Wednesday, April 3, 2013

कानून है या कानून का बाप!


अशोक मिश्र
नथईपुरवा गांव के रास्ते पर मगन मन यह सोचता हुआ चला जा रहा था कि इस बार गांव में होली पर खूब धमाल मचाऊंगा। नइकी भौजी लाख चिरौरी-विनती करें, उन्हें छोडूंगा नहीं। छोटकी भौजी को यहां रंग लगाऊंगा, बड़की भौजी को वहां। मंझली भौजी को कीचड़ से सराबोर कर दूंगा। पिछली बार का बदला जो लेना था। पिछली होली पर गांव की भौजियों ने मेरी इतनी दुर्गति की थी कि पांच दिन तक देह दर्द करती रही थी। नालियों का कचड़ा, गोबर, राख, रंग और मिट्टी से सिर से लेकर पांव तक सराबोर कर दिया था। अछयबर काका की छोटकी बहू ने तो खूब गाढ़ा रंग ऐसी-ऐसी जगह पर मला था कि मैं किसी को बता भी नहीं सकता था। शाम को जब छोटकी भौजी के पांव छूने पहुंचा, तो उन्होंने गाल पर चिकोटी काटते हुए कहा था, ‘ई बताओ...होली खेलै मा मजा आवा कि नाही।’ तब मैंने गाल सहलाते हुए कहा था, ‘इस बार तो चूक गया भौजी, सावधान नहीं था। अगली बार मैं भी ठांव-कुठांव ऐसा रंग लगाऊंगा, ताकि आप उसे भइया को भी नहीं दिखा सकें।’ छोटकी भौजी ने हाथ नचाते हुए कहा था, ‘जाव..जाव..बहुत देखे हैं तुमरे जैसन देवर।’ तब तक पंडिताइन काकी आ गर्इं और छोटकी भौजी काम में लग गई थीं।
गांव पहुंचा, तो इस बार मुझे देखकर न पहले की तरह कुत्ते भौंके, न बछिया रंभाई। मुझे ताज्जुब हुआ कि इस जिंदादिल गांव को क्या हो गया है! घर पहुंचा, तो काकी ने मुझे देखकर कहा, ‘तू क्यों आ गया होली पर? शहर में ही मना लेता।’ मैंने मन ही मन कहा, ‘ये लो..मैं इतनी दूर से होली मनाने गांव आ रहा हूं और काकी कहती हैं कि वहीं क्यों नहीं मना लिया तूने होली?’ मैंने बैग खटिया पर रखते हुए पूछा, ‘और काकी...काका नहीं दिखाई दे रहे हैं, खेत गए हैं क्या? मुन्नू और चुन्नू..’ मेरी बात पूरी होती, इससे पहले काकी बोल उठीं, ‘सब जेल में हैं...यही नहीं, गांव के सभी मर्द जेल में हैं।’ मैं चौंक उठा, ‘क्या...ऐसा भला क्या हुआ कि गांव के सभी मर्द जेल पहुंच गए।’ काकी ने आंचर से मुंह पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा, ‘बेटा, रामबहल रोज अपने खेत सुबह-शाम बड़की बगिया से होकर जाता था। पंद्रह दिन पहले की बात है। श्याम सुंदर की बिटिया घरघुसरी भी उसी रास्ते से आने जाने लगी। दस-बारह दिन पहले बलरामपुर से पुलिस आई और रामबहल को पकड़कर ले गई। इसके बाद तो जैसे गांव के मर्दों के जेल जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया। मुक्ता बरई की बहू गांव भर में गालियां देती घूमती रही कि श्याम सुंदर और उसका लड़का अगियार उसे घूरते हैं। वह पुलिस में जाकर रिपोर्ट लिखा आई। उस रात श्याम सुंदर के घर छापा पड़ा और घर के सारे मर्द गिरफ्तार कर लिए गए। यहां तक आठ साल के लड़के को भी नहीं छोड़ा।’ काकी की बात सुनकर मेरी उत्सुकता इस बात में थी कि काका और चुन्नू-मुन्नू किस अपराध में जेल में हैं?
मैंने काकी से पूछा, ‘फिर क्या हुआ?’ काकी ने कहा, ‘फिर क्या होना था! सबने अपनी-अपनी दुश्मनी निकालनी शुरू कर दी।’ मैंने गहरी सांस लेकर कहा, ‘यह बताओ काकी, काका और चुन्नू-मुन्नू क्यों जेल गए?’ काकी ने अपना माथा पीटते हुए कहा, ‘क्या बताऊं बेटा! किस्मत खराब थी, वरना कोई भैंस को छेड़ने के अपराध में जेल जाता है, वह भी बच्चों समेत।’ काकी की बात सुनकर मैं चौंक उठा, ‘क्या...भैंस को छेड़ने के अपराध में? यह क्या कह रही हैं आप?’ काकी ने पलकों की कोर से ढुलक आए आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘हां बेटा! दो महीने पहले की बात है। बहादुर बाबा का संझला बेटा शैतानी कर रहा था, तुम्हारे काका ने उसे डांट दिया था। बहादुर बाबा को तुम्हारे काका का डांटना शायद बुरा लगा। वे इस बात को अपने मन में रखे रहे। देश में जैसे ही नाशपीटा नया कानून लगा हुआ, वे सारी खुन्नस निकाल लिए। उन्होंने थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई कि तुम्हारे काका उनकी ‘श्रीदेवी’ से छेड़छाड़ कर रहे थे। चुन्नू-मुन्नू भी गाहे-बगाहे ‘श्रीदेवी’ को घूरते रहते हैं, उसका पीछा करते हैं। पुलिस वाले शिकायत मिलने के बाद कार्रवाई न करने पर होने वाली सजा के डर से आनन-फानन आए और तुम्हारे काका सहित चुन्नू-मुन्नू को जेल के लिए बुक कर दिया। तब से वे सभी जेल में हैं।’ मैंने पूछा, ‘काकी! यह श्रीदेवी कौन है? उनके कोई बेटी या बहू तो है नहीं।’ काकी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘मुए अपनी भैंस को ही श्रीदेवी कहकर बुलाते हैं। पुलिस वालों ने यह जानने की जहमत नहीं उठाई कि श्रीदेवी भैंस है या नारी।’ बहादुर बाबा तो गांव में यह कहते हुए घूम रहे हैं कि श्रीदेवी भले ही भैंस है, लेकिन है तो मादा। काकी की बात सुनकर मैंने अपना माथा पीट लिया और बिना होली खेले शहर लौट आया।

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