Thursday, February 27, 2025

हॉकी खिलाड़ी रूप सिंह को प्रिंसिपल से मिला उपहार

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सेना में मेजर रहे हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद के छोेटे भाई थे कैप्टन रूप सिंह। मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में 8 सितंबर 1908 में बैंस राजपूत घराने में पैदा हुए रूप सिंह ने हॉकी के मैदान पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया था। उन्होंने 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीते थे। 

उन्होंने लॉस एंजिल्स ग्रीष्मकालीन ओलंपिक 1932 में जापान के खिलाफ तीन गोल और अमेरिका के खिलाफ दस गोल किए थे। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई लिखाई ग्वालियर के विक्टोरिया स्कूल में हुई थी। उन दिनों देश पर अंग्रेजों का शासन था। 

अंग्रेजी स्कूलों में भारतीय छात्र-छात्राओं को बहुत मुश्किल से एडमिशन मिलता था। रूप सिंह ने अपनी प्रतिभा के बल पर विक्टोरिया स्कूल में दाखिला पाया था। बात उन दिनों की है, जब वह छठवीं क्लास में पढ़ते थे, तब उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया था। 

पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ वह खेलकूद में भी आगे थे। यही वजह थी कि प्रिंसिपल का वह चहेता बन गए थे। हॉकी बहुत बढ़िया खेलते थे। वह स्कूल में ही प्रैक्टिस किया करते थे। एक दिन स्कूल के बगल में रहने वाला एक आदमी बहुत गुस्से से तमतमाता हुआ स्कूल पहुंचा। उसने प्रिंसिपल से गुस्से में कहा कि तुम्हारे स्कूल के एक छात्र ने इतनी तेजी से हॉकी की बॉल मेरी दीवार पर मारी है कि दीवार चटक गई है। गुस्से से बोलने वाला पड़ोसी भी अंग्रेज ही था। 

प्रिंसिपल समझ गए कि यह काम किसने किया होगा। किसी तरह उन्होंने उस पड़ोसी को समझा-बुझाकर घर भेजा। बाद में उन्होंने रूप सिंह बैंस को बुलाकर एक हॉकी बॉल उनको पुरस्कार के रूप में दी। अपने प्रिंसिपल के प्रोत्साहन की बदौलत एक दिन रूप सिंह ने ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया।





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