Thursday, February 27, 2025

जाओ! सिक्के को कुएं में डाल दो

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इनसान जब तक मेहनत करके कुछ हासिल नहीं करता है, तब तक उसे किसी भी वस्तु का वास्तविक मूल्य नहीं पता होता है। वह जान ही नहीं पाता है कि जिन वस्तुओं का वह उपयोग कर रहा है, उसके निर्माण में कितना श्रम और पैसा लगा है। उसे तो लगता है कि जिस वस्तु या सुख-सुविधाओं का उपयोग कर रहा है, वह उसके लिए ही बनाई गई है। वह उसका जब और जैसा चाहे उपयोग कर सकता है। वह उस वस्तु या सुविधाओं की बेकद्री भी करता है, लेकिन जिस वस्तु में उसका श्रम लगा हो, उसको वह सहेजकर रखता है। 

एक शहर में व्यापारी रहता था। उसका एक पुत्र था, लेकिन घर वालों के लाड़-प्यार ने उसे लापरवाह बना दिया था। व्यापारी ने काफी प्रयास किया कि उसका लड़का उसके व्यापार में रुचि ले, व्यापार की गूढ़ बातों को सीखे, समझे ताकि उसके बाद उसका बेटा व्यापार को संभाल सके। 

एक दिन आजिज आकर उसने अपने बेटे से कहा कि उसे घर में खाना तभी मिलेगा, जब वह कुछ कमाकर लाएगा। यह सुनकर लड़का भागा भागा अपनी मां के पास गया। मां ने उसे एक रुपये का सिक्का दिया। उसे लेकर वह व्यापारी के पास गया। 

व्यापारी ने कहा कि इसे कुएं में डाल आओ। लड़के ने सिक्का कुएं में डाल दिया। दूसरे दिन फिर यही हुआ। उसने अपनी बहन से एक रुपया लिया और पिता के पास गया। पिता ने इस सिक्के को भी कुएं में डालने को कहा। 

बेटे ने वही किया। इस तरह कुछ दिन बीत गए। अब सबने पैसे देने से मनाकर दिया। तो वह पैसे कमाने निकला। दिन भर कड़ी मेहनत के बाद 25 पैसे मिले, उसे लेकर पिता के पास गया। 

पिता ने कहा कि कुएं में डाल दो। 

इस पर बेटे ने कहा कि मैं अपनी मेहनत की कमाई को कुएं में क्यों डाल दूं। पिता ने बेटे को गले से लगा लिया और कहा कि अब तू मेरा व्यापार संभाल सकता है।





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