व्यंग्य
अशोक मिश्र
कल उस्ताद गुनाहगार चौराहे पर मिल गए। थोड़े उदास से लग रहे थे। मैने उन्हें आवाज दी, लेकिन उन्होंने सुना नहीं। वह अपने में ही खोए हुए भागे चले जा रहे थे। मैंने अपनी चाल बढ़ाते हुए आखिरकार उन्हें घेर ही लिया। मुझे देखते ही वह अचकचा उठे। मैंने लपककर उनके चरण स्पर्श किए, तो वह गदगद हो उठे। तपाक से बोले, तुम्हें भी साहित्य का नोबल पुरस्कार मिले। मैं उनकी बात सुनकर चौंक उठा।
मैंने पूछ ही लिया-‘उस्ताद! तुम्हें भी का क्या मतलब है। किसी और को भी नोबल पुरस्कार मिलने जा रहा है क्या? वैसे उस्ताद, एक बात बता दूं। मुझे कोई नोबल-वोबल मिलने वाला नहीं है। अरे, आज तक किसी गली-कूचे की साहित्यिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक संस्था ने मुझे दो कौड़ी का पुरस्कार देने योग्य नहीं समझा, तो भला नोबल-शोबल की बात ही क्या कही जाए। लेकिन एक बात बताइए क्या सचमुच अपने देश में किसी को नोबल पुरस्कार मिलने जा रहा है क्या?’
मेरी बात सुनकर उस्ताद मुजरिम के चेहरे की उदासी थोड़ी छंटी। वह होंठों को तनिक वक्र कर मुस्कुराए और बोले, नोबल पुरस्कार वाले मुझे जेबतराशी (पाकेटमारी) की कला के लिए नोबल देना चाहते हैं। लेकिन मैं लेना नहीं चाहता हूं। बीस साल पहले मैंने नोबल वालों से गुजारिश की थी कि वह उस्ताद मुजरिम जैसे जेबतराश की कला का सम्मान करते हुए उन्हें नोबल दिया जाए, लेकिन तब यही नोबल वाली कमेटी ने बहुत नाक-भौं सिकोड़ा था।
अब वह मुझे जेबतराशी का नोबल पुरस्कार मुझे देना चाहते हैं। उस्ताद मुजरिम जैसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ जेब तराश के आगे मुझ जैसे मामूली आदमी की क्या बिसात है। जब हमारे उस्तादों के उस्ताद मुजरिम को नोबल नहीं दिया, तो अब नोबल लेने मेरा ठेंगा जाए। इतना कहते हुए उस्ताद गुनाहगार हांफने लगे।
मैंने तत्काल उनके पांव पकड़ लिया। कहा, अरे उस्ताद! ऐसा जुर्म मत कीजिए। जेबतराश कला को उच्चतम ऊंचाई तक ले जाने वाले दुनिया के एकमात्र उस्ताद आप ही बचे हैं। उस्ताद मुजरिम भी अब नहीं रहे। कम से कम आप तो इस कला को उसका सम्मान दिला दीजिए। एक आप हैं कि नोबल आपके हाथों में धरा जा रहा है और एक ट्रंप है जो शांति का नोबल छीन लेना चाहता है।
ट्रंप दुनिया भर में घूम-घूमकर यह कहते फिर रहे हैं कि मैंने सात युद्ध रुकवा दिए हैं। भारत-पाक में सीजफायर करवा दिया है। अब उसकी बात को कोई सुन भी नहीं रहा है। एक ही चुटकुले पर कोई कितनी बार हंसेगा। लेकिन नहीं, ट्रंप नोबल दे दो, नोबल दे दो की रट लगाए हुए हैं। जिस दिन नोबल पुरस्कार बांटे जाएंगे, मुझे तो भय है कि उस दिन ट्रंप अपने लड़ाकू विमानों में सैनिक भेजकर सारे पुरस्कार छिनवा न ले और कह दे कि सारे मेडल मेरे हैं और मैं ही रखूंगा।
मेरी बात सुनते ही गुनाहगार ने मुंह बिचकाते हुए कहा कि ट्रंपवा तो लुच्चा है। हां, ऐसा कर सकता है। वैसे उसकी आत्मा तब तक शरीर नहीं छोड़ने वाली है जब तक उसे नोबल पुरस्कार मिल नहीं जाता है। मुझे तो डर इस बात का है कि कहीं ऐसा न हो, नोबल पुरस्कार कमेटी के लोगों पर टैरिफ लगा दे। नोबल कमेटी वालों ने सांस लिया, तो उस पर 35 प्रतिशत टैरिफ, यह वह हाजत के लिए गए तो उस पर 22 प्रतिशत टैरिफ लगेगा। भले ही यह सारी क्रियाएं वह अपने ही देश में करें।
यदि वह बीयर खरीदते हैं, तो उस पर 45 प्रतिशत टैरिफ, वाइन पर 48 प्रतिशत टैरिफ। कहने के मतलब है कि नोबल कमेटी वालों के खाने, पीने, रहने और अन्य क्रियाओं पर भी वह टैरिफ लगा सकता है। वह तो एकदम पगलैट है। पगलैटी में वह पूरी दुनिया का नुकसान तो कर ही रहा है, अमेरिका को भी गहरे गड्ढे में धकेल रहा है। मैंने उस्ताद गुनाहगार का हाथ पकड़कर चाय की ठेली पर लाया और कहा, छोड़िए न ट्रंप को। नोबल पुरस्कार कब मिल रहा है? उस्ताद ने कहा, कभी नहीं। मैंने मना कर दिया है चौर्य नोबल पुरस्कार लेने से।
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