Tuesday, July 29, 2025

हाथी, महावत और राहगीर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इंसान को जब किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो वह पहले उस समस्या से निजात पाने की कोशिश करता है। हर संभव प्रयास करने के बाद दिया वह सफल नहीं होता है,तो वह मान लेता है कि वह उस समस्या से छुटकारा नहीं पा सकता है। 

भले ही यदि वह थोड़ा और प्रयास करता, तो उसे समस्या से निजात मिल जाती है। लेकिन विफलता उसके मन में कहीं गहरे बैठ जाती है। यदि कभी दोबारा वही समस्या आकर खड़ी हो जाती है, तो वह उस समय प्रयास ही नहीं करता है। इस संबंध में एक बड़ी ही रोचक कहानी कही जाती है। कहते हैं कि एक आदमी कहीं जा रहा था। वह अपने में ही मस्त था। 

कुछ दूर जाने पर उसे थकान महसूस हुई, तो वह एक बड़े पेड़ के नीचे रुक गया। तभी उसकी निगाह पास में ही एक पतली रस्सी से बंधे हाथी पर पड़ी। उसे पतली रस्सी से बंधे हाथी को देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ। उसने थोड़ी दूर खड़े महावत से पूछा कि इतनी पतली रस्सी को तुड़ाकर यह हाथी भाग नहीं सकता है क्या? महावत ने गंभीर होकर जवाब दिया कि जब यह हाथी छोटा था, तब भी मैं इसी रस्सी से बांधता था। तब रस्सी नई और मजबूत हुआ करती थी। यह लगातार प्रयास करता रहता था, इस रस्सी को तोड़ने की। 

लेकिन यह सफल नहीं हुआ। धीरे-धीरे इसके मन में यह बात बैठती गई कि इस रस्सी को तोड़ पाना उसके वश में नहीं है। अब जब इसमें ताकत आ गई है, तो भी यह रस्सी को तोड़ने की कोशिश नहीं करता है। हालांकि अगर वह चाहे तो एक झटके में इस रस्सी को तोड़ सकता है। यह सुनकर वह व्यक्ति यह सोचता हुआ आगे बढ़ गया कि इंसान भी ऐसा ही करता है। यदि वह थोड़ा प्रयास करे तो उस काम में सफल हो सकता है जिसमें पहले वह नाकाम साबित हुआ था।

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