Sunday, October 5, 2025

जब तक पेंसिल खोज नहीं लूंगा, चैन नहीं मिलेगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा गांधी हर किसी का सम्मान करते थे। उनके लिए बूढ़ा-बच्चा, स्त्री-पुरुष, विरोधी समर्थक सब समान थे। वह सबको समान रूप से देखते थे। यही वजह है कि देश की जनता के बीच बहुत लोकप्रिय थे। वह जहां भी जाते थे, लोग उनसे मिलने के लिए मीलों पैदल चलकर आते थे। सबसे मिलते थे और सबकी बात बड़े ध्यान से सुनते थे। एक बार की बात है। महात्मा गांधी से मिलने के लिए काका कालेलकर उनके घर आए। 

उस समय गांधी जी बहुत परेशान होकर कुछ खोज रहे थे। कुछ देर बाद काका ने पूछ ही लिया कि बापू, आप क्या खोज रहे हैं इतनी देर से? गांधी ने परेशान लहजे में कहा कि एक पेंसिल खो गई है। अभी थोड़ी देर पहले यहीं थी। लेकिन अब मिल नहीं रही है। इतना कहकर महात्मा गांधी फिर पेंसिल को खोजने में जुट गए। उन्हें परेशान देखकर काका ने अपनी जेब से एक पेंसिल निकाली और गांधी जी की ओर बढ़ाते हुए कहा कि फिलहाल इस पेंसिल से काम चला लीजिए, बाद में वह पेंसिल खोज लीजिएगा। 

महात्मा गांधी ने वह पेंसिल लेने से इनकार करते हुए कहा कि मुझे वह पेंसिल खोजनी ही है। वह मुझे बहुत प्रिय है। जब तक मैं उसे खोज नहीं लूंगा, तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा। यह सुनकर काका ने पूछा कि आखिर उस पेंसिल में ऐसी क्या खास बात है जिसके लिए आप इतना परेशान हो रहे हैं। 

तब महात्मा गांधी ने जवाब देते हुए कहा कि वह पेंसिल मुझे एक बच्चे ने उपहार में दी थी और यह वचन लिया था कि मैं उसे खोऊंगा नहीं। यदि वह पेंसिल खो गई, तो उस बच्चे के उपहार का अपमान करना होगा। मैं यह सहन नहीं कर सकता हूं। यह सुनकर काका बहुत अभिभूत हुए कि गांधी जी इतनी छोटी-छोटी बातों पर भी बहुत ध्यान देते हैं। काफी देर बाद वह पेसिंल एक फाइल में अटकी मिली।

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