो सुकरात अपने मित्र की थाली में खाना लेकर पहुंचे और कहा कि महिलाओं ने सोचा कि तुम इस थाली में अपने परिवार के लिए खाना लेकर जाओगे। इसलिए यह खाना औरतों ने भिजवाया है। यह सुनकर मित्र बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने यह आदत छोड़ दी।

किसानों, गरीबों और महिलाओं की हितचिंतक सैनी सरकार

अशोक मिश्र

हरियाणा की सैनी सरकार ने एक साल पूरे कर लिए हैं। अभी दो दिन पहले राज्य सरकार ने एक साल में पूरे किए गए 64 संकल्पों यानी वायदों की सूची भी जारी की है। एक तरह से इस सूची के माध्यम से सैनी सरकार ने अपने एक साल का हिसाब-किताब पेश किया है। सूची में यह भी बताया गया था कि लगभग साठ वायदों पर काम तेजी से चल रहा है। इन वायदों के भी बहुत जल्दी पूरे हो जाने की संभावना है। 

सरकार का दावा है कि उसने पिछले एक साल में किसानों की आय को बढ़ाने वाली नीतियों पर विशेष ध्यान दिया है। सैनी सरकार अपने आपको किसान, गरीब, युवा और महिलाओं के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध बता रही है। राज्य सरकार ने शुक्रवार को ही बुढ़ापा पेंशन में दो सौ रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी की है। अब बुजुर्गों को पेंशन के रूप में 32 सौ रुपये मिलेंगे। सरकार का कहना है कि वह देश में सबसे ज्यादा राशि बुढ़ापा पेंशन में दे रही है। जहां तक किसानों की बात है, यह सही है कि प्रदेश में किसानों की 24 फसलों की खरीद एमएसपी पर हो रही है। इसके चलते किसानों को अपनी उपज का वाजिब दाम मिल रहा है। फसल बेचने के दो दिन बाद ही किसानों के खाते में उनके पैसे आ जाते हैं। 

पिछले 11 फसल सीजन में 12 लाख किसानों के खाते में 1.54 लाख करोड़ रुपये डाले गए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार किस तरह किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें सुविधाएं प्रदान करने की कोशिश कर रही है। प्रदेश सरकार ने वंचित रह गई अनुसूचित जातियों को उनका अधिकार दिलाने की दिशा में भी काफी सराहनीय कार्य किया है। सरकार के ही प्रयास से सरकारी नौकरियों, पंचायत और स्थानीय चुनावों में भागीदारी सुनिश्चित की जा सकी है। 

पिछड़ा वर्ग बी को पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में आरक्षण सैनी सरकार ने प्रदान किया है। सरपंच पद पर पांच प्रतिशत और अन्य पदों पर जनसंख्या का पचास प्रतिशत आरक्षण देना, सबसे बड़ा काम है। शुक्रवार को ही गरीबों को सौ-सौ गज के 8029 प्लाट वितरित किए गए हैं। किसी भी व्यक्ति यह सपना होता है कि उसका भी एक घर हो। वह अपने घर को अपनी मनमर्जी के मुताबिक सजाए, अपने हिसाब से उसमें रहे। यह सौभाग्य हासिल करने में कम से कम गरीब लोग कम ही सफल होते हैं। 

ऐसी स्थिति में यदि सस्ते दाम पर कोई सरकार गरीबों को प्लाट या मकान दिला दे, तो इससे बढ़कर सराहनीय कार्य और क्या हो सकता है। पिछले एक साल में विभिन्न आवास योजनाओं के माध्यम से प्रदेश के 77 हजार से अधिक परिवारों को यह लाभ दिया गया है। दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना के माध्यम से प्रदेश सरकार नारी शक्ति को मजबूत करने जा रही है। लक्ष्मी योजना से महिलाएं स्वावलंबन की ओर अग्रसर होंगी।

Saturday, October 18, 2025

गांधी का सत्याग्रह निकला अचूक हथियार


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद पहले देश और यहां के लोगों के रहन-सहन आदि का अध्ययन करने का फैसला किया। उन्होंने शहर से लेकर गांव-देहात की पदयात्राएं कीं, भारत की कमियों और खूबियों को अच्छी तरह से समझा। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस में काम करना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्हें यह समझ में आ गया कि भारत के लोगों को कैसे जगाना होगा। उन्हें आजादी के लिए कैसे प्रेरित करना होगा, ताकि अहिंसा के रास्ते से आजादी हासिल हो सके। उन्होंने सत्याग्रह करने का फैसला किया। सत्याग्रह करने का विचार महात्मा गांधी को भारत से नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका से मिला था। एक बार की बात है। महात्मा गांधी रेलगाड़ी से डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे। उनके पास पहले दर्जे का टिकट था। वह गाड़ी में बैठे हुए थे, तभी एक अंग्रेज अफसर आया। उसने महात्मा गांधी को तीसरे दर्जे में जाकर बैठने को कहा। महात्मा गांधी ने कहा कि उनके पास पहले दर्जे का टिकट है। लेकिन अंग्रेज नहीं माना। उसने महात्मा गांधी को जबरदस्ती प्लेटफार्म पर धक्का देकर उतार दिया। महात्मा गांधी को बहुत बुरा लगा। एक बार उन्होंने सोचा कि यह अपमान सहने से बेहतर है कि वह अपना काम अधूरा ही छोड़कर वापस लौट जाएं। क्या वह अपमान सहने के लिए ही पैदा हुए हैं? लेकिन उनकी अंतरात्मा ने कहा कि उन्हें इसका प्रतिरोध करना चाहिए। वह जाकर वेटिंग रूम में बैठ गए। उनका ओवरकोट और सामान गाड़ी में रह गया था। इसके बाद उन्होंने अफ्रीका में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। जिसके कारण वह दक्षिण अफ्रीका में बहुत मशहूर हो गए और हुकूमत को कई मामलों में पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।



खुलेआम उड़ाई जा रही ग्रेप वन पाबंदियों की धज्जियां

अशोक मिश्र

कुछ ही दिनों में सर्दियां आ जाएंगी। हलकी सर्दी पड़ने लगी है। इसके बावजूद हरियाणा के कुछ जिलों में प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर हो गई है। दिल्ली और हरियाणा सरकार ने अभी से सावधानी बरतनी शुरू कर दी है। दिल्ली एनसीआर में ग्रेप वन लागू कर दिया गया है। तीन दिन बाद दीपावली है। दीपावली पर वैसे भी प्रदूषण अपनी चरम सीमा पर होता है। 

हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने कुछ दिनों के लिए ग्रीन पटाखों को जलाने की इजाजत दी है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में लोग ग्रीन पटाखे ही खरीदेंगे और उसको चलाएंगे। ग्रीन पटाखों की आड़ में प्रदूषित करने वाले पटाखे भी खरीदे-बेचे जाएंगे। इसे रोक पाना सरकार के वश में नहीं है। दिल्ली सरकार ने तो प्रदूषण कम करने के लिए कृत्रिम बरसात कराने की पूरी तैयारी कर ली है। 

यदि दिल्ली में जरूरत महसूस की गई, तो कृत्रिम बरसात भी कराई जा सकती है। हरियाणा में जो एहतियातन कदम उठाए जा सकते हैं, वह सरकार उठा रही है और भविष्य में भी उठाएगी। सबसे पहले तो राज्य सरकार ने पराली को जलाने से रोकने के लिए प्रत्येक पचास किसानों पर एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की है, ताकि खेतों में जलने वाली पराली पर ध्यान रखा जा सके। यदि कोई किसान पराली जलाता हुआ पाया जाए, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। वैसे प्रदेश सरकार ने धान की कटाई करने वाले कम्बाइन हार्वेस्टर्स पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट यूनिट लगवाना अनिवार्य कर दिया है। 

यदि कोई कंबाइन हार्वेस्टर मालिक इस आदेश का उल्लंघन करता हुआ पाया गया तो उसका हार्वेस्टर जब्त कर लिया जाएगा। इतना ही नहीं, हार्वेस्टर संचालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वैसे जो किसान अपने खेत की पराली को नहीं जलाएंगे, उन किसानों को ईनाम भी दिया जाएगा। इससे पराली को खेतों में न जलाने की प्रेरणा मिलेगी। राज्य के कई जिलों में निर्माण कार्यों की वजह से भी प्रदूषण गहराता जा रहा है। कहीं पर सड़क निर्माण हो रहा है, तो कहीं पर कई मंजिली इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। यह सब कुछ उन क्षेत्रों में भी हो रहा है जिन जिलों में ग्रेप वन लागू है।  

ग्रेप वन वाले जिलों में ढाबों, रेस्टोरेंट आदि में भट्टी खुलेआम जल रही है। कोई उसकी जांच करने वाला नहीं है। कई बड़े उद्योगों में भी कोयले का उपयोग हो रहा है, लेकिन सरकारी आदेश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। यह भी सही है कि कुछ इलाकों में ऐसे उद्योगों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। इसके बावजूद यह यही है कि पूरे प्रदेश में प्रदूषण के चलते सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में सांस, हृदय और त्वचा संबंधी बीमारियों के शिकार मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इन  रोगियों में बच्चे और बूढ़ों की संख्या काफी है। सबसे ज्यादा प्रदूषण का प्रभाव इन्हीं लोगों पर दिखाई देता है।

Friday, October 17, 2025

रेखाएं बोलेंगी, तभी चित्र बन पाएगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लियो नार्डो दा विंची केवल एक चित्रकार ही नहीं थे, वह महान वैज्ञानिक, ड्राफ्ट्समैन, सिद्धांतकार, इंजीनियर और मूर्तिकार भी थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1452 को इटली के विंसी शहर में हुआ था। दा विंची के माता-पिता ने इनके पैदा होने के एक साल बाद अलग हो गए थे और अलग-अलग विवाह कर लिया था। 

विंची का बचपन काफी परेशानियों के बीच बीता। 14 साल की उम्र में विंची ने फ्लोरेंस के एक ख्याति प्राप्त मूर्तिकार का स्टैंड ब्वाय बन गया था। यही से उनमें चित्रकला और मूर्तिकला में रुचि पैदा हुई थी। एक बार की बात है। उन्हें इटली के एक गिरिजाघर की दीवारों पर चित्र बनाने का काम दिया गया। 

उन्होंने यह काम स्वीकार कर लिया। वह गिरिजाघर जाते और कुछ देर दीवारों को देखने के बाद वह लोगों के चेहरों को गौर से देखने लगते। ऐसा काफी दिनों तक चला। कुछ लोगों को लगा कि विंची आलसी हो गए हैं। वह काम करना नहीं चाहते हैं। कुछ लोगों ने इसकी शिकायत राजा से कर दी। राजा ने लियोनार्डो को दरबार में बुलाया और चित्र बनाने में हो रही देरी का कारण पूछा। 

विंची ने मुस्कुराते हुए कहा कि रेखाएं तब तक नहीं बोलेंगी, जब तक मैं उन्हें समझ न लूं। मैं कोई आलसी नहीं हूं, धैर्यवान हूं। राजा उनकी बात को समझ गया। उसने लियोनार्डो को अपनी इच्छा से काम करने को स्वतंत्र कर दिया। इस काम में कई साल लग गए। लेकिन जब उनका चित्र पूरा हुआ, तो पूरा मिलान शहर आश्चर्यचकित रह गया। उनके चित्र की एक-एक रेखाएं बोलती सी लग रही थीं। चित्र के हर चेहरे पर रंगों की नहीं, बल्कि जीवन की गति थी। वैसे लियोनार्डो का सबसे अनमोल कृति द लास्ट सपर मानी जाती है।

चल रहा कर्ज देने के नाम पर अवैध वसूली का व्यापार

अशोक मिश्र

मकान, दुकान या दूसरी जरूरतों आदि के लिए लोगों को ऋण देने वाली निजी कंपनियां पिछले काफी दिनों से लोगों का शोषण कर रही हैं। कुछ फाइनेंस कंपनियों ने तो इसे लोगों को डरा धमकाकर अवैध वसूली का धंधा बना लिया है। वैसे तो आमौतर पर चिटफंड फाइनेंस कंपनियां लोगों से विभिन्न योजनाओं के नाम पर पैसे जमा कराती हैं। जब किसी इलाके में एक मोटी रकम जमा हो जाती है, तो कंपनी के पदाधिकारी और कर्मचारी रफूचक्कर हो जाते हैं। 

फंस जाता है बेचारा स्थानीय निवासी जिसको आगे करके फाइनेंस कंपनियां लोगों को अपने जाल में फंसाती हैं। लेकिन हरियाण और दिल्ली में कुछ अलग ही किस्म की धोखाधड़ी की गई है। फाइनेंस कंपनियों की धोखाधड़ी के शिकार साढ़े पांच सौ से ज्यादा लोग बताए जा रहे हैं। इन लोगों ने एक निजी फाइनेंस कंपनी से लोन लिया था। इसके लिए एक स्थानीय व्यक्ति को मध्यस्थ बनाया गया था। उस आदमी ने रेहड़ी, ठेले वालों को दो हजार से पचास हजार रुपये तक ऋण दिलाया। 

ऋण देते समय दो ब्लैंक चेकों पर हस्ताक्षर करवाकर कंपनी ने जमा करा लिया। लोन मिलने के बाद मध्यस्थ ने एक कर्मचारी को नौकर रखकर ऋण लेने वालों से छह सौ रुपये रोज के हिसाब से वसूले और कंपनी में जमा कर दिया। सारा लोन चुकता होने के बाद भी कंपनी ने मनमानी रकम भरकर चेकों को बैंक में जमा करा दिया। जब बैंक ने उचित बैलेंस न होने की वजह से चेक बाउंस कर दिया, तो कंपनी ने देनदारों के खिलाफ मुकदमा कर दिया। अब सारा कर्ज चुकाने के बावजूद 550 से अधिक लोग कोर्ट के चक्कर काटने पर मजबूर हैं। 

मजे की बात यह है कि फाइनेंस कंपनी न तो कहीं रजिस्टर्ड है और न ही कंपनी इनकम टैक्स भरती है। पीड़ितों ने दिल्ली अपराध शाखा में इसकी शिकायत भी की, मामले की जांच चल रही है। हरियाणा में ही नहीं, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड जैसे तमाम राज्यों में फाइनेंस उपलब्ध कराने के नाम पर बहुत सारी फर्जी कंपनियां चल रही हैं। केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद चिटफंड कंपनियों पर शिकंजा कसा गया है। कई चिटफंड कंपनियां न केवल बंद हुई हैं, बल्कि जनता से ठगी करने वालों को गिरफ्तार भी किया या है। वे सलाखों के पीछे हैं और अपनी करनी का फल भोग रहे हैं। 

इसके बावजूद चिटफंड कंपनियों ने लोगों को ठगने के लिए थोड़ा रूप बदल लिया है। निजी कंपनिया फाइनेंस करते समय अपने सारे नियम कायदे कानूनों की पूरी जानकारी नहीं देती हैं। इसके बाद वसूली शुरू करते हैं। तयशुदा रकम से कहीं ज्यादा की वसूली करने के बाद भी पीड़ित को  कई तरह से धमकाया जाता है। बैंकिंग कंपनियां तो मार्शलों के माध्यम से कर्ज लेने वालों को फोन पर या घर पर जाकर डराती धमकाती हैं। कई बार लोग परेशान होकर गलत कदम भी उठा लेती हैं।

Thursday, October 16, 2025

राजा ने ज्योतिषी को कारागार में डलवा दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

किसी सज्जन आदमी को धोखा देना बहुत आसान है, लेकिन उस धोखे को ज्यादा दिन तक कायम रखना या ज्यादा दिनों तक धोखा दे पाना आसान नहीं है। एक न एक दिन पोलपट्टी जरूर खुल जाती है। जो व्यक्ति धोखा खाता है, वह भविष्य में किसी की मदद आदि नहीं करता है क्योंकि वह सोचता है कि अगला व्यक्ति भी धोखेबाज है। ऐसे में कई बार सच्चे आदमी पर भी लोग विश्वास नहीं कर पाते हैं। 

एक बार की बात है। एक राजा के दरबार में एक ठग आया। उसने चिकनी चुपड़ी बातों से राजा को प्रभावित कर लिया। उसने ऐसा जाहिर किया कि मानो वह बहुत बड़ा ज्योतिषी हो। राजा ने उसकी बातों से प्रभावित होकर उसे राज ज्योतिषी का पद दे दिया। हालांकि राजा के मंत्री ने इसका विरोध भी किया, लेकिन राजा ने मंत्री की बात नहीं सुनी। यह देखकर मंत्री चुप रह गया। 

कुछ दिन बाद राजा को खबर मिली कि पड़ोसी राजा उस पर हमला करने वाला है। उसने राज ज्योतिषी से पड़ोसी राजा को पराजित करने का  उपाय पूछा। राज ज्योतिषी बने ठग ने कहा कि एक कुंतल कोयला जलाने के बाद जितना धुआं बने, उतना लोहा मुझे दे दीजिए। मैं एक दिव्यास्त्र बना दूंगा जिससे कोई भी आपको पराजित नहीं कर पाएगा। राजा और दरबारी उसकी बात सुनकर चकित रह गए। 

तब मंत्री ने कहा कि एक कुंतल कोयला जलाने पर जितनी राख बचेगी, उसको तौलने पर जो कमी आएगी, उतना ही धुआं निकलेगा। यह सुनकर राज ज्योतिषी चुप रह गया। तब मंत्री ने कहा कि एक उपाय यह है कि यदि राज ज्योतिषी एक जलता हुआ कोयला हाथ पर रख लें, तो राज्य सुरक्षित रहेगा। यह सुनकर ठग राजा के पैरों पर गिर पड़ा और माफी मांगी। राजा ने उसे क्षमा करने की जगह कारागार में डलवा दिया।

वन विभाग से अनुमति लिए बिना पेड़ काटने पर लगी रोक

अशोक मिश्र

हरियाणा का पर्यावरण खराब होता जा रहा है। इसकी वजह प्रदेश में हर साल घटता वन क्षेत्र माना जा रहा है। पिछले दो साल में प्रदेश में 14 वर्ग किमी वन क्षेत्र घटा है। वन क्षेत्र घटने का कारण अवैध पेड़ों की कटाई को माना जा रहा है। वन माफिया अरावली वन क्षेत्र से लेकर अन्य जगहों पर भी पेड़ों की अवैध कटान कर रहे हैं। कई बार यह अवैध कटान संबंधित विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत से होता है, तो कई बार वह सचमुच अवैध कटान से अनभिज्ञ होते हैं।  

इसके अलावा कई मामलों में यह भी देखा गया है कि सड़कों को चौड़ा करने के लिए बाधा बनने वाले पेड़ों को काटना मजबूरी हो जाती है। इसकी वजह से भी वन क्षेत्र घटता जाता है। राज्य में कुल वन क्षेत्र 3307.28 वर्ग किमी है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.48\प्रतिशत है। इसमें से वन क्षेत्र 3.65 प्रतिशत है। अरावली पर्वत शृंखला पर पेड़ों की कटाई इतनी ज्यादा हुई है कि अवैध कटान को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को भी मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा है। अरावली क्षेत्र में अवैध खनन माफियाओं की वजह से वन क्षे घट रहा है। 

यह माफिया केवल अवैध खनन ही नहीं करते हैं, बल्कि पेड़-पौधों को भी काट ले जाते हैं। हरियाणा सरकार की नई वन परिभाषा की वजह सेभी वन क्षेत्र घटने की आशंका है। सैनी सरकार की नई वन नीति के मुताबिक, पांच हेक्टेयर  से कम क्षेत्र में उगे पेड़-पौधों और झाड़ियों को वन नहीं माना जाएगा। इस नई नीति के चलते पांच हेक्टेयर से कम वन क्षेत्र उगे पेड़-पौधों को लकड़ियों की तस्करी और व्यापार करने वाले काट ले जाएंगे। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है। 

अब हरियाणा सरकार ने अवैध वन कटान और पेड़-पौधों को कटने से बचाने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ऐसा प्रयोग दिल्ली सरकार पहले भी कर चुकी है। प्रदेश सरकार ने नई एडवायजरी जारी करते हुए कहा कि अब राज्य के सरकारी और निजी संस्थानों में उगे पेड़ को काटने से पहले वन विभाग की अनुमति लेनी होगी। निजी संस्थानों में उगे पेड़ों को इससे पहले बिना वन विभाग की अनुमति लिए काट लेते थे। यह एडवायजरी प्रदेश के सभी जिलों में भेजी जा चुकी है। 

यह आदेश भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया है। प्रदेश सरकार एनजीटी के आदेश पर गाइड लाइन बनाने की तैयारी कर रही है। वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए वन विभाग हर साल प्रयास करता है। हर साल लाखों पौधे रोपे जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद प्रदेश का वन क्षेत्र घटता जा रहा है। इसका कारण यह है कि पौध रोपण के बाद उनकी देखरेख नहीं की जाती है। आधे से ज्यादा रोपे गए पौधे सूख जाते हैं और बाकी बचे पौधों में से कुछ को लावारिस पशु चर जाते हैं। कुछ ही पौधे सुरक्षित रह पाते हैं।

Wednesday, October 15, 2025

सैनिक! तुम मेरा घोड़ा ले जाओ

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इंसान बड़ा नहीं होता है, उसका किरदार बड़ा होता है। दुनिया में जितने भी महापुरुष या महान लोग हुए हैं, उनके जीवन वृत्तांत को यदि खंगाला जाए, तो पता चलता है कि वह जन्म से महान नहीं थे, लेकिन जीवन संघर्ष में आगे बढ़ने के दौरान वह महान हुए। उनका किरदार महान हुआ। 

उन्होंने लोगों की भलाई या सुख-दुख का ध्यान रखा। जरूरत पड़ने पर उन्होंने लोगों की मदद की। ऐसी ही एक घटना नेपोलियन बोनापार्ट के जीवन की मिलती है। नेपोलियन का उदय फ्रांस क्रांति के दौरान ही हुआ था। जब फ्रांस क्रांति पूरी तरह से अराजकता की ओर बढ़ रहा था, तब आगे बढ़कर नेपोलियन ने फ्रांस की शासन सत्ता की बागडोर संभाल ली थी। 

कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि यदि फ्रांस क्रांति न हुई होती, तो शायद नेपोलियन का उदय नहीं हुआ होता। एक बार की बात है। नेपोलियन की सेनाएं युद्ध लड़ रही थीं। नेपोलियन अपने शिविर में बैठा हुआ आगे की रणनीति पर विचार कर रहा था कि तभी एक सैनिक सेनापति का संदेश लेकर उसके पास पहुंचा। सैनिक काफी दूर से आाया था। 

नेपोलियन के शिविर के पास पहुंचते-पहुंचते थकान से चूर घोड़ा गिरा और उसने दम तोड़ दिया। नेपोलियन ने सेनापति का पत्र पढ़ा और तुरंत जवाब लिखकर सैनिक को देते हुए कहा कि तुम्हारा घोड़ा तो मर चुका है। ऐसा करो, मेरा घोड़ा ले जाओ। यह संदेश तुरंत पहुंचना जरूरी है। सैनिक ने कहा कि आपके यह कहने से मैं फख्र महसूस कर रहा हूं। लेकिन मैं आपके घोड़े को कैसे ले जा सकता हूं। नेपोलियन ने कहा कि दुनिया में कोई ऐसा पद या वस्तु नहीं है जिसे साधारण व्यक्ति अपने पौरुष से हासिल न कर सके। यह सुनकर सैनिक हतप्रभ रह गया।

राहुल गांधी की मेहनत पर पानी फेर देते हैं कांग्रेस के गुटबाज नेता

अशोक मिश्र

इस बात में कोई शक नहीं है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी पूरे देश में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने और जनाधार बढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं को यह सख्त निर्देश दे रखा है कि वह अपने मतभेदों और मनमुटाव को उचित मंच पर उठाएं। जनता में पार्टी की छवि खराब नहीं होनी चाहिए। इसके बावजूद कहीं न कहीं आपसी मतभेद कांग्रेस में उभर ही आते हैं। 

सात अक्टूबर को चंडीगढ़ में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह के दायित्व ग्रहण समारोह में जिस तरह भीड़ जुटी और नेताओं ने भाग लिया, उससे लगा कि प्रदेश नेतृत्व गुटबाजी और आपसी मनमुटाव को खत्म करने में सफल हो गया है। दायित्व ग्रहण समारोह में न केवल भूपेंद्र सिंह हुड्डा मौजूद रहे, बल्कि रणदीप सुर्जेवाला ने भी शिरकत की। कुमारी सैलजा उन दिनों विदेश यात्रा पर थीं, लेकिन उनके गुट के नेता भी समारोह में शामिल रहे। इस समारोह में जिस तरह परस्पर विरोधी माने जाने वाले नेताओं और उनके समर्थकों की जुटान हुई, उससे लगा था कि कांग्रेस नेतृत्व सभी गुटों को एक झंडे के नीचे लाने में सफल हो गई। 

लेकिन चरखी-दादरी में हुई घटना ने इस मान्यता की धज्जियां उड़ा दीं। आईपीएस वाई पूरन कुमार की आत्महत्या मामले के विरोध में कांग्रेस ने प्रदर्शन किया था। इससे पहले कांग्रेस ने एक बैठक का आयोजन किया था। इस प्रदर्शन में नेताओं को अपनी-अपनी बात रखनी थी। रासीवासिया धर्मशाला में आयोजित बैठक में बाढ़हा से पूर्व विधायक सोमवीर का भाषण खत्म होने के बाद पूर्व संसदीय सचिव श्याम सिंह को बोलना था। लेकिन मानकावास के पूर्व सरपंच राज करण बीच में ही बोलने लगे। 

इससे श्याम सिंह और राज करण के समर्थक आपस में भिड़ गए। दोनों पक्षों ने न केवल एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी की, बल्कि गालियां भी दीं। इन नेताओं और उनके समर्थकों ने इस बता का भी ख्याल नहीं रखा कि कार्यक्रम स्थल पर महिलाएं भी मौजूद हैं और उनके सामने गाली गलौज नहीं करनी चाहिए। इस घटना के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह कहना पड़ा कि पार्टी में बढ़ती अनुशासनहीनता से निपटने के लिए अनुशासन कमेटी बनाई जाएगी और जो भी अनुशासन भंग करता हुआ पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 

सवाल यह है कि सार्वजनिक स्थल पर एक दूसरे के खिलाफ गालियां बकने वाले कांग्रेस नेताओं को इस बात का ख्याल नहीं रह जाता है कि इससे पार्टी की छवि खराब हो रही है। पार्टी के ऐसे नेता और कार्यकर्ता आपस में गालीगलौज और एकदूसरे के खिलाफ बयान देकर राहुल गांधी की सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। इन गुटबाज और गालीबाज नेताओं और कार्यकर्ताओं की वजह से ही कांग्रेस आगे नहीं बढ़ पा रही है।

Tuesday, October 14, 2025

पुत्र और पुत्री में भेदभाव क्यों करते हो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

प्रकृति ने स्त्री और पुरुष दो प्रकार के जीवों की रचना की है। वैसे तो इंसानों में थर्ड जेंडर भी पाए जाते हैं, लेकिन विज्ञान मानता है कि गर्भ धारण के वक्त कुछ ऐसी अप्रत्याशित कारण पैदा हो जाते हैं जिसकी वजह से थर्ड जेंडर का जन्म होता है। इस स्थिति पर किसी का कोई वश भी नहीं है। लेकिन जो लोग स्त्री और पुरुष या बेटा-बेटी में भेद करते हैं, वह सुखी नहीं रह पाते हैं। इस संबंध में एक बड़ी रोचक घटना बताई जाती है। 

कहा जाता है कि किसी राज्य में एक संत रहते थे। वह लोगों के बीच भेदभाव रहित जीवन जीने की प्रेरणा दिया करते थे।  उनके पास जो भी अपनी समस्याएं लेकर आता था, वह उसका समाधान बता दिया करते थे। लोग उनके निस्वार्थ भाव से की गई सेवाओं का बड़ा सम्मान किया करते थे। एक बार की बात है। एक अमीर व्यापारी उनके पास आया और बोला-महाराज! वैसे तो मेरे पास अथाह धन संपत्ति है। 

संतान भी है। मेरी दो पुत्रियां है, लेकिन मेरे एक बेटा नहीं है। इस वजह से मेरा मन अशांत रहता है। आप ही बताएं मैं क्या करूं? संत ने पूछा कि आपको बेटा क्यों चाहिए? व्यापारी ने उत्तर दिया कि पुत्र न होने से लोगों को मोक्ष नहीं मिलता है। संत ने पूछा कि तुमने किसी ऐसे आदमी को देखा है कि उसे पुत्र न होने की वजह से मोक्ष न मिला हो। 

व्यापारी ने कहा कि मैंने ऐसा सुना है। तब संत बोले कि सुनी सुनाई बातों पर आप विश्वास क्यों करते हैं। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिनके पुत्र होते हुए भी वह दुखी हैं। यदि तुम अपनी दोनों पुत्रियों को अच्छी शिक्षा दो, तो वह आपको बेटे से ज्यादा गौरवान्वित करेंगी। यह सुनकर व्यापारी की आंखें खुल गई। उसने तब से पुत्र-पुत्री में भेदभाव न करने का संकल्प लिया।

दीपावली पर मिट्टी के दीये खरीदें कारीगरों के घरों में भी करें उजाला

अशोक मिश्र

पांच पर्वों के समूह में दीपावली सबसे ज्यादा मायने रखती है। धनतेरस से शुरू होने वाला पर्व भैया दूज पर जाकर खत्म होता है। दीपावली की रात गांव से लेकर शहर तक जगमगाते हैं। सच कहा जाए तो दीपावली शब्द दीप+ अवलि से मिलकर बना है। इसका मतलब है दीप मालिकाएं, दीपों की पंक्तियां। दीप सभी जानते हैं कि मिट्टी से बनाए जाते हैं। कहा जाता है कि चौदह साल का वनवास काटकर जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे, तो इस खुशी में अयोध्या के निवासियों ने अपने घरों को दीपक जलाकर खुशी मनाई थी। 

दीपावली उसी परंपरा की द्योतक है। दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीपक की बहुत मान्यता है। सदियों से हमारे देश में मिट्टी के दीपक ही उपयोग में लाए जाते रहे हैं। सामान्य दिनों में भी घर में रोशनी करने के लिए मिट्टी के दीए ही जलाए जाते रहे हैं। तब लालटेन या बिजली जैसी सुविधाएं नहीं थीं। सामाजिक परंपराएं और व्यवस्थाएं ऐसी थी कि मिट्टी के खिलौने, दीपक, घड़ा और अन्य चीजें बनाकर प्रजापति परिवार गांव और शहर वालों को उपलब्ध कराता था। बदले में समाज उनकी समस्त जरूरतों की पूर्ति करता था। 

वह भी अन्य लोगों की तरह सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब लोग बिजली की छालरें और अन्य वस्तुओं का उपयोग करते हैं जिसकी वजह से अब मिट्टी के दीयों की खरीदारी बहुत कम हो गई है। दो-तीन दशक पहले प्रजापति परिवार करवाचौथ के बाद ही मिट्टी के खिलौनों और दीपक को बनाने का काम शुरू कर देते थे। गांवों और शहरों में प्रजापति परिवार इस काम में जुट जाता था। लाखों दीये बनाकर वह बेचते थे। इसके साथ मिट्टी के रंग बिरंगे खिलौने भी भारी संख्या में बेच लेते थे। 

इसके उनका गुजारा चल जाता था। तब मिट्टी के लिए भी ग्राम पंचायत या खेत मालिक को कीमत नहीं देनी पड़ती थी। लोग सहयोगवश अपने खेत से मिट्टी निकालने की इजाजत दे देते थे। यह लोग तालाब की मिट्टी का भी उपयोग किया करते थे। लेकिन अब दीये बनाने के लिए एक ट्राली मिट्टी के लिए उन्हें तीन से चार हजार रुपये देने पड़ते हैं। एक मिट्टी का दीया बनाने में औसतन तीस से चालीस पैसे की लागत आती है। इसको बेचने पर भी मुश्किल से पंद्रह बीस पैसे का मुनाफा होता है। 

हर साल दीपावली के अवसर पर मिट्टी के दीयों और खिलौनों की मांग घटती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण चीन और अपने देश में बनने वाली बिजली की लड़ियां और अन्य सजावट के सामान हैं। हरियाणा के प्रजापतियों ने सरकार से उन्हें विशेष पैकेज देने की मांग की है। यदि सरकार उन्हें विशेष पैकेज दे दे, तो उनकी दशा में सुधार आ सकता है। केंद्र और प्रदेश सरकार जब स्वदेशी अपनाने की अपील कर रही है, ऐसी स्थिति में चाइनीज लड़ियों की जगह मिट्टी के दीये खरीदकर इनकी हालत सुधारी जा सकती है।

Monday, October 13, 2025

क्रोध के चलते माला सूख गई

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

उभय भारती जिन्हें देवी भारती भी कहा जाता है, का विवाह मंडन मिश्र से हुआ था। उभय भारती का जन्म मिथिला क्षेत्र के भटपुरा गांव में एक मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। देवी भारती की बड़ी बहन का नाम मंदना मिश्रा बताया जाता है, जो कुमारिला भट्ट की शिष्या थीं। 

कुमारिला भट्ट की यह दोनों बहनें भतीजी या बहन बताई जाती हैं। कुमारिला भट्ट ने ही देवी भारती का विवाह महिषी गांव के मंडन मिश्र से करवाया था। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र का बिहार के सहरसा जिले के महिषी गांव में एक बार शास्त्रार्थ हुआ था। यह शायद आठवीं शताब्दी की घटना है। शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिनों तक शास्त्रार्थ चला। 

इस दौरान अद्वैत सिद्धांत पर दोनों में से कोई हार मानने को तैयार नहीं था। अपने ज्ञान और विद्वता की वजह से देवी भारती को इस शास्त्रार्थ का निर्णायक बनाया गया था। इसी बीच किसी काम से देवी भारती को किसी काम से जाना पड़ा। अब जब निर्णायक ही न हो, तो शास्त्रार्थ कैसे चलेगा। 

देवी भारती ने इसका भी उपाय निकाला। उन्होंने दो मालाएं मंगवाई और एक-एक दोनों को पहनाने के बाद कहा कि हार-जीत का फैसला यह माला करेगी। इसके बाद देवी भारती चली गईं। काफी देर बाद जब लौटकर आईं तो उन्होंने दोनों मालाओं का निरीक्षण किया और शंकराचार्य को विजेता घोषित कर दिया। लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। 

उन्होंने कहा कि मंडन मिश्र के गले की माला सूख गई थी, इसका मतलब जब यह हारने लगे थे, तो इनको क्रोध आ गया था। इस वजह से माला सूख गई। हालांकि बाद में भारती ने भी शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया और कामशास्त्र पर सवाल पूछे। शंकराचार्य ने परकाया प्रवेश के जरिये कामशास्त्र पर ज्ञान प्राप्त किया और भारती को भी हराया।

फिर खराब होने लगी हवा, दीपावली पर पटाखे जलाने से करें परहेज


अशोक मिश्र

मानसून हरियाणा से विदा हो चुका है। वैसे तो निकट भविष्य में अब प्रदेश में बरसात की कोई संभावना नहीं है। बरसात खत्म होने के बाद भी काफी दिनों तक वायु की गुणवत्ता ठीक ठाक रहती है, ऐसा एकाध दशक पहले तक माना जाता था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। बरसात होने पर भले ही प्रदूषण का स्तर काफी घट जाता हो, लेकिन बरसात खत्म होने के कुछ ही घंटे या दिन बाद वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है। इन दिनों दिल्ली और एनसीआर सहित हरियाणा के लगभग सभी जिलों में प्रदूषण बढ़ने लगा है। 

वैसे तो लगभग पूरे साल दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण का स्तर खराब की श्रेणी में ही रहता है, लेकिन बरसात के विदा होने के तुरंत बाद ही वायु गुणवत्ता सूचकांक का बढ़ जाना चिंताजनक है। शनिवार को दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक दो सौ से ऊपर ही रहा। फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में भी शनिवार को एक्यूआई 258 तक पहुंच गया था जो एक्यूआई के खराब होने का सूचक है। यही हाल प्रदेश के लगभग सभी शहरों का है। अभी से अगर एक्यूआई 250 से ऊपर जा रहा है, तो आने वाले दिनों में क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सात-आठ दिन बाद दीपावली है। 

इस बार सुप्रीमकोर्ट भी पटाखे जलाने में छूट देने के मूड में दिखाई दे रहा है। ऐसी स्थिति में पटाखों की वजह से कितना प्रदूषण फैलेगा, इसका सहज आकलन किया जा सकता है। पिछले कुछ दिनों से हरियाणा में हवा की रफ्तार धीमी हो जाने से प्रदूषण के कण एक जगह पर स्थिर होने लगे हैं। इसकी वजह से कई इलाकों में बहुत ज्यादा प्रदूषण है। नतीजा यह हो रहा है कि हृदय और अस्थमा के रोगियों की परेशानी बढ़ रही है। अस्पतालों में जुकाम, अस्थमा, हृदय और त्वचा रोग संबंधी मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रदेश के सरकारी अस्पताल प्रदूषण जनित रोगियों से भरे पड़े हैं। 

प्राइवेट अस्पतालों में भी ऐसे रोगियों की भरमार है। यह स्थिति बताती है कि दस-पंद्रह दिन बाद हालात और भी बिगड़ने वाले हैं। संतोष की बात यह  है कि हरियाणा में इस बार पराली जलाने की घटनाएं बहुत मामूली हुई हैं। बढ़ते प्रदूषण में किसानों की भागीदारी बिल्कुल न के बराबर है। सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण के लिए वाहनों से निकला धुआं जिम्मेदार है। 

सड़कों पर दौड़ते वाहनों से निकलने वाला धुआं अब लोगों के लिए मुसीबत का कारण बनता जा रहा है। वायु प्रदूषण लोगों के लिए साइलेंट किलर जैसा है। इसके बावजूद लोग प्रदूषण को लेकर सतर्क नहीं हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में लोगों से बस यही अपील की जा सकती है कि वह दीपावली पर कम से कम पटाखों को चलाएं। यदि जलाना ही हो, तो ग्रीन पटाखे ही जलाएं। पटाखा कम जलाकर जहां वह अपने पैसों की बचत करेंगे, वहीं वह पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाने से बच जाएंगे।

Sunday, October 12, 2025

मौत के डर ने दुबला कर दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

राजा कृष्ण देव राय का जन्म 17 जनवरी 1471 ईस्वी में हुआ था। वह विजयनगर के सबसे चर्चित महाराज थे। वह स्वयं कवि और ज्ञानी पुरुष थे, लेकिन उनके दरबार में विद्वानों को बहुत ज्यादा संरक्षण प्राप्त था। तेलुगू भाषा के आठ कवि इनके दरबार की शोभा बढ़ते थे जिन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता है। स्वयं कृष्णदेवराय खुद आंध्रभोज के नाम से प्रसिद्ध थे। इनकी भी प्रतिभा अद्वितीय थी। 

उनके शासनकाल में विजयनगर की प्रजा बहुत खुशहाल और समृद्ध रही थी। जिस समय राजा कृष्णदेव राय ने सिंहासन संभाला था, उस समय राज्य की दशा बहुत डांवाडोल थी। पड़ोसी राजा इनके राज्य को हड़पने की फिराक में रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे कृष्ण देव राय ने अपने शासन को न केवल मजबूत किया, बल्कि शत्रुओं का दमन भी किया। एक बार की कथा है। 

राजा कृष्णदेव राय अपने स्वास्थ्य को लेकर लापरवाह हो गए। इसका नतीजा यह हुआ कि वह थोड़े मोटे होने लगे। राजवैद्य ने उनको बढ़ते वजन को लेकर चेताया भी, लेकिन वैद्य की सलाह का उल्लंघन करने लगे। वैद्य ने उन्हें कई तरह से अच्छा-बुरा समझाया, लेकिन वह नहीं माने। आखिर में वैद्य ने यह बात तेनालीराम को बताई तो उन्होंने एक उपाय बताया। एक दिन एक ज्योतिषी राज दरबार में आया और उसने कहा कि राजा की मौत एक महीने में हो जाएगी। 

राजा ने उस ज्योतिषी को कारागार में डालने का आदेश सुनाया ताकि भविष्यवाणी गलत साबित होने पर मौत की सजा दी जाए। महीना भर बीतने के बाद राजा ने ज्योतिषी को दरबार में बुलाया। तब ज्योतिषी ने कहा कि महाराज! अपना चेहरा देखिए। राजा ने आईना देखा, तो वह काफी दुबले हो गए थे। तब राजवैद्य ने सारी हकीकत बताई। तब राजा ने ज्योतिषी को विदा करने के साथ लापरवाही न करने की शपथ ली।

हरियाणा में हर दिन तीन पैदल यात्री होते हैं सड़क हादसों का शिकार

अशोक मिश्र 
सड़क पर चलना पिछले कुछ दशक से असुरक्षित होता जा रहा है। सड़क पर पैदल चलने वाले से लेकर भारी वाहन चालक तक सुरक्षित नहीं हैं। कब और कहां कोई तेज रफ्तार वाहन लोगों को रौंदता हुआ गुजर जाए, इसका कोई भरोसा नहीं है। हरियाणा में पिछले कुछ वर्षों से सड़क हादसों की संख्या में बढ़ोतरी ही हुई है। तेज रफ्तार गाड़ियां न केवल चालक और उसमें बैठी सवारियों के लिए जान लेवा हैं, बल्कि उनके आसपास से गुजर रही गाड़ियों और पदयात्रियों के लिए भी जानलेवा हैं। जो लोग रोमांच के चक्कर में तेज गाड़ी चलाते हैं और हादसा होने पर जिस वाहन से टकराते हैं, उसमें बैठी सवारियों की जान भी जोखिम में डालते हैं। 
कई बार सड़क हादसों का कारण सड़कों की स्थिति, फुटपाथ पर किए गए कब्जे और लावारिस घूमते पशु होते हैं। कब और कहां लावारिस पशु अचानक गाड़ी के सामने आ जाएं कोई नहीं जानता है। राज्य में बहुत सारे सड़क हादसों का कारण यही लावारिस पशु होते हैं। वैसे सैनी सरकार ने कई बार सड़कों को पशुविहीन करने की घोषणा की है, लेकिन अभी तक उन घोषणाओं को अमलीजामा नहीं पहुंचाया जा सका है। 
 यदि राज्य की सड़कों को पशुविहीन करने के साथ उनकी दशा सुधार दी जाए, तो सड़क हादसों की संख्या में कमी लाई जा सकती है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा में प्रतिदिन तीन पदयात्रियों और हर दूसरे दिन एक साइकिल सवार को अपनी जान गंवानी पड़ती है। एक अनुमान के अनुसार हर साल राज्य में बारह सौ पैदल चलने वालों और दो सौ साइकिल सवारों की सड़क हादसों में मौत हो जाती है। सरकारी आंकड़ा बताता है कि साल 2023 में 10,463 सड़क हादसों में 4968 लोगों की मौत हुई थी। 
वहीं, 2024 में सड़क हादसों में थोड़ी कमी आई थी। इस साल 9806 सड़क हादसे हुए थे जिसमें 4689 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। वहीं 7914 लोग बुरी तरह घायल हुए थे। इसमें कुछ लोग तो आजीवन अपंग हो गए थे। पैदल चलने वालों और साइकिल सवारों को सड़क हादसों से बचाने के लिए सरकार ने संवेदनशील स्थानों पर पैदल पार पथ बनाने की योजना बनाई है, ताकि ऐसे लोगों को सुरक्षित रखा जा सके। 
 योजना के अनुसार, शहरों में अधिक भीड़भाड़ वाले स्थानों, धार्मिक स्थलों, बाजार, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों के पास फुटपाथ का आडिट करके यहां पैदल यात्रियों को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इन सभी स्थानों पर जो कमियां हैं, उन्हें दूर किया जाएगा। इतना ही नहीं, फुटपाथ पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। सैनी सरकार ने राज्य की सड़कों की दशा और दिशा सुधारने का फैसला किया है। ऐसा करके प्रदेश में होने वाले हादसों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जाएगा।

Saturday, October 11, 2025

लक्ष्य से भटके, तो सफलता रहेगी दूर

प्रतीकात्मक चित्र
बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अगर व्यक्ति अपने लक्ष्य से न भटके, तो उसका सफल होना निश्चित है। यदि लक्ष्य से तनिक भी ध्यान भटका, तो सफलता के निकट होने पर भी सफलता नहीं मिलती है। सफलता व्यक्ति के साहस, लगन और कार्य पर निभर करती है। इस संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा है। 

किसी राज्य में एक राजा था। वह राज्य काफी अमीर था। वहां के लोग काफी खुशहाल और मानवप्रेमी थे। राज्य के लोग आपस में मिलजुलकर रहते थे और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की सहायता किया करते थे। लेकिन उस राज्य में एक ही दुख था कि राजा के कोई संतान नहीं थी। 

जब राजा बूढ़ा होने लगा, तो उसे राज्य के उत्तराधिकारी की चिंता हुई। उसने सभी तरह के उपाय आजमाए, लेकिन उसे किसी भी प्रकार से सफलता नहीं मिली। आखिरकार उसने तय किया कि अपनी संतान की आशा छोड़ करके किसी योग्य व्यक्ति को गोद लेना चाहिए और उसे राजा घोषित कर देना चाहिए। उसने मंत्री को बुलाकर मुनादी करवाई कि जो भी व्यक्ति कल उससे आकर मिलेगा, मैं उसे अपने राज्य का एक भाग दे दूंगा। 

तब मंत्री ने कहा कि ऐसे तो कई लोग आकर मिलेंगे, यदि सबको राज्य दे दिया गया, तो राज्य टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। अगले दिन राजा ने अपने बगीचे में मेला लगवा दिया। तरह-तरह के नाच गाने का प्रबंध था। खाने-पीने का बढ़िया प्रबंध किया गया था। 

लोग राजा की बात भूलकर मेले का आनंद लेने लगे। एक युवक घर से ठान कर आया था कि वह राजा से जरूर मिलेगा। उसने सभी बाधाओं को पार करते हुए राजमहल में प्रवेश किया। राजा ने उस युवक को अपना उत्तराधिकारी बना दिया क्योंकि उसे सिर्फ अपना लक्ष्य याद रहा। वह मेले के लालच में नहीं पड़ा।

हरियाणा के प्रशासनिक तंत्र का दो खेमों में बंटना चिंताजनक

अशोक मिश्र

हरियाणा वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरण कुमार की आत्महत्या एक दुखद घटना है। इस मामले में जो भी आरोपी हैं, उनकी जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी गई है। जो दोषी पाया जाए, उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए। लेकिन इस दुखद घटना के बाद का परिदृश्य चिंताजनक है। घटना को लेकर ब्यूरोक्रेसी से लेकर राजनीतिक हलके में माहौल गरम है। 

घटना ने पूरे प्रशासनिक तंत्र को झकझोरकर रख दिया है। सात अक्टूबर को आईजी वाई पूरण कुमार ने आत्महत्या से पहले पत्र लिखकर प्रदेश के 14-15 पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर दलित होने के कारण उन्हें परेशान करने का आरोप लगाया। उन्होंने जिस तरह रोहतक एसपी नरेंद्र बिजारणिया से लेकर डीजीपी शत्रुजीत कपूर सहित आईपीएस और आईएएस पर जातीय आधार पर परेशान करने और गाली-गलौज करने का आरोप लगाए हैं, वह आश्चर्यजनक है। 

हरियाणा के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी मामले में चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी सहित 14 पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर मामला दर्ज हुआ है। अपने पत्र में पूरण कुमार ने जिस तरह थोक के भाव आरोप लगाया है, उनके आरोपों पर सहज विश्वास नहीं हो रहा है। नौकरशाही पर भ्रष्टाचार के आरोप तो आए दिन लगते ही रहते हैं। लेकिन पत्र में जो आईजी वाई पूरण कुमार ने लिखा है, उस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। पूरा महकमा हाथ धोकर किसी एक अधिकारी के पीछे पड़ जाए और सरकार और मीडिया को इसकी भनक तक न लगे, विश्वसनीय नहीं लगता है। 

हो सकता है कि एकाध अधिकारियों ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया भी हो। किसी मुद्दे को लेकर बहस या गाली-गलौज भी हुई हो, लेकिन पूरा प्रशासनिक तंत्र उनके खिलाफ था, इस पर कौन विश्वास करेगा। उनके साथ ज्यादती हो रही थी, तो वह अदालत की शरण में भी जा सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा करने की जगह आत्महत्या की राह चुनी। आत्महत्या के बाद उपजे हालात की वजह से आईपीएस, आईएएस, एचसीएस अधिकारी दो गुटों में बंट गए हैं। प्रशासनिक हलकों में यह भी चर्चा है कि बुधवार की रात चंडीगढ़ में दलित अधिकारियों ने एक गुप्त बैठक भी की है। 

यदि इस मामले को जल्दी से जल्दी सुलझाया नहीं गया, तो प्रशासनिक तंत्र में जो गांठ पड़ेगी, उसका प्रभाव न केवल कामकाज पर पड़ेगा, बल्कि जनहित के कार्य भी प्रभावित होंगे। वैसे प्रदेश की विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को तूल देने में लगी हुई हैं। उन्होंने मुद्दे को एक अवसर की तरह लपक लिया है। अब वह दलित बनाम सवर्ण की आड़ में प्रदेश सरकार पर हमलावर हैं। शोषण और उत्पीड़न के चलते दलित अधिकारी की आत्महत्या से बेहतरीन मुद्दा उन्हें और कहां मिल सकता है।

Friday, October 10, 2025

हमेशा अच्छे लोगों की संगति करना

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हकीम लुकमान का जिक्र कुरान में भी आया है। वैसे भी
चिकित्सा क्षेत्र में हकीम लुकमान का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। वह अरब देशों में सबसे बड़े वैद्य माने जाते थे। वैसे तो अरबी, फारसी और तुर्की साहित्य में हकीम लुकमान के बारे में बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं। हालांकि इन कहानियों में से कुछ ही सच्ची हो सकती हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि लुकमान की मौत के बाद उनके बारे में बहुत सारी कहानियां जोड़ दी गई थीं। 

वैसे भी लुकमान का जन्म इस्लाम के आगमन से पूर्व का माना जाता है। यही वजह है कि कुरान में उनका जिक्र है। कहा जाता है कि हकीम लुकमान जब बूढ़े हो गए और उन्हें लगा कि अब उनका अंतिम समय आ गया है, तो उन्होंने अपने बेटे को आखिरी शिक्षा देने की सोची। वैसे वह हकीमी विद्या अपने बेटे को सिखा चुके थे। लेकिन उसे सांसारिक ज्ञान देने की जरूरत वह समझते थे। 

इसलिए मरने से पहले उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और कहा कि बेटा! तुम कोयले और चंदन के टुकड़े ले आओ। बेटे को अपने पिता की बात बहुत अटपटी लगी, लेकिन उसे पिता का आदेश मानना ही था। वह रसोई में गया और उसने कोयले का टुकड़ा उठा लिया। संयोग से घर में चंदन का भी टुकड़ा मिल गया। वह लेकर पिता के पास पहुंचा, तो उन्होंने कहा कि इसे फेंक दो। 

जब बेटा फेंकने चला, तो उसे रोकते हुए कहा कि तुम्हारे हाथ में कालिख लगी है या नहीं। बेटे ने कहा कि लगी है। तब हकीम ने कहा कि बुरे लोगों की संगति कोयले की तरह होती है। जीवन भर बुराई पीछा नहीं छोड़ती है। वहीं चंदन पकड़ने वाला हाथ महक रहा होगा। सज्जन पुरुष चंदन की तरह होते हैं। हमेशा सज्जन लोगों से ही मित्रता करना। इसके बाद लुकमान ने आंखें मूंद ली।